Thursday, 19 October 2017

श्री गाडगे महाराज (इ.स. १८७६-१९५६)

Skip to content Menu Menu बालसंस्कार हिंदी > इतिहासके सुनहरे पृष्ठ ! > संत > श्री गाडगे महाराज (इ.स. १८७६-१९५६) श्री गाडगे महाराज (इ.स. १८७६-१९५६) May 30, 2013 श्री डेबूजी झिंगराजी उर्फ गाडगे महाराजजीका जन्म विदर्भके कोते नामक गांवमें हुआ था । वे धोबी समाजके थे । गाडगे महाराजने अपनी आयुके आठवें वर्षसे अपने घरकी विपन्न/संकटग्रस्त परिस्थितिका, अपने समाजके पिछडेपनका, समाजके अनपढ होनेका निरीक्षण किया । महाराजजीने स्वयंके अपरिमित परिश्रमसे अपने मामाकी खेतीको लहलहाकर अज्ञान, दरिद्रता, अंधश्रद्धावाले अपने समाजके समक्ष अपने परिश्रमका आदर्श रखा । गाडगे महाराज कठोर परिश्रम कर जीवन व्यतीत कर रहे थे । एक दिन एक जटाधारी तेजस्वी योगीने खेतमें आकर उन्हें प्रसाद दिया । रातभर श्मशानमें बिठाकर गाडगे महाराजको उन्होंने अपनी पारमार्थिक साधना दी । गाडगे महाराजको उन जटाधारी योगी सत्पुरुषने देवीदास कहकर संबोधित किया । एक दिन रात्रिके समय जब सभी नींदमें थे, वे सर्वस्वका त्याग कर चले गए । गाडगे महाराजजीने बारह वर्ष अज्ञातवासमें व्यतीत किए । उसके पश्चात अपना तन, मन, धन जनसेवामें लगानेके लिए जनकल्याण हेतु उन्होंने कठोर तप किया । उस कालमें गाडगे महाराजजीने कदान्नका सेवन कर चिथडे ओढकर, मस्तकपर मटका धारण कर देहश्रमकी परिसीमा की । लोग आदरपूर्वक उन्हें गाडगे महाराजके नामसे पुकारने लगे । जनजीवन तेजसे चमकनेके लिए हाथमें झाडू लेकर गांवके रास्ते झाडते हुए वे संपूर्ण महाराष्ट्रमें घूमे । विवेककी झाडूसे गांवगांव घूमकर उन्होंने लोगोंके मन स्वच्छ किए । गांवगांव, शहरशहर जाकर कीर्तन किए । गाडगे महाराजजीने लागोंको शिक्षाका महत्वसमझाया । साक्षरताका प्रचार किया । गाडगे महाराज अर्थात जनजागृति करनेवाले एक चलता-फिरता विद्यापीठ थे । गाडगेमहाराज अधिक पढेलिखे नहीं थे; परंतु संतोंके अभंग उन्हें मुखाग्र थे । ‘गोपाला गोपाला देवकी नंदन गोपाला' ऐसा गजर कर तुरंत हरिपाठ गाते । गाडगे महाराजजीका कीर्तन सुननेके लिए लोग दूरदूरसे आते थे । गाडगे महाराजजीने पंढरपुर, देहू, आलंदी, नासिक, मुंबईमें धर्मशालाएं बनवार्इं । जनकल्याणके अनेक कार्य उन्होंने यशस्वी रूपसे किए । उन्होंनें अपना जीवन वैरागी एवं धर्मशील वृत्तिसे व्यतीत किया । उनके यहां जाति, धर्म तथा वर्णमें भेद नहीं था । वे समानताके पुरस्कर्ता थे । उनके अंतःकरणमें जनकल्याणकी अटूट भावना थी । लोगोंने उन्हें संत मानकर उनकी भक्ति की । सामान्य लोगोंके लिए उन्होंने बहुत कार्य किया । अंत समय अमरावतीमें उन्होंने अपनी देहका त्याग किया । महाराजजीने विश्व-कल्याण हेतु अपने जीवनमें बहुत कष्ट उठाएं । अपने कर्तृत्वसे वे वंदनीय बने । Categories संत Post navigation गोवर्धन पर्वत भगवान श्रीराम भवसागर पार करानेवाले खेवनहार ! Share this on : TwitterFacebookGoogle +Whatsapp Related News संत निवृत्तीनाथश्रीपाद श्रीवल्लभश्री वासुदेवानंद सरस्वती (१८५४-१९१४)श्रीवल्लभाचार्यश्री स्वामी समर्थ !संत सावता माली Browse Categories Browse Categories हमारे विषय में हिंदू जनजागृति समिति की स्थापना ७ अक्टूबर २००२ को धर्माधिष्ठित अर्थात धर्म पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से की गई | तब से आज तक हिंदू जनजागृति समिति धर्मशिक्षा, धर्मजागृति, धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा और हिन्दू-संगठन, यह पांचसूत्री उपक्रम सफलतापूर्वक चला रही है | Follow Us संपर्क contact [at] hindujagruti [dot] org © 2014 Hindu Janajagruti Samiti - All Rights Reserved

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