Toggle navigation धर्म हम सब प्राप्त कर सकते हैं: पूर्णता Posted on Jun-2016 by श्री श्री आनंदमूर्ति धर्म FacebookTwitterWhatsApp  किसी के अंदर छिपी हुई भक्ति और जीवन को पवित्र और आध्यात्मिक बनाने की प्रबल शक्ति ही महत्वपूर्ण तत्व है। उसके बाद की सारी व्यवस्था ईश्वर स्वयं कर देते हैं। हमने पढ़ा है कि रत्नाकर और अंगुलिमाल जैसे भयानक अपराधी भी, जिन्होंने अपने जीवन में अनेक अपराध किए, बाद में भगवान के परम भक्त बन गए और सर्वोत्तम मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए। जब इस प्रकार के कठोर अपराधी भी इतने अल्प समय में एक पवित्र आध्यात्मिक मनुष्य बन गए, तब कोई कारण नहीं है कि दूसरे लोग भी ईश्वर की यह कृपा प्राप्त न कर सकें। सभी स्त्री-पुरुष ईश्वर की यह कृपा प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि सभी स्त्री-पुरुषों के साथ ईश्वर की कृपा और करुणा निरंतर बनी हुई है। जिस प्रकार मनुष्यों के प्रति ईश्वर का कर्तव्य है, उसी प्रकार मनुष्यों का कर्त्तव्य भी ईश्वर के प्रति है। मनुष्यों को केवल वह कर्म करना है, जो ईश्वर को आनंद देता है। ईश्वर कभी भी पापी और पुण्यात्मा के बीच भेद नहीं करते। अगर ईश्वर चाहे तो वह तथाकथित पापी मनुष्य को भी क्षण भर में एक महान भक्त बना सकता है। अनेक दोषों और गलतियों के बावजूद भी मनुष्य दैवी प्राणी है। अपनी सारी कमियों के बावजूद वह भगवान का ही व्यक्त रूप है। प्रत्येक वस्तु ही दैवी सृष्टि है और सभी में एक दिन पूर्णता प्राप्त करने की सम्भावना है। हम अभी जो कुछ हैं, वह हमारे पूर्व के विचारों और कर्मों का परिणाम है और भविष्य में हम जो कुछ होंगे, वह हमारे पूर्व के विचारों और कर्मों का परिणाम होगा। हमारे अतीत के कर्म ही हमारे वर्तमान को निर्धारित करते हैं और हमारे वर्तमान के विचार और कर्म ही हमारे भविष्य को निर्धारित करेंगे। कोई भी सांसारिक पदार्थ या मनुष्य हमारा स्थायी साथी या सम्बंधी नहीं है। यही कारण है कि बुद्धिमान मनुष्य मानते हैं कि ईश्वर की उपलब्धि ही मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। जब मनुष्य सभी स्थूल सांसारिक पदार्थों से अपनी मानसिक वृत्तियों को वापस खींच लेता है और उसे ईश्वर की ओर मोड़ देता है, तब उसे अत्यंत आनंद की अनुभूति होती है। ईश्वर के प्रति गहन भावना की निरंतरता उसे आध्यात्मिक आनंद में विभोर कर देती है। प्रत्येक साधक, चाहे उसका अतीत कितना भी मलिन और निंदनीय क्यों न रहा हो, वह आध्यात्मिक अनुभूति को पाने का अधिकारी है। जब साधक अपने चारों ओर दैवी वातावरण और उस स्रोत, जहां से दैवी अस्तित्व की तरंगे प्रसारित हो रही हैं, की अनुभूति करता है, तब आनंद-अनुभूति की दशा को 'भाव' कहते हैं। भाव का अतिरेक होने से भक्ति का प्रकाशन हृदय में ज्यादा होता है। जैसे बाढ़ के समय सारी नदियां, तालाब, झरने आदि पानी से भर जाते हैं और पानी ऊपर से बहने लगता है, वैसे ही भाव के अति प्रवाह से साधक का मन व हृदय भक्ति से आप्लावित हो जाते हैं।  हैप्पी क्रिसमस ... Dec-2016  देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी Nov-2016  'क्रांतिकारी साधु' से बने जगद्गुरू शंकराचार्य Oct-2016  सही मार्गदर्शन से होगी परम की प्राप्ति Sep-2016  'क्रांतिकारी साधु’ से बने जगद्गुरू शंकराचार्य Sep-2016  सही मार्गदर्शन से होगी परम की प्राप्ति Aug-2016  रामकथा के अप्रतिम रचयिता गोस्वामी तुलसीदास Aug-2016  सनातन संस्कृति का उदात्त स्वरूप नाग पूजन Aug-2016  गंगा- जमुनी संस्कृति का जीवंत प्रतीक नौचंदी मेला Jul-2016  तमसो माँ ज्योतिर्गमय Jul-2016  आत्मा और परमात्मा के संबंध की खोज है Jul-2016  रामदूत अतुलित बलधामा Jun-2016  पापों से मुक्ति का पर्व गंगा दशहरा Jun-2016  हम सब प्राप्त कर सकते हैं: पूर्णता Jun-2016  एक है मानव समाज का धर्म May-2016  आस्था का महापर्व: सिंहस्थ कुंभ मेला May-2016  परमात्मा से अपना रंग मिलाने का त्योहार Mar-2016  सृष्टि के प्रारंभ का पर्व महाशिवरात्रि Mar-2016  ऐतिहासिक सांस्कृतिक के रूप में एक और दक्षिण काशी श Mar-2016  धार्मिक व सामाजिक परंपराओं का उदात्त स्वरूप है होल Mar-2016   Copyright © Mission Tehkikat 2016 Term & Condition| About Us| Degital Magazine| Contact Us डिजिटल मैगज़ीन 
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