Monday, 20 March 2017
वेद का प्रथम मंत्र

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Wednesday, 9 March 2016
ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ | Rigved Ath Pratham Mandla Sukt 1 Arth
ऋग्वेद
अथ प्रथम मंडलम
सूक्त 1
ऋषि - मधुच्छन्दा वैश्वामित्र
देवता – अग्नि
छंद – गायत्री
ऋग्वेद के प्रथम सूक्त में अग्निदेव का यज्ञ में आवाहन किया जाता है, उनकी महिमा, उनकी हर जगह उपस्थिति और उनके द्वारा मानव जीवन के कल्याण के बारे में चर्चा की गई है. उनसे विनती की गई है कि वे यज्ञ में पधारे और यज्ञ को आगे बढायें और यज्ञ करने वाले यजमान को यज्ञ के लाभ से विभूषित करें. साथ ही अग्निदेव को पिता के रूप में भी दिखाया गया है और उनसे विनती की गई है कि जिस तरह पुत्र को पिता बिना जतन के मिल जाते है उसी प्रकार अग्निदेव भी सब पर एक पिता के रूप में अपनी दृष्टि बनायें रखें.

ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ
1. ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् || 1 ||
प्रथम मंडल के प्रथम मंत्र की शुरुआत अग्निदेव की स्तुति से की गई है और कहा गये है कि हे अग्निदेव ! हम सब आपकी स्तुति करते है. आप ( अग्निदेव ) जो यज्ञ* के पुरोहितों*, सभी देवताओं*, सभी ऋत्विजों*, होताओं* और याजकों* को रत्नों* से विभूषित कर उनका कल्याण करें.
- यज्ञ : सर्वश्रेष्ठ परमार्थिक कर्म, यज्ञ को एक ऐसा कार्य माना जाता है जिससे परमार्थ की प्राप्ति होती है.
- पुरोहित : पुरोहित वे लोग होते है जो यज्ञ को आगे बढाते है.
- देवता : सभी को अनुदान देने वाले
- ऋत्विज : जो समय के अनुसार और समय के अनुकूल ही यज्ञ का सम्पादन करते है
- होता : होता वे लोग होते है जो यज्ञ में देवों का आवाहन करते है
- याजक : जो यज्ञ करवा रहा है
- रत्न : यहाँ रत्न से अभिप्राय यज्ञ से प्राप्त होने वाले फल या लाभ से है
2. अग्निः पुर्वेभिर्ऋषिभीरीडयो नूतनैरुत | स देवाँ एह वक्षति || 2 ||
हे अग्निदेव ! आप जिनकी प्रशंसा का पूर्वकालीन ऋषियों ( अर्थात ऋषि भृगु और ऋषि अंगिरादी ) के द्वारा भी की गई है. जो आने वाले आधुनिक काल या समय में भी ऋषि कल्प वेदज्ञ द्वारा हमेशा पूजनीय व स्तुत्य है. आप कृपा कर इस यज्ञ में देवाताओं का आवाहन करें और हमे पुण्य फल प्राप्ति में सहायक बने.

Rigved Ath Pratham Mandla Sukt 1 Arth
3. अग्निना रयिमश्नवत् पोषमेव दिवेदिवे | यशसं वीरवतमम् || 3 ||
हे अग्निदेव ! हम आपकी स्तुति करते है आप सभी याजकों / यजमानों / मनुष्यों को यश, धन, सुख, समृद्धि, पुत्र – पौत्र, विवेक और बल प्रदान करने वालें है.
4. अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि | स इछेवेषु गच्छति || 4 ||
यहाँ बताया गया है कि यज्ञ को देवताओं तक पहुचाने में अग्नि देव की क्या महता है और कहा गया है कि हे अग्नि देव ! आप सबकी रक्षा करते है और जिस यज्ञ को हिंसा रहित तरीके से रक्षित और आवृत करते है वही यज्ञ देवताओं तक पहुँच पाता है.
5. अग्निहोंता कविक्रतु: सत्यश्चित्रश्र्वस्तमः | देवो देवेभिरा गमत् || 5 ||
इस मंत्र में अग्निदेव को सभी देवताओं के साथ यज्ञ में पधारने का आवाहन किया गया है और कहा गया है कि हे अग्निदेव ! आप सत्यरूप है, आप ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक है और आपका रूप विलक्षण है. आप इस यज्ञ में सभी देवों के साथ पधार कर इस यज्ञ को पूर्ण करें.
6. यद्डग् दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि | तवेत्त् सत्यमडिग्र: || 6 ||
यहाँ कहा गया है कि सब कुछ आपका ही है सब कुछ आपसे ही प्राप्त हुआ है और सब कुछ वापस आपके ही पास आना है. कहा गया है कि हे अग्निदेव ! आप जो मनुष्यों को रहने के लिए घर, जीवनयापन के लिए धन, संतान या पशु इत्यादि देकर समृद्ध करते हो और उनका कल्याण करते हो वो यज्ञ द्वारा आपको ही प्राप्त होता है.

प्रथम मंडलम
7. उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् | नमो भरन्त एमसी || 7 ||
इस मंत्र में कहा गया है कि हे अग्निदेव ! हम सब आपके सच्चे उपासक है और पूरी श्रद्धा से आपकी उपसना करते है, हम अपनी श्रेष्ठ बुद्धि से दिन रात आपकी स्तुति व आपका सतत गुणगान करते है. साथ ही अग्निदेव से प्रार्थना की जाती है कि हे अग्निदेव ! हम सबको हमेशा आपका सान्निध्य प्राप्त हो.
8. राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् | वर्धमानं स्वे दमे || 8 ||
यहाँ भी अग्निदेव की प्रशंसा की गई है और कहा गया है कि हम सब गृहस्थ लोग है और आप ( अग्निदेव ) जो सभी यज्ञों की रक्षा करते है, जो सत्यवचनरूप व्रतों को आलोकित करते है, जो यज्ञ स्थलों में वृद्धि करते है. हम सब आपके समीप आते है और आपकी स्तुति करते है.
9. स नः पितेव सूनवेग्ने सूपायनो भव | सचस्वा नः स्वस्तये || 9 ||
इस मंत्र में अग्निदेव को पिता का दर्जा देते हुए प्रार्थना की गई है कि हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार हर पुत्र को पिता सुखपूर्वक प्राप्त हो जाते है उसी प्रकार आप भी हमेशा हमारे साथ रहें और हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें.
तो इस तरह इस पहले सूक्त में अग्निदेव जी की स्तुति की गई है और उनसे यज्ञ में सभी देवताओं के साथ पधारने की प्रार्थना की गई है.

सूक्त 1
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