कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के अधिकतम २६ गोत्र है ,परन्तु १९ गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा है ,और बाकि सात गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की आबादी कम है ,इनमेसे एक गोत्र कृष्नात्रे है। कान्यकुब्ज देश के ब्राह्मण कान्यकुब्ज ब्राह्मण कहलाते है । प्राचीन समय में मध्य भारत का क्षेत्र कान्यकुब्ज देश के नाम से जाना जाता था । प्राचीन समय में कान्यकुब्ज देश में कुशनाभ नामक एक चंद्रवंशिये क्षत्रिय का शाशन था। पुराणो में पञ्च गौडा ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है , इस श्लोक से :---
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः ।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ॥
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः ।
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ॥
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः ।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ॥
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः ।
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ॥
ये पञ्च गौडा ब्राह्मण है -१-सारस्वत २- कान्यकुब्ज ३-सनाढय -गौड़ ४- उत्कल ५- मैथली । कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के गोत्र है -
1-कात्यायन
२-शांडिल्य
३-भार्गव -ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम भृगु ऋषि था । भृगु ऋषि के कुल में महर्षि परशुराम का जन्म हुआ था । भगवान परशुराम के कुल के ब्राह्मण भार्गव गोत्र के कहे जाते है । मैंने कान्यकुब्ज ब्राह्मणों में भार्गव तथा वत्स दोनों गोत्र के ब्राह्मण पाए ।
4-वत्स
5-भरद्वाज- भरद्वाज तथा भारद्वाज दोनों अलग गोत्र है । ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि अंगीरा के पुत्र का नाम बृहस्पति था । बृहस्पति के पुत्र का नाम महर्षि भरद्वाज था । महर्षि भरद्वाज के कुल में ऋषि द्रोणाचार्य के जन्म हुआ था। तथा उनके पुत्र का नाम अश्वथामा था । उन्ही अश्वथामा के कुल के ब्राह्मण भरद्वाज गोत्र के कहे जाते है । अश्वथामा के कुल में दो लडको का जन्म हुआ था । पहला पुत्र कन्नौज के पांडे से विख्यात हुए । तथा दूसरा पुत्र गाधिपुर के शुक्ल से विख्यात हुए। कन्नौज के पांडे के कुछ सदस्य को छिब्रमौ में त्रिवेदी की उपाधि मिली । बाद में छिब्रमौ के त्रिवेदी के कुछ सदस्य कानपूर और अवध क्षेत्र के बाकी हिस्सों में विस्थापित हो गए । बाद में कन्नौज के पांडे के भी कुछ सदस्य कानपूर और अवध क्षेत्र के हिस्सों में विस्थापित हो गए । उधर गाधिपुर के शुक्ल के कुछ सदस्य भिंड को विस्थापित हो गए ,जहाँ उन्हें उपाध्याय की उपाधि मिली । बाद में भिंड के उपाध्याय के कुछ सदस्य इटावा ,औरैया ,ग्वालियर ,विदिशा तथा बिहार के भोजपुरी क्षेत्र को विस्थापित हो गए । उधर गाधिपुर के शुक्ल के कुछ सदस्य अवध क्षेत्र तथा अन्य भागो में विस्थापित हो गए ।
६-भारद्वाज - भरद्वाज ऋषि के शिष्य का नाम भारद्वाज था ,
७- कश्यप -
८-काश्यप - काश्यप एक ऋषि थे ,इनका जिक्र वलिमिकी रामायण में भी किया गया है ,
9-कश्यपा
10-कौशिक - कौशिक ऋषि का जिक्र वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में किया गया है ,ये विश्वामित्र ऋषि से अलग है .
11 -गौतम
12-गर्ग
13-धनञ्जय
14-कविस्तु
15-उपमन्यु-
16-वशिष्ठ
17 -संकृत
18-परासर
19-सावर्ण-सूर्य के पुत्र का नाम सावर्ण था। इनकी माता का नाम सावार्णा था। इसलिए ये सावर्ण कहे गए ।
20- कृष्नात्रे - महर्षी अत्री के पुत्र का नाम कृष्नात्रेय था ।कृष्नात्रेय ऋषि को दुर्वासा ऋषि भी कहा जाता है ।
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