Thursday 16 February 2017

भाग्यशाली के लक्षण

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लेखक परिचय

पंडित दयानंद शास्त्री

ज्योतिष-वास्तु सलाहकार, राष्ट्रीय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रीय पंडित परिषद्, मोब. 09669290067 मध्य प्रदेश

आइये जाने की सामुद्रिक/हस्तरेखा शास्त्र से कैसे देखें भविष्य ; How to know about future from palmlines

Posted On March 1, 2012 by &filed under ज्योतिष.

मानव-शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट के आधार पर उसके गुण-कर्म-स्वाभावादि का निरूपण करने वाली विद्या आरंभ में लक्षण शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध थी।

हाथ की परीक्षा —-

प्रातःकाल शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर देवपूजनोपरांत अपने हाथ में श्रीफल (नारियल), ऋतुफल, मिष्ठान्न, पुष्प एवं दक्षिणा आदि लेकर हस्त परीक्षक की सेवा में उपस्थित होना चाहिए।

सामान्यतः पुरुषों का दायाँ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखना चाहिए। अतः वर्तमान जीवन की जानकारियाँ दाएँ हाथ से तथा पूर्व-जन्मार्जित कर्म-फल विषयक ज्ञातव्य बाएँ हाथ से प्राप्त करना चाहिए। स्त्रियों के विषय में इससे विपरीत समझना चाहिए।

—–हस्त-परीक्षा का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल का है। ग्रहण के समय, श्मशान में, मार्ग में चलते समय तथा भीड़-भाड़ में हाथ नहीं देखना चाहिए। हाथ दिखाने वाले के अतिरिक्त यदि कोई अन्य व्यक्ति भी उपस्थित हो तो उस समय हाथ नहीं देखना चाहिए, जल्दबाजी में हाथ देखना वर्जित है।

—–अगर किसी रेखा के साथ-साथ कोई और रेखा चले तो उस रेखा को शक्ति मिलती है। अतः उस रेखा का विशेष प्रभाव समझना चाहिए। कमजोर, दुर्बल अथवा मुरझाई हुई रेखाएँ बाधाओं की सूचक होती हैं।

—– अस्पष्ट और क्षीण रेखाएँ बाधाओं की पूर्व सूचना देती हैं। ऐसी रेखाएँ मन के अस्थिर होने तथा परेशानी का संकेत देती हैं।

—– अगर कोई रेखा आखिरी सिरे पर जाकर कई भागों में बँट जाए तो उसका फल भी बदल जाता है। ऐसी रेखा को प्रतिकूल फलदायी समझा जाता है।

—–टूटी हुई रेखाएँ अशुभ फल प्रदान करती हैं।

—–अगर किसी रेखा में से कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर बढ़े तो उस रेखा के फल में वृद्धि होती है।

—–वैज्ञानिक अध्ययन से यह पता चलता है कि मस्तिष्क की मूल शिराओं का हाथ के अंगूठे से सीधा संबंध है। स्पष्टतः अंगुष्ठ बुद्धि की पृष्ठ भूमि और प्रकृति को दर्शाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है। बाएं हाथ के अंगूठे से विरासत में मिली मानसिक वृति का आकलन किया जाता है और दायें हाथ के अंगूठे से स्वअर्जित

बुद्धि-चातुर्य और निर्णय क्षमता का अंदाजा लगाना संभव है। अंगूठे और हथेली का मिश्रित फल व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल पाने में सक्षम है। व्यक्ति

के स्वभाव और बुद्धि की तीक्ष्णता को अंगुष्ठ के बाद अंगुलियों की बनावट और मस्तिष्क रेखा सबसे अधिक प्रभावित करती है।

—-अमेरिकी विद्वान विलियम जार्ज वैन्हम के अनुसार व्यक्ति के हाव-भाव और पहनावे से उसके स्वभाव के बारे में आसानी से बताया जा सकता है।

—अतीव बुद्धि संपन्न लोगों का अंगुष्ठ पतला और पर्याप्त लंबा होता है। यह पहली अंगुली (तर्जनी) से बहुत पृथक भी स्थित होता है। यह व्यक्ति के लचीले स्वभाव को व्यक्त करता है। इस प्रकार के लोग किसी भी माहौल में स्वयं को ढाल सकने में कामयाब हो सकते हैं। ये काफी सहनशील भी देखे जाते हैं। इन्हें न तो सफलता का ही नशा चढ़ता है और न ही विफलता की परिस्थितियों से ही विचलित होते हैं। इनकी सबसे अच्छी विशेषता या गुण इनका लक्ष्य के प्रति निरंतरता है। लेकिन —–यदि अंगुष्ठ का नख पर्व (नाखून वाला भाग) यदि बहुत अधिक पतला है तो व्यक्ति अंततः दिवालिया हो जाता है और यदि यह पर्व बहुत मोटा गद्दानुमा है तो ऐसा व्यक्ति दूसरों के अधीन रह कर कार्य करता है। यदि नख पर्व गोल हो और अंगुलियां छोटी और हथेली में शनि और मंगल का प्रभाव हो तो जातक स्वभाव

से अपराधी हो सकता है।

——अंगुलियां कुल हथेली के चार में से तीन भाग के समक्ष होनी चाहिए। इससे कम होने से जातक कुएं का मेढक होता है। उसके विचारों में संकीर्णता और स्वभाव में अति तक की मितव्ययता होती है। सीमित बुद्धि संपन्न ये जातक भारी और स्थूल कार्यों को ही कर पाते हैं। बौद्धिक कार्य इनके लिए दूर की कौड़ी होती है। अक्सर इनको स्वार्थी भी देखा गया है। इस प्रकार की अंगुलियां यदि विरल भी हो तो आयु का नाश करती हैं।

——अंगुलियां के अग्र भाग नुकीले रहने से काल्पनिक पुलाव पकाने की आदत होती है। जिससे व्यक्ति जीवन की वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हुए एक असफल जीवन जीता है।

——-अंगुलियां लंबी होने से जातक बौद्धिक और सूक्ष्मतम कार्य बड़ी सुगमता से पूर्ण कर लेता है और स्थूल कार्य भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं होते हैं। बहुत बार इस प्रकार के जातक नेतृत्व करते देखे जाते हैं।

इस प्रकार की अंगुलियों के साथ हाथ यदि बड़ा और चमसाकार हो तो जातक अपनी क्षमता का लोहा समाज को मनवा लेता है। लंबी अंगुलियों के साथ यदि हथेली में शुक्र मुद्रिका भी हो तो जातक सर्वगुण संपन्न होते हुए भी भावुकतावश प्रगति के मार्ग में पिछड़ जाता है। शनि मुद्रिका होने से दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है। इस प्रकार के जातक अपनी योग्यता और क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण इनको जीवन में सीमित उपलब्धियों से ही संतोष करना होता है। चंद्रमा का बहुत प्रभाव होने से जातक पर यथार्तता की अपेक्षा कल्पना हावि रहती है।

——-अंगुलियों के नाखून जब त्वचा में अंदर तक धंसे हों, साथ ही ये आकार में सामान्य से छोटे हों तो जातक बुद्धि कमजोर होती है। इसकी मनोवृत्ति सीमित और आचरण बचकाना होता है। ये जातक आजीविका हेतु इस प्रकार के कार्य करते पाए जाते हैं, जिनमें बौद्धिक / शारीरिक मेहनत न के बराबर होते होती है।

——-कनिष्ठा सामान्य से अधिक छोटी हो तो जातक मूर्ख होता है। कनिष्ठा के टेढी रहने से जातक अविश्वसनीय होता है। टेढ़ी कनिष्ठा को कुछ विद्वान चोरी करने की वृत्ति से भी जोड़ते हैं। लेकिन इसे तभी प्रभावी मानना चाहिए जब हथेली में मंगल विपरीत हो, क्योंकि ग्रहों में मंगल चोर है।

——अंगुलियों का बैंक बैलेंस से सीधा संबंध है। केवल अंगुलियों का निरक्षण कर लेने भर से ही इस तथ्य का अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में धन संग्रह की प्रवृत्ति कहां तक है। तर्जनी (पहली अंगुली) और मध्यमा (बीच की अंगुली) यदि बिरल (मध्य में छिद्र) हों तो निश्चित रूप से जीवन के मध्य काल के बाद ही धन का संग्रह हो पाता है। यदि कनिष्ठा विरल हो तो वृद्धावस्था अर्थाभाव में व्यतीत होती है। यदि अंगुलियों के मूल पर्व गद्देदार और स्थूल हों तो जीवन में विलास का आधिक्य रहता है। सभी अंगुलियों के विरल होने से जीवन पर्यन्त धन की कमी रहती है। सीधी, चिकनी और गोल अंगुलियां धन को बढ़ा देती है। सूखी अंगुलियां धन का नाश करती हैं।

——-वे अंगुलियां जिनके जोड़ों की गांठें बहुत उभरी हुई हों, संवेदनशील और कंजूस प्रवृत्ति दर्शाती हैं। लेकिन ऐसी उंगलियों वाले जातक कड़ी मेहनत कर सकते हैं। यही इनकी सफलता का रहस्य होता है।

—–अंगूठे और अंगुलियों के आकार-प्रकार के अलावा हाथ की बनावट से हमें काफी कुछ जानकारी प्राप्त होती है।

——समचौरस हथेली के स्वामी व्यवहारिक होते हैं। लेकिन ऐसे लोग स्वार्थी भी होंगे। साथ ही समय आने पर किसी को धोखा भी दे सकते हैं। इसके विपरीत लंबवत हथेली के ]स्वामी भावुक और कल्पनालोक में विचरण करने वाले लोग होंगे। आमतौर पर ये जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं रहते हैं। तथापि ये नौकरी में ज्यादा सफल रहते हैं। ऐसे लोग यदि स्वयं का व्यवसाय स्थापित करें तो प्रायः लंबा नुकसान उठाते हैं। अतः ऐसे लोगों को हमेशा नौकरी को तरजीह देनी चाहिए।

—–हथेली का पृष्ठभाग समतल या कुछ उभार लेते हुए होना चाहिए। ऐसी हथेली का जातक व्यवहारिक होता है। यदि हथेली का करपृष्ठ बहुत अधिक उभार लिए हुए हो तो प्रायः व्यक्ति कर्कश स्वभाव और झगड़ालू होता है।

——हथेली में जब गहरा गढ़ा हो तो प्रायः जातक अपनी बात पर कायम नहीं रह पाता है। ऐसे लोग जीवन मे अत्यंत संघर्ष के उपरांत ही कुछ हासिल कर पाते हैं।

——–हथेली का पृष्ठ भाग और कलाई हमेशा समतल होनी चाहिए। यदि दोनों में ज्यादा अंतर है तो यह जातक को समाज में स्थापित होने से रोकती है। ऐसे लोग अपने परिजनों से विरोध करते हैं। समाज में इनकी प्रतिष्ठा कम होती है।

——–जिन हाथों में शनि-मंगल का प्रभाव हो वे लोग कानूनी समस्याओं का सामना करते हैं। कुछ मामलों में ऐसे लोग अपराधी भी हो सकते हैं।

——–हथेली में राहु का प्रभाव होने पर जातक बुरी आदतों का शिकार होता है। वह धर्मभ्रष्ट भी हो सकता है। मदिरापान कर सकता है या अभक्षण का भी भक्षण कर सकता है।

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ऐसी हस्तरेखा वाले को होता हें भारी धन-लाभ—-

प्रायः हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसे अचानक भारी धन-लाभ हो, चाहे किसी भी प्रकार से हो। इस अचानक लाभ के लिए व्यक्ति अपनी जमापूँजी को भी लॉटरी, रेस, सट्टा आदि में लगा देते हैं। इस तरह अपनी परिश्रम से कमाई हुई दौलत को बर्बाद करना सर्वथा अनुचित है। यह भी जान लेना जरूरी है कि वास्तव में आपके भाग्य में आकस्मिक धन-लाभ प्राप्त होना है या नहीं।

हस्तरेखा के अनुसार- जिनके दाहिने हाथ पर चंद्र के उभरे हुए भाग पर तारे का चिह्न है और जिनकी अंतःकरण रेखा शनि के ग्रह पर ठहरती है, ऐसे व्यक्तियों को आकस्मिक लाभ मिलता है। जिनके दाहिने हाथ की बुध से निकलने वाली रेखा चंद्र के पर्वत से जा मिलती है और जिनकी जीवन रेखा भी चंद्र पर्वत पर जाकर रुक जाती है, ऐसे व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होता है।

जिनकी भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकलकर प्रभावी शनि में संपूर्ण विलीन हो जाती है, ऐसे भाग्यवान व्यक्तियों को अल्पकालीन धन-लाभ होता है। जिनके दाहिने हाथ पर दोहरी अंत.करण रेखा है और गौण रेखा बुध तथा शनि के ग्रहों से जुड़ी हुई है, ऐसे व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होगा। इसके विपरीत जिनके हाथों की आयुष्य रेखा नेपच्युन ग्रह पर गई हों, चंद्र और नेपच्युन पर्वत एक-दूसरे में घुल-मिल गए हों, अंतःकरण रेखा गुरु पर्वत पर ठहर गई हो, जिनके शनि के उभरे हुए भाग पर फुली पड़ गई हो, ऐसे व्यक्तियों को रेस, लॉटरी इत्यादि में धन-लाभ कभी नहीं होगा, उनका पूरा जीवन कड़ा परिश्रम करने में ही गुजरता है। वे पैसे गँवाकर कंगाल बने रहते हैं।

जन्मकुंडली के अनुसार-जिनकी कुंडली में सप्तम स्थान में वृष राशि का चंद्र हो और लाभ स्थान में कन्या राशि का शनि हो, ऐसे व्यक्ति की पत्नी को भारी आकस्मिक धन-लाभ होता है, जब उनकी आयु 37 से 43 वर्ष के मध्य हो। चंद्रमा और बुध धन स्थान में हो तो बहुत लाभ होता है। दशम स्थान में कर्क राशि का चंद्र और धन स्थान में शनि हो तो अचानक धन-लाभ होता है।

धन स्थान में 5 या इससे अधिक ग्रह हों तो बड़ा धन-लाभ होता है। इसके विपरीत व्यय स्थान में बारहवें केतु हो, जन्मकुंडली में कालसर्प योग हो। चंद्र, बुध और शनि नीच स्थान में हों तो रेस, सट्टा, लॉटरी से कोई लाभ नहीं होता। व्यक्ति को तभी आकस्मिक लाभ होगा जब कुंडली में पंचम भाव, द्वितीय भाव तथा एकादश भाव व उनके स्वामी ग्रह और इन भावों में स्थिर ग्रह बलवान हों।

जन्म कुंडली में पंचम भाव को संचित भाव कहते हैं। एकादश भाव से लाभ का विचार किया जाता है तथा द्वितीय भाव से धन-संपत्ति का निर्णय किया जाता है। वर्णित जन्मकुंडली में पंचम भाव में गुरु स्थित है, पंचमेश मंगल धन भाव में स्थित है। पंचम भाव पर पंचमेश मंगल की चतुर्थदृष्टि है, द्वितीय भाव में मंगल स्थित है। द्वितीयेश सूर्य केंद्र भाव में उच्च का है। एकादश भाव पर गुरु की दृष्टि है, एकादश भाव का अधिपत्य शुक्र भाग्य भवन में उच्च का है तथा उस पर गुरु व मंगल की उच्च दृष्टि है। ऐसे व्यक्ति की कुंडली में भारी मात्रा में लाभ होने का योग है।

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मानव शरीर में उँगलियों का महत्व—-

दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ- अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से तर्जनी, मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्का से कनिष्का मिलती है तो शरीर के, जो ब्रह्मांड का एक छोटा रूप माना जाता है, उत्तरी ध्रुव (बायाँ हाथ) एवं दक्षिण ध्रुव (दायाँ हाथ) के मिलन से एक चक्र पूर्ण होता है, क्योंकि बाएँ हाथ में स्थित सभी बारह राशियों का संपर्क दाहिने हाथ में स्थित सभी बारह राशियों से परस्पर होता है।

अँगूठा —–

सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है। इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं। संभव है इसी के कारण गुरु द्रोण ने एकलव्य से उसका अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में माँग लिया था।

बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है, जिसका तात्पर्य हमारे यहाँ किसी कार्य को करने से मना करना समझा जाता है। परंतु पश्चिमी सभ्यता में ठीक उलटा यानी थम्स आपको कार्य करने की स्वीकृति समझा जाता है। यूँ तो दुनिया में कई करोड़ मनुष्य हैं, परंतु जिस प्रकार सबकी मुखाकृति भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी के अँगूठों के निशान भी भिन्न होते हैं। इसी कारण अपराध जगत में थम्ब इम्प्रेशन का महत्व काफी होता है।

तर्जनी —-

यह सबसे ऊर्जावान उँगली होती है। हमारे यहाँ विश्वास किया जाता है कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक उँगली पकड़कर चलता है, वह बड़ों से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करता है। उसका विकास भी उतनी ही तीव्र गति से होता है। तर्जनी की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि कुछ फल मात्र इसके संकेत से ही मर जाते हैं। देखिए तुलसीदासजी लिखते हैं- ‘इहां कम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनी देखि मर जाहीं।’ ऐसी मान्यता भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी है कि नन्हे फल तर्जनी के संकेत से मर जाते हैं।

सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है। इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं।

इसलिए वहाँ किसी को तर्जनी दिखाना अच्छा नहीं माना जाता। तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा मुख्य कार्य के लिए होता है, जिसके सहायक मध्यिका एवं अँगूठा होते हैं। इसकी ऊर्जा का अंदाज मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार का जप करते समय माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श पूर्णतया वर्जित है।

मध्यिका —

यह हाथ की सबसे लंबी उँगली तो है परंतु इसका मुख्य कार्य तर्जनी की सहायता करना है। संभवतः इसी कारण जाप में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है।

अनामिका—-

यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण उँगली है। इसका सीधा संबंध हृदय से होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में इसकी मान्यता सबसे अधिक है। इसी कारण जप की माला का संचरण इसके एवं अँगूठे की सहायता से किया जाता है। धार्मिक कृत्यों हेतु कुशा भी इसी उँगली में धारण की जाती है।

ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न अँगूठी के माध्यम से इसी में धारण किए जाते हैं, जिसके पीछे कारण यह है कि वे रत्न सूर्य से वांछित ऊर्जा प्राप्त कर जातक (धारण करने वाले) को प्रदान करते हैं, जिससे उसके भीतर वांछित ऊर्जा की कमी दूर होती है। वे लोग जो मंत्रों का जप उँगलियों के माध्यम से करते हैं, अपनी गणना इसी उँगली से प्रारंभ करते

कनिष्का—–

यह हाथ की सबसे छोटी उँगली है, जो हर प्रकार से अनामिका की सहायता करती है। इसे अनामिका की सहायक कहा जाता है।

अन्य —-

किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में छः उँगलियाँ भी होती हैं। लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं जिन स्त्रियों के बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं।

ज्योतिष विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार होता है-

कनिष्का – मेष, वृष, मिथुन

अनामिका – कर्क, सिंह, कन्या

मध्यिका – तुला, वृश्चिक, धनु

तर्जनी – मकर, कुंभ, मीन।

शरीर का निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है- अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। इसका भी निवास क्रमशः अँगूठा, तर्जनी, मध्यिका, अनामिका एवं कनिष्ठा में माना जाता है।

दो या दो से अधिक उँगलियों के मेल से जो यौगिक क्रियाएँ संपन्न की जाती हैं, उन्हें योग मुद्रा कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं-

1. वायु मुद्रा- यह मुद्रा तर्जनी को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है।

2. शून्य मुद्रा- यह मुद्रा बीच की उँगली मध्यिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है।

3. पृथ्वी मुद्रा- यह मुद्रा अनामिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है।

4. प्राण मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे से अनामिका एवं कनिष्का दोनों के स्पर्श से बनती है।

5. ज्ञान मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे को तर्जनी से स्पर्श कराने पर बनती है।

6. वरुण मुद्रा- यह मुद्रा दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर बाएँ अँगूठे को कनिष्का का स्पर्श कराने से बनती है। सभी मुद्राओं के लाभ अलग-अलग हैं।

दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब ये दोनों लिए हुए हाथ मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तो प्रणाम मुद्रा बनती है। प्रणाम मुद्रा से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। अतः आइए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें।

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हस्तरेखा /सामुद्रिक शास्त्र / लक्षण शास्त्र से जाने राजयोग ——

राजयोग:- जिस स्त्री या पुरुष की नाभि गहरी हो नाक या अग्र भाग यानी आगे का हिस्सा सीधा हो सीना लाल रंग का हो पैर के तलुये कोमल हों ऐसा व्यक्ति राजयोग के योग से आगे बढता है.और उच्च पदाशीन होता है.

राजयोग धनवान योग:- जिसके हाथ में चक्र फ़ूलों की माला धनुष रथ आसन इनमे से कोई चिन्ह हो तो उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास किया करती है.

उच्चपद योग:- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में सूर्य रेखा मस्तक रेखा से मिलती हो और मस्तक रेखा से गहरी स्पष्ट होकर गुरु क्षेत्र में चतुष्कोण में बदल जाये तो ऐसा व्यक्ति उच्चपदासीन होता है.

पीसीएस या आईएस योग:- जिसके हाथ में सूर्य और गुरु पर्वत उच्च हों और शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिन्ह हो चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्बन्ध हो और भाग्य रेखा हथेली के मध्य से आरंभ होकर एक शाखा गुरु पर्वत और दूसरी रेखा सूर्य पर्वत पर जाये तो निश्चय ही यह योग उस जातक के लिये होते है.

विदेश यात्रा योग :- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में जीवन रेखा से निकल कर एक शाखा भाग्य रेखा को काटती हुयी चन्द्र क्षेत्र को रेखा जाये तो वह विदेश यात्रा को सूचित करती है.

भू स्वामी योग:- जिसके हाथ में एक खडी रेखा सूर्य क्षेत्र से चलकर चन्द्र रेखा को स्पर्श करे,मस्तक रेखा से एक शाखा चन्द्र रेखा से मिलकर डमरू का निशान बनाये तो वह व्यक्ति आदर्श नागरिक और भूस्वामी होने का अधिकारी है.

पायलट योग:- जिसके हाथ में चन्द्र रेखा जीवन रेखा तक हो बुध और गुरु का पर्वत ऊंचा हो ह्रदय रेखा को किसी प्रकार का अवरोध नही हो तो वह व्यक्ति पायलट की श्रेणी में आता है.

ड्राइवर योग:- जिसके हाथ की उंगलिया के नाखून लम्बे हों हथेली वर्गाकार हो चन्द्र पर्वत ऊंचा हो सूर्य रेखा ह्रदय रेखा को स्पर्श करे मस्तक रेखा मंगल पर मिले या त्रिकोण बनाये तो ऐसा व्यक्ति छोटी और बडी गाडियों का ड्राइवर होता है.

वकील योग:- जिसके हाथ में शनि और गुरु रेखा पूर्ण चमकृत हो और विकसित हो या मणिबन्ध क्षेत्र में गुरु वलय तक रेखा पहुंचती हो तो ऐसा व्यक्ति कानून का जानकार जज वकील की हैसियत का होता है.

सौभाग्यशाली योग:- जिस पुरुष एक दाहिने हाथ में सात ग्रहों के पर्वतों में से दो पर्वत बलवान हों और इनसे सम्बन्धित रेखा स्पष्ट हो तो व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है.

जुआरी सट्टेबाज योग:- जिस व्यक्ति की अनामिका उंगली मध्यमा के बराबर की हो तो ऐसा व्यक्ति सट्टेबाज और जुआरी होता है.

चोरी का योग:- जिस पुरुष या स्त्री के हाथ में बुध पर्वत विकसित हो और उस पर जाल बिछा हो तो उसके घर पर बार बार चोरियां हुआ करती है.

पुलिस सेवा का योग:- जिसके हाथ में मंगल पर्वत से सूर्य पर्वत और शनि की उंगली से बीचों बीच कोई रेखा स्पर्श करे तो व्यक्ति सेना या पुलिस महकमें मे नौकरी करता है.

भाग्यहीन का योग:- जिस जातक के हाथ में हथेली के बीच उथली हुयी आयत का चिन्ह हो तो इस प्रकार का व्यक्ति हमेशा चिडचिडा और लापरवाह होता है.

फ़लित शास्त्री योग:- जिस व्यक्ति के गुरु -पर्वत के नीचे मुद्रिका या शनि शुक्र बुध पर्वत उन्नत हों वह ज्योतिषी होता है.

नर्स सेविका योग:- जिस स्त्री की कलाई गोल हाथ पतले और लम्बे हों बुध पर्वत पर खडी रेखायें हों व शुक्र पर्वत उच्च का हो तो जातिका नर्स के काम में चतुर होती है.

नाडी परखने वाला:- जिस व्यक्ति का चन्द्र पर्वत उच्च का हो वह व्यक्ति नाडी का जानकार होता है.

दगाबाज या स्वार्थी योग:- जिसके नाखून छोटे हों हथेली सफ़ेद रंग की हो मस्तक रेखा ह्रदय रेखा में मिलती हो तो ऐसा व्यक्ति दगाबाज होता है,मोटा हाथ और बुध की उंगली किसी भी तरफ़ झुकी होने से भी यह योग मिलता है,बुध की उंगली सबसे छोटी उंगली को बोला जाता है.

विधुर या विधवा योग:- यदि व

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