Saturday, 9 December 2017
सोऽहम् कर अजपा जाप
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Gayatri Pariwar
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December 1947
सोऽहम् कर अजपा जाप
नासिका द्वारा श्वाँस भीतर से बाहर और बाहर से भीतर आती जाती रहती है। जब वायु भीतर जाती है- पूरक होता है- तो उस समय “सो” की सूक्ष्म ध्वनि की झंकार होती है। थोड़ी देर जब तक साँस भीतर रुकती है- कुँभक होता है- उतनी देर ‘अ’ शब्द की झंकार रहती है। इसके पश्चात जब वायु लौट कर बाहर आता है- रोचक होता है- उस समय ‘हम्’ शब्द प्रतिध्वनित होता है। इस प्रकार एक पूरी श्वाँस के आवागमन में ‘सोऽहम्’ का एक पूरा उच्चारण प्रकृति द्वारा शरीर में स्वयमेव निरन्तर होता रहता है। इसे ‘अजपा जाप’ भी कहते हैं।
यों अनेकों मंत्र हैं उनके फल अनेक हैं, उनकी साधना विधियाँ भी पृथक-पृथक हैं। इन मंत्रों का विनियोग अनुष्ठान, जागरण, उत्थापन विभिन्न प्रकार से होता है। जिसकी शिक्षा अनुभवी गुरु द्वारा होनी चाहिए। अविधिपूर्वक जपे हुए मंत्र कई बार उल्टा परिणाम उपस्थित करते हैं। अजपा जाप की ‘सोऽहम्’ साधना में इस प्रकार की कठिनाई नहीं है।
इस साधना के लिए जब भी अवसर और अवकाश हो। शान्त चित्त से मन को एकाग्र करना चाहिए। आँखें बन्द करके हृदय कमल में स्थित सूर्यचक्र का ध्यान करना चाहिए, यह चक्र सूर्य के समान प्रकाशवान है। ध्यान करने से धीरे-धीरे उसकी ज्योति बढ़ती हुई ध्यान में दृष्टि गोचर होती जाती है।
मन को हृदय स्थान पर एकाग्र करने से श्वाँस भीतर जाने के साथ ‘सो, की, रुकने के साथ ‘अ’ की बाहर निकले के साथ ‘हम’ की ध्वनि होती है। इन तीनों ध्वनियों को ध्यानपूर्वक सूक्ष्म कर्णेंद्रियों से सुनने का प्रयत्न करना चाहिए। आरंभ में यह शब्द अति बहुत ही मंद अस्थिर और न्यूनाधिक होता है। कभी बीच 2 में बन्द भी हो जाती है। पर लगातार ध्यान एकाग्र करने से फुफ्फुसों में वायु के आकुँचन प्रकुँचन के साथ-साथ ‘सोऽहम्’ की ध्वनि स्पष्ट रूप से ध्वनित होती हुई सुनाई पड़ती है।
इस श्रवण से अपने आप प्रकृति द्वारा होने वाले अजपा जाप में साधक सम्मिलित हो जाता है। और उसे किसी विशेष विधि विधान या अनुष्ठान के करने की आवश्यकता नहीं होती। इस निरीक्षण में जैसे-जैसे चित्त की स्थिरता होती है वैसे ही वैसे आत्मिक शक्तियों का जागरण होता चलता है। चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहते हैं, यह निरोध इस अजपा जाप द्वारा बड़ी उत्तमनता से होता है और स्वल्प श्रम से योग साधना के महा लाभों की प्राप्ति होती है।
‘सोऽहम्’ का अर्थ है- ‘वह आत्मा - परमात्मा मैं हूँ अपने में ईश्वरीय भाव की प्रतिष्ठा करने से आत्मा में परमात्मा की झाँकी होने लगती है और आत्म दर्शन का समाधि सुख प्राप्ति होने लगता है।
अजपा जाप जितना सुगम है उतना ही उत्तम भी है। इसका आश्रय लेने वाले साधक की आत्मोन्नति बड़ी शीघ्रता से होती है।
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