Wednesday, 29 March 2017

जीनकी फोटो नहीं आती

मुख्य मेनू खोलें  खोजें मेरी अधिसूचनाएँ दिखाएँ 1 संपादित करेंध्यानसूची से हटाएँ।किसी अन्य भाषा में पढ़ें श्यामाचरण लाहिड़ी श्याम चरण लाहिड़ी  जन्म श्याम चरण लाहिड़ी 30 सितम्बर 1828 घुरनी ग्राम, बंगाल, ब्रिटिश राज मृत्यु 26 सितम्बर 1895 (उम्र 66) वाराणसी, यूनाईटेड प्रोविन्स, ब्रिटिश राज गुरु/शिक्षक महावतार बाबाजी दर्शन क्रिया योग खिताब/सम्मान योगीराज बाबाजी श्यामाचरण लाहिड़ी (30 सितम्बर 1828 – 26 सितम्बर 1895) 18वीं शताब्दी के उच्च कोटि के साधक थे जिन्होंने सद्गृहस्थ के रूप में यौगिक पूर्णता प्राप्त कर ली थी। आपका जन्म बंगाल के नदिया जिले की प्राचीन राजधानी कृष्णनगर के निकट धरणी नामक ग्राम के एक संभ्रांत ब्राह्मण कुल में अनुमानत: 1825-26 ई. में हुआ था। आपका पठनपाठन काशी में हुआ। बंगला, संस्कृत के अतिरिक्त अपने अंग्रेजी भी पड़ी यद्यपि कोई परीक्षा नहीं पास की। जीविकोपार्जन के लिए छोटी उम्र में सरकारी नौकरी में लग गए। आप दानापुर में मिलिटरी एकाउंट्स आफिस में थे। कुछ समय के लिए सरकारी काम से अल्मोड़ा जिले के रानीखेत नामक स्थान पर भेज दिए गए। हिमालय की इस उपत्यका में गुरुप्राप्ति और दीक्षा हुई। आपके तीन प्रमुख शिष्य युक्तेश्वर गिरि, केशवानंद और प्रणवानंद ने गुरु के संबंध में प्रकाश डाला है। योगानंद परमहंस ने 'योगी की आत्मकथा' नामक जीवनवृत्त में गुरु को बाबा जी कहा है। दीक्षा के बाद भी इन्होंने कई वर्षों तक नौकरी की और इसी समय से गुरु के आज्ञानुसार लोगों को दीक्षा देने लगे थे। सन्‌ 1880 में पेंशन लेकर आप काशी आ गए। इनकी गीता की आध्यात्मिक व्याख्या आज भी शीर्ष स्थान पर है। इन्होंने वेदांत, सांख्य, वैशेषिक, योगदर्शन और अनेक संहिताओं की व्याख्या भी प्रकाशित की। इनकी प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि गृहस्थ मनुष्य भी योगाभ्यास द्वारा चिरशांति प्राप्त कर योग के उच्चतम शिखर पर आरूढ़ हो सकता है। आपने अपने सहज आडंबररहित गार्हस्थ्य जीवन से यह प्रमाणित कर दिया था। धर्म के संबंध में बहुत कट्टरता के पक्षपाती न होने पर भी आप प्राचीन रीतिनीति और मर्यादा का पूर्णतया पालन करते थे। शास्त्रों में आपका अटूट विश्वास था। जब आप रानीखेत में थे तो अवकाश के समय शून्य विजन में पर्यटन पर प्राकृतिक सौंदर्यनिरीक्षण करते। इसी भ्रमण में दूर से अपना नाम सुनकर द्रोणगिरि नामक पर्वत पर चढ़ते-चढ़ते एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ थोड़ी सी खुली जगह में अनेक गुफाएँ थीं। इसी एक गुफा के करार पर एक तेजस्वी युवक खड़े दीख पड़े। उन्होंने हिंदी में गुफा में विश्राम करने का संकेत किया। उन्होंने कहा 'मैंने ही तुम्हें बुलाया था'। इसके बाद पूर्वजन्मों का वृत्तांत बताते हुए शक्तिपात किया। बाबा जी से दीक्षा का जो प्रकार प्राप्त हुआ उसे क्रियायोग कहा गया है। क्रियायोग की विधि केवल दीक्षित साधकों को ही बताई जाती है। यह विधि पूर्णतया शास्त्रोक्त है और गीता उसकी कुंजी है। गीता में कर्म, ज्ञान, सांख्य इत्यादि सभी योग है और वह भी इतने सहज रूप में जिसमें जाति और धर्म के बंधन बाधक नहीं होते। आप हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी को बिना भेदभाव के दीक्षा देते थे। इसीलिए आपके भक्त सभी धर्मानुयायी हैं। उन्होंने अपने समय में व्याप्त कट्टर जातिवाद को कभी महत्व नहीं दिया। वह अन्य धर्मावलंबियों से यही कहते थे कि आप अपनी धार्मिक मान्यताओं का आदर और अभ्यास करते हुए क्रियायोग द्वारा मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। पात्रानुसार भक्ति, ज्ञान, कर्म और राजयोग के आधार पर व्यक्तित्व और प्रवृत्तियों के अनुसार साधना करने की प्रेरणा देते। उनके मत से शास्त्रों पर शंका अथवा विवाद न कर उनका तथ्य आत्मसात्‌ करना चाहिए। अपनी समस्याओं के हल करने का आत्मचिंतन से बढ़कर कोई मार्ग नहीं। लाहिड़ी महाशय के प्रवचनों का पूर्ण संग्रह प्राप्य नहीं है किंतु गीता, उपनिषद्, संहिता इत्यादि की अनेक व्याख्याएँ बँगला में उपलब्ध हैं। भगवद्गीताभाष्य का हिंदी अनुवाद लाहिड़ी महाशय के शिष्य श्री भूपेंद्रनाथ सान्याल ने प्रस्तुत किया है। श्री लाहिड़ी की अधिकांश रचनाएँ बँगला में हैं। बाहरी कड़ियाँ संपादित करें Online writings by and about Lahiri Mahasaya, including biographies about Lahiri Mahasaya, and scriptural commentaries by him संवाद Last edited 2 months ago by Sanjeev bot RELATED PAGES क्रिया योग महावतार बाबाजी स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

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