Tuesday, 24 October 2017
परब्रह्म
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परब्रह्म
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परब्रह्म, का शाब्दिक अर्थ है 'सर्वोच्च ब्रह्म' - वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों और संकल्पनाओं से भी परे है। अद्वैत वेदान्त का निर्गुण ब्रह्म भी परब्रह्म है। वैष्णव और शैव सम्प्रदायों में भी क्रमशः विष्णु तथा शिव को परब्रह्म माना गया है।
वास्तव में केवल इतनी परिभाषा ही सम्भव हो सकती हे कियोंकि समस्त जगत ब्रह्म के अंतर्गत माना गया हे मन विचार बुद्धि आदि ! उत्तम से अतिउत्तम विचार, भाव, वेद, शास्त्र मंत्र, तन्त्र, आधुनिक विजान योतिष आदि किसी भी माध्यम से उसकी परिभाषा नहीं हो सकती! वह गुणातीत, भावातीत, माया, प्रक्रति और ब्रह्म से परे और परम है। वह एक ही है दो या अनेक नहीं है। मनीषियों ने कहा है कि ब्रह्म से भी परे एक सत्ता है जिसे वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। वेदों में उसे नेति -नेति (ऐसा भी नहीं -ऐसा भी नही) कहा है। वह सनातन है, सर्वव्यापक है, सत्य है, परम है। वह समस्त जीव निर्जीव समस्त अस्तित्व का एकमात्र परम कारण सर्वसमर्थ सर्वज्ञानी है। वह वाणी और बुद्धि का विषय नहीं है उपनिषदों ने कहा है कि समस्त जगत ब्रह्म पे टिका हे और ब्रह्म परब्रह्म पे टिका है।
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ब्रह्म
संवाद
Last edited 5 months ago by चक्रबोट
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नेति नेति
परब्रह्म्
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