Thursday, 19 October 2017

संत सावता माली

Skip to content Menu Menu बालसंस्कार हिंदी > इतिहासके सुनहरे पृष्ठ ! > संत > संत सावता माली संत सावता माली May 7, 2013 संत सावता माली संत ज्ञानदेवके समयके एक प्रसिद्ध संत थे । उनका जन्म इ. स. १२५० का है तथा उन्होंने इ. स. १२९५ में देह त्यागी । अरण-भेंड यह सावतोबाका गांव है । सावता मालीके दादाजीका नाम देवु माली था, वे पंढरपुरके वारकरी थे ।उनके पिता पूरसोबा तथा माता धार्मिक वृत्तिके थे, पूरसोबा खेतीके व्यवसायके साथ ही भजन-पूजन करते । पंढरपुरकी वारी करते । कर्म करते रहना यही खरी ईश्वर सेवा है एसी सीख सावता मालीने दी । वारकरी संप्रदायके एक ज्येष्ठ संतके रूपमें उनकी कीर्ति है । वे विट्ठलके परम भक्त थे । वे कभी भी पंढरपुर नहीं गए । ऐसा कहा जाता है कि स्वयं विट्ठल ही उनसे मिलने उनके घर जाते थे । प्रत्यक्ष पांडूरंग ही उनसे मिलने आए । वे कर्ममार्गी संत थे । उन्होंने अध्यात्म तथा भक्ति, आत्मबोध तथा लोकसंग्रह, कर्तव्य तथा सदाचारका हूबहू संबंध जोडा । उनका ऐसा विचार था कि ईश्वरको प्रसन्न करना हो तो जप, तपकी आवश्यकता नहीं तथा कहीं भी दूर तीर्थयात्राके लिए जानेकी आवश्यकता नहीं; केवल अंत:करणसे ईश्वरका चिंतन करने तथा श्रद्धा हो तो ईश्वर प्रसन्न होते हैं एवं दर्शन देते हैं । सावता मालीने ईश्वरके नामजपपर अधिक बल दिया । ईश्वरप्राप्तिके लिए संन्यास लेने अथवा सर्वसंगपरित्याग करनेकी आवश्यकता नहीं है । प्रपंच करते समय भी ईश्वर प्राप्ति हो सकती है ऐसा कहनेवाले सावता महाराजजीने अपने बागमें ही ईश्वरको देखा । कांदा मुळा भाजी । अवघी विठाबाई माझी ।। लसूण मिरची कोथिंबिरी । अवघा झाला माझा हरी ।। सावता महाराजजीने पांडूरंगको छुपानेके लिए खुरपीसे अपनी छाती फाडकर बालमूर्ति ईश्वरको हृदयमें छुपाकर ऊपर उपरनेसे बांधकर भजन करते रहे । आगे संत ज्ञानेश्वर एवं नामदेव पांडूरंगको ढूंढते सावता महाराजजीके पास आए, तब उनकी प्रार्थनाके कारण पांडूरंग सावतोबाकी छातीसे निकले । ज्ञानेश्वर एवं नामदेव पांडूरंगके दर्शनसे धन्य हो गए । सावता महाराज कहते हैं – भक्तिमें ही खरा सुख तथा आनंद है । वहीं विश्रांति है । सांवता म्हणे ऐसा भक्तिमार्ग धरा । जेणे मुक्ती द्वारा ओळंगती ।। Categories संत Post navigation संत सावता माली श्री वासुदेवानंद सरस्वती (१८५४-१९१४) Share this on : TwitterFacebookGoogle +Whatsapp Related News संत निवृत्तीनाथश्री गाडगे महाराज (इ.स. १८७६-१९५६)श्रीपाद श्रीवल्लभश्रीवल्लभाचार्यश्री स्वामी समर्थ !श्री वासुदेवानंद सरस्वती (१८५४-१९१४) Browse Categories Browse Categories हमारे विषय में हिंदू जनजागृति समिति की स्थापना ७ अक्टूबर २००२ को धर्माधिष्ठित अर्थात धर्म पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से की गई | तब से आज तक हिंदू जनजागृति समिति धर्मशिक्षा, धर्मजागृति, धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा और हिन्दू-संगठन, यह पांचसूत्री उपक्रम सफलतापूर्वक चला रही है | Follow Us संपर्क contact [at] hindujagruti [dot] org © 2014 Hindu Janajagruti Samiti - All Rights Reserved

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