पुरी राधास्वामी वालो कि जन्मकुन्ड्ली लेकर आया हु।
मरने के बाद भूत बने श्री शिवदयाल जी
(राधा का पति / राधास्वामी ) से आगे शाखाऐं निम्नचली हैं:-
{नोट - शिव दयाल की पत्नी का नाम "राधा" था }
श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जिनके तीन मुख्य शिष्य हुए
1. श्री जयमल सिंह (डेरा ब्यास)
2. जयगुरुदेव पंथ (मथुरा में)
3. श्री तारा चंद (दिनोद जि. भिवानी)इनसे आगे निकलने वाले पंथ:-
1. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) -->श्री सावन सिंह--> श्री जगत सिंह
2. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> जयगुरु देव पंथ (मथुरा में)
3. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> श्री ताराचंद जी (दिनोद जि. भिवानी)
4. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) --> श्री सावन सिंह --> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा)
5. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) --> श्री सावन सिंह --> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) --> श्री सतनाम सिंह जी (सिरसा)
6. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) --> श्री सावन सिंह --> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) --> श्री मनेजर साहेब (गांव जगमाल वाली में)
7. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) --> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) --> श्री सावन सिंह --> श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली)
8. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी)
--> जयमल सिंह (डेरा ब्यास)
--> श्री सावन सिंह
--> श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली) -
-> श्री ठाकुर सिंह जी श्री जयमल सिंह जी ने दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु सन् 1878 में 60 वर्ष की आयु में हुई।
श्री जयमल सिंह जी सेनासे सेवानिवृत हुए सन् 1889 में अर्थात् श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु के 11 वर्ष पश्चात् सेवानिवृत होकर 1889 में ब्यास नदी के किनारे डेरे कीस्थापना करके स्वयंभू संत बनकर नाम दान करने लगे।
यदि कोई कहे कि शिवदयाल सिंह जी ने बाबा जयमल सिंह को नाम दान करने को आदेश दिया था। यह उचित नहीं है क्योंकि यदि नाम दान देने का आदेश दिया होता तो श्री जयमल सिंह जी पहले से ही नाम दान प्रारम्भ कर देते।
यहाँ पर यह भी याद रखना अनिवार्य है कि श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) के कोई गुरु नहीं थे। श्री जयमल सिंह जी (डेरा ब्यास) ने जिस समय दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में उससमय श्री शिवयाल सिंह जी (राधा स्वामी) साधक (Under training) थे। श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) संत 1861 में बने तब उन्होंने सत्संग प्रारम्भ किया था।
2. बाबा जयमल सिंह जी से उपदेश प्राप्त हुआ श्री सावन सिंह जी को तो श्री सावन सिंह उत्तराधिकारी हुए श्री जयमल सिंह जी के यानी डेरा बाबा जयमल सिंह (ब्यास) के ।
=> बाबा सावन सिंह जी के अनेकों शिष्य हुए। जिन में से दो अपने आपको बाबा जयमल सिंह के डेरे की गद्दी को प्राप्त करने के अधिकारी मानने लगे।
1. श्री खेमामल जी (शाहमस्ताना) जी
2. श्री कृपाल सिंहश्री सावन सिंह जी ने दोनों के टकराव को टालते हुए इन दोनों को बाईपास करके श्री जगत सिंह जी को बाबा जयमल सिंह (ब्यास) की गद्दी पर विराजमान कर दिया। उसके नाम वसीयत कर दी। इस घटना से क्षुब्ध होकर दोनों (श्री खेमामल जी तथा श्री कृपाल सिंह जी) बागी हो गए। श्री खेमामल जी ने स्वयंभू गुरू बनकर 2अप्रैल 1949 में सिरसा में सच्चा सौदा डेरा की स्थापना करके नाम दान करने लगे।
=> श्री कृपाल सिंह जी ने दिल्ली में विजय नगर स्थान पर स्वयंभू गुरु बनकर नामदान करना प्रारम्भ कर दिया तथा ’’सावन-कृपाल मिशन’’ नाम से आश्रम बना कर रहने लगा।
श्री क पाल सिंह जी ने श्री दर्शन सिंह जी को उत्तराधिकार नियुक्त कर दिया। श्री ठाकुर सिंह जी अपने को सीनियर मानते थे।
जो श्री कृपाल सिंह जी के शिष्यों में से एक थे। वांच्छित पद न मिलने से क्षुब्ध श्री ठाकुर सिंह जी ने स्वयंभू गुरु बनकर नाम दान करना प्रारम्भ कर दिया।
श्री जगत सिंह की मृत्यु लगभग तीन वर्ष पश्चात् ही क्षय रोग से हो गई थी।
उसके पश्चात् श्री चरण सिंह जी जो श्री सावन सिंह जी के शिष्य थे तथा श्री जगत सिंह के गुरु भाई थे। डेरा ब्यास की गद्दी पर विराजमान हो गए।
श्री चरण सिंह जी को नाम दान का आदेश प्राप्त नहीं था। कोई कहे कि श्री जगत सिंह ने आदेश दे दिया था।
श्री चरण सिंह को यह उचित नहीं, क्योंकि गुरु भाई अपने गुरु भाई को नाम दान का आदेश नहीं दे सकता। एक कमाण्डर अपने बराबर के पद वाले कमाण्डर की पदोन्नति नहीं कर सकता।
श्री शिव दयाल सिंह के पंथ से श्री जैमल सिंह जी व उनसे बागी होकर श्री बग्गा सिंह ने तरणतारण में अलग डेरा बनाया जिनसे आगे श्री देवा सिंह जी से आगे तीन बागी पंथ चलाने वाले ब
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