Saturday, 9 September 2017

अगस्त्य जन्म श्रावणशुक्ल पंचमी (तदनुसार ३००० ई.पू.) को काशी में हुआ था

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अगस्त्य

अगस्त्य (तमिल:அகத்தியர், अगतियार) एक वैदिक ॠषि थे। ये वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। इनका जन्म श्रावणशुक्ल पंचमी (तदनुसार ३००० ई.पू.) को काशी में हुआ था। वर्तमान में वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी पत्नी लोपामुद्रा विदर्भ देश की राजकुमारी थी। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। देवताओं के अनुरोध पर इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गये थे।

अगस्त्य
WLA lacma 12th century Maharishi Agastya.jpg
अगस्त्य महर्षि की १२वीं शताब्दी की पाषाण प्रतिमा
संबंधऋषिसप्तर्षि
जीवनसाथीलोपामुद्रा

दक्षिण भारत में अगस्त्य तमिल भाषा के आद्य वैय्याकरण हैं। यह कवि शूद्र जाति में उत्पन्न हुए थे इसलिए यह 'शूद्र वैयाकरण' के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह ऋषि अगस्त्य के ही अवतार माने जाते हैं। ग्रंथकार के नाम परुनका यह व्याकरण 'अगस्त्य व्याकरण' के नाम से प्रख्यात है। तमिल विद्वानों का कहना है कि यह ग्रंथ पाणिनि की अष्टाध्यायी के समान ही मान्य, प्राचीन तथा स्वतंत्र कृति है जिससे ग्रंथकार की शास्त्रीय विद्वता का पूर्ण परिचय उपलब्ध होता है।

भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनके विशिष्ट योगदान के लिए जावासुमात्रा आदि में इनकी पूजा की जाती है। महर्षि अगस्त्य वेदों में वर्णित मंत्र-द्रष्टा मुनि हैं। इन्होंने आवश्यकता पड़ने पर कभी ऋषियों को उदरस्थ कर लिया था तो कभी समुद्र भी पी गये थे।[1]

इन मूर्तियों में से बायीं वाली अगस्त्य ऋषि की है। ये इंडोनेशिया में प्रंबनम संग्रहालय, जावा में रखी हैं और ९वीं शताब्दी की हैं।


महर्षि अगस्त्य के आश्रमसंपादित करें

अकोले के अगस्ती आश्रम में स्थापित मूर्ति

महर्षि अगस्त्य के भारतवर्ष में अनेक आश्रम हैं। इनमें से कुछ मुख्य आश्रम उत्तराखण्डमहाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में हैं। एक उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग नामक जिले के अगस्त्यमुनिनामक शहर में है। यहाँ महर्षि ने तप किया था तथा आतापी-वातापी नामक दो असुरों का वध किया था। मुनि के आश्रम के स्थान पर वर्तमान में एक मन्दिर है। आसपास के अनेक गाँवों में मुनि जी की इष्टदेव के रूप में मान्यता है। मन्दिर में मठाधीश निकटस्थ बेंजी नामक गाँव से होते हैं।

दूसरा आश्रम महाराष्ट्र के नागपुर जिले में है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ तथा इनका आश्रम पास ही था। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से श्रीराम ने ऋषियों को सताने वाले असुरों का वध करने का प्रण लिया था (निसिचर हीन करुहुँ महिं)। महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इस कार्य हेतु कभी समाप्त न होने वाले तीरों वाला तरकश प्रदान किया था।

एक अन्य आश्रम तमिलनाडु के तिरुपति में है। पौराणिक मान्यता के अनुसार विंध्याचल पर्वत जो कि महर्षि का शिष्य था, का घमण्ड बहुत बढ़ गया था तथा उसने अपनी ऊँचाई बहुत बढ़ा दी जिस कारण सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर पहुँचनी बन्द हो गई तथा प्राणियों में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने महर्षि से अपने शिष्य को समझाने की प्रार्थना की। महर्षि ने विंध्याचल पर्वत से कहा कि उन्हें तप करने हेतु दक्षिण में जाना है अतः उन्हें मार्ग दे। विंध्याचल महर्षि के चरणों में झुक गया, महर्षि ने उसे कहा कि वह उनके वापस आने तक झुका ही रहे तथा पर्वत को लाँघकर दक्षिण को चले गये। उसके पश्चात वहीं आश्रम बनाकर तप किया तथा वहीं रहने लगे।

एक आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले में प्रवरा नदी के किनारे है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। माना जाता है कि उनकी उपस्थिति में सभी प्राणी दुश्मनी भूल गये थे।

मार्शल आर्ट में योगदानसंपादित करें

महर्षि अगस्त्य केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की दक्षिणी शैली वर्मक्कलै के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं।[2] वर्मक्कलै निःशस्त्र युद्ध कला शैली है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अपने पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) को यह कला सिखायी तथा मुरुगन ने यह कला अगस्त्य को सिखायी। महर्षि अगस्त्य ने यह कला अन्य सिद्धरों को सिखायी तथा तमिल में इस पर पुस्तकें भी लिखी। महर्षि अगस्त्य दक्षिणी चिकित्सा पद्धति 'सिद्ध वैद्यम्' के भी जनक हैं।

सन्दर्भसंपादित करें

  1.  काशी की विभूतियाँ-महर्षि अगस्त्य।
  2.  Zarrilli, Phillip B. (1998). When the Body Becomes All Eyes: Paradigms, Discourses and Practices of Power in Kalarippayattu, a South Indian Martial Art. Oxford: Oxford University Press.

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अगस्त्यमुनि मन्दिर, रुद्रप्रयाग

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अगस्त्यमुनि मन्दिर।

अगस्त्यमुनि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि नामक शहर में स्थित है। पुराना मन्दिर दक्षिण भारतीय शैली में बना है जिसमें बाद में पुनरुद्धार हेतु परिवर्तन हुआ। मुख्य मन्दिर में अगस्त्यमुनि का कुण्ड एवं उनके शिष्य भोगाजीत की प्रतिमा है। साथ में महर्षि अगस्त्य के इष्टदेव अगस्त्येश्वर महादेव का मन्दिर है।

इतिहाससंपादित करें

दक्षिण की ओर जाने से पहले (जहाँ से वे कभी वापस नहीं आये) महर्षि अगस्त्य उत्तर भारत में देवभूमि उत्तराखण्ड की यात्रा पर आये थे। यहाँ पर रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि शहर में नागकोट नामक स्थान के पास महर्षि अगस्त्य ने सूर्य भगवान तथा श्रीविद्या की उपासना की थी।

कई स्थानीय राजा महर्षि के शिष्य बन गये जिनमें भोगाजीत, कर्माजीत, शील आदि शामिल थे। इन सभी के रुद्रप्रयाग जिले में विभिन्न स्थानों पर मन्दिर हैं।

आतापी-वातापी दैत्यसंपादित करें

जब मुनि इस स्थान पर वास कर रहे थे तो उस क्षेत्र में आतापी तथा वातापी नामक दो दैत्य भाइयों ने अत्यंत आतंक फैला रखा था। वे रूप बदलकर ऋषियों को भोजन के बहाने बुलाते थे, एक भाई सूक्ष्मरूप धारणकर भोजन में छिपकर बैठ जाता था एवं दूसरा भोजन परोसता था। भोजन सहित असुर को निगल लेने के बाद दूसरा उसे आवाज देता था तथा वह पेट फाड़कर बाहर आ जाता था तथा दोनों मिलकर ऋषि को मारकर खा जाते थे। सभी लोग इन राक्षसों से तंग आ चुके थे तथा उन्होंने महर्षि अगस्त्य से इन दोनों से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। मुनि जी इन राक्षसों के यहाँ भोजन करने गये, जब पहला राक्षस भोजन सहित पेट में चला गया तो मुनि जी ने मन्त्र पढ़कर उसे जठराग्नि से पेट में ही जला दिया (अगस्त्य मुनि पूर्वजन्म में जठराग्नि रूप में थे)। जब दूसरे राक्षस के पुकारने पर भी वह वापस न आया तो वह राक्षस अपने असली रूप में आकर मुनि जी से युद्ध करने लगा। यह युद्ध बहुत दिनों तक चला, राक्षस अत्यन्त बलवान था तथा मुनि जी थक गये। तब उन्होंने देवी का स्मरण किया, देवी कूर्मासना (स्थानीय बोली में कुमास्योंण) रूप में प्रकट हुयी। जिस स्थान पर देवी प्रकट हुयी वहाँ वर्तमान में कूर्मासना मन्दिर है। देवी नें दैत्य का सिल्ला नामक स्थान पर वध किया, वहाँ पर वर्तमान में स्थानेश्वर महादेव का मन्दिर है जिसमें राक्षसी कुण्ड बना है।[1]

पुराना देवलसंपादित करें

यह महर्षि का मूल तपोस्थल था जहाँ पर पुराने समय में मन्दिर था। यह वर्तमान मन्दिर से लगभग आधा किलोमीटर दूर है। हजारों वर्ष पहले वहाँ एक बार बाढ़ आयी जिसमें मन्दिर बह गया। इसके बाद किसी स्थानीय निवासी को स्वप्न हुआ कि मैं (मुनि देवता) इस नये स्थान पर आ गया हूँ। नये स्थान पर जहाँ स्वप्न में बताया गया था वहाँ महर्षि अगस्त्य का कुण्ड है। बाढ़ में बही महर्षि की मूल प्रतिमा का पता नहीं चला। इसकी जगह महर्षि के शिष्य भोगाजीत की तांबे की प्रतिमा कुण्ड के ठीक साथ में स्थापित की गयी। वर्तमान में मुख्य रूप से इसी प्रतिमा की मुनिजी के रूप में ही पूजा की जाती है। भोगाजीत की अष्टधातु की एक अन्य प्रतिमा है जो यात्रा के समय बाहर ले जायी जाती है।

मठाधीशसंपादित करें

मान्यता के अनुसार बहुत वर्षों पहले एक बार अगस्त्यमुनि मन्दिर के पुजारी का देहान्त हो गया था जिस कारण वहाँ पूजा बन्द थी। इसी समय दक्षिण से कोई दो आदमी जो कि उत्तराखण्ड की यात्रा पर आये हुये थे, अगस्त्य ऋषि के मन्दिर के बारे में पता लगने पर मन्दिर में दर्शन को आये। स्थानीय लोगों ने उन्हें मना किया के मन्दिर के अन्दर मत जाओ, पूजा बन्द है और जो अन्दर जा रहा है उसकी मृत्यु हो रही है। उन्होंने कहा कि अगस्त्य ऋषि तो हमारे देवता हैं, हम तो दर्शन करेंगे ही (दक्षिण में भी अगस्त्य ऋषि का आश्रम है)। वे अन्दर गये, दर्शन किया और उनको कुछ न हुआ तो स्थानीय लोगों ने उनसे ही मन्दिर में पूजा व्यवस्था सम्भालने का अनुरोध किया। वे वहाँ पुजारी हो गये तथा पहाड़ के ऊपर एक स्थान पर वे रहने लगे तथा बेंजी नामक गाँव बसाया। तब से अगस्त्यमुनि मन्दिर में ग्राम बेंजी से ही पुजारी (मठाधीश) होते हैं।

सन्दर्भसंपादित करें

 स्कन्द पुराण

बाहरी कड़ियाँसंपादित करें

रुद्रप्रयाग जिले की वेबसाइट पर अगस्त्यमुनि मन्दिर सम्बन्धी विवरण

Last edited 4 months ago by राजू जांगिड़

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बेंजी

अगस्त्य

अगस्त्यमुनि, रुद्रप्रयाग

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विकि लव्ज़ मॉन्युमॅण्ट्स: किसी स्मारक की तस्वीर खींचिए, विकीपीडिया की सहायता कीजिए और जीति मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें बेंजी बेंजी भारत के उत्तरांचल राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में सिल्ली (अगस्त्यमुनि) नामक छोटे शहर के पास स्थित एक गाँव है। स्थानीय गढ़वाली बोली में इसका उच्चारण ब्येंजि होता है। बेंजी ग्राम के निवासियों का उपनाम बेंजवाल होता है। बेंजी — village —    बेंजी समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) देश  भारत राज्य उत्तराखंड ज़िला रुद्रप्रयाग निकटतम नगर अगस्त्यमुनि संसदीय निर्वाचन क्षेत्र पौड़ी विधायक निर्वाचन क्षेत्र केदार विभिन्न कोड • पिनकोड • २४६४२१ • दूरभाष • +९११३६४ डाक पता संपादित करें ग्राम - बेंजी, पोस्ट ऑफिस - सिल्ली (अगस्त्यमुनि), जिला - रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, पिन - २४६४२१. STD कोड - ०१३६४ शैक्षणिक संस्थान संपादित करें गाँव के नीचे हेड़ी नामक स्थान पर राजकीय प्राथमिक पाठशाला है। मन्दिर एवं देवस्थान संपादित करें गाँव में भगवती दक्षिणकालिका का प्राचीन सिद्धस्थान है। बाद में भगवती के पुजारी परिवार द्वारा देवी का स्वरुप सिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। नृसिंह भगवान का स्थान दो जगह है, एक तो पुजारी परिवार के घर में तथा दूसरा गाँव से एक तरफ जंगल में। गाँव के जल स्रोत बिन्नी का धारा पर एक मन्दिर है जिसमें भगवान तुंगनाथ एवं देवी दुर्गा को स्थापित किया गया है। गाँव की चोटी पर क्षेत्रपाल देवता का स्थान है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थानीय देवताओं के भी स्थान हैं जिनमें 'पंचकूला' देवता आदि शामिल हैं। गाँव के कुछ प्रमुख इष्टदेवों में महर्षि अगस्त्य, भगवान तुंगनाथ, भगवती दक्षिणकालिका तथा नृसिंह देवता शामिल हैं। महर्षि अगस्त्य का मन्दिर पहाड़ से नीचे अगस्त्यमुनि नामक नगर में है। गाँव का इतिहास संपादित करें मान्यता के अनुसार बहुत वर्षों पहले एक बार अगस्त्यमुनि मन्दिर के पुजारी का देहान्त हो गया था जिस कारण वहाँ पूजा बन्द थी। इसी समय दक्षिण से कोई दो आदमी जो कि उत्तराखण्ड की यात्रा पर आये हुये थे, अगस्त्य ऋषि के मन्दिर के बारे में पता लगने पर मन्दिर में दर्शन को आये। स्थानीय लोगों ने उन्हें मना किया के मन्दिर के अन्दर मत जाओ, पूजा बन्द है और जो अन्दर जा रहा है उसकी मृत्यु हो रही है। उन्होंने कहा कि अगस्त्य ऋषि तो हमारे देवता हैं, हम तो दर्शन करेंगे ही (दक्षिण में भी अगस्त्य ऋषि का आश्रम है)। वे अन्दर गये, दर्शन किया और उनको कुछ न हुआ तो स्थानीय लोगों ने उनसे ही मन्दिर में पूजा व्यवस्था सम्भालने का अनुरोध किया। इसके बाद वे बसने हेतु स्थान खोजने ऊपर पहाड़ पर गये, वहाँ एक स्थान पर उन्होंने चूहे तथा साँप के बीच लड़ाई होते देखी, अन्ततः चूहे ने साँप को हरा दिया। यह देखकर उन्होंने निश्चय किया कि इस स्थान में बल एवं सिद्धि है तथा यह रहने के लिये उपयुक्त है। तब वे वहाँ रहने लगे तथा बेंजी नामक गाँव बसाया। तब से अगस्त्यमुनि मन्दिर में ग्राम बेंजी से ही पुजारी (मठाधीश) होते हैं। गाँव के कुछ प्रसिद्ध व्यक्ति संपादित करें ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य माधवाश्रम जी महाराज उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी शहीद यशोधर बेंजवाल गाँव से जुड़े कुछ तथ्य संपादित करें बेंजी ग्राम के स्वामी माधवाश्रम देवभूमि उत्तराखण्ड क्षेत्र से शंकराचार्य पद पर सुशोभित होने वाली पहली विभूति हैं। रुद्रप्रयाग के प्रसिद्द आदमखोर तेंदुए ने अपना पहला शिकार बेंजी गाँव के एक व्यक्ति को बनाया था। बाहरी कड़ियाँ संपादित करें ग्राम बेंजी विकिमैपिया पर ग्राम बेंजी का गूगल समुदाय (डाक सूची) फ़ेसबुक पर ग्राम बेंजी समूह फ़ेसबुक पर बेंजवाल परिवार सांख्यकीय आंकड़े ग्राम बेंजी सम्बंधी विभिन्न लिंक्स Last edited 7 months ago by Sanjeev bot RELATED PAGES अगस्त्यमुनि, रुद्रप्रयाग अगस्त्यमुनि मन्दिर, रुद्रप्रयाग फलासी तुङ्गनाथ  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

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