Thursday, 19 October 2017

योगीराज ध्याननाथ

समाधी
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समाधी गहरी समाधी में शरीर में स्थित ऊर्जा पिंड ( आत्मा) समस्त जगत कि ऊर्जा के साथ एकीकार हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में समस्त ब्रह्म ऊर्जा उस शरीर पर काम करने लगती हैं। शरीर पर काल प्रभाव यानि आयुवृद्धि बहुत कम हो जाती हैं। भूख ,प्यास ,निद्रा के भाव विलीन हो जाते हैं। शरीर परम जीवन्तता से भरा हुआ होता हैं। इतिहास बताता हैं कि योगी कई बार कई बरसो के लिए समाधी में चले जाते थे। ऐसी अवस्था में उन पर पेड़ पौधे उग आते थे। जब वे समाधी से बाहर आते थे तो उन के समकक्ष ,उन के मित्रो तथा कई बार उनके पोते भी मृत्यु को उपलब्ध हो चुके होते थे। ऐसी समाधी कि अवस्था यानि योगी की आत्मा का सम्पूर्णता ( परमात्मा) के साथ एक हो जाना। मै भाव का पूरी तरह तिरोहित हो जाना। ऐसी अवस्था गहरी ध्यान और साधना से प्राप्त होती हैं
.......................योगीराज ध्याननाथ
मेरे विचार में समाधी का अर्थ है उस एक परमात्मा के समान हो जाना, उस के बराबर हो जाना। उपाधि का अर्थ है लगभग उस जैसा हो जाना, समझ लीजिए केवल एक पद नीचे। परंतु समाधी का अर्थ है पूर्ण रूप से ईश्वर के समान होना। उस दृष्टिकोण से, आप सही हैं कि समाधी एक ऐसी स्थिति है जिसमें आप अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित हैं। परंतु केवल जानने और अनुभव करने में अंतर होता है। सुने-सुनाये ज्ञान से व्यक्ति समाधी के विषय में जानकारी अवश्य प्राप्त कर सकता है परंतु समाधी की वास्तविक स्थिति को पूर्ण रूप से समझने के लिए उसे स्वयं उस अवस्था में जाना होगा। उसे स्वयं अहसास करना होगा। समाधी का अनुभव करना होगा।
व्यक्ति परिस्थितियों एवं समाज से प्रभावित हो जाता है, इसी कारण समाधी की अवस्था की अनुभूति नहीं कर पाता है। यदि वह इस अनुभवातीत स्थिति की प्राप्ति कर ले तो उस के बाद उसे केवल स्वयं को प्रभावित ना होने की अवस्था में रखना है, तब समाधी की स्थिति बने रहेगी। इसके अतिरिक्त - अतुलनीय संवेदना एवं उत्तेजना शरीर से उभरेगी, विशेष रूप से अज्ञा चक्र और सहस्रार में। उत्तेजना इतनी गहरी होगी कि आपको बाहरी कुछ भी दिलचस्प नहीं लगेगा। बाहरी दुनिया आपके आंतरिक स्थिति से अनभिज्ञ रह सकता है, परंतु उत्तेजना और अद्वितीय आनंद आप के भीतर बहता रहेगा। जागृत अवस्था में आप लगातार ऐसी उत्तेजना महसूस करेंगे। यही समाधी की अवस्था है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और जो भी प्रयत्न करने के लिए तैयार है वह भी अनुभव कर सकता है। जिस प्रकार जल में लहर गठित हो सकता है परंतु बर्फ में नहीं, उसी प्रकार समाधी में आप बिना चंचलता के स्थायी रूप से परमानंद का अनुभव करते हैं। क्रोध, वासना, घृणा और अन्य नकारात्मक भावनाएं आप के अंदर उभर ही नहीं सकतीं।

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