Tuesday, 30 May 2017

हरीश ब्रह्म

हरसू ब्रह्मधाम में भूत-प्रेत बाधा से मिलती मुक्ति Thu Nov 17 16:54:21 IST 2011  जाटी,भभुआ,चैनपुर (कैमूर) इस अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग में भी असंख्य लोग भूत-प्रेत बाधा में विश्वास करते है। मुक्ति पाने के लिए हरसू ब्रह्म धाम में आकर मत्था टेकते है। इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है। प्रेत बाधा से ग्रसित श्रद्धालु आम तौर पर शारदीय चैत्र नवरात्र में यहां आते हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोगों को भी लोग प्रेत बाधा मानकर हरसू ब्रह्म धाम में आकर त्राण पाते हैं। यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। क्षेत्र के जानकार बताते है चैत नवरात्र में यहां भूत-प्रेतों का मेला लगता है। इसीलिए हरसू ब्रह्म धाम को भूतों का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है। इस शीर्ष अदालत में सभी को न्याय मिलता है। प्रेत बाधा से पीड़ित लोग यहां आते है और हरसू ब्रह्म की अपार महिमा से खुश और संतुष्ट होकर लौटते है। भूत पिशाच से पीड़ित महिला और पुरुष दोनों होते है। हरसू ब्रह्म धाम के पंडा राजकेश्वर त्रिपाठी ने बताया कि इस अलौकिक धाम में न सिर्फ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल और महाराष्ट्र से बल्कि अमेरिका, सूरिनाम और कनाडा के भी अप्रवासी भारतीय आते है और मत्था टेकते है। यहां आने से न सिर्फ उनकी प्रेत बाधाएं दूर होती है बल्कि उनकी मनवांछित मनोकामना भी पूरी होती है। त्रिपाठी ने बताया कि अमेरिका में रहने वाले इंजीनियर केएच बनर्जी की पत्‍‌नी को कैंसर था,हरसू ब्रह्म धाम में आने से उनको लाभ मिला। जौनपुर के रहने वाले एसके पांडेय सूरिपनाम में रहते हैं और हर साल चैत नवरात्र में दर्शन-पूजन को आते हैं। महाराष्ट्र निवासी डा. अरुण नायक कनाडा में रहते हैं और पटना निवासी डा. राजीव श्रीवास्तव इंगलैंड में रहते हैं। लेकिन चैत नवरात्र या शारदीय नवरात्र में हरसू ब्रह्म धाम में मत्था टेकने आने से नहीं चूकते। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले से आये श्रद्धालु राजबली यादव ने बताया कि 35 वर्षीय पत्‍‌नी बीमा देवी भूत प्रेत से ग्रसित थी। इसको साथ लेकर एक साल से यहां आ रहा हूं। काफी लाभ हुआ है। सुल्तानपुर से ही आए हरिशचन्द्र ने बताया कि हम चार साल से बाबा के धाम में आ रहे हैं। भूत बाधा से परेशान हैं,लेकिन यहां आने पर बहुत शांति मिली। विश्वास है पूर्ण निवारण हो जाएगा। हरसू ब्रह्म धाम के एक अन्य पुजारी ने बताया कि भूत-प्रेत,संतानोत्पत्ति, पागलपन और कुष्ट सहित अन्य असाध्य बाधाओं से पीड़ित लोग शांति और निवारण के लिए यहां आते है। प्रेत बाधा पीड़ितों को हर सोमवार को व्रत रखना पड़ता है। हरसू ब्रह्म इस घोर कलिकाल में भगवान शंकर के साक्षात अवतार माने जाते है। मुगल शासन के अंत के बाद हरसू ब्रह्म धाम के बारे में प्रचार-प्रसार हुआ।

गायत्री माता

गायत्री   गायत्री एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- गायत्री (बहुविकल्पी) भगवती श्री गायत्री  गायत्री देवी Gayatri Devi भगवती गायत्री आद्याशक्ति प्रकृति के पाँच स्वरूपों में एक मानी गयी हैं। इनका विग्रह तपाये हुए स्वर्ण के समान है। यही वेद माता कहलाती हैं। वास्तव में भगवती गायत्री नित्यसिद्ध परमेश्वरी हैं। किसी समय ये सविता की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं, इसलिये इनका नाम सावित्री पड़ गया। कहते हैं कि सविता के मुख से इनका प्रादुर्भाव हुआ था। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया। तभी से इनकी ब्रह्माणी संज्ञा हुई। कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। इन्होंने ही प्राणों का त्राण किया था, इसलिये भी इनका गायत्री नाम प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों में भी गायत्री और सावित्री की अभिन्नता का वर्णन है- गायत्रीमेव सावित्रीमनुब्रूयात्। गायत्री ज्ञान-विज्ञान की मूर्ति हैं। ये द्विजाति मात्र की आराध्या देवी हैं। इन्हें परब्रह्मस्वरूपिणी कहा गया है। वेदों, उपनिषदों और पुराणादि में इनकी विस्तृत महिमा का वर्णन मिलता है।  उपासना गायत्री की उपासना तीनों कालों में की जाती है, प्रात: मध्याह्न और सायं। तीनों कालों के लिये इनका पृथक्-पृथक् ध्यान है। प्रात:काल ये सूर्यमण्डल के मध्य में विराजमान रहती है। उस समय इनके शरीर का रंग लाल रहता है। ये अपने दो हाथों में क्रमश: अक्षसूत्र और कमण्डलु धारण करती हैं। इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है। इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है। मध्याह्न काल में इनका युवा स्वरूप है। इनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। इनके चारों हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म शोभा पाते हैं। इनका वाहन गरूड है। गायत्री का यह स्वरूप वैष्णवी शक्ति का परिचायक है। इस स्वरूप को सावित्री भी कहते हैं। इसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है। सायं काल में गायत्री की अवस्था वृद्धा मानी गयी है। इनका वाहन वृषभ है तथा शरीर का वर्ण शुक्ल है। ये अपने चारों हाथों में क्रमश: त्रिशूल, डमरू, पाश और पात्र धारण करती हैं। यह रुद्र शक्ति की परिचायिका हैं इसका वर्णन सामवेद में प्राप्त होता है। ब्रह्मस्वरूपा गायत्री  गायत्री तपोभूमि, मथुरा Gayatri Tapobhumi, Mathura इस प्रकार गायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- 'जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है। गायत्री-मन्त्र ऋक्, यजु, साम, काण्व, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है, किन्तु सर्वत्र एक ही मिलता है। इसमें चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है- ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।[1] अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध वरण करने योग्य तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें। गायत्री भाष्य याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों ने जिस गायत्री भाष्य की रचना की है वह इन चौबीस अक्षरों की विस्तृत व्याख्या है। इस महामन्त्र के द्रष्टा महर्षि विश्वामित्र हैं। गायत्री-मन्त्र के चौबीस अक्षर तीन पदों में विभक्त हैं। अत: यह त्रिपदा गायत्री कहलाती है। गायत्री दैहिक, दैविक, भौतिक त्रिविध तापहन्त्री एवं परा विद्या की स्वरूपा हैं। यद्यपि गायत्री के अनेक रूप हैं। परन्तु शारदातिलक के अनुसार इनका मुख्य ध्यान इस प्रकार है- भगवती गायत्री के पाँच मुख हैं, जिन पर मुक्ता, वैदूर्य, हेम, नीलमणि तथा धवल वर्ण की आभा सुशोभित है, त्रिनेत्रों वाली ये देवी चन्द्रमा से युक्त रत्नों का मुकुट धारण करती हैं तथा आत्मतत्त्व की प्रकाशिका हैं। ये कमल के आसन पर आसीन होकर रत्नों के आभूषण धारण करती हैं। इनके दस हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, कमलयुग्म, वरद तथा अभयमुद्रा, कोड़ा, अंकुश, शुभ्र कपाल और रुद्राक्ष की माला सुशोभित है। ऐसी भगवती गायत्री का हम भजन करते हैं।  इन्हें भी देखें: गायत्री मन्त्र, गायत्री चालीसा एवं गायत्री माता की आरती

शीतला माता

मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें शीतला देवी  शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।[1] शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।[2] शीतला माता  शीतला माता चेचक संबंधित शक्ति अवतार अस्त्र-शस्त्र कलश, सूप, झाड़ू, नीम के पत्ते जीवनसाथी शिव वाहन गर्दभ द वा ब स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है: “ वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। „ अर्थात गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।[3] मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।[1] श्री शीतला चालीसा संपादित करें  अगम कुआं, पटना, बिहार स्थित शीतला माता मंदिर  दोहा जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥ घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥ चालीसा जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी ॥ गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥ विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥ मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा ॥ शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥ सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥ चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥ नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार ना पावै ॥ धन्य धन्य भात्री महारानी। सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥ ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥ हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥ हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥ तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥ विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥ बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥ अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥ पूजन पाठ मातु जब करी है। भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥ अब भगतन शीतल भय जै हे। विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥ श्री शीतल ही बचे कल्याना। बचन सत्य भाषे भगवाना ॥ कलश शीतलाका करवावै। वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥ विस्फोटक भय गृह गृह भाई। भजे तेरी सह यही उपाई ॥ तुमही शीतला जगकी माता। तुमही पिता जग के सुखदाता ॥ तुमही जगका अतिसुख सेवी। नमो नमामी शीतले देवी ॥ नमो सूर्य करवी दुख हरणी। नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥ नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥ श्री शीतला शेखला बहला। गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥ मात शीतला तुम धनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी ॥ राघव खर बैसाख सुनंदन। कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥ सुनी रत संग शीतला माई। चाही सकल सुख दूर धुराई ॥ कलका गन गंगा किछु होई। जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥ हेत मातजी का आराधन। और नही है कोई साधन ॥ निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥ कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥ बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥ सुंदरदास नाम गुण गावत। लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥ या दे कोई करे यदी शंका। जग दे मैंय्या काही डंका ॥ कहत राम सुंदर प्रभुदासा। तट प्रयागसे पूरब पासा ॥ ग्राम तिवारी पूर मम बासा। प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥ अब विलंब भय मोही पुकारत। मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥ बड़ा द्वार सब आस लगाई। अब सुधि लेत शीतला माई ॥ यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय। सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥ बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू। जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥ ॥ इति ॥ श्री शीतला माता जी की आरती संपादित करें जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता | जय रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता, ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता | जय विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता, वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता | जय इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा, सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता | जय घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता, करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता | जय ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता, भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता | जय जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता, सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता | जय रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता, कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता | जय बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता, ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता | जय शीतल करती जननी तुही है जग त्राता, उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता | जय दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता, भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता | जय [4] सन्दर्भ संपादित करें ↑ अ आ शीतलाष्टमी - चैत्र कृष्ण अष्टमी। रीति.कॉम ↑ शीतला देव- अंग्रेज़ी विकी पर ↑ कष्ट हरने वाली देवी शीतला। याहू जागरण ↑ श्री शीतला माता जी की आरती (SHRI SHEETLA MATA JI KI AARTI) बाहरी कड़ियाँ संपादित करें शीतला माता मंदिर, गुड़गांव श्री शीतला माता मंदिर, गुड़गांव शीतला माता- शीतला कवच श्री शीतलाष्टक शीतला माता की आरती एमपी३ फॉर्मैट में डाउनलोड करें Last edited 4 months ago by Sanjeev bot RELATED PAGES हनुमान चालीसा शीतला अष्टमी चित्रगुप्त चालीसा  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

Saturday, 27 May 2017

हम सब प्राप्त कर सकते हैं: पूर्णता

Toggle navigation धर्म हम सब प्राप्त कर सकते हैं: पूर्णता Posted on Jun-2016 by श्री श्री आनंदमूर्ति धर्म FacebookTwitterWhatsApp  किसी के अंदर छिपी हुई भक्ति और जीवन को पवित्र और आध्यात्मिक बनाने की प्रबल शक्ति ही महत्वपूर्ण तत्व है। उसके बाद की सारी व्यवस्था ईश्वर स्वयं कर देते हैं। हमने पढ़ा है कि रत्नाकर और अंगुलिमाल जैसे भयानक अपराधी भी, जिन्होंने अपने जीवन में अनेक अपराध किए, बाद में भगवान के परम भक्त बन गए और सर्वोत्तम मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए। जब इस प्रकार के कठोर अपराधी भी इतने अल्प समय में एक पवित्र आध्यात्मिक मनुष्य बन गए, तब कोई कारण नहीं है कि दूसरे लोग भी ईश्वर की यह कृपा प्राप्त न कर सकें। सभी स्त्री-पुरुष ईश्वर की यह कृपा प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि सभी स्त्री-पुरुषों के साथ ईश्वर की कृपा और करुणा निरंतर बनी हुई है। जिस प्रकार मनुष्यों के प्रति ईश्वर का कर्तव्य है, उसी प्रकार मनुष्यों का कर्त्तव्य भी ईश्वर के प्रति है। मनुष्यों को केवल वह कर्म करना है, जो ईश्वर को आनंद देता है। ईश्वर कभी भी पापी और पुण्यात्मा के बीच भेद नहीं करते। अगर ईश्वर चाहे तो वह तथाकथित पापी मनुष्य को भी क्षण भर में एक महान भक्त बना सकता है। अनेक दोषों और गलतियों के बावजूद भी मनुष्य दैवी प्राणी है। अपनी सारी कमियों के बावजूद वह भगवान का ही व्यक्त रूप है। प्रत्येक वस्तु ही दैवी सृष्टि है और सभी में एक दिन पूर्णता प्राप्त करने की सम्भावना है। हम अभी जो कुछ हैं, वह हमारे पूर्व के विचारों और कर्मों का परिणाम है और भविष्य में हम जो कुछ होंगे, वह हमारे पूर्व के विचारों और कर्मों का परिणाम होगा। हमारे अतीत के कर्म ही हमारे वर्तमान को निर्धारित करते हैं और हमारे वर्तमान के विचार और कर्म ही हमारे भविष्य को निर्धारित करेंगे। कोई भी सांसारिक पदार्थ या मनुष्य हमारा स्थायी साथी या सम्बंधी नहीं है। यही कारण है कि बुद्धिमान मनुष्य मानते हैं कि ईश्वर की उपलब्धि ही मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। जब मनुष्य सभी स्थूल सांसारिक पदार्थों से अपनी मानसिक वृत्तियों को वापस खींच लेता है और उसे ईश्वर की ओर मोड़ देता है, तब उसे अत्यंत आनंद की अनुभूति होती है। ईश्वर के प्रति गहन भावना की निरंतरता उसे आध्यात्मिक आनंद में विभोर कर देती है। प्रत्येक साधक, चाहे उसका अतीत कितना भी मलिन और निंदनीय क्यों न रहा हो, वह आध्यात्मिक अनुभूति को पाने का अधिकारी है। जब साधक अपने चारों ओर दैवी वातावरण और उस स्रोत, जहां से दैवी अस्तित्व की तरंगे प्रसारित हो रही हैं, की अनुभूति करता है, तब आनंद-अनुभूति की दशा को 'भाव' कहते हैं। भाव का अतिरेक होने से भक्ति का प्रकाशन हृदय में ज्यादा होता है। जैसे बाढ़ के समय सारी नदियां, तालाब, झरने आदि पानी से भर जाते हैं और पानी ऊपर से बहने लगता है, वैसे ही भाव के अति प्रवाह से साधक का मन व हृदय भक्ति से आप्लावित हो जाते हैं।  हैप्पी क्रिसमस ... Dec-2016  देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी Nov-2016  'क्रांतिकारी साधु' से बने जगद्गुरू शंकराचार्य Oct-2016  सही मार्गदर्शन से होगी परम की प्राप्ति Sep-2016  'क्रांतिकारी साधु’ से बने जगद्गुरू शंकराचार्य Sep-2016  सही मार्गदर्शन से होगी परम की प्राप्ति Aug-2016  रामकथा के अप्रतिम रचयिता गोस्वामी तुलसीदास Aug-2016  सनातन संस्कृति का उदात्त स्वरूप नाग पूजन Aug-2016  गंगा- जमुनी संस्कृति का जीवंत प्रतीक नौचंदी मेला Jul-2016  तमसो माँ ज्योतिर्गमय Jul-2016  आत्मा और परमात्मा के संबंध की खोज है Jul-2016  रामदूत अतुलित बलधामा Jun-2016  पापों से मुक्ति का पर्व गंगा दशहरा Jun-2016  हम सब प्राप्त कर सकते हैं: पूर्णता Jun-2016  एक है मानव समाज का धर्म May-2016  आस्था का महापर्व: सिंहस्थ कुंभ मेला May-2016  परमात्मा से अपना रंग मिलाने का त्योहार Mar-2016  सृष्टि के प्रारंभ का पर्व महाशिवरात्रि Mar-2016  ऐतिहासिक सांस्कृतिक के रूप में एक और दक्षिण काशी श Mar-2016  धार्मिक व सामाजिक परंपराओं का उदात्त स्वरूप है होल Mar-2016   Copyright © Mission Tehkikat 2016 Term & Condition| About Us| Degital Magazine| Contact Us डिजिटल मैगज़ीन 

धर्म तमसो माँ ज्योतिर्गमय

 Toggle navigation धर्म तमसो माँ ज्योतिर्गमय Posted on Jul-2016 by अर्जुन सिंह धर्म FacebookTwitterWhatsApp  भारत वर्ष पर्व एवं सूघर परंपराओं का देश है। यहां पर हर दिन पर्व मनाया जाता है। इस पवित्र देश में मनाया जाने वाला हर पर्व का अपना महत्व है, लेकिन गुरू पूर्णिमा की महत्ता विशेष है। यह पर्व व्यास पूर्णिमा के नाम से भी विख्यात है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा जगत गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है। माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने इसी दिन की थी। वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों और भागवत पुराण के रचनाकार भी वेद व्यास ही थे। देश के विभिन्न हिस्सों में गुरू पूर्णिमा का पर्व अलग- अलग तरीके से मनाया जाता है। इस पर्व पर बृज की महिमा अलग ही दिखती है। ब्रज में इसे 'मुड़िया पर्व ' कहा जाता है। गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा करतेहैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं, क्योंकि इसी दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। वैसे तो 'व्यास' नाम के कई विद्वान हुए हैं, लेकिन चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता व्यास ऋषि की पूजा इसी दिन की जाती है। मनुष्य को वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। इसलिए वे हमारे 'आदिगुरु' हुए। आदि गुरू की स्मृति को बनाए रखने के लिए अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा का विधान है। प्राचीन काल में विद्यार्थी इस दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे। इस दिन गुरु के अलावा वरिष्ठ परिजनों अर्थात माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरु पूर्णिमा। गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है, तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है। गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है। ऐसा सनातन विश्वास है। गुरु की महिमा सनातन परंपरा के अनुसार गुरु को गोविंद से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। शास्त्रों में गु का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ उसका निरोधक बताया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि गुरु अपने शिष्य को अज्ञान रूपी तिमिर को हटाकर प्रकाश की ओर अग्रसर करता है। सनातन मान्यता के अनुसार सद्गरू की कृपा से ही ईश्वर का साक्षात्कार संभव है। गुरु की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। ''तमसो मा ज्योतिगर्मय' अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरू शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। वर्तमान में जितनी भी वैश्विक समस्याएं हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना । आज विद्या का लक्ष्य 'मोक्ष' न होकर धनार्जन हो गया है। इसी का परिणाम है कि अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचारादि और सबसे बढ़कर आतंकवाद का प्रसार तेजी से हो रहा है। व्रत का विधान सनातन परंपरा के अनुसार गुरू पूर्णिमा के दिन प्रात:काल स्नान- पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर तथा शुद्ध व उत्तम वस्त्र धारण कर तैयार हो जाएं। घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए। इसके बाद गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए। सकंल्प के बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोडऩा चाहिए। फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए। अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए। गुरु पूजन का मन्त्र है- गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:। गुरु साक्षातपरब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।। इस पावन पर्व पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना उत्तम है।  हैप्पी क्रिसमस ... Dec-2016  देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी Nov-2016  'क्रांतिकारी साधु' से बने जगद्गुरू शंकराचार्य Oct-2016  सही मार्गदर्शन से होगी परम की प्राप्ति Sep-2016  'क्रांतिकारी साधु’ से बने जगद्गुरू शंकराचार्य Sep-2016  सही मार्गदर्शन से होगी परम की प्राप्ति Aug-2016  रामकथा के अप्रतिम रचयिता गोस्वामी तुलसीदास Aug-2016  सनातन संस्कृति का उदात्त स्वरूप नाग पूजन Aug-2016  गंगा- जमुनी संस्कृति का जीवंत प्रतीक नौचंदी मेला Jul-2016  तमसो माँ ज्योतिर्गमय Jul-2016  आत्मा और परमात्मा के संबंध की खोज है Jul-2016  रामदूत अतुलित बलधामा Jun-2016  पापों से मुक्ति का पर्व गंगा दशहरा Jun-2016  हम सब प्राप्त कर सकते हैं: पूर्णता Jun-2016  एक है मानव समाज का धर्म May-2016  आस्था का महापर्व: सिंहस्थ कुंभ मेला May-2016  परमात्मा से अपना रंग मिलाने का त्योहार Mar-2016  सृष्टि के प्रारंभ का पर्व महाशिवरात्रि Mar-2016  ऐतिहासिक सांस्कृतिक के रूप में एक और दक्षिण काशी श Mar-2016  धार्मिक व सामाजिक परंपराओं का उदात्त स्वरूप है होल Mar-2016   Copyright © Mission Tehkikat 2016 Term & Condition| About Us| Degital Magazine| Contact Us डिजिटल मैगज़ीन