Wednesday, 29 March 2017
काली विद्या


kuch-khaas
काली पूजा में सिद्धि प्राप्ति के लिए तंत्र साधना
by Prabhat Khabar

काली पूजा का 25वां साल, 1001 महिलाएं करेंगी माता की आरती हिंदू धर्म में हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है. साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं. व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उनसे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ. मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं - तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना. तीनों ही तरह की साधना के कई उपभेद हैं. आइये जानते हैं साधना के विविध तरीके व उनसे प्राप्य लाभ. तांत्रिक साधना : तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी. वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है. वाम मार्गी तंत्र साधना में छह प्रकार के कर्म बताये गये हैं, जिन्हें षट कर्म कहते हैं. शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा. गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषण:॥ अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण. ये छह तांत्रिक षट कर्म बताये गये हैं. इनके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन भी है : मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्. आकर्षण यिक्षणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥ मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यिक्षणी साधना, रसायन क्रि या तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं. रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शिन्तर किता. विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्॥ पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्. स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥ प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्. जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाये, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तंभन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं. * मंत्र साधना : मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है. मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है. मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना. मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है. मंत्र साधना भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है. * मुख्यत: तीन प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र. * मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप. वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है. मानस जप का अर्थ है मन ही मन जप करना. उपांशु जप में जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनायी देती. बिल्कुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है. * मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण. दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ पहले से लेना चाहिए. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाये. प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है. किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए. इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है. जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए. * यंत्र साधना : यंत्र साधना सबसे सरल है. बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखने पर अपने आप कार्य सफल होते जायेंगे. यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं. यंत्र को दो प्रकार से बनाया जाता है - अंक द्वारा और मंत्र द्वारा. यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं. श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं. इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनायी जाती हैं. इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है. इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है. यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाये जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाये जाते हैं. * दिशा: प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं. धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं. वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं. इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है. * योग साधना : सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गयी है योग साधना. यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है. इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं. योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है. योगिश्चत्तवृत्तिनिरोध: मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है. इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है. उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं. योग साधना द्वारा अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है. सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है. * जब सिद्धियों के सबसे करीब होते हैं साधक दीपावली की रात विधिपूर्वक भोजपत्र, रजत, स्वर्ण या ताम्रपत्र पर निम्न यंत्र बनाकर मंत्र का जप करने से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं. कार्तिक अमावस्या की रात का सिद्धि के लिए विशेष महत्व है. इस कार्य के लिए निश्चित काल या अर्धरात्रि में स्थिर लग्न में निम्न यंत्रों की सिद्धि की जा सकती हैं. कहते हैं, कार्तिक अमावस्या की रात में समस्त किस्म की सिद्धियां साधकों के सबसे करीब होती हैं, बशर्ते उन्हें विधिवत सिद्ध किया जाये. इस दिन श्री लक्ष्मी जी का विधिपूर्वक पूजन कर कमलगट्टे की माला से निष्ठापूर्वक नीचे दिये गये मंत्र का 11 या 21 हजार बार जप कर दशमांश हवन व उसके पश्चात कन्याओं को भोजन कराने से श्री लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है - ऊं श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री ऊं महालक्ष्म्यै नम:. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मंत्र: ऊं ह्रीं श्री घंटाकर्णी नमोस्तुते ठ: ठ: ठ: स्वाहा. या ऊं लक्ष्मी वं श्री कमला धारं स्वाहा. यह घंटाकर्ण लक्ष्मी प्राप्ति का मंत्र है. इस मंत्र का 11 माला जप नियमित रूप से करने से लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. घंटाकर्ण लक्ष्मी की पूजा लाल फूल, लड्डू, नारियल आदि से की जाती है. लक्ष्मी चामर मंत्र: ऊं ह्रीं महालक्ष्मी ऊं ह्रीं. इस मंत्र का केवल पांच माला जप नियमति रूप से करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र अथवा बीसा यंत्र का पंचामृत स्नान आदि कराकर पूजन करना चाहिए. फिर नीचे दिये गये मंत्र का 21 हजार या सवा लाख जाप करना चाहिए. इससे श्री गणेश व लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है- ऊं नमो विघ्न राजाय सर्व सौख्य प्रदायिने, दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परात्मने.लंबोदरं महावीर्यम् नागयज्ञोप शोभितम्. अर्धचंद्र धरं देवं विघ्न व्यूह विनाशनम्. ऊं ह्रां ह्रीं ह्रैं ह्रौं ह्र: हेरम्बाय नमोनम:. सर्विसद्धि प्रदोसि त्वं सिद्धि-बुद्धि प्रदोभव:. चिंतितार्थ प्रवस्विहसततं मोदक प्रिय:. सिंदूरारूणवरभ्रैश्च पूजितो वरदायकम्. इह गणपति स्तोत्र च पठेद भिक्त भाव नर:. तस्यदेहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मूच्चित. दीपावली पर यह मंत्र सिद्ध कर रोज एक माला जप करने से धन, स्वास्थ्य व सुयश की प्राप्ति होती है. बेरोजगारों को रोजगार मिलता है और व्यापारियों को व्यापार में लाभ होता है. कुबेर यंत्र व श्री कुबेर जी का इस रात्रि विधिवत पूजन तथा निम्न मंत्र का 11 या 21 हजार अथवा सवा लाख जपकर, फिर प्रतिदिन नियमानुसार जप करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है : ऊं श्रीं ऊं श्रीं क्लीं श्रीं क्लीं विश्रेश्वराय नम:. * कनकधारा यंत्र: कनकधारा यंत्र का नियमानुसार पूजन कर कनकधारा स्तोत्र व मंगल ऋणहर्श्रा स्तोत्र का पाठ करने से दुर्गा माता की कृपा से धन की चिंता दूर होती है या कर्ज से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही उधार दिया गया धन भी मिल जाता है. * पुत्र-प्राप्ति यंत्र : इस यंत्र का पूजन व संतानप्रद गणपति स्तोत्र या संतान गोपाल मंत्र का जप व हरिवंश पुराण का पाठ करने से मनोनुकूल संतान की प्राप्ति होती है. * प्रेतबाधा निवारण यंत्र : इस यंत्र के साथ हनुमान जी या भैरव जी का पूजन कर हनुमत कवच तथा बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ करने से भूत-प्रेत आदि से मुक्ति मिलती है. संकट, ज्वर, ग्रह व शत्रु कष्ट निवारण यंत्र इस यंत्र का पूजन कर महामृत्युजंय मंत्र का जाप, संकटनाशन गणोश स्तोत्र और श्रीसूक्त का पाठ करने से अभीष्ट की सिद्धि हो सकती है. * मामले-मुकदमे में जीत के लिए : दिवाली की रात इस यंत्र को भोजपत्र पर नीम की कलम से लिखकर धूप, दीप, गंधादि से पूजना चाहिए. इसके पश्चात निम्नलिखित मंत्र का 31 माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है. मंत्र: ऊं नीली-नीली-महानीली (शत्रु पक्ष/जज का नाम) जीभि तालू सर्व खिली, सही खिलो तत्क्षणाय स्वाहा. * धनप्रदाता सिद्ध बीसा यंत्र : दीपावली की रात को इस यंत्र को चांदी या स्वर्ण के पत्र पर उत्कीर्ण करवा कर धूप, दीप, अक्षत गंध आदि से इसकी पूजा करनी चाहिए. फिर महालक्ष्मी और गणोश को लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए और लाल फूलों से उसे पूजना चाहिए. फिर निम्नलिखित मंत्र की 21 मालाएं जप कर यंत्र को तिजोरी में रख देना चाहिए. 21 दिन लगातार देसी घी का दीपक श्रीं महालक्ष्मी के सामने जलाना चाहिए. अगर यंत्र को जेब में रखना हो, तो उसे भोजपत्र पर बनाना चाहिए. मंत्र: ऊं ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय-पूरय चिंतायै दूरय-दूरय स्वाहा. * सेवक वशीकरण पिशाच यंत्र : धनी लोगों को उनके सगे संबंधी, नौकर, सेवक आदि हर प्रकार की हानि पहुंचाने की चेष्टा करते हैं, ताकि धन हड़प सकें. अगर किसी धनी व्यापारी को किसी पर भी ऐसा संदेह हो, तो दिवाली, सूर्य-ग्रहण आदि में इस यंत्र को भोजपत्र पर अनार की कलम, अष्टगंध या गोरोचन से बना लें और पूजा करने के उपरांत दही में डालकर रख दें. यूं वह व्यक्ति कोई हानि नहीं पहुंचायेगा और सदा आज्ञा पालन करेगा. * श्रीनारायण बीसा यंत्र : नरक चौदस या दिवाली को प्रात:काल कुश के आसन पर बैठकर भोज पत्र पर तुलसी की कलम या सोने अथवा चांदी के शलाका से केसर युक्त चंदन की स्याही से श्री नारायण बीसा यंत्र की रचना करें. शुद्ध घी के आठ दीपक जलाकर यंत्र को आठ पुष्प अर्पित करें. यंत्र पूजन के पश्चात पुत्र प्राप्ति य ऊं नमो नारायणाय मंत्र की आठ माला जप करें. फिर यथाशक्ति श्री विष्णु सहस्रनाम या पुरु षसूक्त का एक पाठ करें. इस विधि से सिद्ध श्री नारायण बीसा यंत्र को घर की तिजोरी, दुकान या फैक्टरी के गल्ले में रखें अथवा ताबीज में भरकर गले में धारण करें. श्री नारायण बीसा यंत्र के प्रयोग से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. श्री विष्णु की प्रसन्नता से घर में श्री लक्ष्मी का वास स्वत: हो जाता है. यंत्र प्रभाव से शत्रुभय व रोगादि का निवारण होता है और जीवन समृद्ध हो जाता है. * कुबेर बीसा यंत्र : दीपावली के दिन प्रदोष काल में यह यंत्र घी और सिंदूर मिलाकर व्यापार स्थल की दीवार पर (पूर्व या उत्तर दिशा में) श्री धनाध्यक्षाय नम: का उच्चारण करते हुए बनाएं. फिर पुष्प, चंदन, धूप और दीप से इसका पूजन करें. प्रतिदिन इस यंत्र का पूजन करके व्यापार प्रारंभ करने से व्यापार में वृद्धि और धनलाभ होता है. ऋण से मुक्ति हेतु दिवाली की रात में एक लाल अथवा नारंगी रंग के कागज पर रक्त चंदन तथा रोली के घोल व चमेली की कलम से यह यंत्र अंकित कर लें. अब गणपति जी के भव्य रूप का ध्यान करते हुए उनकी धूप, दीप तथा रक्त पुष्प से पूजा-अर्चना करें. फिर गणपति जी को दूब चढ़ायें. गणपति जी को दूब चढ़ाने का विशेष महत्व है. अंत में उक्त यंत्र भी गणपति जी के चरणों में अर्पित करके श्री गजानन, जय गजानन मंत्र की एक माला का जाप करें. पूजा की समाप्ति के बाद यंत्र को मोड़कर तांबे के ताबीज में बंद कर लें तथा इसे सदा अपने पास रखें. उक्त मंत्र की नित्य एक माला जपकर गणपति जी से कर्ज मुक्ति की प्रार्थना श्रद्धाभाव से करते रहें. कोई भी निष्ठावान व्यक्ति इस प्रयोग से लाभ उठा सकता है. * धनदा यक्षिणी यंत्र : धनतेरस के दिन संभव हो, तो एक दक्षिणावर्ती शंख खरीद लें. शंख ना हो, तो किसी धातु का एक पात्र रख लें. काठ के पटरे पर अथवा घर में उपलब्ध किसी स्वच्छ थाली में हल्दी के घोल से रतिप्रिया धनदा यक्षिणी यंत्र चित्रनुसार अंकित कर लें. उस पर उक्त शंख पात्र को स्थापित कर दें. शंख का पूंछ वाला अर्थात नुकीला भाग सदैव उत्तर-पूरब दिशा में रहना चाहिए. धनतेरस से दीपावली तक एक समय निश्चित करके निम्न दो मंत्रों में से एक अथवा दोनों मंत्रों की 11 माला का जाप नित्य करें : 1. ऊं श्री महालक्ष्म्यै नम: 2. ऊं श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम: हर जप के बाद नागकेसर मिश्रित चावल थोड़े-थोड़े करके शंख अथवा पात्र में छोड़ें. अगले दो दिन इन्हीं चावलों को पुन: 11 माला जप कर शंख में छोड़ें. दिवाली की पूजा में इस शंख को रख पूजा कर लें और फिर पूजा अथवा कार्य स्थल पर किसी शुद्ध स्थान पर रख दें. इसमें श्रीफल, एक कौड़ी तथा चांदी का एक सिक्का रखकर लाल कपड़े से ढ़क दें. नित्य मंत्र का जाप करते रहें. पूरे वर्ष लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी. दिवाली पूजा में रखा चांदी का सिक्का भी इस शंख अथवा पात्र में स्थापित कर सकते हैं. एक अन्य यंत्र दिवाली को हनुमान जी पर चढ़ने वाला सिंदूर व गाय का शुद्ध घी लेकर घोल बना लें. इस घोल से अपने कार्य स्थल, पूजा स्थलादि की उत्तर अथवा पूरब मुखी दीवार पर साथ दिया यंत्र अंकित कर लें. यदि दुकान आदि में मूल्यवान सामग्री की कोई अलमारी अथवा तिजोरी हो, तो उसके पृष्ठ भाग में भी यह यंत्र अंकित कर सकते हैं. - कभी शव-साधना के दायरे में था कालीघाट क्या तंत्र-साधना के बल पर आदमी अलौकिक और चमत्कारिक शक्तियों का स्वामी बन सकता है? इस सवाल का हां या ना में जवाब देने के बजाय यह कहा जा सकता है कि आज भी तंत्र-साधना के शक्तिपीठों के प्रति लोगों में गहरी दिलचस्पी बनी है. कोलकाता के कालीघाट, वीरभूम के तारापीठ, कामरूप के कामख्या, रजरप्पा की छिन्नमस्ता जैसे तमाम सिद्धपीठों को तांत्रिकों की सिद्धभूमि माना जाता है. ये पीठ आम श्रद्धालुओं के आकर्षण केंद्र भी हैं. कोलकाता के कालीघाट में कुछ अघोरपंथियों के प्रति स्थानीय श्रद्धालुओं में श्रद्धा-भक्ति दिखती है. हालांकि, उनकी गतिविधियां ज्योतिष को लेकर ज्यादा दिखती हैं. साथ ही हीलिंग टच चिकित्सा की भी ख्याति है. कालीघाट के पास स्थित केवड़ातला श्मशान घाट को किसी जमाने में शव-साधना का केंद्र माना जाता था. यहां 1862 में श्मशान का निर्माण किया गया. उस दौरान कालीघाट में महिला तांत्रिकों की संख्या भी अच्छी-खासी थी. 1960 में मां योगिनी नामक एक महिला तांत्रिक ने अपनी आसाधारण क्षमता से असाध्य रोगों का इलाज करने का दावा किया था. उस महिला तांत्रिक के शिष्यों की संख्या आज भी कालीघाट इलाके में काफी है. ऐसे ही एक तांत्रिक हैं बाबा मिहिर भट्टाचार्य. 75 वर्ष पार के भट्टाचार्य अपनी दिव्य अंगुलियों के स्पर्श से समस्याओं के समाधान का दावा करते हैं. ज्यादा चर्चा में आना इन्हें नागवार है. कालीघाट में उनके चेलों की अच्छी तादाद है, जिनके पास उनके द्वारा किये गये चमत्कारों का पिटारा है. कालीघाट में एक और अघोरपंथी तांत्रिक हैं - स्वामी शंकरानंद. भविष्यवाणी करने के लिए उनकी ख्याति है. उनका दावा है कि मंत्रों की सिद्धि करने के लिए उन्होंने कई रातें श्मशान में गुजारी हैं. वे तंत्र विद्या की प्राचीनता पर खुलकर बात करते हैं. आधुनिक दौर में तंत्र-साधना पर विश्वास करने वालों की संख्या भले ही कम हुई हो, लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो तांत्रिकों तथा उनकी साधनाओं के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं. - कामरूप कामाख्या, तंत्र-मंत्र साधना के लिए विख्यात * तंत्र साधना में नारी ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (अष्टक 8, मं. 10 सू. 129) में वर्णित है कि प्रारंभ में अंधकार था एवं जल की प्रधानता थी. संसार की उत्पत्ति जल से ही हुई है. जल का ही एक पर्यायवाची नार है. सृजन के समय विष्णु जल की शैया पर विराजमान होते हैं और नारायण कहलाते हैं एवं उस समय उनकी नाभि से प्रस्फुटित कमल की कर्णिका पर स्थित ब्रह्म ही संसार का सृजन करते हैं और नारी की नाभि से ही सृजन प्रारंभ होता है तथा उसका प्रस्फुटन नाभि के नीचे के भाग में स्थित सृजन-पद्म में होता है. सृजन की प्रक्रि या में नारायण एवं नारी दोनों समानधर्मी, अष्टकमल युक्त तथा परिपूर्ण हैं जबकि पुरुष केवल सप्त कमलमय है, जो अपूर्ण है. इसी कारण तंत्र शास्त्र में तंत्रराज श्रीयंत्र की रचना में रक्तवर्णी अष्टकमल विद्यमान होता है, जो नारी अथवा शक्ति की सृजनता का प्रतीक है. इसी श्रीयंत्र में अष्टकमल के पश्चात षोडशदलीय कमल सृष्टि की आद्या शक्ति चंद्रा के सृष्टि रूप में प्रस्फुटन का प्रतीक है. चंद्रमा 16 कलाओं में पूर्णता को प्राप्त करता है. इसी के अनुरूप षोडशी देवी का मंत्र 16 अक्षरों का है तथा श्रीयंत्र में 16 कमल दल होते हैं. तदनुरूप नारी 27 दिनों के चक्र के पश्चात 28वें दिन पुन: नवसृजन के लिए कुमारी रूपा हो जाती है. यह संपूर्ण संसार द्वंद्वात्मक है, मैथुनजन्य है एवं इसके समस्त पदार्थ स्त्री तथा पुरुष में विभाजित हैं. इन दोनों के बीच आकर्षण शक्ति ही संसार के अस्तित्व का मूलाधार है, जिसे आदि शंकराचार्यजी ने सौंदर्य-लहरी के प्रथम श्लोक में यूं व्यक्त किया है. शिव:शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं. न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पंदितुमपि. अर्थात, शिवशक्ति से युक्त आकर्षण ही कामशक्ति है जिसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है. यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है. तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है. षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में स्त्री की उपस्थिति अनिवार्य व अपरिहार्य है, क्योंकि साधना स्थूल शरीर द्वारा ना होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है. - तारापीठ : आज भी तंत्र साधकों का केंद्र पश्चिम बंगाल में एक ऐसा शक्तिपीठ है, जहां तंत्र साधना के लिए सैकड़ों की संख्या में तांत्रिक और अघोर साधु -संन्यासी तंत्र साधना में लीन रहते हैं. वह है वीरभूम जिला में स्थित तारापीठ. तारापीठ का अपना एक विशेष महत्व है. तंत्र साधना के एक प्रमुख स्थल के रूप में आज भी तारापीठ की पहचान है. लगभग दो सौ साल पहले बंगाल में गरीबी, महामारी, बाढ़ का प्रकोप बढ़ने के साथ राज्य के कोने-कोने में तांत्रिक व संन्यासियों का आविर्भाव होने लगा था. एक ओर रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों ने दक्षिणोश्वर में मां दक्षिणोश्वरी काली मंदिर की स्थापना की, वहीं बामाचरण द्वारका तीर के श्मशान पर बैठे तारादेवी की अतुल्य साधना से सिद्धि प्राप्त कर जनहित कार्य में जुट गये. एक ने मंत्र का मार्ग अपनाया, तो दूसरे ने साधना का. तारापीठ से लौट कर बता रहे हैं रत्नेश तिवारी. बचपन से ही बामाचरण आम बच्चों से कुछ अलग थे. दूसरे बच्चे खेलते, तो बालक बामाचरण मिट्टी की मूर्ति बनाते, जब मूर्ति ठीक नहीं बनती तो उसे तोड़ देते. बामाचरण के कारनामे को देख मोहल्ले के लोग इस बालक को खेपा अर्थात पागल कहने लगे थे. बचपन से ही बामाचरण (बामाखेपा) का सपना था कि वह मां तारा के दास बनें. तंत्र व साधना से मां को प्रसन्न करेंगे. पिता सर्वानंद चट्टोपाध्याय को खुशी हुई की बेटा मां तारा का दास बनेगा. * क्या है तारापीठ वीरभूम जिला के रामपुर हाट स्टेशन से पांच मील की दूरी पर उत्तर पूर्व की ओर अंतिम छोर पर द्वारका नदी है. नदी के एक तरफ तारापुर गांव है. उत्तर पूर्व मुखी यह नदी गांव के किनारे से बहती थी, अभी यह नदी सुख गयी है. बरसात में यह नदी भर जाती है. नदी के उस पार बामाखेपा का आश्रम, समाधि मंदिर फिर एक तालाब जिसका नाम अमृत जीवित कुंड है. उसके बाद शुरू होता है मंदिर परिसर. आजकल तारापीठ रोड नाम से स्टेशन भी बना है. वहां से मंदिर की दूरी तीन मील है. मंदिर में तारा मां की शिलामूर्ति विराजमान है. मूर्ति का अधिकांश भाग चांदी के आवरण से घिरा है. सिर्फ मूर्ति स्नान के समय इस आवरण को अलग किया जाता है. * मीलों में है महाश्मशान मंदिर से कुछ ही दूरी पर मीलों दूर एक महाश्मशान है. चारों ओर बड़ा-सा बगीचा, जिसमें ना जाने कितने प्रकार के पेड़ पौधे हैं. बड़े बड़े झाड़ हैं, जिसके अंदर सूर्य की किरणों का पहुंचना भी कठिन है. शाम होते ही भयंकर अंधेरे के साथ यहां का वातावरण काफी भयंकर हो उठता है. कुछ वर्ष पहले तक श्मशान के चारों तरफ असंख्य खोपड़ी, जहां-तहां पड़े नर कंकाल के आधे- अधूरे अंश. साथ ही श्मशान के बीच में एक बड़ा-सा शिमूल का पेड़, जिसके नीचे पंचमुंडी का आसन. वहां बैठ कर तांत्रिक वर्षो से तंत्र साधना कर सिद्धि प्राप्त करते हैं. वह आसन अब झाड़ों से ढक गया है और शिमूल का वृक्ष भी नहीं है. * प्रकृत योगी ही बैठ सकता है आसन पर सुनने में आता है कि इसी आसन पर बैठ कर वशिष्ठ मुनि ने सिद्धि लाभ की थी. इस आसन के बीच में सहस्र कमल था. प्रकृत योगी ही इस आसन पर बैठ सकता है, अन्यथा नहीं. वशिष्ठ मुनि ने इसी आसन पर सिद्धि लाभ की. उसके बाद नाटो राजा रामकृष्ण, तंत्र शास्त्र के विराट साधक आनंद नाथ, पंडित मोझानंद और अंतिम भैरव बामाचरण. यहां का यह महाश्मशान विशिष्ठ सिद्धपीठ के नाम से प्रसिद्ध है. शास्त्र में वर्णित 51 पीठों में तीरापीठ भी एक है. देश के सैकड़ों तांत्रिकों ने यहां से तंत्र-साधना कर सिद्धियां प्राप्त की हैं. लेकिन विगत एक दशक से अधिक समय से तारापीठ में पहले की तुलना में तंत्र साधना करनेवाले साधु अथवा अघोरियों की संख्या में कमी आयी है. एक समय विशेष अथवा अमावस्या की रात को ही यहां तांत्रिकों को देखा जाता है. आम तौर पर यहां दिन के समय में ढोंगी तांत्रिकों का जमावड़ा देखा जाता है.

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