Thursday, 13 July 2017

ब्राह्मण शूद्र और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है

अपना ब्लॉग Log In Search for:  अपना ब्लॉग रजिस्टर करें  मौजूदा ब्लॉगर्स लॉग-इन करें ब्राह्मण शूद्र और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है August 22, 2012, 1:00 PM IST मलखान सिंह आमीन in तुम्‍हारा धर्म | कल्चर हाजिर हूं एक अहम सवाल का जवाब लेकर. मेरी पिछली पोस्ट ‘मनुशास्त्र का नाम लेकर झूठ गढ़ते हो, ख़ुदा से डरो‘ पर अशोक जी का एक कमेंट आया था. उन्होंने प्रश्न किया था – क्या एक वर्ण से दूसरे वर्ण में जाने का कोई तरीका है? पहले मैं प्रश्न को विस्तार से समझाता हूं. मेरी अंतिम पोस्ट सैयद मेराज रब्बानी के पत्र hi_message_to_a_Hindu के जवाब में आठवीं कड़ी थी. इस कड़ी का सार था कि मेराज रब्बानी ने मनुस्मृति को बदनाम करने की कोशिश की है. मैंने मनुस्मृति के आधार पर ही मेराज साहब के झूठ से पर्दा उठाया था. पोस्ट में वर्णव्यवस्‍था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का जिक्र हुआ था. अशोक जी ने पूछा था कि क्या कोई एक वर्ण से दूसरे वर्ण में जा सकता है या नहीं, तरीका क्या है?? इसका जवाब – लिंक – सभी वर्णों के कामकाज मनु और मनुस्मृति के विषय में – मनु वेदों के ज्ञाता थे. ऋषि लोग उनके पास सवाल लेकर पहुंचते थे. मनु उन्हें समझाते थे. हर सवाल का जवाब देते थे. मनु की शैली खास थी. वे हर चीज़ को विस्तार से कहते थे और कहने का क्रम टूटता न था. हर चीज़ क्रमवार कहते थे. जैसे वे जगत की उत्पत्ति से पहले के हालात बताते हैं. फिर जगत की उत्पत्ति और उसका क्रम समझाते हैं. और फिर उसी तरह क्रमानुसार ही आगे बढ़ते हैं. उनकी शैली की एक ख़ासियत यह भी है कि वे पुरानी बात से संबंधित कोई बात कहना चाहते हैं तो पहले उसका संदर्भ देते हैं. सीधे ही जंप करके एक सब्जेक्ट से दूसरे सब्जेक्ट पर नहीं जाते. पर जो मनुस्मृति प्रचलन में है, उसमें इस शैली का उल्लंघन है. जहां भी इस तरह का अनावश्यक जंप नज़र आए, समझ लेना चाहिए कि वह श्लोक मनु का नहीं है. निजी लाभ के लिए बाद में घुसेड़ा गया है. बहुत से लोगों ने अपने-अपने हितों के लिए मनु के मुंह से अपनी बात कही है. अत: मनुस्मृति का अध्ययन करते हुए इन बातों को ख़्याल में रखना ज़रूरी है. एक वर्ण से दूसरे वर्ण में – मनुस्मृति के नौवें चेप्टर के एक श्लोक पर गौर करें – शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषूर्मृदुवागनहंकृत: | ब्राह्मणद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते || 9/335 || भावार्थ – शुद्ध-पवित्र, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, सदा ब्राह्मण आदि तीनों वर्णों की सेवा में संलग्न शूद्र भी उत्तम ब्रह्मजन्म* के अतंर्गत दूसरे वर्ण को प्राप्त कर लेता है. * ब्रह्मजन्म से अभिप्राय शिक्षित होने से है. शिक्षित होने को दूसरा जन्म भी कहा गया है. उपरोक्त श्लोक से बात कुछ समझ में आती है. इसे और समझने के लिए एक अन्य श्लोक देखें. यह श्लोक ऋग्वेद से है. (ऋग्वेद का श्लोक इसलिए क्योंकि मनु की बातें वेदों में निहित हैं) ब्राह्मण: क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो वर्णा द्विजातय: | चतुर्थ एकजातिस्तु शूद्रो नास्ति तु पंचम: || 10/4 || भावार्थ – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीन वर्ण विद्याध्‍ययन रूपी दूसरा जन्म प्राप्त करने वाले हैं, अत: द्विज कहलाते हैं. चौथा विद्याध्‍ययन रूपी दूसरा जन्म (द्विजजन्म) न होने के कारण एकजाति या एक जन्म वाला ब्रह्मजन्म से रहित शूद्र वर्ण है. पांचवां कोई वर्ण नहीं है. इन दो श्लोकों से बहुत साफ होता है कि ज्ञान प्राप्त करना (पढ़ना-लिखना) दूसरा जन्म है. दूसरा जन्म नहीं पाने वाला अर्थात जो पढ़ता-लिखता नहीं है, ज्ञान अर्जित नहीं कर पाता है, वह शूद्र है. बहुत सरल-सी बात है. जो ज्ञान अर्जित कर पाने में अक्षम हैं वे शूद्र हैं. ऐसा नहीं है कि शूद्र, ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते. मनु के श्लोक से साफ है कि यदि सेवा में लगा शूद्र ब्रह्मजन्म ले ले, मतलब पढ़ लिखकर ज्ञान हासिल कर ले, तो वह दूसरे वर्ण का अधिकारी हो सकता है. मनु का एक श्लोक और, जो दूध को दूध साबित कर देता है, पानी छंटकर अलग हो जाता है – शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् | क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च || 10/65 || भावार्थ – शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो सकता है अर्थात गुणकर्मों के अनुकूल ब्राह्मण हो तो ब्राह्मण रहता है तथा जो ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के गुण वाला हो तो वह क्षत्रिय वैश्य और शूद्र हो जाता है. वैसे शूद्र भी मूर्ख हो तो वह शूद्र रहता है और उत्तम गुणयुक्त हो तो यथायोग्य ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य हो जाता है. वैसे ही क्षत्रिय और वैश्य के विषय में भी जान लेना. (इस श्लोक में बहुत क्लीयर लिखा है कि यदि गुण ब्राह्मण के हैं तो व्यक्ति ब्राह्मण नहीं है, नहीं तो अपने गुणों के अनुसार वह क्षत्रिय, वैश्य, या शूद्र हो जाता है) इस श्लोक को समझ लेने के बाद अब यह शक नहीं रहता कि चारों वर्णों को किस आधार पर बनाया गया था. वर्ण व्यवस्‍था जन्म के आधार पर कतई नहीं है, इसका आधार कर्म हैं. किसी के भी काम उसे ब्राह्मण या शूद्र या वैश्य या क्षत्रिय बनाते हैं. यहां एक बात और बता दूं कि मनु के अनुसार ये चार ही वर्ण हैं. इन चारों के बाहर जो भी हैं, वे सब दस्यु कहे गए हैं. चलते-चलते : हमारे यहां एक विद्वान हुए, कुल्लूक भट्ट. मनुस्मृति की जो मां-बहन इन्होंने की है, शायद किसी अन्य ने नहीं की. यह धारणा इन्हीं की व्याख्या से निकली है कि ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मण को पैदा किया और बाकी हिस्सों से बाकी वर्णों को. जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है. कुल्लूक की कारस्तानियां किसी अन्य ब्लॉग पोस्ट में लिखूंगा. और हां, उम्मीद करता हूं कि अशोक जी के सवाल का जवाब मैं सही तरीके से दे पाया हूं. विशेष आभार : प्रो. सुरेन्द्र कुमार, भाष्यकार, अनुसंधानकर्ता और समीक्षक, विशुद्ध मनुस्मृति. फिर मिलेंगे, ख़ुदा हाफि़ज़….. डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं लेखक मलखान सिंह आमीन मेरी कलम मेरा परिचय है. 13 COMMENTS इस पोस्ट पर कॉमेंट बंद कर दिये गये है  Ravindra Kumar•4 years ago मनु के नियम बनाने के बाद एसा क्यू हुआ की शूद्र नीचे की तरफ धस्ते चले गये और ब्राहान बहुत उपर पहुच गये जबकि जब से मनु का धर्म ख़त्म हुआ है तब से शदरो को कुछ तो उपर आने मौका मिला है यदि जन्म से सभी शूद्र होते है तो ब्रामानो पर भी वही नियम क्यो नही लगाए गये थे जो शदरो पर लगाए गये थे ये ब्राह्मण विदेशी है जब मुगलो ने 700 साल भारत मे राज किया तो इन्होने कुछ नही किया और जब अंग्रेज़ो भारत आए तो इन्होने उन पर आक्रमण करने शुरू कर दिए क्योकि अंग्रेज यहा के नियमो मे हस्तचेप कर रहे थे(शूद्र के अन्याय के खिलाफ ) 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  sunil kr jha•2170• •4 years ago मालखान जी सबसे पहले आपको तहे दिल से शुक्रिया और चरण स्पर्श ... आपकी हर एक पोस्ट अमूल्य है और किसी के लिए तो नही कह सकता पर अपने बारे में बता सकता हूँ वैसे में जाती से ब्राह्मण हूँ पर बिस्वाश कीजिए मेरा अपना अनुभव है इस व्यवस्था के लिए जो भी ज़िम्मेवार है में उसका विरोधी हूँ मुझे हिंदू होने पर गर्व है और में जाति व्यवस्था का दिल से विरोधी हू इस व्यवस्था जो हवा दे रहे है वो जाति से पक्के शूद्र है मैने भी अपने घर में कई ग्रंथ पड़े है ब्राह्मानो उत्पत्ति मार्तंड में भी सॉफ सॉफ लिखा है जन्म से ब्राह्मण शूद्र होते है कर्म से द्वीज मतलब जन्म से सभी शूद्र ही होते है और विदेशी हमलावरो से पहले मतलब 2400 साल पहले तक जाति परिवर्तन शील थी आपको बहुत से रेफ़्रेंसे मिलेंगे जैसे मागस्टनीज़ की इडिका शूद्र छुद्र से बना है जिसका मतलब छूटा होता है और उन ग्रंथो म सबसे पहले सम्मान के योग्य शूद्र है उनको सम्मान देने के लिए ही चरण स्पर्श किए जाते है जिनके उपर सारे समाज का भार रहता है 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  भारत •4 years ago सर्वोत्तम ब्लॉग, ऐसे ब्लॉग्स आज के समय की माँग है, मलखान भाई आप का ब्लॉग हीरा है और आप सोने की अन्गुठी ............ धारण किए रहना 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  Arunkumar Vaidya• •mumbai(bombay)•4 years ago आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी बात पर ज़ोर दिया कि मनुष्य अपने गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार ही जाना जाता है. वेदों में कहीं भी जन्म आधारित वर्णाश्रम प्रथा का ज़िक्र नहीं है. बहुतसी ग़लत मान्यताओं और रिवाजों का खंडन करनेवाले दयानंद कभी भुलाए नहीं जा सकते. आज भी विश्व भर में फैले आर्य समाजों में एक ही वैदिक पधत्ति से हिंदू ईशोपासना करते हैं. आर्य समाज के आदर्शों पर आधारित सैंकड़ों विद्यालय और गुरुकुल आज भी वैदिक संस्कृति को जीवित रखे हुवे हैं. 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  Vijay Balyan (Dil ki Bat)• •Rohtak•4 years ago मलखान जी, प्रणाम! पूरा लेख नही पढ़ा सिर्फ़ शीर्षक को पढ़ कर लिखता हूँ, क्यूंकी में प्रत्यक्ष में ही विश्वास करता हूँ| बिल्कुल इंसान जन्म से तो शूद्र ही होता है चाहे वो ब्राह्मण के घर में ही क्यूँ ना पैदा हो, ऐसा नही होता तो बच्चे के जन्म से समय सूतक नही निकाला जाता (हर क्षेत्र में इसका नाम अलग अलग हो सकता है) कर्म ही इंसान को ब्राह्मण बनता है मेरा इस मित्तर है वो पैदा हो हुआ है एक चामर के घर किंतु यज्ञ हवन करके अपने परिवार का भारण पोषण करता है| ना जाने कितने ही शेवड़े (भूत प्रेत निकालने वाले) नीच जाति से है किंतु अपने को उच्च जाति का बतलने वाले भी उनके चरणो में पड़ते हैं..... 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  dev•4 years ago technically yes, socially not. 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  Sanjay•534• •Raipur•4 years ago महोदय कृपया तुलसी कृत रामायण की निम्न चौपाई पर अपनी राय दें: शापात ताड़त पारुश कहन्तआ, पूज्य विप्र आस गावाही सन्त पूजिए विप्र शील गुण हीना, शूद्र ना गुण गण ग्यान प्रवीणआ अर्थात, श्राप देता, मरता और कठोर वचन कहता हुआ ब्राह्मण भी पूजा के योग्य है ऐसा संत कहते है. गुण एवं चरित्र से हीन ब्राह्मण की भी पूजा की जानी चाहिए और गुणवान, पढ़ालिखा शूद्र भी तिरस्कार के योग्य है. तुलसीदास कृत रामायण में यह कथन महान श्री राम जी कबन्ध राक्षस के वध के बाद कहते हैं. 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  Om Shai•4 years ago मलखन जी बहुत बाड़िया लिखा/ 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  hukam•4 years ago एक ओर माइल स्टोन / 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  mohan•-334• •Unknown•4 years ago मनु को किसने ठेका दिया था आदमियों को बांटने का। समाज में उंच नीच पैदा करने का?? हमारे देश में 70 करोड़ लोग जानवरों से भी बुरी जिदंगी ​जीते है, उनके पास साधन ही नहीं है तो वह पढ़ेगे, लिखेंगे ​और क्या खाएंगे। मनु की परिभाषा में यह लोग कहां है। अगर कोई अच्छा काम कर रहा है या बुरा इसका फैसला कौन करेगा? ह​मारी अदालतों में अभी भी 3 करोड़ केस पेडिंग है, इस आधुनिक युग में जब उसका हल नहीं हो पाया तो पुराने समय में कैसे लोग वर्ण के आधार पर लोगों को बांटते रहे होंगे। जब तो सब अनपढ़ और गंवार लोग थे? 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  M K Singh•4 years ago महाशय इस ज्ञान के लिए हम आप के आभारी हैं| आप की हर एक पोस्ट को तो 5/5 मिलना चाहिए परन्तु लगता है कुछ दुष्ट और अज्ञानी कम रेटिंग दे रहे है| मैने भी ब्लॉग में रजिस्टर किया है पर ये कितने दिन में आक्टीवेट होता है मालूम नही| खैर इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए आप का धन्यवाद| 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  Aryan• •4 years ago बहुत ही अच्छा लिखा आपने, मैने आपके पिछले ब्लॉग मे कुछ कॉमेंट डाले थे, आपने उसे विस्तार से उदाहरण सहित समझा दिया ! आपके ब्लॉग काफ़ी घ्यांवर्धक होते हैं, मैं इनसे हमेशा अपना घ्यान बढ़ाता रहता हूँ! में काफ़ी समय से वेदो को पढ़ना चाहता हूँ मगर एक डर रहता है कहीं में अपना श्रम और समय किसी ग़लत वेद पर व्यर्थ ना कर दू ! हमारे इतिहास और धार्मिक पुस्तको से छेड़छाड़ बहुत हुई है ! महाभारत 10000 छंडो से बना था और राजा भोज के समय यह 3 गुना बढ़ गया था और आज 12 गुना बढ़ चुका है ! मतलब सॉफ है बहुत कुछ जोड़ा और तोड़ा गया है ! महमूद गाज़्नवी के हमले मे तक्षशिला, नालंदा और सिंध के बड़े बड़े पुस्तकालय जला दिए गये थे! उसके बाद ढूँढ ढूँढ कर असली किताबों को जलाया गया है ! फिर कुछ विद्वान लोगो ने अपने अपने अनुसार फिर से उन्हे लिखने की कोशिश की मगर काफ़ी त्रुटि रह गयी उनमे ! कई ग़लतियाँ ग़लती से लिखी गयीं कई जान बूझ कर अर्थ का अनर्थ करने के लिए ! अगर आप मुझे बता सके की सबसे सही वेद मुझे कहाँ मिल सकते है पढ़ने को तो आपकी महान कृपा होगी! आपके उत्तर और अगले ब्लॉग का इंतज़ार रहेगा ! 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  vijay singhal•1933• •Unknown•4 years ago आपने सही लिखा है मलखान जी. महाभारत में लिखा है कि जन्म से सभी शूद्र हैं, कर्म से ही ब्राह्मणत्व प्राप्त किया जाता है. इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है? 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें  सबसे चर्चित पोस्ट सुपरहिट पोस्ट 1. 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