Wednesday, 29 March 2017
गुरू निखिलेश्वरानन्द महराज
Sadguru Swami Nikhileshwaranand
Thursday, May 27, 2010
हमारे पूर्वजों और ऋषियों के पास विशिष्ट सिद्धियां थी, परन्तु उनमें से काल के प्रवाह में बहु कुछ लुप्त हो गईं| उनमें भी बारह सिद्धियां तो
सर्वथा लोप हो गईं थी, जिनका केवल नामोल्लेख इधर उधर पढ़ने को मिल जाता था पर उसके बारे में न तो किसी को प्रामाणिक ज्ञान था और न उन्हें ऐसी सिद्धि
प्राप्त ही थी| ये इस प्रकार हें - १.परकाया सिद्धि २.आकाश गमन सिद्धि ३.जल गमन प्रक्रिया सिद्ध ४.हादी विद्या - जिसके माध्यम से साधक बिना कुछ आहार ग्रहण किये वर्षों जीवित रह सकता है| ५. कादी विद्या- जिसके माध्यम से साधक या योगी कैसी भी परिस्थिति में अपना अस्तित्व बनाए
रख सकता है| उस पर सर्दी, गर्मी, बरसात, आग हिमपात आदि का कोई प्रभाव नहीं होता| ६.काली सिद्धि- जिसके माध्यम से हजारों वर्ष पूर्व के क्षण को या घटना को पहिचाना जा सकता है,
देखा जा सकता है और समझा जा सकता है| साठ ही आने वाले हजार वर्षों के कालखण्ड को जाना जा सकता है कि भविष्य में कहां क्या घटना घटित होगी और किस प्रकार से घटित होगी इसके बारे में प्रामाणिक ज्ञान एक ही क्षण में हो जाता है| यही नहीं अपितु इस
साधना के माध्यम से भविष्य में होने वाली घटना को ठीक उसी प्रकार से देखा
जा सकता है, जिस प्रकार से व्यक्ति टेलेवीजन पर कोई फिल्म देख रहा हों| ७.
संजीवनी विद्या, जो शुक्राचार्य या कुछ ऋषियों को ही ज्ञात थी जिसके माध्यम से मृत व्यक्ति को भी जीवन दान दिया जा सकता है| ८. इच्छा मृत्यु साधना- जिसके माध्यम से काल पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है और साधक चाहे तो सैकड़ो-हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है| ९. काया कल्प साधना
- जिसके माध्यम से व्यक्ति के शरीर में पूर्ण परिवर्तन लाया जा सकता है और
ऐसा परिवर्तन होने पर वृद्ध व्यक्ति का भी काया कल्प होकर वह स्वस्थ
सुन्दर युवक बन सकता है, रोग रही ऐसा व्यक्तित्व कई वर्षों तक स्वस्थ रहकर
अपने कार्यों में सफलता पा सकता है| १०. लोक गमन सिद्धि-जिसके माध्यम से पृथ्वी लोक में ही नहीं अपितु अन्य लोकों में भी उसी
प्रकार से विचरण कर सकता है जिस प्रकार से हम कार के द्वारा एक स्थान से
दुसरे स्थान या एक नगर से दुसरे नगर जाते हें| इस साधना के माध्यम से भू
लोक, भुवः लोक, स्वः लोक, महः लोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक, चंद्रलोक,
सूर्यलोक और वायु लोक में भी जाकर वहां के निवासियों से मिल सकता, वहां की
श्रेष्ठ विद्याओं को प्राप्त कर सकता है और जब भी चाहे एक लोक से दुसरे
लोक तक जा सकता है| ११. शुन्य साधना - जिसके माध्यम से
प्रकृति से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है| खाद्य पदार्थ, भौतिक वस्तुएं
और सम्पन्नता अर्जित की जा सकती है| १२. सूर्य विज्ञान- जिसके माध्यम से एक पदार्थ को दुसरे पदार्थ में रूपांतरित किया जा सकता है|
अपने तापोबल से पूज्य निखिलेश्वरानन्द जी ने इन सिद्धियों को उन विशिष्ट
ऋषियों और योगियों से प्राप्त किया जो कि इसके सिद्ध हस्त आचार्य थे| मुझे
भली भांति स्मरण है कि परकाया प्रवेश साधना,
इन्होनें सीधे विश्वामित्र से प्राप्त की थी| साधना के बल पर उन्होनें
महर्षि विश्वामित्र को अपने सामने साकार किया और उनसे ही परकाया प्रवेश की
उन विशिष्ट साधनाओं सिद्धियों को सीखा जो कि अपने आप में अन्यतम है|
शंकराचार्य के समय तक तो परकाया प्रवेश की एक ही विधि प्रचिलित थी जिसका
उपयोग भगवदपाद शंकराचार्य ने किया था परन्तु योगिराज निखिलेश्वरानन्द जी
ने विश्वामित्र से उन छः विधियों को प्राप्त किया जो कि परकाया प्रवेश से
सम्बंधित है| परकाया प्रवेश केवल एक ही विधि से संभव नहीं है अपितु कई
विधियों से परकाया प्रवेश हो सकता है| यह निखिलेश्वरानन्द जी ने सैकड़ो
योगियों के सामने सिद्ध करके दिखा दिया|

परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी इन बारहों सिद्धियों के सिद्धहस्त
आचार्य है| कभी कभी तो ऐसा लगता है कि जैसे यह अलौकिक और दुर्लभ सिद्धियां
नहीं उनके हाथ में खिलौने हें, जब भी चाहे वे प्रयोग और उपयोग कर लेते
हें| इन समस्त विधियों कों उन्होनें उन महर्षियों से प्राप्त किया है जो
इस क्षेत्र के सिद्धहस्त आचार्य और योगी रहे हें|उन्होनें हिमालय स्थित योगियों, संन्यासियों और सिद्धों के सम्मलेन में दो
टूक शब्दों में कहा था कि तुम्हें इन कंदराओं में निवास नहीं करना हें और
जंगल में नहीं भटकना हें, इसकी अपेक्षा समाज के बीच जाकर तुम्हें रहना है|
उनके दुःख दर्द कों बांटना है, समझना है और दूर करना है|
मैंने कई बार अनुभव किया है, कि उनके दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटा|
जिस शिष्य, साधक, योगी या संन्यासी ने जो भी चाहा है उनके यहां से प्राप्त
हुआ| गोपनीय से गोपनीय साधनाएं देने भी वे हिचकिचाये नहीं| साधना के मूल
रहस्य स्पष्ट करते, अपने अनुभवों कों सुनाते, उन्हें धैर्य बंधाते, पीठ पर
हाथ फेरते और उनमें जोश तथा आत्मविश्वास भर देते, कि वह सब कुछ कर सकता है
और यही गुण उनकी महानता का परिचय है|
सूर्य सिद्धांत के आचार्य पतंजलि ने अपने सूत्रों में बताया है, कि सूर्य की किरणों में विभिन्न
रंगों की रश्मियों हें और इनका समन्वित रूप ही श्वेत है| इन्हीं रश्मियों
के विशेष संयोजन से योगी किसी भी पदार्थ कों सहज ही शुन्य में से निर्मित
कर सकता है, या एक पदार्थ कों दुसरे पदार्थ में परिवर्तित कर सकता
है| मैंने स्वयं ही गुरुदेव कों अपने संन्यास जीवन में चौबीस वर्तुल वाले
एक स्फटिक लेंस से प्रकाश रश्मियों कों परिवर्तित करते देखा है| और पुनः
उस स्फटिक वर्तुल हीरक खण्ड कों शुन्य में वापस कर देते हुए देखा है,
क्योंकि ये उन्हीं का कथन है, कि योगी अपने पास कुछ भी नहीं रखता| जब
जरूरत होती है, तब प्रकृति से प्राप्त कर लेता है और कार्य समाप्त होने पर
वह वस्तु प्रकृति कों ही लौट देता है|शिष्य ज्ञान मैंने स्वयं ही उन्हें अनेक अवसरों पर अपने पूर्व जन्म के शिष्य-शिष्याओं
कों खोजकर पुनः साधनात्मक पथ पर सुदृढ़ करते हुए देखा है| एक बार नैनीताल
के किसी पहाड़ी गाँव के निकट हम कुछ शिष्य जा रहे थे| गुरुदेव हम सभी कों
लेकर गाँव के एक ब्राह्मण के छोटे से घर में पहुंचे और ब्राह्मण से बोले -
'क्या आठ साल पहले तुम्हारे घर में किसी कन्या ने जन्म लिया था? ब्राह्मण
ने आश्चर्यचकित होकर अपनी पुत्री सत्संगा को बुलाया, जिसे देखकर हम सभी
चौंक गए| उसका चेहरा थी मां अनुरक्ता की तरह था| यद्यपि मां के चहरे पर
झुर्रियां पड़ गई थी और यह अभी बालिका थी, परन्तु चेहरे में बहुत कुछ साम्य
साफ-साफ दिखाई दे रहा था| सत्संगा ने गुरुदेव के सामने आते ही दोनों हाथ
जोड़ लिए और ठीक मां की तरह चरणों में झुक गई|गुरुदेव ने बताया कि किस तरह उनकी शिष्या मां अनुरक्ता ने अपने मृत्यु के
क्षणों में उनसे वचन लिया था, कि अगले जन्म में बाल्यावस्था होते ही
गुरुदेव उसे ढूंढ निकालेंगे और साधनात्मक पथ पर अग्रसर कर देंगे| यह कन्या
सत्संगा वही मां अनुरक्ता हें| गुरुदेव ने उसे दीक्षा प्रदान की, अपने गले
की माला उतार कर उसे दी और गुरु मंत्र दे कर वहां से पुनः रवाना हो गए|
अपने प्रत्येक शिष्य-शिष्याओं का उन्हें प्रतिपल जन्म से लेकर मृत्यु तक
ध्यान रहता हें और उनका प्रत्येक क्षण ही शिष्य के कल्याण के चिन्तन में
ही बीतता हें| धन्य हें वे जिनको कि उनका शिष्यत्व प्राप्त हुआ है|तंत्र मार्ग का सिद्ध पुरुष सही अर्थों में देखा जाय तो तंत्र भारतवर्ष का आधार रहा है| तंत्र का
तात्पर्य व्यवस्थित तरीके से कार्य संपन्न होना| प्रारम्भ में तो तंत्र
भारतवर्ष की सर्वोच्च पूंजी बनी रही बाद में धेरे-धीरे कुछ स्वार्थी और
अनैतिक तत्व इसमें आ गए, जिन्हें न तो तंत्र का ज्ञान था और न इसके बारे
में कुछ विशेष जानते ही थे| देह सुख और भोग को ही उन्होनें तंत्र मां लिया
था| तंत्र तो भगवान् शिव का आधार है| उन्हें द्वारा तंत्र का प्रस्फुटन हुआ|
जो कार्य मन्त्रों के माध्यम से संपादित नहीं हो सकता, तंत्र के द्वारा उस
कार्य को निश्चित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है| मंत्र का तात्पर्य है
प्रकृति की उस विशेष सत्ता को अनुकूल बनाने के लिए प्रयत्न करना और अनुकूल
बनाकर कार्य संपादित करना| पर तंत्र के क्षेत्र में यह स्थिति सर्वथा
विपरीत है| यदि सीधे-सीधे तरीके से प्रकृति वशवर्ती नहीं होती, तो
बलपूर्वक उसे वश में किया जाता है और इसी क्रिया को तंत्र कहते हैं|
तंत्र तलवार की धार की तरह है| यदि इसका सही प्रकार से प्रयोग किया जाय,
तो प्रांत अचूक सिद्धाप्रद है पर इसके विपरीत यदि थोड़ी भी असावधानी और
गफलत कर दी जाय तो तंत्र प्रयोग स्वयं करता को ही समाप्त कर देता है| ऐसी
कठिन चुनौती को निखिलेश्वरानन्द ने स्वीकार किया और तंत्र के क्षेत्र में
उन स्थितियों को स्पष्ट किया जो कि अपने-आप में अब तक गोपनीय रही है|उन्होनें दुर्गम और कठिन साधनाओं को तंत्र के माध्यम से सिद्ध करके दिखा
दिया कि यह मार्ग अपेक्षाकृत सुगम और सरल है| स्वामी
निखिलेश्वरानन्द जी तंत्र के क्षेत्र की सभी कसौटिया में खरे उतारे तथा उनमें अद्वितीयता प्राप्त की| त्रिजटा अघोरी तंत्र का एक परिचित नाम है| पर गुरुदेव का शिष्यत्व पाकर उसने यह स्वाकार किया कि यदि सही
अर्थों में कहा जाय तो स्वामी निखिलेश्वरानन्द तंत्र के क्षेत्र
में अंतिम
नाम है| न तो उनका मुकाबला किया जा सकता है और न ही इस क्षेत्र में उन्हें
परास्त किया जा सकता है| एक प्रकार से देखा जाय तो सही अर्थों में वह शिव
स्वरुप हैं, जिनका प्रत्येक शब्द अपनी अर्थवत्ता लिए हुई है, जिन्होनें
तंत्र के माध्यम से उन गुप्त रहस्यों को उजागर किया है जो अभी तक गोपनीय
रहे है|
---योगी विश्वेश्रवानंद
suhas at 1:39 AM

2 comments:

E-Guru RajeevMay 27, 2010 at 7:22 AM
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.
मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.
यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.
शुभकामनाएं !
"टेक टब" - ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )
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E-Guru RajeevMay 27, 2010 at 7:23 AM
आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ "टेक टब" (Tek Tub) पर.
यदि फ़िर भी कोई समस्या हो तो यह लेख देखें -
वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें ?
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