Thursday, 13 July 2017

चौसठ कलाएँ भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। कामसूत्र, शुक्रनीति आदि में 64 कलाओं का वर्णन है। दण्डी ने काव्यादर्श में इनको 'कामार्थसंश्रयाः' कहा है (अर्थात् काम और अर्थ कला के ऊपर आश्रय पाते हैं।) - नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः। कामसूत्र में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं। 1- गानविद्या 2- वाद्य-भांति-भांतिके बाजे बजाना 3- नृत्य 4- नाट्य 5- चित्रकारी 6- बेल-बूटे बनाना 7- चावल और पुष्पादिसे पूजा के उपहार की रचना करना 8- फूलों की सेज बनान 9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 10- मणियों की फर्श बनाना 11- शय्मा-रचना 12- जलको बांध देना 13- विचित्र सििद्धयां दिखलाना 14- हार-माला आदि बनाना 15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना 16- कपड़े और गहने बनाना 17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना 18- कानों के पत्तों की रचना करना 19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना 20- इंद्रजाल-जादूगरी 21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 22- हाथ की फुतीकें काम 23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना 24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 25- सूई का काम 26- कठपुतली बनाना, नाचना 27- पहली 28- प्रतिमा आदि बनाना 29- कूटनीति 30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 32- समस्यापूर्ति करना 33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना 34- गलीचे, दरी आदि बनाना 35- बढ़ई की कारीगरी 36- गृह आदि बनाने की कारीगरी 37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 38- सोना-चांदी आदि बना लेना 39- मणियों के रंग को पहचानना 40- खानों की पहचान 41- वृक्षों की चिकित्सा 42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति 43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना 44- उच्चाटनकी विधि 45- केशों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना 48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान 49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना 50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 52- सांकेतिक भाषा बनाना 53- मनमें कटकरचना करना 54- नयी-नयी बातें निकालना 55- छल से काम निकालना 56- समस्त कोशों का ज्ञान 57- समस्त छन्दों का ज्ञान 58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 59- द्यू्त क्रीड़ा 60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 61- बालकों के खेल 62- मन्त्रविद्या 63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या

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बनाना) तण्डुल-कुसुमबलिविकार कला (देव-पूजनादि के अवसर पर तरह-तरह के रँगे हुए चावल, जौ आदि वस्तुओ तथा रंगविरंगे फूलों को विविध प्रकार से सजाना) पुष्पास्तरण कला दशनवसनांगराग कला (दाँत, वस्त्र तथा शरीर के अवयवों को रँगना) मणिभूमिका-कर्म कला (घर के फर्श के कुछ भागों को मोती, मणि आदि रत्नों से जड़ना) शयनरचन कला (पलंग लगाना) उदकवाद्य कला (जलतरंग) उदकाघात कला (दूसरों पर हाथों या पिचकारी से जल की चोट मारना) चित्राश्च योगा कला (जड़ी-बूटियों के योग से विविध वस्तुएँ ऐसी तैयार करना या ऐसी औषधें तैयार करना अथवा ऐसे मन्त्रों का प्रयोग करना जिनसे शत्रु निर्बल हो या उसकी हानि हो), माल्यग्रंथनविकल्प कला (माला गूँथना) शेखरकापीड़योजन कला (स्त्रियों की चोटी पर पहनने के विविध अलंकारों के रूप में पुष्पों को गूँथना) नेपथ्यप्रयोग कला(शरीर को वस्त्र, आभूषण, पुष्प आदि से सुसज्जित करना) कर्णपत्रभंग कला (शंक्ख, हाथीदाँत आदि के अनेक तरह के कान के आभूषण बनाना) गन्धयुक्ति कला (सुगन्धित धूप बनाना) भूषणयोजन कला ऐन्द्रजाल कला (जादू के खेल) कौचुमारयोग कला (बल-वीर्य बढ़ाने वाली औषधियाँ बनाना) हस्तलाघव कला (हाथों की काम करने में फुर्ती और सफ़ाई) विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकार-क्रिया कला(तरह-तरह के शाक, कढ़ी, रस, मिठाई आदि बनाने की क्रिया) पानकरस-रागासव-योजन कला (विविध प्रकार के शर्बत, आसव आदि बनाना) सूचीवान कर्म कला (सुई का काम, जैसे सीना, रफू करना, कसीदा काढ़ना, मोजे-गंजी बुनना) सूत्रक्रीड़ा कला (तागे या डोरियों से खेलना, जैसे कठपुतली का खेल) वीणाडमरूकवाद्य कला प्रहेलिका कला (पहेलियाँ बूझना) प्रतिमाला कला (श्लोक आदि कविता पढ़ने की मनोरंजक रीति) दुर्वाचकयोग कला (ऐसे श्लोक आदि पढ़ना, जिनका अर्थ और उच्चारण दोनों कठिन हों) पुस्तक-वाचन कला नाटकाख्यायिका-दर्शन कला काव्य समस्यापूरण कला पट्टिकावेत्रवानविकल्प कला (पीढ़ा, आसन, कुर्सी, पलंग, मोढ़े आदि चीज़ें बेंत बगेरे वस्तुओं से बनाना) तक्षकर्म कला (लकड़ी, धातु आदि को अभष्टि विभिन्न आकारों में काटना) तक्षण कला (बढ़ई का काम) वास्तुविद्या कला रूप्यरत्नपरीक्षा कला (सिक्के, रत्न आदि की परीक्षा करना) धातुवाद कला (पीतल आदि धातुओं को मिलाना, शुद्ध करना आदि) मणिरागाकर ज्ञान कला (मणि आदि का रँगना, खान आदि के विषय का ज्ञान) वृक्षायुर्वेदयोग कला मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधि कला (मेंढे, मुर्गे, तीतर आदि को लड़ाना) शुकसारिका प्रलापन कला (तोता-मैना आदि को बोली सिखाना) उत्सादन-संवाहन केशमर्दनकौशल कला (हाथ-पैरों से शरीर दबाना, केशों का मलना, उनका मैल दूर करना आदि) अक्षरमुष्टि का कथन (अक्षरों को ऐसी युक्ति से कहना कि उस संकेत का जानने वाला ही उनका अर्थ समझे, दूसरा नहीं; मुष्टिसकेंत द्वारा वातचीत करना, जैसे दलाल आदि कर लेते हैं), म्लेच्छित विकल्प कला (ऐसे संकेत से लिखना, जिसे उस संकेत को जानने वाला ही समझे) देशभाषा-विज्ञान कला पुष्पशकटिका कला निमित्तज्ञान कला (शकुन जानना) यन्त्र मातृका कला (विविध प्रकार के मशीन, कल, पुर्जे आदि बनाना) धारणमातृका कला (सुनी हुई बातों का स्मरण रखना) संपाठ्य कला मानसी काव्य-क्रिया कला (किसी श्लोक में छोड़े हुए पद को मन से पूरा करना) अभिधानकोष कला छन्दोज्ञान कला क्रियाकल्प कला (काव्यालंकारों का ज्ञान) छलितक योग कला (रूप और बोली छिपाना) वस्त्रगोपन कला (शरीर के अंगों को छोटे या बड़े वस्त्रों से यथायोग्य ढँकना) द्यूतविशेष कला आकर्ष-क्रीड़ा कला (पासों से खेलना) बालक्रीड़नक कला वैनयिकी ज्ञान कला (अपने और पराये से विनयपूर्वक शिष्टाचार करना) वैजयिकी-ज्ञान कला (विजय प्राप्त करने की विद्या अर्थात् शस्त्रविद्या) व्यायामविद्या कला इनका विशेष विवरण जयमंगल ने कामसूत्र की व्याख्या में किया है। संबंधित लेख [] देखें • वार्ता • बदलें चौंसठ कलाएँ चौंसठ कलाएँ जयमंगल गीत कला · वाद्य कला · नृत्य कला · आलेख्य कला · विशेषकच्छेद्य कला · तण्डुल-कुसुमबलिविकार कला · पुष्पास्तरण कला ·दशनवसनांगराग कला · मणिभूमिका-कर्म कला · शयनरचन कला · उदकवाद्य कला ·उदकाघात कला · चित्राश्च योगा कला ·माल्यग्रंथनविकल्प कला · शेखरकापीड़योजन कला · नेपथ्यप्रयोग कला · कर्णपत्रभंग कला· गन्धयुक्ति कला · भूषणयोजन कला ·ऐन्द्रजाल कला · कौचुमारयोग कला ·हस्तलाघव कला ·विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकार-क्रिया कला ·पानकरस-रागासव-योजन कला · सूचीवान कर्म कला · सूत्रक्रीड़ा कला ·वीणाडमरूकवाद्य कला · प्रहेलिका कला ·प्रतिमाला कला · दुर्वाचकयोग कला ·पुस्तक-वाचन कला · नाटकाख्यायिका-दर्शन कला · काव्य समस्यापूरण कला ·पट्टिकावेत्रवानविकल्प कला · तक्षकर्म कला ·तक्षण कला · वास्तुविद्या कला ·रूप्यरत्नपरीक्षा कला · धातुवाद कला ·मणिरागाकर ज्ञान कला · वृक्षायुर्वेदयोग कला · मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधि 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