तपस्या क्या है ? तपस्या का वायो वैज्ञानिक आधार क्या है ? भाग – 2
पाँच प्राणो का रहश्य क्या है ?
पिछले लेख मे मेने आपको बताया था कि आप तपस्या से अपनी इंद्रियों को तपा कर महान बना सकते हो । तथा शरीर को तपोबली बना सकते हो । आज आपको बताऊंगा कि 5 प्राणो और 5 उप प्राणो को कैसे तपस्या से महान बनाकर शरीर को कैसे निरोगी बनाए जाये ? तथा लंबी आयु प्राप्त की जा सके । हमारे शरीर के निचले हिस्से मे जहां पर गुदा होती है या हम यह कह सकते है जहां पर हमारा मूलाधार चक्र होता है । वहाँ पर हमारा पहला प्राण अपान प्राण होता है । अपान प्राण का मुख्य कार्य शरीर के अंदर गुरुत्वाकर्षण बल का निर्माण करना होता है । गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही हमारा शरीर खड़ा होता है और बैठता है । प्रथ्वी के गुरुत्व और हमारे शरीर के अपान प्राण के गुरुत्व का आपस मे हमेशा खिचाब रहता है । जब हम तपस्या बल से अपने अपान प्राण को महान बना लेते है तो हमारा शरीर प्रथ्वी के गुरुत्व बल से निकल कर हवा मे तैरने लग जाता है । और हम अपान प्राण के तप के कारण पक्षियों की भांति हवा मे उड़ सकते है । और जब हमारा अपान प्राण कमजोर हो जाता है तो प्रथ्वी हमारे शरीर को अपने गुरुत्व मे मिला लेती है । तथा हम फिर उठ और बैठ नहीं सकते है । म्रत्यु के समय सबसे पहले हमारा अपान प्राण ही म्रत्यु को प्राप्त होता है। दूसरा प्राण हमारे शरीर मे उदान प्राण होता है । यह प्राण हमारे शरीर मे जो भी हम खाते है उसको पचाता है तथा उसका रस बनाकर शरीर के तीसरे प्राण समान को दे देता है । अगर हम तप से उदान प्राण को महान बना लेते है तो हमे भोजन की आवश्यकता नहीं होगी । तथा हम सालो साल अपना भोजन अंतिरक्ष से प्राप्त कर सकते है । जब हमारा म्रत्यु का समय आता है तो पहले अपान प्राण और फिर उदान प्राण काम करना छोड़ देता है । जिसके कारण हम खाना पीना छोड़ देते है । जब मनुष्य उठ बैठ नहीं पाता है तथा खाना पीना छोड़ देता है तो ज्ञानी पुरुष समझ जाता है कि इसके दो प्राण काम नहीं कर रहे है । इसका म्रत्यु का समय नजदीक आ गया है । हमारा तीसरा प्राण ”समान” प्राण होता है। इस प्राण का कार्य शरीर के अंदर 72,72,10,202 नस और नाड़ियों को समान रूप से रस की या खून की आपूर्ति करना होता है । अगर समान प्राण को हम तप से महान बना लेते है तो हमारे शरीर का पाचन तंत्र और आपूर्ति तंत्र मजबूत हो जाता है । तथा शरीर बिना किसी बीमारी और बाधा के जीवन जीता है । म्रत्यु के समय समान प्राण अपना काम छोड़ देता है । जो हम खाते है वो पच नहीं पता है और न ही उसकी आपूर्ति होती है । चौथा प्राण हमारे शरीर का “व्यान” प्राण होता है । जो कंठ चक्र पर मौजूद होता है । व्यान प्राण का मुख्य कार्य अंतिरक्ष से शब्दों को लाना और वाणी के द्वारा उनका प्रसारण करना होता है । अगर तप के बल से आप इस प्राण को महान बना लेते हो तो आपकी वाणी महान होगी । आप 24 घंटे लगातार किसी भी विषय पर बोल सकते हो । जब म्रत्यु के समय “व्यान” प्राण अपना काम बंद कर देता है तथा हम बोलना बंद कर देते है । जब शरीर के 4 प्राण काम करना बंद कर दे तो समझना चाहिए कि अंतिम समय अब नजदीक आ गया है । अंत मे पाँचवाँ प्राण नाभि मे विराजमान रहता है उसका संबंध आत्मा से रहता है । उसको प्राण ही बोलते है । उसका संपर्क जब शरीर से टूट जाता है तो म्रत्यु निश्चित हो जाती है । इसलिए मेरे मित्रो तपस्या से इन पांचों प्राणो को महान बनाओ । इसके लिए आपको एक महान गुरु की आवश्यकता होती है । यह तपस्या महान तपस्वी गुरु के सानिध्य मे ही करनी चाहिए ।
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