Tuesday, 5 September 2017
सीखिए10संकल्पविद्याएं
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सीखिए10संकल्पविद्याएं, चौंक जाएंगे आप
अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'|



किसी भी विद्या या ज्ञान को सिखने के लिए संकल्प और अभ्यास की जरूरत होती है। संकल्पशून्य मनुष्य मृत व्यक्ति के समान है। दुनिया रहस्य और रोमांच से भरी हुई है। यहां कई बातें सत्य है तो कई बातों के संबंध में कोई तथ्य नहीं मिलता। लोग अक्सर ऐसी ही रहस्य और रोमांच की बातों के पिछे भागते रहते हैं जिनके सत्य होने में संदेह होता है। हालांकि फिर भी लोग उन पर विश्वास करते हैं।


इस बार हम आपको बताएंगे ऐसी 10 रहस्यमयी और चमत्कारिक विद्याओं के बारे में जिसे जानकर आप रोमांचित हो उठेंगे और शायद आप भी ऐसी विद्याएं सिखना चाहें। तो जानिए रहस्य और रोमांच से भरी 10 विद्याएं, जिनमें से कुछ को प्राप्त करना बहुत ही आसान है तो कुछ बहुत ही कठिन। हालांकि यहां स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि यह आलेख सिर्फ मनोरंजन और सामान्य जानकारी हेतु है। इसके बार में किसी योग्य व्यक्ति से विस्तार से जानकारी हासिल करेंगे तो बेहतर होगा। 1)विद्या.... 


इन्द्रजाल को जानिए : इन्द्रजाल का नाम सुनते ही सभी को लगता है कि यह कोई मायावी विद्या है। बहुत से लोग इसे तंत्र, मंत्र और यंत्र से जोड़कर देखते हैं। कई लोग तो इसे काला जादू, वशीकरण, सम्मोहन, मारण और मोहन से भी जोड़कर देखते हैं। हालांकि फारसी में इसे तिलिस्म कहा जाता है। कुछ लोग इसे काला जादू भी मानते हैं। यह शब्द इन्द्रजाल भारत में बहुत प्रचलित है जो जादू के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है। विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करें... जानिए क्या है इन्द्रजाल जानिए काला जादू.. × प्राचीनकाल में इस विद्या के कारण भी भारत को विश्व में पहचाना जाता था। देश-विदेश से लोग यह विद्या सिखने आते थे। आज पश्चिम देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है तो इसका कारण है भारत का ज्ञान। इन्द्रजाल जैसी विद्या चकमा देने की विद्या है। आजकल भी भाषा में इसे भ्रमजाल कह सकते हैं। जादू का खेल ही इन्द्रजाल कहलाता है। मदारी भी बहुधा ऐसा ही काम दिखाता है। सर्कस के भ्रमपूर्ण कर्तबन करने वाले, बाजीगर, सड़क पर जादू दिखाने वाले आदि सभी लोग ऐंद्रजालिक हैं। हालांकि मध्यकाल में इस विद्या का बहुत दुरुपयोग हुआ। युद्ध में विजय, धर्म के विस्तार और व्यक्तिगत स्वार्थ साधने में कई लोगों ने इसका उपयोग किया। आज भी इस विद्या द्वारा लोगों को भरमाया जाता है। खासकर पश्चिमी धर्म के लोग इसका खूब इस्तेमाल करते हैं।2)विद्या...प्लेनचिट : यह सबसे खतरनाक विद्या है। इसे किसी जानकार के सानिध्य में ही करना चाहिए। हालांकि इसमें कितनी सचाई है यह हम नहीं जानते। प्राचीन सभ्यताओं के काल से ही आत्माओं को बुला कर उनके माध्यम से अपने जीवन की समस्याओं के हल का प्रचलन रहा है। वर्तमान में भी पश्चिम देशों में में यह विद्या बहुत प्रचलित है। विस्तार से जानने के लिए पढ़ें...आत्माओं से बात करने के तरीके जानिए...  आत्म को बुलाने की विद्या को आजकल प्लेनचिट कहा जाता है। यह आत्माओं को बुलाने का विज्ञान है। प्राचीन काल से ही यह कार्य किया जाता रहा है। कुछ आत्माएं जिन्हें शांति प्राप्त नहीं हुई है, वे प्लेनचिट के माध्यम से आपको भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों कालों की जानकारी दे सकती हैं। आप उनसे अपनी परेशानी का हल प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि इसमें खतरे बहुत है। 3) विद्या... सम्मोहन विद्या : सम्मोहन को अंग्रेजी में हिप्नोटिज्म कहते हैं। यह प्राचीनकालीन प्राण विद्या का एक हिस्सा है। सम्मोहन के बारे में हर कोई जानना चाहता है, लेकिन सही जानकारी के अभाव में वह इसे समझ नहीं पाता है। सम्मोहन विद्या के बारे में संपूर्ण जानकारी... सम्मोहन विद्या के 10 रहस्य, जानिए  सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। सम्मोहन का अर्थ आमतौर पर वशीकरण से लगाया जाता है। वशीकरण अर्थात किसी को वश में करने की विद्या, जबकि यह सम्मोहन की प्रतिष्ठा को गिराने वाली बात है। मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते है। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है। यह मन आपकी हर तरह की मदद करने के लिए तैयार है, बशर्ते आप इसके प्रति समर्पित हों। यह किसी के भी अतीत और भविष्य को जानने की क्षमता रखता है। आपके साथ घटने वाली घटनाओं के प्रति आपको सजग कर देगा, जिस कारण आप उक्त घटना को टालने के उपाय खोज लेंगे। आप स्वयं की ही नहीं दूसरों की बीमारी दूर करने की क्षमता भी हासिल कर सकते हैं। सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। 4)विद्या...शरीर से बाहर निकलना : शरीर से बाहर निकलर कर बाहर घुमना फिरना और पुन: शरीर में आ जाना यह सचमुच रोमांचकारी अनुभव हो सकता है लेकिन इसमें जान जाने के खतरें भी बने रहते हैं यदि इस विद्या की पूर्ण जानकारी न हो तो।   भारत में बहुत से साधु संतों के किस्से पढ़ने को मिलते हैं जो अपने शरीर से बाहर निकलकर पल भर में कहीं भी उपस्थित होकर लोगों को चमत्कृत कर देते थे। हालांकि ऐसे वह किसी विशेष कार्य से ही करते थे। माना जाता है कि इस विद्या को सिखने के लिए यम, नियम, प्राणायम और ध्यान का पालन करने के बाद योगनिंद्रा काल में शरीर से बाहर निकला जाता है। जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे तब योगनिंद्रा काल में शरी से बाहर निकला जा सकता है। इस दौरान यह अहसास होता रहेगा की आपका स्थूल शरीर सो रहा है। यह प्रारंभ में अर्धस्वप्न जैसी अवस्था होगी। × बाहर निकलने से पहले एक सुरक्षित स्थान पर सोया जाता है जहां शरीर की सुरक्षा हो सके। जहां शरीर को कोई छुए नहीं। आप चौकी भी बांध सकते हैं। इसके आलवा सोने की स्थिति भी निर्धारित होती है। जब व्यक्ति अपने शरीर से बाहर निकलता है तो वह सूक्ष्म शरीर से विचरण करता है। माना जाता है कि ऐसे में उसका सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर की नाभि से जुड़ा रहता है। वेद अनुसार स्थूल शरीर की सत्ता को अन्नमय कोष कहते हैं और सूक्ष्म शरीर की सत्ता को प्राणमय और मनोमय कोष कहते हैं। जब ध्यान और योग से संपन्न चेतना अपनी चेष्टा से स्थूल शरीर से मनोमय कोष में प्रवेशकर करता है तब वह पूर्णरूप से सूक्ष्म शरीर से जुड़कर इस संसार में कहीं भी वायु मार्ग से विचरण कर सकता है। 5)विद्या...चौकी बांधना : अक्सर ये काम बंजारे, गडरिये या आदिवासी लोग करते हैं। वे अपने किसी जानवर या बच्चे की रक्षा करने के लिए चौकी बांध देते हैं। जैसे गडरिये अपने बच्चे को किसी पेड़ की छांव में लेटा देते हैं और उसके आसपास छड़ी से एक गोल लकीर खींच देते हैं। फिर कुछ मंत्र बुदबुदाकर चौकी बांध देते हैं। उनके इस प्रयोग से उक्त गोले में कोई भी बिच्छू, जानवर या कोई बुरी नियत का व्यक्ति नहीं आ सकता।  उल्लेखनीय है कि यहीं प्रयोग लक्ष्मण ने सीता माता की सुरक्षा के लिए किया था जिसे आज लक्ष्मण रेखा कहा जाता है। दरअसल, चौकी बांधने का प्रयोक कई राजा महाराजा अपने खजाने की रक्षा के लिए भी करते रहे हैं। आज भी उनका खजान इसी कारण से सुरक्षित भी है। रावण ने तो अपने संपूर्ण महल की चौकी बांध रखी थी। चौकी बांधने के कई तरीके होते हैं। चौकी किसी किसी देवी या देवता की बांधी जाती है या नाग महाराज की। चौकी भैरव और दस महाविद्याओं की भी बांधी जाती है। कुछ लोग भूत प्रेत की चौक बांधते हैं तो कुछ नगर देवता की। कहते हैं कि कई गढ़े खजाने की चौकी बंधी हुई है। माना जाता है कि बंजारा, आदिवासी, पिंडारी समाज अपने धन को जमीन में गाड़ने के बाद उस जमीन के आस-पास तंत्र-मंत्र द्वारा 'नाग की चौकी' या 'भूत की चौकी' बिठा देते थे जिससे कि कोई भी उक्त धन को खोदकर प्राप्त नहीं कर पाता था। जिस किसी को उनके खजाने के पता चल जाता और वह उसे चोरी करने का प्रयास करता तो उसका सामना नाग या भूत से होता था। 6) विद्या...प्राण विद्या : प्राण विद्या के अंतर्गत स्पर्श चिकित्सा, त्रिकालदर्शिता, सम्मोहन, टैलीपैथी, सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलना, पूर्वजन्म का ज्ञान होना, दूर श्रवण या दृष्य को देखा आदि अनेक विद्याएं शामिल है।  इसके अलावा प्राण विद्या के हम आज कई चमत्कार देखते हैं। जैसे किसी ने अपने शरीर पर ट्रक चला लिया। किसी ने अपनी भुजाओं के बल पर प्लेन को उड़ने से रोक दिया। कोई जल के अंदर बगैर सांस लिए घंटों बंद रहा। किसी ने खुद को एक सप्ताह तक भूमि के दबाकर रखा। इसी प्राण विद्या के बल पर किसी को सात ताले में बंद कर दिया गया, लेकिन वह कुछ सेकंड में ही उनसे मुक्त होकर बाहर निकल आया। कोई किसी का भूत, भविष्य आदि बताने में सक्षम है तो कोई किसी की नजर बांध कर जेब से नोट गायब कर देता है। इसी प्राण विद्या के बल पर कोई किसी को स्वस्थ कर सकता है तो कोई किसी को जीवित भी कर सकता है। इसके अलावा ऐसे हैरतअंगेज कारमाने जो सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता उसे करके लोगों का मनोरंजन करना यह सभी भारतीय प्राचीन विद्या को साधने से ही संभव हो पाता है। आज भी वास्तु और ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले ऐसे लोग मौजूद है जो आपको हैरत में डाल सकते हैं। 7) विद्या...अंतर्ध्यान शक्ति : इसे आप गायब होने की शक्ति भी कह सकते हैं। विज्ञान अभी इस तरह की शक्ति पर काम कर रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में व्यक्ति गायब होने की कोई तकनीकी शक्ति प्राप्त कर ले।  योग अनुसार कायागत रूप पर संयम करने से योगी अंतर्ध्यान हो जाता है। फिर कोई उक्त योगी के शब्द, स्पर्श, गंध, रूप, रस को जान नहीं सकता। संयम करने का अर्थ होता है कि काबू में करना हर उस शक्ति को, जो अपन मन से उपजती है। यदि यह कल्पना लगातार की जाए कि मैं लोगों को दिखाई नहीं दे रहा हूं तो यह संभव होने लगेगा। कल्पना यह भी की जा सकती है कि मेरा शरीर पारदर्शी कांच के समान बन गया है या उसे सूक्ष्म शरीर ने ढांक लिया है। यह धारणा की शक्ति का खेल है। भगवान शंकर कहते हैं कि कल्पना से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कल्पना की शक्ति को पहचानें। 8) विद्या...पूर्व जन्म को जानना : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं, तब आंखें बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे, तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।   ऐसे जाने पूर्वजन्म को... × दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाएं। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मेमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है। 9)विद्या...त्रिकालदर्शी बनना : भूत, भविष्य और वर्तमान की सभी गतिविधियों को जान लेने से सभी तरह का ज्ञान हो जाता है। किसी भी व्यक्ति का अतीत और भविष्य जान लेना सचमुच आश्चर्यजनक है। योग में इसे सर्वज्ञ शक्ति कहते हैं। जानिए कैसे बनें त्रिकालदर्शी बुद्धि और पुरुष में पार्थक्य ज्ञान संपन्न योगी को दृश्य (जो दिखाई दे रहा है) और दृष्टा (देखने वाला) का भेद दिखाई देने लगता है। ऐसा योगी संपूर्ण भावों का स्वामी तथा सभी विषयों का ज्ञाता हो जाता है। भूत और भविष्य का ज्ञान होना बहुत ही आसान है, बशर्ते कि व्यक्ति अपने मन से मुक्त हो जाए। आपने त्रिकालदर्शी या सर्वज्ञ योगी जैसे शब्द तो सुने ही होंगे। कैसे कोई त्रिकालदर्शी बन जाता है? 10)विद्या...मृत संजीवनी विद्या : गणेशजी का सिर काट कर हाथी का सिर लगा कर शिव ने गणेश को पुनः जीवित कर दिया था। भगवान शंकर ने ही दक्ष प्रजापति का शिरोच्छेदन कर वध कर दिया था और पुनः अज (बकरे) का सिर लगा कर उन्हें जीवन दान दे दिया।  इस विद्या द्वारा मृत शरीर को भी जीवित किया जा सकता है। यह विद्या असुरों के गुरु शुक्राचार्य को याद थी। शुक्राचार्य इस विद्या के माध्यम से युद्ध में आहत सैनिकों को स्वस्थ कर देते थे और मृतकों को तुरंत पुनर्जीवित कर देते थे। शुक्राचार्य ने रक्तबीज नामक राक्षस को महामृत्युंजय सिद्धि प्रदान कर युद्धभूमि में रक्त की बूंद से संपूर्ण देह की उत्पत्ति कराई थी। कहते हैं कि महामृत्युंजय मंत्र के सिद्ध होने से भी यह संभव होता है। महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय और गुरु द्रोणाचार्य महामृत्युंजय मंत्र के साधक और प्रयोगकर्ता थे। संजीवनी नामक एक जड़ी बूटी भी मिलती है जिसके प्रयोग से मृतक फिर से जी उठता है।
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