Friday, 4 August 2017

जानें हवन की सबसे प्राचीन परंपरा

Kankaalmaalini mystery & power 31 DECEMBER 2015 जानें हवन की सबसे प्राचीन परंपरा  आम तौर पर लोग समझते हैं कि हवन करने के लिए काफी ताम-झाम और सामग्री की आवश्यकता है। लेकिन, ऐसा नहीं है। आज हम आपको एक ऐसी हवन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे करने के लिए किसी भी सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। शरीर ही साधन या यज्ञ भूमि होता है। श्वास हवन सामग्री होती है और योगाग्नि में श्वासरूपी हविष्य का हवन होता है। प्राचीन काल से ही तपस्वी इस विधि का प्रयोग करते रहे हैं। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने भी उन योगियों की प्रशंसा की है जो प्राणवायु का अपानवायु में हवन करते हैं। महान तपस्वी योग के माध्यम से आंतरिक हवन व यज्ञ करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार परमात्मा के निमित्त किया गया कोई भी कार्य यज्ञ कहा जाता है। परमात्मा के निमित्त किए कार्य में संस्कार और कर्म का बंधन नहीं होता है। अर्थात, ये चित्त को अहंकार की ओर नहीं धकेलते हैं। कृष्ण कहते हैं-अर्पण ही ब्रह्म है, हवि ब्रह्म है, अग्नि ब्रह्म है, आहुति ब्रह्म है, कर्म रूपी समाधि भी ब्रह्म है और जिसे प्राप्त किया जाना है वह भी ब्रह्म ही है। यज्ञ परब्रह्म स्वरूप माना गया है। कई योगी ब्रह्म-अग्नि में आत्मा का आत्मा में हवन करते हैं। ---- प्रथम विधि आत्मसंयम की योगाग्नि में विषयों की आहुति : कई योगी इन्द्रियों के विषयों को रोककर अर्थात इन्द्रियों को संयमित कर हवन करते हैं। अन्य योगी शब्दादि विषयों का इन्द्रिय रूप अग्नि में हवन करते है अर्थात मन से इन्द्रिय विषयों को रोकते हैं। अन्य कई योगी सभी इन्द्रियों की क्रियाओं एवं प्राण क्रियाओं को एक करते हैं अर्थात इन्द्रियों और प्राण को वश में करते हैं, उन्हें निष्क्रिय करते हैं। इन सभी वृत्तियों को करने से ज्ञान प्रकट होता है। ज्ञान द्वारा आत्मसंयम की योगाग्नि प्रज्ज्वलित कर सम्पूर्ण विषयों की आहुति देते हुए आत्म-यज्ञ करते हैं। ---- द्वितीय विधि अपान वायु में प्राण वायु का हवन कई योगी अपान वायु में प्राण वायु का हवन करते हैं जैसे अनुलोम-विलोम से सम्बंधित श्वास क्रिया तथा कई प्राण वायु में अपान वायु का हवन करते हैं जैसे गुदा संकुचन अथवा सिद्धासन। कई प्राण और अपान दोनों प्रकार की वायु को रोककर प्राणों का प्राण में हवन करते हैं, जैसे रेचक और कुम्भक प्राणायाम। इस प्रकार के हवन को करते हुए मंत्रों का मानसिक जाप भी किया जाता है। कई योगी सब प्रकार के आहार को जीतकर अर्थात नियमित आहार करने वाले प्राण वायु में प्राण वायु का हवन करते हैं अर्थात प्राण को पुष्ट करते हैं। इस प्रकार यज्ञों द्वारा काम, क्रोध एवं अज्ञान रूपी पापों का नाश हो जाता है। यह हवन सभी विधियों में श्रेष्ठ है क्योंकि इससे मानसिक विकारों का नाश हो जाता है। anand singh at 12/31/2015 11:45:00 PM Share   ‹ › Home View web version ABOUT ME  anand singh  From the drop of the ocean which has seemed in it View my complete profile Powered by Blogger. 

No comments:

Post a Comment