मेरी कलम से (meri kalam se) विचारों और अनुभवों का अभ्युदय कविता मेरी यात्रा लेख Thursday, 30 June 2016 ब्राह्मण कौन हैं.................? ब्राह्मण समाज का उद्भव प्राचीन भारत में वैदिक धर्म से हुआ था। ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्त्रोत वेदों को माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ब्राह्मणों के समस्त सम्प्रदाय वेदों से ही प्रेरणा लेते हैं। वेदों को सत्य, ईश्वर और शाश्वत माना जाता है। इसलिए ब्राह्मण को भगवान के समान पूजनीय माना जाता है। सृष्टि के उद्भव से ही ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है। ऐसी मान्यता भी है कि ब्राह्मण के पग घर में पड़ते ही आंगन पवित्र हो जाता है। इसलिए ब्राह्मण के प्रति जनमानस के हृदय में अगाध प्रेम भाव निहित है। लेकिन समयचक्र के साथ-साथ ब्राह्मण के प्रति मानसपटल पर स्नेहभाव अपंग होता जा रहा है। क्योंकि सतयुग में व्यक्ति की विशेषता, आचरण एवं स्वभाव के आधार पर जाति निर्धारित होती थी। लेकिन कलयुग के इस काले युग में मनुष्य ने अपने स्वार्थ मात्र हेतु जातियों को एक नया स्वरूप दे दिया और व्यक्ति के ब्राह्मण कुल में जन्म लेने मात्र से ही उसे ब्राह्मण की संज्ञा दी जाने लगी है। ब्राह्मण को सिर-आंखों पर बैठा लिया जाता है। जिसके कारण आज ब्राह्मण शब्द को दोहन हो रहा है। ब्राह्मण शब्द का अर्थ होता है ‘‘ईश्वर ज्ञाता’’। यस्क मुनि की निरुक्त में कहा गया है कि ‘‘ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः’’। अर्थात ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (सत्य, ईश्वर और परम ज्ञान) को जानता है।’’ किन्तु वर्तमान में कौन ब्राह्मण है। यहां अधिकांश तो पारंपरिक तौर से पंडित और ब्राह्मण बने हुए हैं। पतंजलि भाष्य व योगसूत्र के अनुसार - जो व्यक्ति विद्या और तप से शून्य है वह जातिमात्र के लिए ब्राह्मण है, ऐसा व्यक्ति कदाचित पूज्य नहीं हो सकता है। लेकिन आज इसके विपरीत हो रहा है। सतयुग में ब्राह्मण जन्म से नहीं अपितु अपने कर्मों से बनते थे। ब्राह्मणों को हिन्दूत्व का परिचायक भी कहा जाता था। इसलिए स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि ‘‘जब-तक ब्राह्मणत्व सुरक्षित है, तब-तक हिन्दूत्व पर आंच नहीं आ सकती।’’ लेकिन आज हिन्दूत्व ही खतरे में है और जनेऊ धारण करने एवं जटा रखने अथवा माता-पिता की जाति के आधार पर ही ब्राह्मत्व का निर्धारण किया जाने लगा है। समाज में ब्राह्मण के बदलते रूप को देखने से गौतम बुद्ध के कथन का स्मरण हो आता है, जिसमें उन्होनें कहा है कि ‘‘ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न तो गोत्र से और न ही जन्म से। जिसमें सत्य, धर्म है और जो पवित्र है वही ब्राह्मण है। कमल के पत्ते पर जल और आरे की नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हूं।’’ हिन्दू धर्म के अनुसार जनेऊ पहनना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। हिन्दू धर्म में किसी भी जाति का व्यक्ति जनेऊ पहन सकता है बशर्ते वह उसके नियमों का पालन करे। वेदव्यास और नारदमुनि कि अनुसार - जिस व्यक्ति को जन्म से ब्राह्मण होने का दर्जा प्राप्त है, किन्तु उसके कर्म ब्राह्मण वाले नहीं है तो ऐसे व्यक्ति को शूद्र के कार्यों में लगा देना चाहिए। भगवद्गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं- शम, दम, करुणा, प्रेम, शीन (चारित्र्यवान) निस्पृही जैसे गुणों का स्वामी ही ब्राह्मण है। जो ब्रह्म को छोड़कर किसी अन्य को नहीं पूजता वह ब्राह्मण है। पुरोहिताई करने वाला याचक है। ज्योतिषी से जीविका चलाने वाले त्योतिषी है और कथा करने वाला कथा वाचक कहलाता है। लेकिन आज ब्राह्मण क्यों है ? क्या हैं ? और कौन है ? यह जाने बिना मनुष्य अपनी मूर्खतापूर्ण कूटनीतियों से ब्राह्मण शब्द का दोहन कर रहा है, जो पवित्र ब्राह्मण शब्द को कलंकित कर रहा है, जिसका खामियाजा सम्पूर्ण जगत को भुगतना पडेगा। एक ब्राह्मण वही है जो गाली-गलौज न करे और सदा दूसरों के हित की कामना करे। लेकिन कलयुग में ब्राह्मण तत्व को मात्र पेशा बना कर रख दिया है। समाज में अधिकांश डिग्रीधारी ब्राह्मण ही विद्यमान है जो ब्राह्मण के गुणों से कोसों दूर हैं। वेदों और उनपिषदों में लिखित ब्राह्मण की परिभाषा के अनुकूल ब्राह्मण की खोज करना आज के समय में चांद पर जीवन ढूढनें के समान है। जिसकी आस तो सभी को है किन्तु कामयाबी किसी को नहीं मिलती। क्योंकि आज समाज में ब्राह्मण नहीं अपितु अधिकांश धार्मिक ठेकेदार ही विद्यमान है जिनका कार्य एक-दूसरे पर लांछन लगाना मात्र ही रह गया है। प्रसिद्ध मंदिरों में जाने वाले तीर्थ यात्रियों का कहना है कि उन्होंने कई दफा मंदिर में पंडितों को पैसों के लिए लड़ते-झगड़ते देखा हैं। एक सच्चा ब्राह्मण मोह-माया से दूर रहता है किन्तु आज अधिकांश ब्राह्मणों के पास मोह के साथ-साथ सैंकड़ों मायाएं मिल जाएंगी। कलयुग का ब्राह्मण शराब, धू्रमपान, तम्बाकू आदि का सेवन करता भी मिल जाएगा। जो व्यक्ति अपने आप को जन्मजात ब्राह्मण मानते हैं दरअसल वह शूद्र है क्योंकि वह अपने कुकर्मों से पवित्र ब्राह्मण शब्द को कंलकित कर रहे हैं। मैने स्वयं पंडितों को गाली-गलौज, स्त्रियों के प्रति हीन दृष्टि रखते देखा हैं। यह बदलते समाज के बदलते ब्राह्मण हैं जो समय से भी तीव्र गति से बदल रहे हैं। यदि वेदों एवं उपनिषदों के तराजू पर आज समाज में विद्यमान अधिकांश ब्राह्मणों को तोला जाए तो अधिकतर विफल हो जाएंगे। क्योंकि आज सभी के अन्दर लोभ, माया, छल-कपट, द्वेष आदि निहित है। इसलिए आज ब्राह्मण शब्द वर्ण न होकर जाति मात्र तक ही सीमित रह गया है। यस्क मुनि के अनुसार - प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही शूद्र है। संस्कार पा लेने से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु सच्चा ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म को जान ले। इसलिए आज समाज को जागरूक होने के जरूरत है। उन्हें समझना होगा कि जिन अधंविश्वासों के सहारे वह जीवनयापन कर रहें हैं वह समाज के विनाश का करण बन सकते हैं। वेदों और उपनिषदों में लिखित कथनों को नजरअंदाज करना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है जिसका परिणाम भयावह हो सकता है। इंसान को अपनी चेतना के केन्द्र बिन्दु को जाग्रत कर यह समझना होगा कि जन्म के दौरान मनुष्य की कोई जाति नहीं होती। धरती पर जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक समान है। व्यक्ति के कर्म ही उसकी जाति निर्धारित करते हैं और कर्म ही सृष्टि का सिद्धान्त है, जिस पर सम्पूर्ण जगत टिका है। लेकिन मनुष्य द्वारा ब्रह्माण्ड के नियमों का निरन्तर दोहन सृष्टि को विनाश की ओर अग्रसर कर रहा है। at June 30, 2016  Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook Share to Pinterest  Labels: लेख Monday, 20 June 2016 सकारात्मक सोच की आवश्यकता लोगों को अक्सर उलझनों में फंसे हुए देखा है। यह उलझने किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं अपितु मनुष्य की मनोवैज्ञानिक दृष्टि क्षीण होने के कारण उत्पन्न होती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्षीण होने पर इंसान के अंतःजगत में सकारात्मकता के अभाव के कारण नकारात्मकता का जन्म होता है,जो मनुष्य की बुद़धि को ज़िन्दगी के हर मोड़ पर नकारात्मकता से भर देता है। इसके कारण वह छोटी-से-छोटी चीज़ों के प्रति नकारात्मक दृष्टि रखने लगता है। जैसे लोग इस कशमकश में खोए रहते हैं कि क्या करूं और क्या नहीं? जो उसके पास नहीं है उसे पाने की ख्वाइश में उलझा व परेशान और जो पास है उसे खोने के डर से चिन्तित रहता है। यह मनोवैज्ञानिक डर इंसान के भीतर की नकारात्मकता के कारण है। इसका हल मात्र सकारात्मक दृष्टिकोण है। कहते हैं कि जो हम सोचते हैं वही बन जाते हैं। ठीक उसी प्रकार व्यक्ति कार्यों के प्रति जैसी मनोधारणा रखेगा, वह कार्य उसे वैसा ही प्रतीत होगा। लोगों को कई दफा विफलता मिलते देखा है। अधिकांशतः विफलता उनके नकारात्मक दृष्टिकोण का ही दुष्परिणाम होती है। ऐसा देखा गया है कि व्यक्ति किसी कार्य के सफल होने से अधिक विफलता के बारे में सोचता है। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व उसके मन में यह धारणा घर कर जाती है कि कहीं मैं विफल न हो जाऊं ? इसीलिए उसके हाथ विफलता लगती है। क्योंकि इंसान जिस वस्तु, कार्य आदि के बारे में जैसा सोचता है, वह उसके लिए वैसी ही बन जाती है। जैसे यदि पाकिस्तानी सेना भारतीयों पर हमला करें तो वह भारतीयों की दृष्टि से आतंकवादी है और यदि हिन्दुस्तानी सेना पाकिस्तानी सेना पर हमला करे तो उनके लिए भारतीय आतंकवादी है। यह मात्र एक-दूसरे के प्रति इनका नज़रिया है। कई लोगों का कहना है कि उनके साथ वह कार्य भी होते हैं जिनके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। लेकिन यह उनकी भ्रांति है। हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है वह हमारी सोच से ही उत्पन्न होता है या हमारे भीतर सकारात्मकता के अभाव के परिणामस्वरूप होता है। जैसे हिन्दू धर्म के लोगांे को श्रीकृष्ण, राम आदि भगवान दिखते हैं किन्तु कभी ‘महावीर’, ‘बु(’, आदि नहीं दिखते ? ठीक उसी प्रकार ईसाईयों को श्रीकृष्ण या गुरुनानक नहीं दिखते ? क्योंकि मस्तिष्क में हम जिसके प्रति जैसी मनोधारणा रखेंगे वह वैसी ही प्रतीत होती है। भगवान तो एक है किन्तु व्यक्तियों की मनोधारणा अपार है जिसके कारण भगवान भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई देते हैं। जिसके मन में भगवान की जैसी मूरत होती है उसे उसी रूप में भगवान दिखते हैं। मनुष्य का दृष्टिकोण एक अहम भूमिका अदा करता है। सम्पूर्ण सृष्टि दृष्टिकोण द्वारा ही निर्मित है, जिसकी जैसी दृष्टि, वैसा ही उसके लिए ब्रह्माण्ड है। इसलिए मनुष्य व सृष्टि के सर्वागींण विकास के लिए सकारात्मकता अति आवश्यक है। at June 20, 2016  Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook Share to Pinterest  Labels: लेख Newer Posts Older Posts Home Subscribe to: Posts (Atom) About Me  Himanshu Bhatt  एम.ए (जनसंचार और पत्रकारिता) का छात्र हूं। जीवन भर पढ़ने-लिखने की ख्वाइश है। हर मोढ़ पर कुछ नया करने की चाह है। लिखता हूं वही जो अनुभव करता हूं। बेबाक लिखने की आदत है। कलम को गुलाम बनाकर लिखने का शौक नहीं। लिखकर अपने विचारों को सभी के समक्ष प्रस्तुत करने की आदत है। View my complete profile    Blog Archive ► 2017 (42) ▼ 2016 (37) ► December 2016 (8) ► November 2016 (7) ► October 2016 (9) ► September 2016 (4) ► July 2016 (2) ▼ June 2016 (2) ब्राह्मण कौन हैं.................? सकारात्मक सोच की आवश्यकता ► May 2016 (4) ► April 2016 (1) ► 2015 (6)  Followers  Translate  Powered by Translate Search This Blog  Search Popular Posts  वैलेंटाइन का खुमार, समाज होता बीमार धड़कते हुए दिल को 14 फरवरी का बेसब्री से इंतजार रहता है। यूं तो फरवरी का पूरा माह प्रेममय होता है लेकिन 14 फरवरी को प्यार के इजहार के द...  खूनी भारत यूपी में भाजपा सरकार आते ही परिवर्तन की लहर दिखने लगी है। चुनाव के दौरान किए वादों को नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अमलि-जामा पहनाना...  बीमारी का एक रूप "मोटापा" विश्वभर में नए दौर के नए विचारों में विकास की तीव्र हवा चल पड़ी है, जहां हर कोई इस हवा के साथ बह जाना चाहता है। विकासलीला की हवा में भारत भ... 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