HOME ABOUT DAATI MISSION » ABOUT SWAWGAHAN MERE SATGURU » LIBRARY » ORGANIZATION » CONTACT US  प्राणों की विद्या के ज्ञान के साथ-साथ बड़े महत्वपूर्ण हैं ये तीन बंध प्राण साधना में बैठने की सुव्यवस्थित व्यवस्था कैसी हो और प्राण साधना के सात अनमोल प्रयोग  हमारे प्राचीन मनीषियों ने अष्टांग योग को अपने जीवन में व्यवहारिक रूप से अपना कर उससे होने वाले लाभों का अनेक प्रसंगों में जिक्र किया है। उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लाभ के लिए योग साधना के विविध अंगों के सैद्धांतिक व - इस व्यावहारिक नियमों का भी उल्लेख किया है जिसका प्राणविद्या की साधना में उपयोग कर हम आज भी लाभान्वित हो सकते हैं। योग के कई आसनों व प्राणायामों के अभ्यास के समय उससे प्राप्त होने वाली शक्तियों के बहिर्गमन को रोकने के लिए प्राचीन ग्रंथों में कुछ बंधों का भी वर्णन किया गया है। प्राणविद्या के क्षेत्र में आगे बढ ने के लिए तीन बंध विशेष उपयोगी हैं। बंध लगाकर किये जाने वाले प्राणविद्या अभ्यास प्रक्रिया के विविध चरणों के अभ्यास से हमारे शरीर में जिस आभ्यांतरिक शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, उसका बहिर्गमन रूकता है और वह शक्ति अन्तर्मुखी हो जाती है। फलस्वरूप हम बड ी आसानी से प्राणविद्या के विविध पहलुओं की जानकारी बड ी तीव्रता से हासिल करने में सफल होते हैं। बन्ध का अर्थ ही है बांधना या रोकना। जो बंध प्राणविद्या में अत्यन्त सहायक हैं, उनका परिचय आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। जालन्धर बंध यह बंध लगाने के लिए हमें सबसे पहले पद्मासन या सिद्धासन में सीधे बैठकर श्वांस को अन्दर भर लेना चाहिए। फिर दोनों हाथ घुटनों पर टिका कर अपनी ठोडी को थोड़ा नीचे झुकाते हुए कंठकूप में लगा लेना चाहिए। इसे ही जालन्धर बंध कहा जाता है। फिर अपनी दृष्टि को भौंहों के बीच में केन्द्रित कर लेना चाहिए। उस समय अपनी छाती आगे की ओर तनी हुई रखना चाहिए। यह बंध कंठस्थान के नाड ी जाल के समूह को बिखरने नहीं देता, हमेशा बांधे रखता है। इस बंध के अभ्यास में हमें ये लाभ मिलते हैं - १. कण्ठस्वर मधुर, सुरीला और आकर्षक हो जाता है। २. इस बंध से कण्ठ संकुचित हो जाते हैं जिससे इड ा, पिंगला नाडि यों के बन्द होने पर प्राण का सुषुम्णा में प्रवेश हो जाता है। ३. यह बंध गले के सभी रोगों में लाभ पहुंचाता है। थायराइड, टांसिल आदि रोगों में भी इससे विशेष लाभ मिलता है। ४. यह बंध शरीर में अवस्थित विशुद्ध चक्र को जगाने में योगाभ्यासियों की विशेष मदद करता है। उड्डीयान बन्ध इस बंध को लगाने से हमारे प्राण उठकर बड़ी आसानी से सुषुम्णा में प्रविष्ट हो जाते हैं। यह बंध लगाने के लिए सबसे पहले हमें खड े होकर अपने दोनों हाथ सहजभाव से दोनों घुटनों पर रख देना चाहिए। फिर श्वांस बाहर निकालकर पेट को ढीला छोड देना चाहिए। उसके बाद हमें जालन्धर बंध लगाते हुए अपनी छाती को थोड ा ऊपर की ओर उठाना चाहिए। पेट को कमर से ऊपर लगाते हुए उठाना चाहिए। फिर पुनः श्वांस लेकर पूर्ववत् इस क्रिया को दोहराना चाहिए। प्रारंभ में इसका अभ्यास हमें मात्र तीन बार करना चाहिए। धीरे-धीरे ही इसका अभ्यास बढ ाना चाहिए। इसी प्रकार हमें पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर भी इस बंध को लगाने का अभ्यास करना चाहिए। ये बंध लगाने से ये लाभ होते हैं - १. यह बंध पेट संबंधी समस्त रोगों को दूर कर सकता है। २. यह बंध योगाभ्यासियों के प्राणों को जागृत कर मणिपूर चक्र का भी शोधन करता है। मूलबंध यह बंध लगाने के लिए हमें सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर बाह्य या आभ्यन्तर कुम्भक करते हुए, गुदाभाग एवं मूत्रेन्द्रिय को ऊपर की ओर आकर्षित करना चाहिए। यह बंध लगाने से नाभि के नीचे वाला हिस्सा खिंच जाता है। इसे प्राणायाम के बाह्यकुंभक के साथ लगाने में सुविधा रहती है। अधिक देर तक इसका अभ्यास करने के लिए यह बंध लगाने का अभ्यास किसी कुशल मार्गदर्शक के सान्निध्य में ही करना उचित है। यह बंध लगाने से ये लाभ होते हैं - १. यह बंध लगाने से अपान वायु का ऊर्ध्वगमन होता है और उसकी प्राण के साथ एकता होती है। यह बंध योगाभ्यास करने वालों के मूलाधार चक्र को जाग्रत कर उन्हें कुण्डलिनी जागरण में बहुत सहायता देता है। २. यह बंध कब्ज और बवासीर आदि रोगों को दूर करने तथा जठाराग्नि को तेज करने में भी विशेष उपयोगी है। ३. यह बंध वीर्य की गति ऊपर की ओर करता है। अतः ब्रह्मचारी के लिए विशेष महत्व रखता है। महाबन्ध जब जालंधन बंध, उड्डीयान बंध और मूलबंध तीनों बंध को एक ही साथ किसी ध्यान वाले आसन में बैठकर लगाये जाते हैं तो उसे महाबंध कहा जाता है। इससे वे सभी लाभ मिल जाते हैं, जो तीनों बंधों से मिला करते हैं। प्राणायाम की कुंभक क्रिया में ये तीनों बंध लगाये जाते हैं। यह बंध लगाने से ये लाभ होते हैं - १. इससे प्राणों की गति ऊपर की ओर उठ जाती है यानी प्राण ऊर्ध्वगामी बन जाता है। २. यह वीर्य की शुद्धि और बल की वृद्धि में भी विशेष सहायक होता है। ३. इससे इड़ा, पिंगला और सुषुम्णा का संगम आसानी से प्राप्त हो जाता है। Additional Information powered by TickBar      News Update    Recent Articles    Daati Ji's Audio 0.60382294934698 00:00 00:00 Random playback daati sandesh_1 daati sandesh_10 daati sandesh_11 daati sandesh_12 daati sandesh_13 daati sandesh_14 daati sandesh_15 daati sandesh_16 daati sandesh_17 daati sandesh_18 daati sandesh_19 daati sandesh_2 daati sandesh_20 daati sandesh_21 daati sandesh_22 daati sandesh_23 daati sandesh_24 daati sandesh_25 daati sandesh_26 daati sandesh_27 daati sandesh_28 daati sandesh_29 daati sandesh_3 daati sandesh_30 daati sandesh_31 daati sandesh_32 daati sandesh_33 daati sandesh_34 daati sandesh_35 daati sandesh_36 daati sandesh_37 daati sandesh_38 daati sandesh_39 daati sandesh_4 daati sandesh_40 daati sandesh_41 daati sandesh_42 daati sandesh_43 daati sandesh_5 daati sandesh_6 daati sandesh_7 daati sandesh_8 daati sandesh_9 Open in new window  Downloads Ringtones Invite Friends Click here to invite your friends to Daati and help accomplishing the mission of Daati Maharaj   Powered by : CG Technosoft Pvt. 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