Monday, 20 March 2017
हनुमान के भाई भी है
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ताज्जुब होगा आपको पवन पुत्र हनुमान के भाई का चमत्कार जानकर
Monday, October 19, 2015


एक बार बचपन में आप ने अपने पिताजी से कहा की श्री शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित यह विचार की जीव ही ब्रह्म है तथा भगवान निराकार-निर्विशेष हैं, बिल्कुल गलत है । मैं, श्रीशंकराचार्य जी द्वारा स्थापित इस मायावाद के मत का खंडन करूंगा।
आपके पिता जी ज्यादा वृद्ध होने के कारण, हाथ में छड़ी लेकर चलते थे। उन्होंने कहा, '' बेटा ! श्री शंकराचार्य जी का सिद्धांत पूरे भारत में फैला हुआ है और उसका सब सम्मान करते हैं। उनका सिद्धांत कोई खंडित कर दे, ऐसा योग्य व्यक्ति कोई नजर में नहीं आता जैसे मेरे हाथ की छड़ी, हरा-भरा पेड़ नहीं बन सकती उसी प्रकार श्री शंकराचार्य जी के सिद्धांत को कोई काट नहीं सकता।''
आपने साथ-साथ ही कहा, '' हे पिताजी, यदि कोई आपके हाथ की छड़ी को वृक्ष में बदल दे, तो क्या आप मान लेंगे की श्री शंकराचार्य जी के सिद्धांत को काटा जा सकता है?''
पिता जी को कुछ न बोलता देख आपने पिता जी से उनकी छड़ी मांग ली। पिता जी ने आपको वो छड़ी पकड़ा दी। आपने वो छड़ी बाहर आंगन में जमीन में गाड़ दी। आप ने कहा, '' हे छड़ी, अगर मैं श्री शंकराचार्य जी के मत को खंडित कर दूंगा तो तुम अभी हरे-भरे पेड़ के रूप में परिवर्तित हो जाओ।''
आप दोनों के देखते ही देखते, वो छड़ी बढ़ने लगी। उसका तना मोटा होता गया, पत्ते आने लगे, फल भी लग गए। कुछ ही समय में वहां छड़ी के स्थान पर एक हरा-भरा वृक्ष था। आपके पिता जी ने यह देख कर आपको अपने समीप बुलाया व पीठ थपथपाते हुए कहा,'' हां, श्री शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मायावाद का खंडन अब संभव लगता है।''
आपके पिताजी ने मान लिया की उनका पुत्र साधारण मनुष्य नहीं है। आगे चल कर आपने मायावाद को काटने के लिए उसमें 100 दोष गिनाए व ''मायावाद-शतदूषणी'' नामक ग्रंथ भी लिखा। आपके पिता जी का नाम श्री मध्वगेह भट्ट, व माताजी का नाम श्रीमती वेदविद्या था। आप श्री रामचन्द्र जी के विजयोत्सव अर्थात दशहरा के दिन प्रकट हुए थे। आपने 12 वर्ष की आयु में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था।
पवन (वायु) देव के प्रथम अवतार थे श्री हनुमान, द्वितीय अवतार थे श्री भीमसेन, व तृतीय अवतार हुए आप यानि कि श्री मध्वाचार्य जी।
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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