Thursday, 13 July 2017

प्राणायम द्वारा कुंडली जागरण

प्राणायम द्वारा कुंडली जागरण कैसे होता है? डॉक्टर प्रणव पंड्या Updated Tue, 21 Jun 2016 06:39 PM IST +बाद में पढ़ें  ध्‍यान  प्राण का अग्नि पर प्रहार-यही है कुण्डलिनी जागरण की प्रधान प्रक्रिया। मेरुदंड के वाम भाग के विद्युत प्रवाह को इडा कहते हैं। नासिका से वायु खींचते हुए उसके साथ प्रचंड प्राणवायु प्रचुर मात्रा में घुला होने की भावना की जाती है। खींचे एक श्वाँस को मेरुदंड मार्ग से मूलाधार चक्र तक पहुँचने की संकल्पपूर्वक भावना की जाती है। यह मान्यता परिपक्व की जाती है कि निश्चित रूप से इस प्रकार अन्तरिक्ष से खींचा गया और श्वास द्वारा मेरुदण्ड मार्ग से प्रेरित किया गया प्राण मूलाधार तक पहुँचता है और उस पर आघात पहुँचाकर जगाने का प्रयत्न करता है। बार-बार लगातार प्रहार करने की भावना श्वास-प्रश्वास के द्वारा की जाती है। मेरुदंड मार्ग से मूलाधार तक इडा शक्ति के पहुंचने का विश्वास दृढ़ता पूर्वक चित्त में जमाया जाता है। प्रहार के उपरांत प्राण को वापस भी लाना पड़ता है। यह वापसी दूसरी धारा पिंगला द्वारा होती है। पिंगला मेरुदंड में अवस्थित दक्षिण पक्ष की प्राण धारा को कहते हैं। इड़ा से गया प्राण मूलाधार की प्रसुप्त सर्पिणी महा अग्नि पर आघात करके-झकझोर कर -पिंगला मार्ग से वापिस लौटता है। यह एक प्रहार हुआ। दूसरा इससे उलटे क्रम से होगा। दूसरी बार दाहिनी ओर से प्राण वायु का जाना और बाई ओर से लौटना होता है। इस बार पिंगला से प्राण का प्रवेश और इडा से वापस लौटना है। प्रहार पूर्ववत्। एक बार इडा से जाना-पिंगला से लौटना। दूसरी बार पिंगला से जाना इडा से लौटना। यही क्रम जब तक प्राणायाम प्रक्रिया चलानी हो तब तक चलना चाहिए। इसे अनुलोम-विलोम क्रम कहते हैं। यही कुण्डलिनी जागरण के लिए प्रयुक्त होने वाला सूर्यभेदन प्राणायाम है। यह कपाल शोधन, वात रोग निवारण, कृमि दोष विनाशक है। इस सूर्यभेदन प्राणायाम को बार-बार करना चाहिए। published by: Rakesh jha

No comments:

Post a Comment