Wednesday, 19 July 2017

हिन्दी साहित्य का इतिहास

मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखें हिन्दी साहित्य का इतिहास हिन्दी साहित्य पर यदि समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ हरदेव बाहरी के शब्दों में, 'हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही हिन्दी है। इस भाषा का दुर्भाग्य रहा है कि युग-युग में इसका नाम परिवर्तित होता रहा है। कभी 'वैदिक', कभी 'संस्कृत', कभी 'प्रकृत', कभी 'अपभ्रंश' और अब - हिन्दी।[1] आलोचक कह सकते हैं कि वैदिक संस्कृत और हिन्दी में तो जमीन-आसमान का अन्तर है। पर ध्यान देने योग्य है कि हिब्रू, रूसी, चीनी, जर्मन और तमिल आदि जिन भाषाओं को 'बहुत पुरानी' बताया जाता है, उनके भी प्राचीन और वर्तमान रूपों में जमीन-आसमान का ही अन्तर है। पर लोगों ने उन भाषाओं के नाम नहीं बदले और उनके परिवर्तित स्वरूपों को 'प्राचीन', 'मध्यकालीन', 'आधुनिक' आदि कहा गया जबकि हिन्दी के सन्दर्भ में प्रत्येक युग की भाषा का नया नाम रखा जाता रहा। किन्तु हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गए हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य रचना प्रारम्भ हो गई थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी, अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था। हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का इतिहास संपादित करें मुख्य लेख : हिन्दी साहित्य के इतिहास का लेखन आरंभिक काल से लेकर आधुनिक व आज की भाषा में आधुनिकोत्तर काल तक साहित्य इतिहास लेखकों के शताधिक नाम गिनाये जा सकते हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास शब्दबद्ध करने का प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण था। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ संपादित करें हिन्दी साहित्य के मुख्य इतिहासकार और उनके ग्रन्थ निम्नानुसार हैं - 1. गार्सा द तासी : इस्तवार द ला लितेरात्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी (फ्रेंच भाषा में; फ्रेंच विद्वान, हिन्दी साहित्य के पहले इतिहासकार) 2. शिवसिंह सेंगर : शिव सिंह सरोज 3. जार्ज ग्रियर्सन : द मॉडर्न वर्नेक्यूलर लिट्रैचर ऑफ हिंदोस्तान 4. मिश्र बंधु : मिश्र बंधु विनोद 5. रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास 6. हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिन्दी साहित्य की भूमिका; हिन्दी साहित्य का आदिकाल; हिन्दी साहित्य :उद्भव और विकास 7. रामकुमार वर्मा : हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास 8. डॉ धीरेन्द्र वर्मा : हिन्दी साहित्य 9. डॉ नगेन्द्र : हिन्दी साहित्य का इतिहास; हिन्दी वांड्मय 20वीं शती 10. रामस्वरूप चतुर्वेदी : हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1986 11. बच्चन सिंह : हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली 12. डा० मोहन अवस्थी : हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास 13. बाबू गुलाब राय : हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास हिन्दी साहित्य के विकास के विभिन्न काल हिन्दी एवं उसके साहित्य का इतिहास सन्दर्भ इन्हें भी देखें बाहरी कड़ियाँ Last edited 22 days ago by an anonymous user RELATED PAGES आधुनिक काल महावीर प्रसाद द्विवेदी अपभ्रंश  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

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