Saturday, 9 September 2017

ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न अंगिरस

 Phonetic  Go देवनागरी  खोज   अंगिरस  (आंगिरस से पुनर्निर्देशित)  छांदोग्य उपनिषद में वर्णित कृष्ण के गुरु 'घोर अंगिरस' इससे भिन्न हैं। पाठक भ्रमित न हों अंगिरस अथवा अंगिरा नाम के ऋषि का उल्लेख वेदों से लेकर अनेक पुराणों में मिलने से अनुमान लगाया जाता है कि यह एक नहीं, अनेक व्यक्तियों का नाम है। इन्हें ऋग्वेद के अनेक मंत्रों का द्रष्टा बताया जाता है। अथर्ववेद के पाँच कल्पों में से अंगिरस कल्प के दृष्टा भी यही हैं। इसलिए इनका एक नाम अथर्वा भी है। एक उल्लेख के अनुसार अग्नि को भी सर्वप्रथम अंगिरा ने ही उत्पन्न किया था। वाणी और छंद के प्रथम ज्ञाता भी यही बताए गए हैं। यह भी उल्लेख मिलता है कि, पहले ये मनुष्य योनि में थे, जो बाद में देवता बन गए। अंगिरस का उल्लेख इन लेखों में भी है: अथर्ववेद, वैष्णव सम्प्रदाय, गीता कर्म जिज्ञासा, चार्वाक दर्शन, बृहदारण्यकोपनिषद, भृगु, छान्दोग्य उपनिषद, ऋभुगण एवं राष्ट्रकूट वंश  उत्पत्ति अंगिरस शब्द का निर्माण उसी धातु से हुआ है, जिससे अग्नि का और एक मत से इनकी उत्पत्ति भी आग्नेयी (अग्नि की कन्या) के गर्भ से मानी जाती है। मतांतर से इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से मानी जाती है। श्रद्धा, शिवा, सुरूपा मारीची एवं दक्ष की स्मृति, स्वधा तथा सती नामक कन्याएँ इसकी पत्नियाँ मानी जाती हैं, परंतु ब्रह्मांड एवं वायु पुराणों में सुरूपा मारीची, स्वराट् कार्दमी और पथ्या मानवी को अथर्वन की पत्नियाँ कहा गया है। अथर्ववेद के प्रारंभकर्ता होने के कारण इनकी अथर्वा भी कहते हैं। मनुस्मृति के अनुसार मनुस्मृति में भी यह कथा है कि आंगिरस नामक एक ऋषि को छोटी अवस्था में ही बहुत ज्ञान हो गया था; इसलिए उसके काका–मामा आदि बड़े बूढ़े नातीदार उसके पास अध्ययन करने लग गए थे। एक दिन पाठ पढ़ाते–पढ़ाते आंगिरस ने कहा पुत्रका इति होवाच ज्ञानेन परिगृह्य तान्। बस, यह सुनकर सब वृद्धजन क्रोध से लाल हो गए और कहने लगे कि यह लड़का मस्त हो गया है! उसको उचित दण्ड दिलाने के लिए उन लोगों ने देवताओं से शिकायत की। देवताओं ने दोनों ओर का कहना सुन लिया और यह निर्णय लिया कि 'आंगिरस ने जो कुछ तुम्हें कहा, वही न्याय है।' इसका कारण यह है किः– न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः। यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवाः स्थविरं विदुः।। 'सिर के बाल सफ़ेद हो जाने से ही कोई मनुष्य वृद्ध नहीं कहा जा सकता; देवगण उसी को वृद्ध कहते हैं जो तरुण होने पर भी ज्ञानवान हो' स्वायंभुव मन्वंतर स्वायंभुव मन्वंतर में अंगिरा को ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न बताया गया है। दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री स्मृति का इनसे विवाह किया था। वैवस्वत मन्वंतर में ये शंकर के वरदान से उत्पन्न हुए और अग्नि ने अपने पुत्र के समान इनका पालन-पोषण किया। चाक्षुष मन्वंतर में दक्ष प्रजापति की कन्याएँ सती और स्वधा इनकी पत्नियाँ थीं। भागवत में स्यमंतक मणि की चोरी के प्रसंग में इनके श्री कृष्ण से मिलने का भी उल्लेख आया है। शर-शैया पर पड़े भीष्म पितामह के दर्शनों के लिए भी अपने शिष्यों के साथ गए थे। स्मृतिकारों ने अंगिरस के धर्मशास्त्र का उल्लेख किया है। महाभारत में भी ‘अंगिरस स्मृति’ का उल्लेख मिलता है। उपनिषद में इनको ब्रह्मा का ज्येष्ठ पुत्र बताया गया है, जिन्हें ब्रह्म विद्या प्राप्त हुई। शौनक को इन्होंने विद्या के दो रूपों परा (वेद, व्याकरण आदि का ज्ञान) तथा अपरा (अक्षर का ज्ञान) से परिचित कराया था। इस प्रकार ऋग्वेद से लेकर पुराणों तक में एक नाम का उल्लेख सिद्ध करता है कि इस नाम की या तो कोई वंश परम्परा थी या कोई गद्दी। इनका कुल जिसमें भारद्वाज और गौतम भी हुए, ‘आग्नेय’ नाम से प्रसिद्ध था। जीवनसार अथर्ववेद का प्राचीन नाम अथर्वानिरस है। इनके पुत्रों के नाम हविष्यत्‌, उतथ्य, बृहस्पति, बृहत्कीर्ति, बृहज्ज्योति, बृहद्ब्रह्मन्‌ बृहत्मंत्र; बृहद्भास, मार्कंडेय और संवर्त बताए गए हैं और भानुमती, रागा (राका), सिनी वाली, अर्चिष्मती (हविष्मती), महिष्मती, महामती तथा एकानेका (कुहू) इनकी सात कन्याओं के भी उल्लेख मिलते हैं। नीलकंठ के मत से उपर्युक्त बृहत्‌कीत्यादि सब बृहस्पति के विशेषण हैं। आत्मा, आयु, ऋतु, गविष्ठ, दक्ष, दमन, प्राण, सद, सत्य तथा हविष्मान्‌ इत्यादि को अंगिरस के देवपुत्रों की संज्ञा से अभिहित किया गया है। भागवत के अनुसार रथीतर नामक किसी निस्संतान क्षत्रिय को पत्नी से इन्होंने ब्राह्मणोपम पुत्र उत्पन्न किए थे। याज्ञवल्क्य स्मृति में अंगिरसकृत धर्मशास्त्र का भी उल्लेख है। अंगिरा की बनाई आंगिरसी श्रुति का महाभारत में उल्लेख हुआ है[1]। ऋग्वेद के अनेक सूक्तों के ऋषि अंगिरा हैं।[2] पन्ने की प्रगति अवस्था आधार प्रारम्भिक माध्यमिक पूर्णता शोध टीका-टिप्पणी और सन्दर्भ ऊपर जायें ↑ (महाभारत 8, 69-85) ऊपर जायें ↑ अंगिरस (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2014। बाहरी कड़ियाँ संबंधित लेख [छिपाएँ] देखें • वार्ता • बदलें ऋषि मुनि अंगिरा · अगस्त्य · अत्रि · अदिति · अनुसूया · अपाला · अष्टावक्र · अरुन्धती · अक्षमाला · अंगिरस · उद्दालक · कण्व · कपिल · कश्यप · कात्यायन · क्रतु · गार्गी · पंचशिख (ऋषि) · गालव · बड़वामुख · गौतम · घोषा · चरक · च्यवन · जैमिनि · त्रिजट · दत्तात्रेय · दधीचि · किंदम · दिति · दुर्वासा · धन्वन्तरि · नारद · पतंजलि · परशुराम · पराशर · लोमश ऋषि · मार्कण्डेय · पुलह · पिप्पलाद · पुलस्त्य · शरभंग · भारद्वाज · फेनप ऋषि · शौनक · मतंग · भृगु · याज्ञवल्क्य · रैक्व · संदीपन · लोपामुद्रा · वसिष्ठ · अजीगर्त · बृहस्पति · वाल्मीकि · विश्वामित्र · व्यास · शरभंग · शुकदेव · शुक्राचार्य · सत्यकाम जाबाल · सप्तर्षि · शुन:शेप · वात्स्यायन · अक्षपाद · पाणिनि · वामदेव · सत्यवान मुनि · वैवस्वत मनु · स्वयंभुव मनु · ऋभुगण · जमदग्नि · धौम्य · भरतमुनि · कर्दम · वैशम्पायन · धौम्य · देवल वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः श्रेणियाँ: प्रारम्भिक अवस्थाऋषि मुनिसंस्कृत साहित्यकारपौराणिक कोशहिन्दू धर्म कोशधर्म कोश  To the top गणराज्य इतिहास पर्यटन साहित्य धर्म संस्कृति दर्शन कला भूगोल विज्ञान खेल सभी विषय भारतकोश सम्पादकीय भारतकोश कॅलण्डर सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी ब्लॉग संपर्क करें योगदान करें भारतकोश के बारे में अस्वीकरण भारतखोज ब्रज डिस्कवरी © 2017 सर्वाधिकार सुरक्षित भारतकोश

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