Dharmalay धर्म और ज्ञान  आप यहाँ हैंधर्मालय > धर्म का ज्ञान क्षेत्र > गायत्री रहस्य और साधनाएं गायत्री रहस्य और साधनाएं धर्म का ज्ञान क्षेत्र by धर्मालय संचालक - August 16, 20153  हमारी किसी जिज्ञासु ने हमसे कहा कि ‘गायत्री’ के सम्बन्ध में भी कुछ प्रकाश डालें; जिससे इसे वैज्ञानिक रूप से समझकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठाया जा सके। शास्त्रों में जो विवरण है; या जो भिन्न-भिन्न आचार्यों द्वारा व्याख्या में व्यक्त किये गये है, वे प्राचीन पारिभाषिक शब्दों में होने के कारण लोगों की समझ में नहीं आते। कथाएँ रूपक है। उनमें सत्य है, पर उन्हें भौतिक रूप से समझने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। वैदिक ग्रंथों का सृष्टि की उत्पत्ति का सारतत्व इस प्रकार है कहीं परमसार परमात्मा, जो सर्वचैतन्य निराकार, निर्विकार है, सर्वत्र व्याप्त है। स्थान का अस्तित्त्व उसके कारण था और स्थान का कहीं अंत नहीं था। वह अनंत तक व्याप्त था।  उसने चाहा कि एक से दो हो जाऊ और उसने अपने अंदर ही एक चक्र उत्पन्न किया, जिससे एक कमल प्रस्फुटिक हुआ, जिस पर ब्रह्मा थे। उनसे सावित्री की उत्पत्ति हुई और वे अपनी ही पुत्री पर मोहित हो गये।उससे विवाह कर लिया और तब गायत्री की उत्पत्ति हुई, उससे भी उन्होंने विवाह कार लिया और सृष्टि कार्य चलाने लगे। काल मार्ग में (शैव , शक्ति मार्ग) इसी सत्यको इस प्रकार कहा गया है- पहले योनि उत्पन्न हुई, फिर लिंग उत्पन्न हुआ, इनके संयोजन से त्रिमुखी प्रकृति बीज की उत्पत्ति हुई। इस शक्तिबीज में शिव्सार (वीर्य) गिरने लगा और यह क्रियाशील होकर सृष्टि के रूप में विकसित होने लगी। यह व्याख्या बता देती है कि वैदिक मार्ग देवता प्रधान था। इसमें कमल में पहले ब्रह्मा है, पर वाम मार्ग में यह योनि रूपा आद्या काली है। यह मार्ग भेद का अंतर है। दोनों एक ही सत्य को कह रहे है। जिसे वाम मार्ग लिंग कह रहा है , वह ब्रह्मा की सावित्री है। विवाह , मिलन और समागम दोनों में बताया गया है। ब्रह्मा और सावित्री (योनि एवं लिंग) के समागम से एक सर्किट बनता है; जो सृष्टि या महामाया है। सारा भौतिक जगत, समस्त देवी-देवता , लोकादि इसी में है। यह क्रियाशील है और पेड़ की तरह नई नई पल्लवों में विकसित होती हुई, नई-नई इकाइयों को जन्म दे रही है। सारी शक्तियां, ध्वनि, क्रिया, गुण इसी में प्रकट हो रही है। अब यह विचारणीय है कि इस सबके लिए इसे ईंधन कहा से मिलता है? इसके भौतिक अस्तित्त्व, क्रिया, विकास का तत्व क्या है? वस्तुतः यहाँ भी पूर्व का सूत्र काम करता है। ब्रह्मा + सावित्री या योनि + लिंग से जो सर्किट बनता है, वह एक नेगेटिव इकाई है। एक डमरू, जो अपने द्वारा क्रिएटिव धाराओं से नारंगी के समान गोल हो जाता है। एक ओर नेगेटिव, दूसरी ओर पॉजिटिव शंकु होते है। पर यह ‘0’ के लिए नेगेटिव होता है। इसके + पोल पर जो शंकु शीर्ष होता है ; उसकी प्रतिक्रिया में उसके ऊपर एक अद्योगा भी शंकु बनता है; जो घूम रहा होता है; क्योंकि नीचे का सर्किट भी घूम रहा रहा होता। इस दोनों के बीच में और सभी धाराओं के बीच में घूर्णन बल नहीं होता; इसलिए वहां ‘0’ ओरिजिनल रूप में होता है। यह अद्योगा भी शंकु सृष्टि संरचना के सापेक्ष पॉजिटिव होता है और शीर्ष के चाँद (गड्ढे) से उस सर्किट में समा जाता है। यह पुनः बनता है , पुनः समा जाता है। इस प्रकार अमृत बूंदों की तरह यह शीर्ष में टपकता रहता है। इसके मध्य 0 अर्थात परमात्मा होता है। यह भौतिक ऊर्जा नहीं है। ब्रह्माण्ड या सृष्टि में नहीं पायी जाती है। सृष्टि के ही कारण यह परमात्मा में उत्पन्न होती है और अपने हृदय (केंद्र) में परमात्मा को धारण किये सृष्टि में समा जाती है। यही गायत्री या गंगा है। इसे ही वाम मार्ग में सती कहा जाता है , जो दक्ष प्रजापति (दशों दिशाओं को धारण करने और पालने वाले / सृष्टि/ प्रकृति) के यज्ञ कुंड (शीर्ष का गड्ढा, चन्द्रमा का छिद्र) में प्रतिक्षण में सैकड़ों बार आत्मदाह कर रही है। यही गायत्री है। प्रत्येक के अस्तित्त्व और जीवन का सार तत्व। चूँकि हमारा शरीर भी ब्रह्माण्ड के ही सर्किट में , उसी संरचना में है, इसलिए यह शरीर की ऊर्जा के प्रतिगामी ऊर्जा के रूप में हमारे शीर्ष पर भी उत्पन्न होती है। यही हमारा अमृत है। यही जीवन तत्व है। इसी के कारण हमारे शरीर का अस्तित्त्व है, वरना यह सड़कर नष्ट हो जाएगा। इसी के प्रवाह के कारण हमारे शरीर की समस्त ऊर्जा धाराएं, समस्त पॉवर-पॉइंट काम करते है। यह न हो, तो उसी क्षण जीवन नहीं रहेगा। इसी के प्रेसर के कम होने से बुढ़ापा, झुर्रिया, बाल पकना, दांत टूटना, आदि होता है। यह बिलकुल बंद – उसी क्षण मृत्यु। गायत्री मन्त्र के कई रूप है। प्रत्येक देवी-देवता आचार्यों ने विशेषण लगाकर इसे कई रूपों में ढाल दिया है; पर इसकी आवश्यकता नहीं है। समय, काल, रूप ध्यान बदलकर भी (भाव बदलकर) इसके भिन्न –भिन्न रूपों की शक्ति प्राप्त की जा सकती है। स्मरण रहे। यह हमारी ऊर्जा के अनुरूप ही बनती है और सबके शीर्ष पर उसके शरीर की ऊर्जा भाव के समीकरण से आयनित होती है। इसलिए भाव के परिवर्त्तन के साथ इसके स्वरुप में स्वाभाविक परिवर्त्तन हो जाता है। ध्यान कहाँ लगाये गायत्री मंत्र का ध्यान शीर्ष के चाँद में लगाया जाता है। इसे मंत्र प्रवाह के साथ ऊपर-नीचे संकोचन करने से ब्रह्म रंध्र की शक्ति बढती है। इससे उत्पन्न होने वाली यह गायत्री शक्ति भी बढती है। यद्यपि आजकल वाम मार्ग में भी गायत्री को परिवर्तित करके प्रयोग किया जा रहा है; पर यह वैदिक मंत्र है। वाम मार्ग में एक गुप्त सरल मन्त्र ‘अं’ ‘हं’ है, जो श्वांस के साथ जपा जाता है। समय काल– वैदिक व्यवस्था में इसका समय ब्रह्म मुहूर्त है। काल की गणना नहीं की जाती। यह सदा बहार मंत्र है। तांत्रिक कार्यों के लिए इसका प्रयोग रात्री में किया जाता है, पर यह जोड़-तोड़ है। यह वाम मार्ग का मंत्र नहीं है। वाम मार्ग का ‘अं’ , ‘हं’ ब्रह्म मुहूर्त और महानिशा काल में जपने का विधान है। दिशा, वस्त्र, आसन – गायत्री मन्त्र पूर्व और ऊतर दोनों दिशा में; जपा जाता है। वैसे पूर्व ही सर्वोत्तम है। सूर्योदय काल तक इस मंत्र का जाप करना चाहिए। संध्या काल में भी इस मंत्र को जपा जाता है। पर दिशा पश्चिम होती है। आसन सूती या रेशमी होना चाहिए। श्वेत एवं पीत वस्त्र आसन प्रशस्त है। दीपक जलाने का इसमें कोई प्रावधान नहीं है। पूजा के समय घी का दीपक जलाना चाहिए। स्फटिक की माला प्रशस्त्र है। वैसे अपना-अपना भिन्न-भिन्न मत भी है। मंत्र का श्राप इस मंत्र पर वशिष्ठ और विश्वामित्र का श्राप है। इस श्राप के विमोचन के सम्बन्ध में अलग-अलग मत है; परन्तु ‘ॐ’ के बाद माया बीज ‘ह्रीं’ लगाने और अंत ‘ह्रीं’ ‘ॐ’ लगाने का निर्देश है। एक विद्वान आचार्य ने दिया था। उसने कहा था, इस मंत्र के प्रारम्भ और अंत में ब्रह्म केंद्र का उद्वेलन नहीं होता।इसलिए ऐसा करना चाहिए। गायत्री मंत्र गृहस्थों को सदा नहीं जपना चाहिए ब्रह्म मुहूर्त में इसका एक-दो माला जप प्रशस्त है; पर गृहस्थी, भौतिकता और भोग के जीवन की आकांक्षा रखने वालों को लगातार इस मंत्र का जाप उचित नहीं है। इससे जो जीवनी ऊर्जा प्राप्त होती है; उसमें संन्यास और विरक्ति का भाव अधिक है। विशेष हमारी यह व्याख्या अपने द्वारा अन्वेषित वैज्ञानिक रिसर्च पर आधारित है। किसी मार्ग-सम्प्रदाय की अपनी कोई आस्था है, तो हम उसका खंडन-समर्थन नहीं करते। क्या आप फेसबुक का प्रयोग करते हैं? तो हमें आप फेसबुक पर फॉलो कर सकते हैं. धर्मालय के नए ज्ञानवर्धक पोस्ट्स की जानकारी तुरंत पाइए फेसबुक पर. धर्मालय फेसबुक पेज के लिए यहाँ क्लिक करें Share Tweet Share Share Share Share धर्मालय संचालक http://www.dharmalay.com Post navigation पीछे अनेक ब्रह्माण्ड के अनेक विष्णु आगे विष्णु का विज्ञान 3 thoughts on “गायत्री रहस्य और साधनाएं” Amit Kumar August 19, 2015 at 10:01 PM Jay bhole nath Mai bhi in sab ceejo ko vistar se janna chahta hu aur sikhna bhi Help need Reply Rahul January 14, 2016 at 3:04 PM 1)मंत्र का श्राप ka matlab kya hai 2)ब्रह्म केंद्र का उद्वेलन ka kya artha hai Reply Rahul Sharma April 22, 2017 at 1:04 AM ॐ वन्दे वेद मातरम् Reply टिपण्णी करें  ADVERTS  धर्मालय सूची Uncategorized आपके प्रश्न और हमारे उत्तर आयुर्वेदिक जड़ी बूटी औषधियों पर पिरामिडीय प्रयोग किया-कराया; जादू-टोना; काला-जादू किसको इष्ट बनायें ? गंडे-ताबीज-टोने-टोटके-यंत्र .. ज्योतिष विद्या डिस्कवरी ऑफ़ भैरवी चक्र तंत्र मन्त्र सिद्धि साधना दिव्य तांत्रिक चिकित्सा दिव्यास्त्र और दिव्य गुटिकाएं धर्म और नारी धर्म का ज्ञान क्षेत्र ध्यान और ध्यान-योग परमात्मा का रहस्य प्रेतात्मा एवं भूत-प्रेत रहस्य माला, वस्त्र एवं पूजन सामग्री मृत्यु के बाद वास्तु विद्या वैधानिक चेतावनी © 2017 Dharmalay | Designed by Moops Designs TOP
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