Tuesday, 28 March 2017

जनेऊ ज्ञान

हमारी धरोहर : हमारे शास्त्र यहाँ आपको हमारे प्राचीन शास्त्रों के विषयवैविध्य के बारे में सामग्री प्राप्त होगी . साथ ही मे उन विषयों का वैज्ञानिक महत्व भी प्रदर्शित होगा . Tuesday, 28 June 2016 शिखा का महत्व 🌻चोटी (शिखा)🌻 _वैदिक धर्म में सिर पर शिखा(चोटी) धारण करने का असाधारण महत्व है।प्रत्येक बालक के जन्म के बाद मुण्डन संस्कार के पश्चात सिर के उस विषेश भाग पर गौ के नवजात बच्चे के खुर के प्रमाण आकार की चोटी रखने का विधान है।_ _यह वही स्थान होता है जहाँ सुषुम्ना नाड़ी पीठ के मध्य भाग में से होती हुई ऊपर की और आकर समाप्त होती है और उसमें से सिर के विभिन्न अंगों के वात संस्थान का संचालन करने को अनेक सूक्ष्म वात नाड़ियों का प्रारम्भ होता है।_ _सुषुम्ना नाड़ी सम्पूर्ण शरीर के वात संस्थान का संचालन करती है।_ _यदि इसमें से निकलने वाली कोई नाड़ी किसी भी कारण से सुस्त पड़ जाती है तो उस अंग को फालिज मारना कहते हैं।समस्त शरीर को शक्ति केवल सुषुम्ना नाड़ी से ही मिलती है।_ _सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है उसी स्थान पर अस्थि के नीचे लघुमस्तिष्क का स्थान होता है जो गौ के नवजात बच्चों के खुर के ही आकार का होता है और शिखा भी उतनी ही बड़ी उसके ऊपर रखी जाती है।_ _बाल गर्मी पैदा करते हैं।बालों में विद्युत का संग्रह रहता है जो सुषुम्ना नाड़ी को उतनी ऊष्मा हर समय प्रदान करते रहते हैं जितनी की उसे समस्त शरीर के वात-नाड़ी संस्थान को जागृत व उत्तेजित करने के लिए आवश्यकता होती है।_ _इससे मानव का वात नाड़ी संस्थान आवश्यकतानुसार जागृत रहते हुए समस्त शरीर को बल देता है।किसी भी अंग में फालिज पड़ने का भय नहीं रहता है और साथ ही लघुमस्तिष्क विकसित होता रहता है,जिसमें जन्म जन्मान्तरों के एवं वर्तमान जन्म के संस्कार संग्रहीत रहते हैं।_ _सुषुम्ना का जो भाग लघुमस्तिष्क को संचालित करता है,वह उसे शिखा द्वारा प्राप्त ऊष्मा से चैतन्य बनाता है,इससे स्मरण शक्ति भी विकसित होती है।_ _वेद में शिखा रखने का विधान कई स्थानों पर मिलता है,देखिये--_ शिखिभ्यः स्वाहा (अथर्ववेद १९-२२-१५) _अर्थ-चोटी धारण करने वालों का कल्याण हो।_ यशसेश्रियै शिखा।-(यजु० १९-९२) _अर्थ-यश और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सिर पर शिखा धारण करें।_ याज्ञिकैंगौर्दांणि मार्जनि गोक्षुर्वच्च शिखा।-(यजुर्वेदीय कठशाखा) _अर्थात् सिर पर यज्ञाधिकार प्राप्त को गौ के खुर के बराबर(गाय के जन्में बछड़े के खुर के बराबर) स्थान में चोटु रखनी चाहिये।_ केशानां शेष करणं शिखास्थापनं। केश शेष करणम् इति मंगल हेतोः ।।-(पारस्कर गृह्यसूत्र) _अर्थ-मुण्ड़न संस्कार के बाद जब भी सिर के बाल कटावें,तो चोटी के बालों को छोड़कर शेष बाल कटावें,यह मंगलकारक होता है।_ _और देखिये:-_ सदोपवीतिनां भाव्यं सदा वद्धशिखेन च । विशिखो व्युपवीतश्च यत् करोति न तत्कृतम् ।। ४ ।। -(कात्यायन स्मृति) _अर्थ-यज्ञोपवीत सदा धारण करें तथा सदा चोटी में गाँठ लगाकर रखें।बिना शिखा व यज्ञोपवीत के कोई यज्ञ सन्ध्योपासनादि कृत्य न करें,अन्यथा वह न करने के ही समान है।_ _बड़ी शिखा धारण करने से बल,आयु,तेज,बुद्धि,लक्ष्मी व स्मृति बढ़ती है।_ _एक अंग्रेज डाक्टर विक्टर ई क्रोमर ने अपनी पुस्तक 'विरिलकल्पक' में लिखा है,जिसका भावार्थ निम्न है:-_ _ध्यान करते समय ओज शक्ति प्रकट होती है।किसी वस्तु पर चिन्तन शक्ति एकाग्र करने से ओज शक्ति उसकी ओर दौडने लगती है।_ _यदि ईश्वर पर ध्यान एकाग्र किया जावे,तो मस्तिष्क के ऊपर शिखा के चोटी के मार्ग से ओज शक्ति प्रवेश करती है।_ _परमात्मा की शक्ति इसी मार्ग से मनुष्य के भीतर आया करती है।सूक्ष्म दृष्टि सम्पन्न योगी इन दोनों शक्तियों के असाधारण सुंदर रंग भी देख लेते हैं।_ _जिस स्थान पर शिखा होती है,उसके नीचे एक ग्रन्थि होती है जिसे पिट्टयूरी ग्रन्थि कहते हैं।इससे एक रस बनता है जो संपूर्ण शरीर व बुद्धि को तेज सम्पन्न तथा स्वस्थ एवं चिरंजीवी बनाता है।इसकी कार्य शक्ति चोटी के बड़े बालों व सूर्य की प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है।_ _डाक्टर क्लार्क ने लिखा है:-_ _मुझे विश्वास हो गया है कि आर्यों का हर एक नियम विज्ञान से भरा हुआ है।चोटी रखना हिन्दुओं का धार्मिक चिन्ह ही नहीं बल्कि सुषुम्ना की रक्षा के लिए ऋषियों की खोज का एक विलक्षण चमत्कार है।_ _शिखा गुच्छेदार रखने व उसमें गाँठ बांधने के कारण प्राचीन आर्यों में तेज,मेधा बुद्धि,दीर्घायु तथा बल की विलक्षणता मिलती थी।_ _जब से अंग्रेजी कुशिक्षा के प्रभाव में भारतवासियों ने शिखा व सूत्र का त्याग कर दिया है उनमें यह शीर्षस्थ गुणों का निरन्तर ह्रास होता जा रहा है।_ _पागलपन,अन्धत्व तथा मस्तिष्क के रोग शिखाधारियों को नहीं होते थे,वे अब शिखाहीनों मैं बहुत देखे जा सकते हैं।_ _जिस शिखा व जनेऊ की रक्षा के लिए लाखों भारतीयों ने विधर्मियों के साथ युद्धों में प्राण देना उचित समझा,अपने प्राणों के बलिदान दिये।_ _महाराणा प्रताप,वीर शिवाजी,गुरु गोविन्दसिंह,वीर हकीकत राय आदि हजारों भारतीयों ने चोटी और जनेऊ की रक्षार्थ आत्म बलिदान देकर भी इनकी रक्षा मुस्लिम शासन के कठिन काल में की,उसी चोटी और जनेऊ को आज का मनुष्य बाबू टाईप का अंग्रेजीयत का गुलाम अपने सांस्कृतिक चिन्ह(चोटी और जनेऊ) को त्यागता चला जा रहा है,यह कितने दुःख की बात है।_ _उसे इस परमोपयोगी धार्मिक एवं स्वास्थयवर्धक प्रतीकों को धारण करने में ग्लानि व हीनता लगती है परन्तु अंग्रेजी गुलामी की निशानी ईसाईयत की वेषभूषा पतलून पहनकर खड़े होकर मूतने में उसे कोई शर्म महसूस नहीं होती है जो कि स्वास्थय की दृष्टि से भी हानिकारक है और भारतीय दृष्टि से घोर असभ्यता की निशानी है।_ _स्त्रियों के सिर पर लम्बे बाल होना उनके शरीर की बनावट तथा उनके शरीरगत विद्युत के अनुकूल रहने से उनको अलग से चोटी नहीं रखनी चाहिये।स्त्रियों को बाल नहीं कटाने चाहियें Shreedhar Vyas at 09:01 Share  No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version About Me  Shreedhar Vyas  Shreedhar Sanatanbhai Vyas M.A.(Sanskrit),M.Phil.,Gujarat University. Prahalladnagar, Setellite, Ahemdabad. 380015 Wife : Bhargavi S. Vyas View my complete profile Powered by Blogger. 

No comments:

Post a Comment