Monday, 23 October 2017
www.jagatgururampalji.org


पूर्ण संत की पहचान
By: Poonam Dhindsa
पूर्ण संत की पहचान
वेदों, गीता जी आदि पवित्रा सद्ग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म कीहानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तथा वर्तमान के नकली संत, महंत व गुरुओंद्वारा भक्ति मार्ग के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है। फिर परमेश्वर स्वयं आकरया अपने परमज्ञानी संत को भेज कर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करताहै। वह भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार समझाता है। उसकी पहचान होती है किवर्तमान के धर्म गुरु उसके विरोध में खड़े होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसकेऊपर अत्याचार करवाते हैं। कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै। या सब संत महंतन कीकरणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरासंत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचानहोगी। दूसरी पहचान वह संत सभी धर्म ग्रंथों का पूर्ण जानकार होता है। प्रमाण सतगुरुगरीबदास जी की वाणी में -
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्रा, कहै अठारा बोध।।“ सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वहचारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगाअर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा। यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्रा 25ए 26 में लिखा हैकि वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चैथाई श्लोकों को पुराकरके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारकसंत होता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्रा 25
सन्धिछेदः- अर्द्ध ऋचैः उक्थानाम् रूपम् पदैः आप्नोति निविदः।
प्रणवैःशस्त्राणाम् रूपम् पयसा सोमः आप्यते।(25)
अनुवादः- जो सन्त (अर्द्ध ऋचैः) वेदों के अर्द्ध वाक्यों अर्थात् सांकेतिकशब्दों को पूर्ण करके (निविदः) आपूत्र्ति करता है (पदैः) श्लोक के चैथे भागों कोअर्थात् आंशिक वाक्यों को (उक्थानम्) स्तोत्रों के (रूपम्) रूप में (आप्नोति)प्राप्त करता है अर्थात् आंशिक विवरण को पूर्ण रूप से समझता और समझाता है (शस्त्राणाम्) जैसे शस्त्रों को चलाना जानने वाला उन्हें (रूपम्) पूर्ण रूप सेप्रयोग करता है एैसे पूर्ण सन्त (प्रणवैः) औंकारों अर्थात् ओम्-तत्-सत् मन्त्रों कोपूर्ण रूप से समझ व समझा कर (पयसा) दध-पानी छानता है अर्थात् पानी रहित दूध जैसातत्व ज्ञान प्रदान करता है जिससे (सोमः) अमर पुरूष अर्थात् अविनाशी परमात्मा को (आप्यते) प्राप्त करता है। वह पूर्ण सन्त वेद को जानने वाला कहा जाता है। भावार्थः-तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णनकरता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाताहै।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्रा 26
सन्धिछेद:- अश्विभ्याम् प्रातः सवनम् इन्द्रेण ऐन्द्रम् माध्यन्दिनम् वैश्वदैवम्सरस्वत्या तृतीयम् आप्तम् सवनम् (26)
अनुवाद:- वह पूर्ण सन्त तीन समय की साधना बताता है। (अश्विभ्याम्) सूर्य केउदय-अस्त से बने एक दिन के आधार से (इन्द्रेण) प्रथम श्रेष्ठता से सर्व देवों केमालिक पूर्ण परमात्मा की (प्रातः सवनम्) पूजा तो प्रातः काल करने को कहता है जो (ऐन्द्रम्) पूर्ण परमात्मा के लिए होती है। दूसरी (माध्यन्दिनम्) दिन के मध्य मेंकरने को कहता है जो (वैश्वदैवम्) सर्व देवताओं के सत्कार के सम्बधित (सरस्वत्या)अमृतवाणी द्वारा साधना करने को कहता है तथा (तृतीयम्) तीसरी (सवनम्) पूजा शाम को (आप्तम्) प्राप्त करता है अर्थात् जो तीनों समय की साधना भिन्न-2 करने को कहता हैवह जगत् का उपकारक सन्त है।
भावार्थः- जिस पूर्ण सन्त के विषय में मन्त्रा 25 में कहा है वह दिन में 3 तीन बार (प्रातः दिन के मध्य-तथा शाम को) साधना करने को कहता है। सुबह तो पूर्ण परमात्मा की पूजा मध्याõ को सर्व देवताओं को सत्कार के लिए तथा शाम को संध्या आरती आदि को अमृत वाणी के द्वारा करने को कहता है वह सर्व संसार का उपकार करने वाला होता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्रा 30
सन्धिछेदः- व्रतेन दीक्षाम् आप्नोति दीक्षया आप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणाश्रद्धाम् आप्नोति श्रद्धया सत्यम् आप्यते (30)
अनुवादः- (व्रतेन) दुव्र्यसनों का व्रत रखने से अर्थात् भांग, शराब, मांस तथातम्बाखु आदि के सेवन से संयम रखने वाला साधक (दीक्षाम्) पूर्ण सन्त से दीक्षा को (आप्नोति) प्राप्त होता है अर्थात् वह पूर्ण सन्त का शिष्य बनता है (दीक्षया) पूर्णसन्त दीक्षित शिष्य से (दक्षिणाम्) दान को (आप्नोति) प्राप्त होता है अर्थात् सन्तउसी से दक्षिणा लेता है जो उस से नाम ले लेता है। इसी प्रकार विधिवत् (दक्षिणा)गुरूदेव द्वारा बताए अनुसार जो दान-दक्षिणा से धर्म करता है उस से (श्रद्धाम्)श्रद्धा को (आप्नोति) प्राप्त होता है (श्रद्धया) श्रद्धा से भक्ति करने से (सत्यम्) सदा रहने वाले सुख व परमात्मा अर्थात् अविनाशी परमात्मा को (आप्यते)प्राप्त होता है।
भावार्थ:- पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल है पूछोवेद पुराण।।
तीसरी पहचान तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसकावर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्यायनं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पृष्ठ 265 -
तब कबीर अस कहेवे लीन्हा, ज्ञानभेद सकल कह दीन्हा।।
धर्मदास मैं कहो बिचारी, जिहिते निबहै सबसंसारी।।
प्रथमहि शिष्य होय जो आई, ता कहैं पान देहु तुम भाई।।1।।
जब देखहुतुम दृढ़ता ज्ञाना, ता कहैं कहु शब्द प्रवाना।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवै, ताकहैं ज्ञान अगाध सुनावै।।3।।
दोबारा फिर समझाया है -
बालक सम जाकर है ज्ञाना। तासों कहहू वचन प्रवाना।।1।।
जा को सूक्ष्म ज्ञान हैभाई। ता को स्मरन देहु लखाई।।2।।
ज्ञान गम्य जा को पुनि होई। सार शब्द जा को कहसोई।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा, ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा।।4।।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है कि कड़िहार गुरु (पूर्ण संत) तीन स्थिति में सार नामतक प्रदान करता है तथा चैथी स्थिति में सार शब्द प्रदान करना होता है। क्योंकि कबीरसागर में तो प्रमाण बाद में देखा था परंतु उपदेश विधि पहले ही पूज्य दादा गुरुदेवतथा परमेश्वर कबीर साहेब जी ने हमारे पूज्य गुरुदेव को प्रदान कर दी थी जो हमारे कोशुरु से ही तीन बार में नामदान की दीक्षा करते आ रहे हैं।
हमारे गुरुदेव रामपाल जी महाराज प्रथम बार में श्री गणेश जी, श्री ब्रह्मासावित्री जी, श्री लक्ष्मी विष्णु जी, श्री शंकर पार्वती जी व माता शेरांवाली कानाम जाप देते हैं। जिनका वास हमारे मानव शरीर में बने चक्रों में होता है। मूलाधारचक्र में श्री गणेश जी का वास, स्वाद चक्र में ब्रह्मा सावित्री जी का वास, नाभिचक्र में लक्ष्मी विष्णु जी का वास, हृदय चक्र में शंकर पार्वती जी का वास, कंठचक्र में शेरांवाली माता का वास है और इन सब देवी-देवताओं के आदि अनादि नाम मंत्राहोते हैं जिनका वर्तमान में गुरुओं को ज्ञान नहीं है। इन मंत्रों के जाप से येपांचों चक्र खुल जाते हैं। इन चक्रों के खुलने के बाद मानव भक्ति करने के लायक बनताहै। सतगुरु गरीबदास जी अपनी वाणी में प्रमाण देते हैं कि:--
पांच नाम गुझ गायत्री आत्म तत्व जगाओ। ¬ किलियं हरियम् श्रीयम् सोहं ध्याओ।।
भावार्थ: पांच नाम जो गुझ गायत्राी है। इनका जाप करक े आत्मा का े जागृत करा।ेदूसरी बार में दो अक्षर का जाप देते हैं जिनमें एक ओम् और दूसरा तत् (जो कि गुप्तहै उपदेशी को बताया जाता है) जिनको स्वांस के साथ जाप किया जाता है।
तीसरी बार में सारनाम देते हैं जो कि पूर्ण रूप से गुप्त है।
तीन बार में नाम जाप का प्रमाण:--
अध्याय 17 का श्लोक 23
¬, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृतः,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा।।23।।
अनुवाद: (¬) ब्रह्म का(तत्) यह सांकेतिक मंत्रा परब्रह्म का (सत्) पूर्णब्रह्मका (इति) ऐसे यह (त्रिविधः) तीन प्रकार के (ब्रह्मणः) पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरणका (निर्देशः) संकेत (स्मृतः) कहा है (च) और (पुरा) सृष्टिके आदिकालमें (ब्राह्मणाः) विद्वानों ने बताया कि (तेन) उसी पूर्ण परमात्मा ने (वेदाः) वेद (च)तथा (यज्ञाः) यज्ञादि (विहिताः) रचे।
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8(संत रामपाल दासद्वारा भाषा-भाष्य)ः-
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर्नृभिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नामजनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन्।।8।।
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर् नृभिः यतः परि कोशान् असिष्यदत् त्रि तस्य नामजनयन् मधु क्षरनः न इन्द्रस्य वायुम् सख्याय वर्धयन्।
शब्दार्थ (पूव्र्यः) सनातन अर्थात् अविनाशी (कविर नृभिः) कबीर परमेश्वर मानव रूपधारण करके अर्थात् गुरु रूप में प्रकट होकर (मनीषिभिः) हृदय से चाहने वाले श्रद्धासे भक्ति करने वाले भक्तात्मा को (त्रि) तीन (नाम) मन्त्रा अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्रा करके (जनयन्) जन्म व (क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश गिनती के डालेहुए होते हैं को (कोशान्) अपने भण्डार से (सख्याय) मित्राता के आधार से(परि) पूर्णरूप से (वर्धयन्) बढ़ाता है। (यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (मधु)वास्तविक आनन्द को (असिष्यदत्) अपने आशीर्वाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है।
भावार्थ:- इस मन्त्रा में स्पष्ट किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्रा भक्त को पवित्राकरके अपने आर्शिवाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करके पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु बढाता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है कि ओम्-तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविद्य स्मृतः भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का ¬ (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्रा जाप स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो। तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं. 34 में कहा है तथा गीता अध्याय नं. 15 श्लोक नं. 1 व 4 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई तथा कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान जानकर उसके पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक लौट कर संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मुक्त हो जाते हैं। उसी पूर्ण परमात्मा से संसार की रचना हुई है।
विशेष:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि पवित्रा चारों वेद भी साक्षी हैं किपूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है, उसका वास्तविक नाम कविर्देव(कबीर परमेश्वर) हैतथा तीन मंत्रा के नाम का जाप करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है।
धर्मदास जी को तो परमश्ेवर कबीर साहेब जी ने सार शब्द देने से मना कर दिया थातथा कहा था कि यदि सार शब्द किसी काल के दूत के हाथ पड़ गया तो बिचली पीढ़ी वाले हंसपार नहीं हो पाऐंगे। जैसे कलयुग के प्रारम्भ में प्रथम पीढ़ी वाले भक्त अशिक्षित थेतथा कलयुग के अंत में अंतिम पीढ़ी वाले भक्त कृतघनी हो जाऐंगे तथा अब वर्तमान मेंसन् 1947 से भारत स्वतंत्रा होने के पश्चात् बिचली पीढ़ी प्रारम्भ हुई है। सन् 1951 में सतगुरु रामपाल जी महाराज को भेजा है। अब सर्व भक्तजन शिक्षित हैं। शास्त्राअपने पास विद्यमान हैं। अब यह सत मार्ग सत साधना पूरे संसार में फैलेगा तथा नकलीगुरु तथा संत, महंत छुपते फिरेंगे।
इसलिए कबीर सागर, जीव धर्म बोध, बोध सागर, पृष्ठ 1937 पर:-
धर्मदास तोहि लाख दुहाई, सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परिहै, बिचली पीढ़ी हंस नहीं तरि है।
पुस्तक “धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय” के पृष्ठ 46 पर लिखा है किग्यारहवीं पीढ़ी को गद्दी नहीं मिली। जिस महंत जी का नाम “धीरज नाम साहब” कवर्धा मेंरहता था। उसके बाद बारहवां महंत उग्र नाम साहेब ने दामाखेड़ा में गद्दी की स्थापनाकी तथा स्वयं ही महंत बन बैठा। इससे पहले दामाखेड़ा में गद्दी नहीं थी। इससे स्पष्टहै कि पूरे विश्व में सतगुरु रामपाल जी महाराज के अतिरिक्त वास्तविक भक्ति मार्गनहीं है। सर्व प्रभु प्रेमी श्रद्धालुओं से प्रार्थना है कि प्रभु का भेजा हुआ दासजान कर अपना कल्याण करवाऐं।
यह संसार समझदा नाहीं, कहन्दा श्याम दोपहरे नूं। गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगेइस पहरे नूं।। बारहवें पंथ (गरीबदास पंथ बारहवां पंथ लिखा है कबीर सागर, कबीरचरित्रा बोध पृष्ठ 1870 पर) के विषय में कबीर सागर कबीर वाणी पृष्ठ नं. 136.137 परवाणी लिखी है कि:-
सम्वत् सत्रासै पचहत्तर होई, तादिन प्रेम प्रकटें जग सोई।
साखी हमारी ले जीवसमझावै, असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।
बारवें पंथ प्रगट ह्नै बानी, शब्द हमारे कीनिर्णय ठानी।
अस्थिर घर का मरम न पावैं, ये बारा पंथ हमही को ध्यावैं।
बारवेंपंथ हम ही चलि आवैं, सब पंथ मेटि एक ही पंथ चलावें।
धर्मदास मोरी लाख दोहाई, सारशब्द बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परही, बिचली पीढी हंस नहींतरहीं।
तेतिस अर्ब ज्ञान हम भाखा, सार शब्द गुप्त हम राखा।
मूल ज्ञान तब तकछुपाई, जब लग द्वादश पंथ मिट जाई।
यहां पर साहेब कबीर जी अपने शिष्य धर्मदास जी को समझाते हैं कि संवत् 1775 मेंमेरे ज्ञान का प्रचार होगा जो बारहवां पंथ होगा। बारहवें पंथ में हमारी वाणी प्रकटहोगी लेकिन सही भक्ति मार्ग नहीं होगा। फिर बारहवें पंथ में हम ही चल कर आएगें औरसभी पंथ मिटा कर केवल एक पंथ चलाएंगे। लेकिन धर्मदास तुझे लाख सौगंध है कि यह सारशब्द किसी कुपात्रा को मत दे देना नहीं तो बिचली पीढ़ी के हंस पार नहीं हो सकेंगे।इसलिए जब तक बारह पंथ मिटा कर एक पंथ नहीं चलेगा तब तक मैं यह मूल ज्ञान छिपा कररखूंगा।
संत गरीबदास जी महाराज की वाणी में नाम का महत्व:--
नाम अभैपद ऊंचा संतों, नाम अभैपद ऊंचा। राम दुहाई साच कहत हूं, सतगुरु सेपूछा।।
कहै कबीर पुरुष बरियामं, गरीबदास एक नौका नामं।।
नाम निरंजन नीकासंतों, नाम निरंजन नीका।
तीर्थ व्रत थोथरे लागे, जप तप संजम फीका।।
गज तुरकपालकी अर्था, नाम बिना सब दानं व्यर्था।
कबीर, नाम गहे सो संत सुजाना, नाम बिनाजग उरझाना।
ताहि ना जाने ये संसारा, नाम बिना सब जम के चारा।।
संत नानक साहेब जी की वाणी में नाम का महत्व:--
नानक नाम चढ़दी कलां, तेरे भाणे सबदा भला।
नानक दुःखिया सब संसार, सुखिया सोयनाम आधार।।
जाप ताप ज्ञान सब ध्यान, षट शास्त्रा सिमरत व्याखान।
जोग अभ्यासकर्म धर्म सब क्रिया, सगल त्यागवण मध्य फिरिया।
अनेक प्रकार किए बहुत यत्ना, दानपूण्य होमै बहु रत्ना।
शीश कटाये होमै कर राति, व्रत नेम करे बहुभांति।।
नहीं तुल्य राम नाम विचार, नानक गुरुमुख नाम जपिये एक बार।।
(परम पूज्य कबीर साहेब(कविर् देव) की अमृतवाणी)
संतो शब्दई शब्द बखाना।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा। सोहं, निरंजन, रंरकार, शक्तिऔर ओंकारा।।
पाँचै तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया। लोक द्वीप चारों खान चैरासीलख बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।। पाँच शब्द की आशा मेंसर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा। शब्दइनिरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करेस्थाना। ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैंमुद्रा काया बीच ठिकाना। जो जिहसंक आराधन करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजनचांचरी मुद्रा है नैनन के माँही। ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माँही।।
शब्दओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना। व्यास देव ताहि पहिचाना चांद सूर्य तिहिजाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना। शुकदेव मुनी ताहि पहिचानासुन अनहद को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना। ब्रह्माविष्णु महेश आदि लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाशसनेही। झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रासो निश्चय कर जाना। आगे पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासीसिद्धि लो पाँच शब्द में अटके। मुद्रा साध रहे घट भीतर फिर ओंधे मख्ुा लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप यमजाला। कहैं कबीर अक्षर के आगे निःअक्षरका उजियाला।।
जैसा कि इस शब्द ‘‘संतो शब्दई शब्द बखाना‘‘ में लिखा है कि सभी संत जन शब्द (नाम) की महिमा सुनाते हैं। पूर्णब्रह्म कबीर साहिब जी ने बताया है कि शब्द सतपुरुषका भी है जो कि सतपुरुष का प्रतीक है व ज्योति निरंजन(काल) का प्रतीक भी शब्द हीहै। जैसे शब्द ज्योति निरंजन यह चांचरी मुद्रा को प्राप्त करवाता है इसको गोरख योगीने बहुत अधिक तप करके प्राप्त किया जो कि आम(साधारण) व्यक्ति के बस की बात नहीं हैऔर फिर गोरख नाथ काल तक ही साधना करके सिद्ध बन गए। मुक्त नहीं हो पाए। जब कबीरसाहिब ने सत्यनाम तथा सार नाम दिया तब काल से छुटकारा गोरख नाथ जी का हुआ। इसीलिएज्योति निरंजन नाम का जाप करने वाले काल जाल से नहीं बच सकते अर्थात् सत्यलोक नहींजा सकते। शब्द ओंकार(ओ3म) का जाप करने से भूंचरी मुद्रा की स्थिति में साधक आ जाताहे। जो कि वेद व्यास ने साधना की और काल जाल में ही रहा। सोहं नाम के जाप से अगोचरीमुद्रा की स्थिति हो जाती है और काल के लोक में बनी भंवर गुफा में पहुँच जाते हैं।जिसकी साधना सुखदेव ऋषि ने की और केवल श्री विष्णु जी के लोक में बने स्वर्ग तकपहुँचा। शब्द रंरकार खैचरी मुद्रा दसमें द्वार(सुष्मणा) तक पहुँच जाते हंै। ब्रह्माविष्णु महेश तीनों ने ररंकार को ही सत्य मान कर काल के जाल में उलझे रहे।शक्ति(श्रीयम्) शब्द ये उनमनी मुद्रा को प्राप्त करवा देता है जिसको राजा जनक नेप्राप्त किया परन्तु मुक्ति नहीं हुई। कई संतों ने पाँच नामों में शक्ति की जगहसत्यनाम जोड़ दिया है जो कि सत्यनाम कोई जाप नहीं है। ये तो सच्चे नाम की तरफ ईशाराहै जैसे सत्यलोक को सच्च खण्ड भी कहते हैं एैसे ही सत्यनाम व सच्चा नाम है। केवलसत्यनाम-सत्यनाम जाप करने का नहीं है। इन पाँच शब्दों की साधना करने वाले नौ नाथतथा चैरासी सिद्ध भी इन्हीं तक सीमित रहे तथा शरीर में (घट में) ही धुनि सुनकरआनन्द लेते रहे। वास्तविक सत्यलोक स्थान तो शरीर (पिण्ड) से (अण्ड) ब्रह्मण्ड सेपार है, इसलिए फिर माता के गर्भ में आए (उलटे लटके) अर्थात् जन्म-मृत्यु का कष्टसमाप्त नहीं हुआ। जो भी उपलब्धि (घट) शरीर में होगी वह तो काल (ब्रह्म) तक की हीहै, क्योंकि पूर्ण परमात्मा का निज स्थान (सत्यलोक) तथा उसी के शरीर का प्रकाश तोपरब्रह्म आदि से भी अधिक तथा बहुत आगे(दूर) है। उसके लिए तो पूर्ण संत ही पूरीसाधना बताएगा जो पाँच नामों (शब्दों) से भिन्न है।
संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत उपदेशदृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै। प्राण पूंज क्रियाओं सेन्यारा, सहज समाधी बतावै।।
घट रामायण के रचयिता आदरणीय तुलसीदास साहेब जी हाथ रस वाले स्वयं कहते हैं कि:- (घट रामायण प्रथम भाग पृष्ठ नं. 27)।
पाँचों नाम काल के जानौ तब दानी मन संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ, आदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ पुरुष दरबारी।।
कबीर, कोटि नाम संसार में , इनसे मुक्ति न हो।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाकोजाने न कोए।।
गुरु नानक जी की वाणी में तीन नाम का प्रमाण:--
पूरा सतगुरु सोए कहावै, दोय अखर का भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणीनिज घर जावै।।
जै पंडित तु पढ़िया, बिना दउ अखर दउ नामा।
परणवत नानक एक लंघाए, जे कर सच समावा।
वेद कतेब सिमरित सब सांसत, इन पढ़ि मुक्ति न होई।।
एक अक्षरजो गुरुमुख जापै, तिस की निरमल होई।।
भावार्थ: गुरु नानक जी महाराज अपनी वाणी द्वारा समाझाना चाहते हैं कि पूरा सतगुरु वही है जो दो अक्षर के जाप के बारे में जानता है। जिनमें एक काल व माया के बंधन से छुड़वाता है और दूसरा परमात्मा को दिखाता है और तीसरा जो एक अक्षर है वो परमात्मा से मिलाता है।
संत गरीबदास जी महाराज की अमृत वाणी में स्वांस के नाम काप्रमाण:--
गरीब, स्वांसा पारस भेद हमारा, जो खोजे सो उतरे पारा।
स्वांसा पारा आदिनिशानी, जो खोजे सो होए दरबानी।
स्वांसा ही में सार पद, पद में स्वांसा सार। दमदेही का खोज करो, आवागमन निवार।।
गरीब, स्वांस सुरति के मध्य है, न्यारा कदेनहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूं, राखो सुरति समोय।।
गरीब, चार पदार्थ उर मेंजोवै, सुरति निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ(नाम), करो इक्तरयार।
द्वादस अन्दर समोय ले, दिल अंदर दीदार।
कबीर, कहता हूं कहि जात हूं, कहूं बजा कर ढोल। स्वांस जो खाली जात है, तीन लोकका मोल।।
कबीर, माला स्वांस उस्वांस की, फेरेंगे निज दास। चैरासी भ्रमे नहीं, कटैं कर्मकी फांस।।
गुरु नानक देव जी की वाणी में प्रमाण:--
चहऊं का संग, चहऊं का मीत, जामै चारि हटावै नित।
मन पवन को राखै बंद, लहेत्रिकुटी त्रिवैणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पवन सच्च खण्डटिकाना।।
पूर्ण सतगुरु वही है जो तीन बार में नाम दे और स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरणका तरीका बताए। तभी जीव का मोक्ष संभव है। जैसे परमात्मा सत्य है। ठीक उसी प्रकारपरमात्मा का साक्षात्कार व मोक्ष प्राप्त करने का तरीका भी आदि अनादि व सत्य है जोकभी नहीं बदलता है। गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में कहते हैं:
भक्ति बीज पलटै नहीं, युग जांही असंख। सांई सिर पर राखियो, चैरासी नहींशंक।।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट। समझों का मार्ग एक है, मूर्ख बारहबाट।।
कबीर भक्ति बीज पलटै नहीं, आन पड़ै बहु झोल। जै कंचन बिष्टा परै, घटै न ताकामोल।।
बहुत से महापुरुष सच्चे नामों के बारे में नहीं जानते। वे मनमुखी नाम देते हैंजिससे न सुख होता है और न ही मुक्ति होती है। कोई कहता है तप, हवन, यज्ञ आदि करो वकुछ महापुरुष आंख, कान और मुंह बंद करके अन्दर ध्यान लगाने की बात कहते हैं जो कियह उनकी मनमुखी साधना का प्रतीक है। जबकि कबीर साहेब, संत गरीबदास जी महाराज, गुरुनानक देव जी आदि परम संतों ने सारी क्रियाओं को मना करके केवल एक नाम जाप करने कोही कहा है।
एक नैसत्रो दमस नामक भविष्य वक्ता था। जिसकी सर्व भविष्य वाणियां सत्य हो रहीहैं जो लगभग चार सौ वर्ष पूर्व लिखी व बोली गई थी। उसने कहा है कि सन् 2006 में एकहिन्दू संत प्रकट होगा अर्थात् संसार में उसकी चर्चा होगी। वह संत न तो मुसलमानहोगा, न वह इसाई होगा वह केवल हिन्दू ही होगा। उस द्वारा बताया गया भक्ति मार्गसर्व से भिन्न तथा तथ्यों पर आधारित होगा। उसको ज्ञान में कोई पराजित नहीं करसकेगा। सन् 2006 में उस संत की आयु 50 व 60 वर्ष के बीच होगी। (संत रामपाल जीमहाराज का जन्म 8 सितम्बर सन् 1951 को हुआ। जुलाई सन् 2006 में संत जी की आयु ठीक 55 वर्ष बनती है जो भविष्यवाणी अनुसार सही है।) उस हिन्दू संत द्वारा बताए गए ज्ञानको पूरा संसार स्वीकार करेगा। उस हिन्दू संत की अध्यक्षता में सर्व संसार में भारतवर्ष का शासन होगा तथा उस संत की आज्ञा से सर्व कार्य होंगे। उसकी महिमा आसमानों सेऊपर होंगी। नैसत्रो दमस द्वारा बताया सांकेतिक संत रामपाल जी महाराज हैं जो सन् 2006 में विख्यात हुए हैं। भले ही अनजानों ने बुराई करके प्रसिद्ध किया है परंतुसंत में कोई दोष नहीं है।
उपरोक्त लक्षण जो बताए हैं ये सभी तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज में विद्यमानहैं।
“कौन तथा कैसा है कुल का मालिक?”
जिन-जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि कुल कामालिक एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं।परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी-अपनी भाषाओं में कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषामें) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठ नं. 721 पर क्षेत्राीय भाषामें) तथा सत् कबीर (श्रीधर्मदास जी की वाणी में क्षेत्राीय भाषा में) तथा बन्दी छोड़कबीर (सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्रीय भाषा में) कबीरा, कबीरन् व खबीराया खबीरन् (श्री र्कुआन शरीफ़ सूरत फुर्कानि नं. 25, आयत नं. 19, 21, 52, 58, 59 मेंक्षेत्राीय अरबी भाषा में)। इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष, अगमपुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परमअक्षर ब्रह्म आदि हैं, जैसे देश के प्रधानमंत्राी का वास्तविक शरीर का नाम कुछ औरहोता है तथा उपमात्मक नाम प्रधान मंत्री जी, प्राइम मिनिस्टर जी अलग होता है। जैसेभारत देश का प्रधानमंत्री जी अपने पास गृह विभाग रख लेता है। जब वह उस विभाग केदस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करता है तो वहाँ गृहमंत्री की भूमिका करता है तथा अपनापद भी गृहमन्त्री लिखता है, हस्त्ताक्षर वही होते हैं। इसी प्रकार ईश्वरीय सत्ता कोसमझना है।
जिन सन्तों व ऋषियों को परमात्मा प्राप्ति नहीं हुई, उन्होंने अपना अन्तिम अनुभवबताया है कि प्रभु का केवल प्रकाश देखा जा सकता है, प्रभु दिखाई नहीं देता क्योंकिउसका कोई आकार नहीं है तथा शरीर में धुनि सुनना आदि प्रभु भक्ति की उपलब्धि है।
आओ विचार करें - जैसे कोई अंधा अन्य अंधों में अपने आपको आँखों वाला सिद्ध किएबैठा हो और कहता है कि रात्राी में चन्द्रमा की रोशनी बहुत सुहावनी मन भावनी होतीहै, मैं देखता हूँ। अन्य अन्धे शिष्यों ने पूछा कि गुरु जी चन्द्रमा कैसा होता है।चतुर अन्धे ने उत्तर दिया कि चन्द्रमा तो निराकार है वह दिखाई थोड़े ही दे सकता है।कोई कहे सूर्य निराकार है वह दिखाई नहीं देता रवि स्वप्रकाशित है इसलिए उसका केवलप्रकाश दिखाई देता है। गुरु जी के बताये अनुसार शिष्य 2) घण्टे सुबह तथा 2) घण्टेशाम आकाश में देखते हैं। परन्तु कुछ दिखाई नहीं देता। स्वयं ही विचार विमर्श करतेहैं कि गुरु जी तो सही कह रहे हैं, हमारी साधना पूरी 2) घण्टे सुबह शाम नहीं होपाती। इसलिए हमंे सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा। चतुर गुरु जी कीव्याख्या पर आधारित होकर उस चतुर अन्धे(ज्ञान नेत्रा हीन) की व्याख्या के प्रचारककरोड़ों अंधे (ज्ञाननेत्रा हीन) हो चुके हैं। फिर उन्हें आँखों वाला (तत्वदर्शीसन्त) बताए कि सूर्य आकार में है और उसी से प्रकाश निकल रहा है। सूर्य बिना प्रकाशकिसका देखा? इसी प्रकार चन्द्रमा से प्रकाश निकल रहा है नेत्राहीनों! चन्द्रमा केबिना रात्राी में प्रकाश कैसे हो सकता है? जैसे कोई कहे कि ट्यूब लाईट देखी, फिरकोई पूछे कि ट्यूब कैसी होती है जिसकी आपने रोशनी देखी है? उत्तर मिले कि ट्यूब तोनिराकार होने के कारण दिखाई नहीं देती। केवल प्रकाश देखा जा सकता है। विचार करें:-ट्यूब बिना प्रकाश कैसा?
यदि कोई कहे कि हीरा स्वप्रकाशित होता है। फिर यह भी कहे कि हीरे का केवल प्रकाशदेखा जा सकता है, क्योंकि हीरा तो निराकार है, वह दिखाई थोड़े ही देता है, तो वहव्यक्ति हीरे से परिचित नहीं है। फोकट जौहरी बना है। जो परमात्मा को निराकार कहतेहैं तथा केवल प्रकाश देखना तथा धुनि सुनना ही प्रभु प्राप्ति मानते हैं वे पूर्णरूप से प्रभु तथा भक्ति से अपरिचित हैं। जब उनसे प्रार्थना की कि कुछ नहीं देखा हैतुमने, अपने अनुयाईयों को भ्रमित करके दोषी हो रहे हो। न तो आपके गुरुदेव केतत्वज्ञान रूपी नेत्रा हैं तथा न ही आपके, दुनियाँ को भ्रमित मत करो। इस बात परसर्व अन्धों (ज्ञान नेत्रा हीनों) ने उठा लिए लट्ठ कि हम तो झूठे, तूं एक सच्चा। आजवही स्थिति मुझ दास(रामपाल दास) के साथ है।
प्रश्न:- इस बात का निर्णय कैसे हो कि किस सन्त के विचार ठीक है किसके गलत हैं?
उत्तर:- मान लिजिए जैसे किसी अपराध के विषय में पाँच वकील अपना-अपना विचारव्यक्त कर रहे हैं। एक कहे कि इस अपराध पर संविधान की धारा 301 लगेगी, दूसरा कहे 302, तीसरा कहे 304, चैथा कहे 306 तथा पाँचवां वकील 307 को सही बताए।
ये पाँचों ठीक नहीं हो सकते। केवल एक ही ठीक हो सकता है यदि उसकी व्याख्या अपनेदेश के पवित्रा संविधान से मिलती है। यदि उसकी व्याख्या भी संविधान के विपरीत है तोपाँचों वकील गलत हैं। इसका निर्णय देश का पवित्रा संविधान करेगा जो सर्व को मान्यहोता है। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न विचारधाराओं में तथा साधनाओं में से कौन-सीशास्त्रा अनुकूल है या कौन-सी शास्त्रा विरुद्ध है? इसका निर्णय पवित्रा सद्ग्रन्थही करेंगे, जो सर्व को मान्य होना चाहिए (यही प्रमाण पवित्रा श्रीमद्भगवत गीताअध्याय 16 श्लोक 23-24 में)।
प्रश्न:- कुछेक शास्त्राविधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करने वाले हठ योग के आधार से घण्टों एक स्थान पर बैठकर ध्यान करके बताते हैं कि हमें प्रकाश दिखाई देता है। वह क्या है?
उत्तर:- जैसे सूर्य का प्रकाश तालाब में गिरा तालाब के जल से प्रकाश काप्रतिबिम्ब दिवार पर बन जाता है। दिवार पर सूर्य नहीं दिखाई देता केवल मन्दा.2 प्रकाश दिखाई देता है। वह सूर्य नहीं है तथा न ही उसका पूर्ण प्रकाश है। उसको देखकर जो कहता है कि सूर्य का प्रकाश देखा परन्तु सूर्य नहीं है निराकार है तो वह नशाकिए हुऐ है या मन्दबुद्धि है। इसी प्रकार अधूरे ज्ञान के आधार पर तत्वज्ञान रहितसन्त तथा उनके अनुयाई कहते हैं परमात्मा निराकार है केवल प्रकाश ही देखा जा सकताहै। पूर्ण परमात्मा (सतपुरूष)साकार है उसकाशरीर मानव सदृश प्रकाशमय है। उसका प्रकाशअन्य ब्रह्मण्डों प्रतिबिम्ब रूप में दृष्टिगोचर है। जो ब्रह्मण्ड में गिर रहा है।उस प्रतिबिम्ब को देखकर व्याख्या की जा रही है कि परमात्मा का प्रकाश देखा परन्तुपरमात्मा निराकार है वह दिखाई नहीं देता। जब पूर्ण साधना शास्त्राविधि अनुसार कीजाती है तो उस से साधक की दिव्यदृष्टि खुल कर पूर्ण परमात्मा के प्रकाशमय शरीर केदर्शन होते हैं। परमात्मा मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है जो कहते है कि परमात्माका प्रकाश देखा तो भी प्रकाश परमात्मा नहीं हुआ। क्योंकि सर्व सद्ग्रन्थों में लिखाहै कि परमात्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। परमात्मा की प्राप्ति से परमशान्ति होतीहै। जैसे कोई कहे कि हलवा (कड़हा) प्रसाद की महक आ रही है महक हलवा (कड़हा) प्रसादनहीं है। महक से पेट नहीं भरता तथा न ही हलवे का स्वाद आता है। यह तो हलवा खाने सेही बात बनेगी। इसलिए जो कहते है कि परमात्मा का प्रकाश देखा वे परमात्मा के लाभ सेहलवे की तरह वंचित है। उनसे प्रार्थना है कि उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधिमुझ दास (रामपाल दास) के पास है। निःशुल्क प्राप्त करें।
जिन आँखों वालों (पूर्ण सन्तों) ने चन्द्रमा (पूर्ण परमात्मा) को देखा परमात्मापाया उन में से कुछ के नाम हैं:-
(क) आदरणीय धर्मदास साहेब जी (ख) आदरणीय दादू साहेब जी (ग) आदणीय मलूक दास साहेबजी (घ) आदरणीय गरीबदास साहेब जी (ड़) आदरणीय नानक साहेब जी (च) आदरणीय घीसा दाससाहेब जी आदि। www.jagatgururampalji.org
Share




Recommended section

मनुष्य का कामुक होना चाल है प्रकृति की

गुड़ के इस्तेमाल से बढ़ाएं लम्बाई

इच्छाओं और वासनाओं से लड़ने की कोशिश न करें

हमें प्रभु के और करीब लाता है संगीत और मंत्रजाप

दरिद्रता और बदहाली लाता है शनि-चंद्र से बना विष योग
Popular section

पेट होगा अंदर, कमर होगी छरहरी अगर अपनायेंगे ये सिंपल नुस्खे

एक ऋषि की रहस्यमय कहानी जिसने किसी स्त्री को नहीं देखा, किंतु जब देखा तो...

किन्नरों की शव यात्रा के बारे मे जानकर हैरान हो जायेंगे आप

कामशास्त्र के अनुसार अगर आपकी पत्नी में हैं ये 11 लक्षण तो आप वाकई सौभाग्यशाली हैं

ये चार राशियां होती हैं सबसे ताकतवर, बचके रहना चाहिए इनसे
Go to hindi.speakingtree.in
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment