शब्द बिना सुति नैनहिन, कहाँ किधर वो जाए | द्वार न पावे शब्द का, यहाँ वहाँ धक्के खाए || गुरू गुरू में भेद है, भिन्न भिन्न है स्वभाव | गुरू सदा ऐसा मानो जो, जाने शब्द प्रभाव || शब्द शब्द भिन्न होते हैं, सार शब्द समझ लीजिए | कहे कबीर बिन सार शब्द, जीवन व्यर्थ नहीं कीजिए || बन्दगी करूँ विवेक की, भेष धरे हर कोई | वहाँ बन्दगी व्यर्थ है, जहाँ शब्द विवेक न होई || मानुष देही पाय के, चुका जो इस बार | जाए पडा भवचक्र में, वो होगा कभी न पार ||
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