Saturday, 9 September 2017
जमदग्नि ऋषि एक ऋषि थे, जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे

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जमदग्नि ऋषि

जमदग्नि ऋषि

चतूरात्र Four rishis
जमदग्नि ऋषि एक ऋषि थे, जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे तथा जिनकी गणना सप्तऋषियों में होती है।[1] पुराणों के अनुसार इनकी पत्नी रेणुका थीं, व इनका आश्रम सरस्वती नदी के तट पर था। वैशाख शुक्ल तृतीया इनके पांचवें प्रसिद्ध पुत्र प्रदोषकाल में जन्मे थे जिन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है।
चरु से जन्म संपादित करें
जमदग्नि की माता सत्यवती ने अपनी माता तथा स्वयं द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए अपने पति से चरु प्राप्त किया था। माता व पुत्री के चरु की अदलाबदली हो गई जिससे सत्यवती ने जमदग्नि को तथा उसकी माता ने विश्वामित्र को जन्म दिया। विश्वामित्र क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होकर भी ब्राह्मणत्व के गुण वाले थे क्योंकि चरु की अदलाबदली हो गई थी। इसी प्रकार जमदग्नि स्वयं तो क्षत्रिय गुण वाले नहीं थे, लेकिन उनके पुत्र परशुराम में क्षत्रियत्व का गुण था। सात ऋषियों में जमदग्नि की विशेषता वरदहस्त होने की है, जैसा कि साथ के चित्र में दिखाया गया है।
कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा जमदग्नि की हत्या
जमदग्नि द्वारा उदयन - माता की रक्षा संपादित करें
स्कन्दपुराण व कथासरित्सागर में जमदग्नि ऋषि द्वारा सहस्रानीक राजा की भार्या मृगावती की रक्षा करने का आख्यान है। मृगावती ऋषि के संरक्षण में पुत्र उदयन को जन्म देती है जिसे वत्सराज उदयन के नाम से पुकारा जाता है क्योंकि वह वत्स देश का राजा था। उदयन की माता मृगावती पूर्वजन्म में अलंबुसा नामक अप्सरा थी।
आश्रम संपादित करें
हरियाणा में कैथल से उत्तरपूर्व की ओर २८ किलोमीटर की दूरी पर जाजनापुर गाँव स्थित है। यहां महर्षि जगदग्नि का आश्रम था। अब यहां एक सरोवर अवशेष रूप में हैं। यहां प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं को मेला लगता है। महर्षि जगदग्नि की परम्परा में बाबा साधु राम ने जहां तपस्या की है और अपने शरीर का त्याग किया है। उस स्थान को बाबा साधु राम की समाधि के रूप में पूजा जाता है। इस सरोवर की आज भी विशेष बात यह मानी जाती है कि इसमें पानी भरने के बाद फूंकार-हंकार की आवाज आती है। पूर्ण लबालब भरा सरोवर भी पन्द्रह दिनों में सुख जाता है। सांपों की इस जगह अधिकता माना जाती है। लेकिन आज तक कोई नुकसान नहीं हुआ।[2]
अरूणाचल प्रदेश में लोहित नदी के तट पर ही परशुराम कुण्ड स्थित है। पौराणिक मान्यता अनुसार परशुराम अपनी माता रेणुका की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां आए थे। इस कुण्ड में स्नान के बाद वे मां की हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। इस संदर्भ में पौराणिक आख्यान है कि किसी कारण वश परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी धर्मपत्नी रेणुका पर कुपित हो गए। उन्होंने तत्काल अपने पुत्रों को रेणुका का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन उनके आदेश का पालन करने के लिए कोई पुत्र तैयार नहीं हुआ। परशुराम पितृभक्त थे, जब पिता ने उनसे कहा तो उन्होंने अपने फरसे से मां का सर धड़ से अलग कर दिया। इस आज्ञाकारिता से प्रसन्न पिता ने जब वर मांगने को कहा तो परशुराम ने माता को जीवित करने का निवेदन किया। इस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तपोबल से रेणुका को पुन: जीवित कर दिया।[3]
रेणुका तो जीवित हो गईं लेकिन परशुराम मां की हत्या के प्रयास के कारण आत्मग्लानि से भर उठे। यद्यपि मां जीवित हो उठीं थीं लेकिन मां पर परशु प्रहार करने के अपराधबोध से वे इतने ग्रस्त हो गए कि उन्होंने पिता से अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय भी पूछा। पौराणिक प्रसंगों के अनुसार ऋषि जमदग्नि ने तब अपने पुत्र परशुराम को जिन जिन स्थानों पर जाकर पापविमोचन तप करने का निर्देश दिया उन स्थानों में परशुराम कुण्ड सर्वप्रमुख है।
सन्दर्भ संपादित करें
↑ पुस्तक.ऑर्ग पर शब्दकोश में
↑ जमदग्नि स्थल -जाजनपुर। अमन संदेश। २५ जून २००९
↑ परशुराम कुण्ड पर कुण्डली। इंडिया वॉटर पोर्टल। राकेश उपाध्याय
बाहरी कड़ियाँ संपादित करें
जमदग्नि पर पौराणिक संदर्भ
जमदग्नि रहस्य
Last edited 6 days ago by Puranastudy
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