Search for: Search … Search Home आयुर्वेद सौन्दर्य स्वास्थ्य महत्वपूर्ण संग्रह लाइफस्टाइल रोचक बातें Sitemap   Home feature post कुण्डलिनी शक्ति आसन FEATURE POST योग के फायदे योगा कुण्डलिनी शक्ति आसन By sabkuchgyan Posted on May 19, 201642 second read0 0 1 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Linkedin Share on Tumblr   कुण्डलिनी शक्ति आसन, यह रीढ की हड्डी के आखिरी हिस्से के चारों ओर साढे तीन आँटे लगाकर कुण्डली मारे सोए हुए सांप की तरह सोई रहती है। इसीलिए यह कुण्डलिनी कहलाती है। जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है तो यह सहस्त्रार में स्थित अपने स्वामी से मिलने के लिये ऊपर की ओर उठती है। जागृत कुण्डलिनी पर समर्थ सद्गुरू का पूर्ण नियंत्रण होता है, वे ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते हैं। गुरुकृपा रूपी शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर 6 चक्रों का भेदन करती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है। कुण्डलिनी द्वारा जो योग करवाया जाता है उससे मनुष्य के सभी अंग पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। साधक का जो अंग बीमार या कमजोर होता है मात्र उसी की यौगिक क्रियायें ध्यानावस्था में होती हैं एवं कुण्डलिनी शक्ति उसी बीमार अंग का योग करवाकर उसे पूर्ण स्वस्थ कर देती है। इससे मानव शरीर पूर्णतः रोगमुक्त हो जाता है तथा साधक ऊर्जा युक्त होकर आगे की आध्यात्मिक यात्रा हेतु तैयार हो जाता है। शरीर के रोग मुक्त होने के सिद्धयोग ध्यान के दौरान जो बाह्य लक्षण हैं उनमें यौगिक क्रियाऐं जैसे दायं-बायें हिलना, कम्पन, झुकना, लेटना, रोना, हंसना, सिर का तेजी से धूमना, ताली बजाना, हाथों एवं शरीर की अनियंत्रित गतियाँ, तेज रोशनी या रंग दिखाई देना या अन्य कोई आसन, बंध, मुद्रा या प्राणायाम की स्थिति आदि मुख्यतः होती हैं । प्राणायाम से केवल कुण्डलिनी शक्ति ही जागृत ही नहीं होती बल्कि इससे अनेकों लाभ भी प्राप्त होते हैं। ´योग दर्शन´ के अनुसार प्राणायाम के अभ्यास से ज्ञान पर पड़ा हुआ अज्ञान का पर्दा नष्ट हो जाता है। इससे मनुष्य भ्रम, भय, चिंता, असमंजस्य, मूल धारणाएं और अविद्या व अन्धविश्वास आदि नष्ट होकर ज्ञान, अच्छे संस्कार, प्रतिभा, बुद्धि-विवेक आदि का विकास होने लगता है। इस साधना के द्वारा मनुष्य अपने मन को जहां चाहे वहां लगा सकता है। प्राणायाम के द्वारा मन नियंत्रण में रहता है। इससे शरीर, प्राण व मन के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं। इससे शारीरिक क्षमता व शक्ति का विकास होता है। प्राणायाम के द्वारा प्राण व मन को वश में करने से ही व्यक्ति आश्चर्यजनक कार्य को कर सकने में समर्थ होता है। प्राणायाम आयु को बढ़ाने वाला, रोगों को दूर करने वाला, वात-पित्त-कफ के विकारों को नष्ट करने वाला होता है। यह मनुष्य के अन्दर ओज-तेज और आकर्षण को बढ़ाता है। यह शरीर में स्फूर्ति, लचक, कोमल, शांति और सुदृढ़ता लाता है। यह रक्त को शुद्ध करने वाला है, चर्म रोग नाशक है। यह जठराग्नि को बढ़ाने वाला, वीर्य दोष को नष्ट करने वाला होता है। कुण्डलिनी शक्ति को जागरण के अनेक प्राणायाम- कुण्डलिनी शक्ति के जागरण के लिए अनेक प्रकार के प्राणायामों को बनाया गया है- ये प्राणायाम है- भस्त्रिका कपाल भांति सूर्यभेदी निबन्ध रेचक वायवीय कुम्भक प्राणायाम संयुक्त इन प्राणायामों के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति का जागरण किया जाता है। ध्यान रखें कि इन प्राणायामों का अभ्यास किसी योग गुरू की देखरेख में ही करना चाहिए। योग गुरू की देखरेख में प्राणायाम का अभ्यास करें ताकि वह आपके शरीर के स्वभाव, रूचि, आयु, समय, मौसम आदि को देखते हुए आप को उसी के अनुसार प्राणायाम का अभ्यास करने की सलाह दें। प्राणायाम में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त कर चुके व्यक्ति ही आपको प्राणायाम को आरम्भ में कितनी बार करना चाहिए व कैसे करना चाहिए और किस गति से अभ्यास को बढ़ाना चाहिए। इन सभी चीजों को बता पाएंगे। कुण्डलिनी जागरण के लिए प्राणायाम- प्राणायाम के लिए सिद्धासन में बैठ जाए। बाएं पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी को दाईं ओर गुदा और अंडकोष के बीच जांघ से सटाकर रखें। इसी तरह बाएं पैर को भी घुटने से मोड़कर बाईं ओर गुदा और अंडकोष के बीच जांघ से सटाकर रखें। इसके बाद बाएं पैर के अंगूठे और तर्जनी को बांई जांघ और पिंडली के बीच में रखें। इस तरह दाएं पैर के अंगूठे और तर्जनी को भी बाईं जांघ और पिंडली के बीच में रखें। आसन की इस स्थिति में शरीर का पूरा भार एड़ी और सिवनी पर होना चाहिए। पूर्ण रूप से आसन बनने के बाद अपने दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के दाएं छिद्र को बन्द कर दें और बाएं छिद्र से अन्दर के वायु को बाहर निकाल दें (रेचन करें)। पूर्ण रूप से सांस (वायु) को बाहर निकालने के बाद पुन: बाएं छिद्र से ही सांस (वायु) को अन्दर खींचें। फिर अन्दर के वायु को दाएं छिद्र से बाहर निकाल दें (रेचन करें)। इस तरह इस क्रिया का कई बार अभ्यास करें। ध्यान रखें कि सांस बाहर निकालते समय जालन्धर बंध, मूलबंध व उडि्डयान बंध मजबूती से लगते हुए दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें और अपने ध्यान को नाक के अगले भाग पर केन्द्रित करें।  झुर्रियों और लटकती त्वचा से मुक्ति! एक बेजोड़ प्रोडक्ट मौजूद है...  मैंने बड़ी बड़ी झुर्रियों से भी निजात पा ली! 15 साल गायब!  मैं 15 साल छोटी दिखती हूँ! झुर्रियाँ अगले ही दिन गायब, मैं लगाती हूँ बस ये ..  जापानी औरत ने अपनी जवानी का राज़ खोला! ये 70 की होकर भी 40 की दिखती है!  जवान दिखें! 2 दिनों में सभी झुर्रियाँ चली जाएँगी यदि सोने के 3 घंटे पहले...  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