Wednesday, 12 July 2017

नासाग्र त्राटक ध्यान

ⓘ Optimized 17 hours agoView original http://spiritualsys.com/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95-%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8/ Menu Skip to content Meditation ,Tratak , Healing , Mantra Science at one place 6. नासाग्र त्राटक ध्यान (Yog Sutra Saadhna) March 26, 2015 by onkar kumar इसमें बतायी गयी नासाग्र को देखने की विधि भी एक प्रकार का त्राटक ही है।। अभी तक आप लोग दीवार पर किसी बिन्‍दु को देखने के अभ्‍यास को ही त्राटक समझते रहे है और इसमें नाक को उस बिन्‍दु के बदले त्राटक के लिये इस्‍तेमाल किया गया है। आप लोग किसी विधि को शार्टकट या चमत्‍कार से ना जोडे। किसी भी विधि को करने के साथ यदि आप अपने मन की पूर्ण शक्ति उस विधि पर नही लगा रहे अपने विचार पूरी तरह उस पर केंद्रित नही कर रहे तो उस विधि को गलत ढंग से पचास साल तक भी करने पर ए्क प्रतिशत सफलता की भी उम्‍मीद ना करे।। इस विधि का विवरण नीचे दिया गया है।। –Jai Prakash Rajbhar नासाग्र को देखना यह प्रयोग तुम्‍हें तृतीय नेत्र की रेखा पर ले आता है। जब तुम्‍हारी दोनों आंखें नासाग्र पर केंद्रित होती है तो उससे कई बातें होती है। मूल बात यह है कि तुम्‍हारा तृतीय नेत्र नासाग्र की रेखा पर है—कुछ इंच ऊपर, लेकिन उसी रेखा में। और एक बार तुम तृतीय नेत्र की रेखा में आ जाओ तो तृतीय नेत्र का आकर्षण उसका खिंचाव, उसका चुम्‍बकत्‍व रतना शक्‍तिशाली है कि तुम उसकी रेखा में पड़ जाओं तो अपने बावजूद भी तुम उसकी और खींचे चले आओगे। तुम बस ठीक उसकी रेखा में आ जाना है, ताकि तृतीय नेत्र का आकर्षण, गुरुत्वाकर्षण सक्रिय हो जाए। एक बार तुम ठीक उसकी रेखा में आ जाओं तो किसी प्रयास की जरूरत नहीं है। अचानक तुम पाओगे कि गेस्‍टाल्‍ट बदल गया, क्‍योंकि दो आंखें संसार और विचार का द्वैत पैदा करती है। और इन दोनों आंखों के बीच की एक आँख अंतराल निर्मित करती है। यह गेस्‍टाल्‍ट को बदलने की एक सरल विधि है। मन इसे विकृत कर सकता है—मन कह सकता है, ‘’ठीक अब, नासाग्र को देखो। नासाग्र का विचार करो, उस चित को एकाग्र करो।‘’ यदि तुम नासाग्र पर बहुत एकाग्रता साधो तो बात को चूक जाओगे, क्‍योंकि होना तो तुम्‍हें नासाग्र पर है, लेकिन बहुत शिथिल ताकि तृतीय नेत्र तुम्‍हें खींच सके। यदि तुम नासाग्र पर बहुत ही एकाग्रचित्त, मूल बद्ध, केंद्रित और स्‍थिर हो जाओ तो तुम्‍हारा तृतीय नेत्र तुम्‍हें भीतर नहीं खींच सकेगा क्‍योंकि वह पहले कभी भी सक्रिय नहीं हुआ। प्रारंभ में उसका खिंचाव बहुत ज्‍यादा नहीं हो सकता। धीरे-धीरे वह बढ़ता जाता है। एक बार वह सक्रिय हो जाए और उपयोग में आने लगे, तो उसके चारों और जमी हुई धूल झड़ जाए, और यंत्र ठीक से चलने लगे। तुम नासाग्र पर केंद्रित भी हो जाओ तो भी भीतर खींच लिए जाओगे। लेकिन शुरू-शुरू में नहीं। तुम्‍हें बहुत ही हल्‍का होना होगा, बोझ नहीं—बिना किसी खींच-तान के। तुम्‍हें एक समर्पण की दशा में बस वहीं मौजूद रहना होगा।….. ‘’यदि व्यक्ति नाक का अनुसरण नहीं करता तो यह तो वह आंखें खोलकर दूर देखता है जिससे कि नाक दिखाई न पड़े अथवा वह पलकों को इतना जोर से बंद कर लेता है कि नाक फिर दिखाई नहीं पड़ती।‘’ नासाग्र को बहुत सौम्‍यता से देखने का एक अन्‍य प्रयोजन यह भी है: कि इससे तुम्‍हारी आंखें फैल कर नहीं खुल सकती। यदि तुम अपनी आंखे फैल कर खोल लो तो पूरा संसार उपलब्‍ध हो जाता है। जहां हजारों व्‍यवधान है। कोई सुंदर स्‍त्री गुजर जाती है और तुम पीछा करने लगते हो—कम से कम मन में। या कोई लड़ रहा है; तुम्‍हारा कुछ लेना देना नहीं है, लेकिन तुम सोचने लगते हो कि ‘’क्‍या होने वाला है?’’ या कोई रो रहा है और तुम जिज्ञासा से भर जाते हो। हजारों चीजें सतत तुम्‍हारे चारों और चल रही है। यदि आंखे फैल कर खुली हुई है तो तुम पुरूष ऊर्जा—याँग—बन जाते हो। यदि आंखे बिलकुल बंद हो तो तुम एक प्रकार सी तंद्रा में आ जाते हो। स्‍वप्‍न लेने लगते हो। तुम स्‍त्रैण ऊर्ज—यन—बन जाते हो। दोनों से बचने के लिए नासाग्र पर देखो—सरल सी विधि है, लेकिन परिणाम लगभग जादुई है। ऐसा केवल ताओ को मानने वालों के साथ ही है। बौद्ध भी इस बात को जानते है, हिंदू भी जानते है। ध्‍यानी साधक सदियों से किसी न किसी तरह इस निष्‍कर्ष पर पहुंचते रहे है कि आंखे यदि आधी ही बंद हों तो अत्‍यंत चमत्‍कारिक ढंग से तुम दोनों गड्ढों से बच जाते हो। पहली विधि में साधक बह्म जगत से विचलित हो रहा है। और दूसरी विधि में भीतर के स्‍वप्‍न जगत से विचलित हो रहा है। तुम ठीक भीतर और बाहर की सीमा पर बने रहते हो और यही सूत्र है: भीतर और बाहर की सीमा पर होने का अर्थ है उस क्षण में तुम न पुरूष हो न स्‍त्री हो तुम्‍हारी दृष्‍टि द्वैत से मुक्‍त है; तुम्‍हारी दृष्‍टि तुम्‍हारे भीतर के विभाजन का अतिक्रमण कर गई। जब तुम अपने भीतर के विभाजन से पार हो जाते हो, तभी तुम तृतीय नेत्र के चुम्‍बकीय क्षेत्र की रेखा में आते हो। ‘’मुख्‍य बात है पलकों को ठीक ढंग से झुकाना और तब प्रकाश को स्‍वयं ही भीतर बहने देना।‘’ इसे स्‍मरण रखना बहुत महत्‍वपूर्ण है: तुम्‍हें प्रकाश को भीतर नहीं खींचना है, प्रकाश को बलपूर्वक भीतर नहीं लाना है। यदि खिड़की खुली हो तो प्रकाश स्‍वयं ही भीतर आ जाता है। यदि द्वार खुला हो तो भीतर प्रकाश की बाढ़ जा जाती है। तुम्‍हें उसे भीतर प्रकाश की बाढ़ आ जाती है। तुम्‍हें उसे भीतर लाने की जरूरत नहीं है। उसे भीतर धकेलने की जरूरत नहीं है। भीतर घसीटने की जरूरत नहीं है। और तुम प्रकाश को भी तर कैसे घसीट सकते हो? प्रकाश को तुम भीतर कैसे धकेल सकते हो? इतना ही चाहिए कि तुम उसके प्रति खुले और संवेदनशील रहो।….. ‘’दोनों आंखों से नासाग्र को देखना है।‘’ स्‍मरण रखो, तुम्‍हें दोनों आँखो से नासाग्र को देखना है ताकि नासाग्र पर दोनों आंखे अपने द्वैत को खो दें। तो जो प्रकाश तुम्‍हारी आंखों से बाहर बह रहा है वह नासाग्र पर एक हो जाता है। वह एक केंद्र पर आ जाता है। जहां तुम्‍हारी दोनों आंखें मिलती है, वहीं स्‍थान है जहां खिड़की खुलती है। और फिर सब शुभ है। फिर इस घटना को होने दो, फिर तो बस आदत मनाओ, उत्‍सव मनाओ, हर्षित होओ। प्रफुल्‍लित होओ। फिर कुछ भी नहीं करना है। ‘’दोनों आंखों से नासाग्र को देखना है, सीधा होकर बैठता है।‘’ सीधी होकर बैठना सहायक है। जब तुम्‍हारी रीढ़ सीधी होती है। तुम्‍हारे काम-केंद्र की ऊर्जा भी तृतीय नेत्र को उपलब्‍ध हो जाती है। सीधी-सादी विधियां है, कोई जटिलता इनमें नहीं है, बस इतना ही है कि जब दोनों आंखें नासाग्र पर मिलती है, तो तुम तृतीय नेत्र के लिए उपलब्‍ध कर दो। फिर प्रभाव दुगुना हो जाएगा। प्रभाव शक्तिशाली हो जाएगा, क्‍योंकि तुम्‍हारी सारी ऊर्जा काम केंद्र में ही है। जब रीढ़ सीधी खड़ी होती है तो काम केंद्र की ऊर्जा भी तृतीय नेत्र को उपलब्‍ध हो जाती है। यह बेहतर है कि दोनों आयामों से तृतीय नेत्र पर चोट की जाए, दोनों दिशाओं से तृतीय नेत्र में प्रवेश करने की चेष्‍टा की जाए। ‘’व्‍यक्‍ति सीधा होकर और आराम देह मुद्रा में बैठता है।‘’ सदगुरू चीजों को अत्‍यंत स्‍पष्‍ट कर रहे है। सीधे होकर, निश्‍चित ही, लेकिन इसे कष्‍टप्रद मत बनाओ; वरन फिर तुम अपने कष्‍ट से विचलित हो जाओगे। योगासन का यही अर्थ है। संस्‍कृत शब्‍द ‘’आसन’’ का अर्थ है: एक आरामदेह मुद्रा। आराम उसका मूल गुण है। यदि वह आरामदेह न हो तो तुम्‍हारा मन कष्‍ट से विचलित हो जाएगा। मुद्रा आरामदेह ही हो….. ‘’और इसका अर्थ अनिवार्य रूप से सिर के मध्‍य में होना नहीं है।‘’ और केंद्रिय होने का अर्थ यह नहीं है कि तुम्‍हें सिर के मध्‍य में केंद्रित होना है। ‘’केंद्र सर्वव्‍यापी है; सब कुछ उसमें समाहित है; वह सृष्‍टि की समस्‍त प्रक्रिया के निस्‍तार से जुड़ा हुआ है।‘’ और जब तुम तृतीय नेत्र के केंद्र पर पहुंच कर वहां केंद्रित हो जाते हो और प्रकाश बाढ़ की भांति भीतर आने लगता है, तो तुम उस बिंदु पर पहुंच गए, जहां से पूरी सृष्‍टि उदित हुई है। तुम निराकार और अप्रकट पर पहुच गए। चाहो तो उसे परमात्‍मा कह लो। यही वह बिंदु है, यह वह आकाश है, जहां से सब जन्‍मा है। यही समस्‍त अस्‍तित्‍व का बीज है। यह सर्वशक्‍तिमान है। सर्वव्‍यापी है, शाश्‍वत है।…… – ओशो नोट : यदि आंख कमजोर है तो त्राटक ना कीजिये केवल अंतर त्राटक यानि आंख बंद करके आंख के अंदर देखने वाली विधि का इस्‍तेमाल कीजिये या फिर आप धीरे धीरे त्राटक किजिये मतलब एक दिन मे बस 5 मिनट से बढ़ा कर 30 या 40 मिनट तक का अभ्यास और बाकि समय आनापानसति करे और त्राटक के बाद मुँह मे पानी भरकर आँखो मे छीटे दे आराम से ,त्राटक का उपयोग ध्यान मे बढने हेतु करे अगर आप चश्‍में का इस्‍तेमाल करते है उसी प्रकार त्राटक में भी उसकेा कीजिये और यदि आपकी दूर की नजर ठीक है तो दूर की किसी वस्‍तु पर त्राटक कर सकते है आवश्‍यक नही कि वो कागज पर बना बिन्‍दु हो। वो कोई भी वस्‍तु हो सकती है जिसपर आप नजर जमाये। ONKAR KUMAR  SPIRITUAL SYSTEMS I am a software enginner in an MNC with deep interest in spiritual stuffs . I have knowledge of healing such as Reiki , Prana voilet healing , Crystal healing etc . I am Reiki Grand master , love meditation and inspire everyone to experience peaceful and blissful life . It would be awesome if you would share your knowledge and experience . Thank you . Categories ध्यान प्रयोग Post navigation ज्ञान कोई जादू से नहीं बल्कि सतत प्रयास से संभव साधना में शीघ्र सफलता के लिये आवश्‍यक शर्ते Search for: Search  Search … Latest questions दीपक त्राटक में क्या सावधानियां रखनी चाहिए ? asked by Anonymous, 2 years ago इस केटेगरी के पोस्ट फेसबुक के ध्यान व कुण्डलिनी के अनुभव ग्रुप से लिए गये हैं . यहाँ पे महत्वपूर्ण बातों का संकलन है जो आपको ध्यान की शुरुआत करने से लेकर उच्चतम अवस्था तक पहुचने की प्रमाणिक विधि बताएगी . सारी बातें उच्च अवस्था को पहुचे साधकों के अनुभव से प्रमाणित हैं . आप अपने जीवन में आज से ही इनका प्रयोग कर आत्म साक्षातकार की ओर अग्रसर हों . अगले मिनट का कोई भरोसा नहीं तो फिर संन्यास आश्रम की प्रतीक्षा छोड़ आज और अभी से ही लगन पूर्वक प्रयास करें . हमारी शुभकामनायें और मार्गदर्शन आपके साथ हैं . साधना सम्बन्धी कोई भी प्रश्न हो तो कमेंट में पूछ सकते हैं .इस ग्रुप के अनुभवी साधक लोग आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे . Find us on Facebook Recent Posts होरा शास्त्र एवं होरा मुहूर्त यज्ञों के विविध विधान-कुण्ड विज्ञान यज्ञ प्रक्रिया, दिव्य अनुशासन एवं यज्ञ−संसद यज्ञ का महत्व और साधना शिवलिंग का आध्यात्मिक रहस्य Recent Comments Reiki Meditation | Spiritual Systems on रेकी का आवाहन प्रार्थना ( Reiki Prayer ) sachin agrawal on हमारे संस्‍कार Neeraj on रेकी की दीक्षा : Reiki Attunement onkar kumar on कुण्‍डलिनी जागरण onkar kumar on हमारे संस्‍कार ReikiPrana-voilet HealingMeditationMantra ScienceYagyaYagya-awgpAstrologyध्यान प्रयोगसाधना सूत्र

No comments:

Post a Comment