Monday 4 December 2017

Suvichar

[02/11, 4:34 PM] Jai Ho: 🌹 *॥ वन्देमातरम् ॥* 🌹

*जीवनस्य श्रेष्ठतमः गुरुः कालः वर्तते ।*
= जीवन का सबसे बड़ा गुरु समय होता है ।

*यतः यत् कालः शिक्षयति ।*
= क्योंकि जो समय सिखाता है ।

*तत् कश्चिदपि न शिक्षयितुं शक्नोति ।*
= वह कोई नहीं सिखा सकता है ॥

*जयतुसंस्कृतम् ॥ जयतुभारतम् ॥*
[05/11, 5:56 AM] Jai Ho: ॐ.....
सुखार्थी चेत् त्यजेत विद्याम् , विद्यार्थी चेत् त्यजेत सुखम् ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या , विद्यार्थिनः कुतो सुखम् ।।
भावार्थ.....
सुख चाहने वाले को विद्या (को पाना) छोड़ देनी चाहिये और विद्या पाने वाले को सुख छोड़ देना चाहिये।सुख चाहने वाले के पास विद्या कहाँ और विद्या चाहने वाले के पास सुख कहाँ ।
[15/11, 8:17 AM] ‪+91 94702 21065‬: स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ॥
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः॥
बाहर के विषय-भोगों को न चिन्तन करता हुआ बाहर ही निकालकर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपानवायु को सम करके, जिसकी इन्द्रियाँ मन और बुद्धि जीती हुई हैं, ऐसा जो मोक्षपरायण मुनि (परमेश्वर के स्वरूप का निरन्तर मनन करने वाला।) इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वह सदा मुक्त ही है
॥27-28॥
गीता~ अध्याय 5 - श्लोक : 27

👏सुप्रभातम,Good morning👏
[17/11, 5:16 AM] Fauzdhartiwari: तस्याहुःसंप्रणेतारं राजानं सत्यवादिनम्।समीक्ष्यकारिणं प्राज्ञं धर्मकामार्थकोविदम्।।(मनु०७/१८)
उस दण्ड का उचित प्रयोक्ता राजा  सत्यवादी सविवेककर्त्ता प्रज्ञावान् तथा धर्म,अर्थ और काम का वेत्ता हो-ऐसा मन्वादि कहते हैं ।
[17/11, 8:19 PM] Dilip Dhakan: कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥97 क॥
भावार्थ:-कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥97 (क)॥
* भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥97 ख॥
भावार्थ:-सभी लोग मोह के वश हो गए, शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया। हे ज्ञान के भंडार! हे श्री हरि के वाहन! सुनिए, अब मैं कलि के कुछ धर्म कहता हूँ॥97 (ख)॥
चौपाई :
* बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1॥
भावार्थ:-कलियुग में न वर्णधर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष-स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता॥1॥
* मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥2॥
भावार्थ:-जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं॥2॥
* सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दंभ सो बड़ आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना॥3॥
भावार्थ:-जो (जिस किसी प्रकार से) दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दंभ करता है, वही बड़ा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हँसी-दिल्लगी करना जानता है, कलियुग में वही गुणवान कहा जाता है॥3॥
* निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥
जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥4॥
भावार्थ:-जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान्‌ है। जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है॥4॥
दोहा :
* असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं॥98 क॥
भावार्थ:-जो अमंगल वेष और अमंगल भूषण धारण करते हैं और भक्ष्य-भक्ष्य (खाने योग्य और न खाने योग्य) सब कुछ खा लेते हैं वे ही योगी हैं, वे ही सिद्ध हैं और वे ही मनुष्य कलियुग में पूज्य हैं॥98 (क)॥
सोरठा :
* जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ।
मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ॥98 ख॥
भावार्थ:-जिनके आचरण दूसरों का अपकार (अहित) करने वाले हैं, उन्हीं का बड़ा गौरव होता है और वे ही सम्मान के योग्य होते हैं। जो मन, वचन और कर्म से लबार (झूठ बकने वाले) हैं, वे ही कलियुग में वक्ता माने जाते हैं॥98 (ख)॥
चौपाई :
* नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥1॥
भावार्थ:-हे गोसाईं! सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह (उनके नचाए) नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं॥1॥
*सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव बिप्र श्रुति संत बिरोधी॥
गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी। भजहिं नारि पर पुरुष अभागी॥2॥
भावार्थ:-सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं। देवता, ब्राह्मण, वेद और संतों के विरोधी होते हैं। अभागिनी स्त्रियाँ गुणों के धाम सुंदर पति को छोड़कर पर पुरुष का सेवन करती हैं॥2॥
* सौभागिनीं बिभूषन हीना। बिधवन्ह के सिंगार नबीना॥
गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनइ एक नहिं देखा॥3॥
भावार्थ:-सुहागिनी स्त्रियाँ तो आभूषणों से रहित होती हैं, पर विधवाओं के नित्य नए श्रृंगार होते हैं। शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे का सा हिसाब होता है। एक (शिष्य) गुरु के उपदेश को सुनता नहीं, एक (गुरु) देखता नहीं (उसे ज्ञानदृष्टि) प्राप्त नहीं है)॥3॥
* हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई॥
मातु पिता बालकन्हि बोलावहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं॥4॥
भावार्थ:-जो गुरु शिष्य का धन हरण करता है, पर शोक नहीं हरण करता, वह घोर नरक में पड़ता है। माता-पिता बालकों को बुलाकर वही धर्म सिखलाते हैं, जिससे पेट भरे॥4॥
दोहा :
* ब्रह्म ग्यान बिनु नारि नर कहहिं न दूसरि बात।
कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुर घात॥99 क॥
भावार्थ:-स्त्री-पुरुष ब्रह्मज्ञान के सिवा दूसरी बात नहीं करते, पर वे लोभवश कौड़ियों (बहुत थोड़े लाभ) के लिए ब्राह्मण और गुरु की हत्या कर डालते हैं॥99 (क)॥
* बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटि।
जानइ ब्रह्म सो बिप्रबर आँखि देखावहिं डाटि॥99 ख॥
भावार्थ:-शूद्र ब्राह्मणों से विवाद करते हैं (और कहते हैं) कि हम क्या तुमसे कुछ कम हैं? जो ब्रह्म को जानता है वही श्रेष्ठ ब्राह्मण है।
[17/11, 10:46 PM] Ajay Sharma: कालो गच्छति, कालस्य गतिम्
जनाः गच्छति, स्वयं गतिम्
काले गतः कालात् संजायते
समयका एक अर्ध-वर्तुल पूरा हो रहा है...
जिस भूमि पर मलेच्छ "मुखदर्शन" तक न कर सके इसलिए "रानी पद्मिनी" और १६००० राजपूत स्त्रियां अपने शील की रक्षा के लिए "जोहर" करके अपना प्राण त्याग दिया था, आज उसी भूमि पर "फैशन" के नाम पर नित-नए नए एवं न्यूनतम "वस्त्र-परिधान" का चलन बढ़ रहा है ....
सागर में "ज्वार-भाटा" यह प्राकृतिक नियम नित्य है !!!!
#नविनपोरवाल
[17/11, 11:00 PM] Ajay Sharma: खदितम् पितम् स्पृश्यन्ति शरीरं, ददातम् गमिष्यन्ति सर्वान सार्धम्
य:पुरुषः न लेखिष्यत् मंडले, तस्माकम् मर्मरायते मोबाइलम्
खाया पिया अंग लगेगा, दान किया संग चलेगा
ग्रुप में न लिखोगे तो मोबाइल मे जंग लगेगा
[17/11, 11:01 PM] Ajay Sharma: रक्षितुं धर्मस्य संस्कृतिं रक्षेत्
रक्षितुं संस्कृतेः रक्षतु संस्कृतम्
धर्मः अभिरक्षन्ते वयं सर्व एव ही
उत्तिष्ठ कृतनिश्चय पठितुं संस्कृतम्

धर्म की रक्षा करने के लिए, संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए
और संस्कृति की रक्षा करने के लिए संस्कृत को संरक्षित करो
क्योंकि हम सभी "धर्म" से ही अभिरक्षित है.....
संस्कृत पढ़ने के लिए कृतनिश्चय करके तैयार हो जाओ
भारत माता की जय......
[17/11, 11:23 PM] Ajay Sharma: क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ?
[19/11, 12:52 PM] Pragya Sharma: *।।मातृ देवो भव:,पितृ देवो भव:।।*
🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹
पितुरप्यधिका माता  
गर्भधारणपोषणात्  ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

*गर्भ को धारण करने और पालनपोषण करने के कारण माता का स्थान पिता से भी बढकर है। इसलिए तीनों लोकों में माता के समान कोई गुरु नहीं अर्थात् माता परमगुरु है!*

नास्ति गङ्गासमं तीर्थं
नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।
नास्ति शम्भुसमः पूज्यो
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

*गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं, विष्णु के समान प्रभु नहीं और शिव के समान कोई पूज्य नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं।*

नास्ति चैकादशीतुल्यं
व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम्।
तपो नाशनात् तुल्यं
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

*एकादशी के समान त्रिलोक में प्रसिद्ध कोई व्रत नहीं,  अनशन से बढकर कोई तप नहीं और माता के समान गुरु नहीं!*

नास्ति भार्यासमं मित्रं
नास्ति पुत्रसमः प्रियः।
नास्ति भगिनीसमा मान्या
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

*पत्नी के समान कोई मित्र नहीं, पुत्र के समान कोई प्रिय नहीं,  बहन के समान कोई माननीय नहीं और माता के समान गुरु नही!*

न   जामातृसमं   पात्रं
न दानं कन्यया समम्।
न भ्रातृसदृशो बन्धुः
न च मातृसमो गुरुः ॥

*दामाद के समान कोई दान का पात्र नहीं,  कन्यादान के समान कोई दान नहीं, भाई के जैसा कोई बन्धु नहीं और माता जैसा गुरु नहीं!*

देशो गङ्गान्तिकः श्रेष्ठो
दलेषु       तुलसीदलम्।
वर्णेषु   ब्राह्मणः   श्रेष्ठो
गुरुर्माता      गुरुष्वपि ॥

*गंगा के किनारे का प्रदेश अत्यन्त श्रेष्ठ होता है, पत्रों में तुलसीपत्र, वर्णों में ब्राह्मण और माता तो गुरुओं की भी गुरु है!*

पुरुषः       पुत्ररूपेण
भार्यामाश्रित्य जायते।
पूर्वभावाश्रया   माता
तेन  सैव  गुरुः  परः ॥

*पत्नी का आश्रय लेकर पुरुष ही पुत्र रूप में उत्पन्न होता है, इस दृष्टि से अपने पूर्वज पिता का भी आश्रय माता होती है और इसीलिए वह परमगुरु है!*

मातरं   पितरं   चोभौ
दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।
प्रणम्य  मातरं  पश्चात्
प्रणमेत्   पितरं  गुरुम् ॥

*धर्म को जानने वाला पुत्र माता पिता को साथ देखकर पहले माता को प्रणाम करे फिर पिता और गुरु को!*

माता  धरित्री जननी
दयार्द्रहृदया  शिवा ।
देवी    त्रिभुवनश्रेष्ठा
निर्दोषा सर्वदुःखहा॥

*माता, धरित्री , जननी , दयार्द्रहृदया,  शिवा, देवी , त्रिभुवनश्रेष्ठा, निर्दोषा,  सभी दुःखों का नाश करने वाली है!*

आराधनीया         परमा
दया शान्तिः क्षमा धृतिः ।
स्वाहा  स्वधा च गौरी च
पद्मा  च  विजया   जया ॥

*आराधनीया,  परमा, दया ,  शान्ति , क्षमा,  धृति, स्वाहा , स्वधा, गौरी , पद्मा, विजया , जया,*

दुःखहन्त्रीति नामानि
मातुरेवैकविंशतिम्   ।
शृणुयाच्छ्रावयेन्मर्त्यः
सर्वदुःखाद् विमुच्यते ॥

*और दुःखहन्त्री -ये माता के इक्कीस नाम हैं। इन्हें सुनने सुनाने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है!*

दुःखैर्महद्भिः दूनोऽपि
दृष्ट्वा मातरमीश्वरीम्।
यमानन्दं लभेन्मर्त्यः
स  किं  वाचोपपद्यते ॥

*बड़े बड़े दुःखों से पीडित होने पर भी भगवती माता को देखकर मनुष्य जो आनन्द प्राप्त करता है उसे वाणी द्वारा नहीं कहा जा सकता!*

इति ते  कथितं  विप्र
मातृस्तोत्रं महागुणम्।
पराशरमुखात् पूर्वम्
अश्रौषं मातृसंस्तवम्॥

*हे ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने तुमसे महान् गुण वाले मातृस्तोत्र को कहा , इसे मैंने अपने पिता पराशर के मुख से पहले सुना था!*

सेवित्वा पितरौ कश्चित्
व्याधः     परमधर्मवित्।
लेभे   सर्वज्ञतां  या  तु
साध्यते  न तपस्विभिः॥

*अपने माता पिता की सेवा करके ही किसी परम धर्मज्ञ व्याध ने उस सर्वज्ञाता को पा लिया था जो बडे बडे तपस्वी भी नहीं पाते!*

तस्मात्    सर्वप्रयत्नेन
भक्तिः कार्या तु मातरि।
पितर्यपीति   चोक्तं   वै
पित्रा   शक्तिसुतेन  मे ॥

*इसलिए सब प्रयत्न करके माता और पिता की भक्ति करनी चाहिए, सच्ची।🙏🏼*शुभ प्रभात🌹🌹🙏
[25/11, 6:40 AM] Fauzdhartiwari: 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

⚫ *ॐ शं शनैश्चराय नमः* ⚫

♏ *ॐ नीलाऽञ्जन समाभाषं सूर्यपुत्रं यमाग्रजं छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्*♏

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

*दुर्लभं त्रयमेवैतत्*
*देवानुग्रहहेतुकम्*।
*मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय:*॥

        यह तीन दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलते हैं - मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ॥

         *मन की शांति  उड़ती हुई तितली के जैसी है ,जिसे पकड़ने के लिए आप जितना दौड़ेंगे ये उतना ही आपसे दूर चली जायेगी यदि आप शान्त मुद्रा मे एक जगह स्थिर हो जायेंगे तो ये खुद पे खुद आपके कंधे पर  बैठ जायेगी* ।

🌸 *आज की शुभ/मंगल कामना के साथ*🌸

          🙏🏻 *सुप्रभात*🙏🏻

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
[26/11, 5:55 AM] ‪+91 79039 74568‬: 🌹🙏🏻 *सुप्रभातम्* 🙏🏻🌹
🌷🍃 *महत्परिभवः श्रेष्ठः , न नीचादपि गौरवम्।।* 🍃🌷
       🌿—महापुरुषों से पराजित होना श्रेष्ठ है किन्तु नीच से  गौरवप्राप्ति भी समीचीन नहीं है।
🌹 *सुदिनमस्तु* 👏🏻💐
[26/11, 6:48 AM] ‪+91 97825 58462‬: 🌹 *परस्मैपदी --- आत्मनेपदी*🌹

*संस्कृतभाषायां भवतः द्वे पदे ।*
= संस्कृतभाषा में दो पद होते हैं ।

*★परस्मैपद》 यस्याः क्रियायाः फलं परमार्थं (परस्मै=दूसरे के लिए) वर्तते । तद् परस्मैपदम् ।*
= जिस क्रिया का फल दूसरे के लिये होता है । वह परस्मैपद है ।

*यथा - सः भोजनं पचति ।*
= वह भोजन पकाता है ।

यहाँ पकाने की क्रिया का फल दूसरे के लिए होगा , पकाने वाले के लिए नहीं ।
अर्थात् - पाचक स्वयं के लिए भोजन नहीं पकाता है ।

*★आत्मनेपदी》 यस्याः क्रियायाः फलं (आत्मने=अपने लिए) स्वकीयार्थं भवति । तद् आत्मनेपदम् ।*
= जिस क्रिया का फल अपने लिए होता है । वह आत्मनेपद है ।

*यथा- भिक्षुकः याचते ।*
= भिखारी माँगता है ।
इस वाक्य के अनुसार ''भिखारी'' अपने लिए माँगता है । किसी दूसरे के लिए नहीं माँगता है ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
परन्तु इस नियम का पालन कहीं भी नहीं दिखता है ।� जबकि पदनाम के अनुसार ही क्रियाओं का प्रयोग होना चाहिए ॥
*एक उभयपदी क्रिया भी होती है।*
वाक्याभ्यासः ॥*

१-मातरं दृष्ट्वा बालः मोदते ।
= माता को देखकर बच्चा प्रसन्न होता है।
२-अभ्यासेन ज्ञानं वर्धते ।
= अभ्यास से ज्ञान बढ़ता है ॥

३-सज्जनः सर्वेषां मङ्गलम् ईहते ।
= सज्जन सबका भला चाहता है ॥
४-सः लेखं पठित्वा शङ्कते ।
= वह लेख पढ़कर शंका करता है ॥

५-शिवमस्तके चन्द्रः राजते ।
= शंकर जी के ललाट पर चंद्रमा चमकते हैं ॥
६-वृष्टिकाले नभसि मेघप्रभा भासते ।
= वर्षाऋतु में आकाश में बिजली चमकती है ॥

७-बालकः उद्याने पुष्पाणि ईक्षते ।
= बालक बगीचे में फूलों को देखता है ॥

८-वीरः अन्यायं न सहते ।
= वीर अन्याय नहीं सहता है ॥
९-छात्रः पठने रमते ।
= विद्यार्थी पढ़ने में रमता है ॥
[26/11, 7:58 AM] Anup Govil: *शाश्वत में जीना है सत्य को जानना है*
*शिव शिव कहना है शिवोहम् में खो जाना है*
[27/11, 8:40 AM] Vijaya Ghokhale: 🌹 *परस्मैपदी --- आत्मनेपदी*🌹

*संस्कृतभाषायां भवतः द्वे पदे ।*
= संस्कृतभाषा में दो पद होते हैं ।

*★परस्मैपद》 यस्याः क्रियायाः फलं परमार्थं (परस्मै=दूसरे के लिए) वर्तते । तद् परस्मैपदम् ।*
= जिस क्रिया का फल दूसरे के लिये होता है । वह परस्मैपद है ।

*यथा - सः भोजनं पचति ।*
= वह भोजन पकाता है ।

यहाँ पकाने की क्रिया का फल दूसरे के लिए होगा , पकाने वाले के लिए नहीं ।
अर्थात् - पाचक स्वयं के लिए भोजन नहीं पकाता है ।

*★आत्मनेपदी》 यस्याः क्रियायाः फलं (आत्मने=अपने लिए) स्वकीयार्थं भवति । तद् आत्मनेपदम् ।*
= जिस क्रिया का फल अपने लिए होता है । वह आत्मनेपद है ।

*यथा- भिक्षुकः याचते ।*
= भिखारी माँगता है ।
इस वाक्य के अनुसार ''भिखारी'' अपने लिए माँगता है । किसी दूसरे के लिए नहीं माँगता है ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
परन्तु इस नियम का पालन कहीं भी नहीं दिखता है ।� जबकि पदनाम के अनुसार ही क्रियाओं का प्रयोग होना चाहिए ॥
*एक उभयपदी क्रिया भी होती है।*
वाक्याभ्यासः ॥*

१-मातरं दृष्ट्वा बालः मोदते ।
= माता को देखकर बच्चा प्रसन्न होता है।
२-अभ्यासेन ज्ञानं वर्धते ।
= अभ्यास से ज्ञान बढ़ता है ॥

३-सज्जनः सर्वेषां मङ्गलम् ईहते ।
= सज्जन सबका भला चाहता है ॥
४-सः लेखं पठित्वा शङ्कते ।
= वह लेख पढ़कर शंका करता है ॥

५-शिवमस्तके चन्द्रः राजते ।
= शंकर जी के ललाट पर चंद्रमा चमकते हैं ॥
६-वृष्टिकाले नभसि मेघप्रभा भासते ।
= वर्षाऋतु में आकाश में बिजली चमकती है ॥

७-बालकः उद्याने पुष्पाणि ईक्षते ।
= बालक बगीचे में फूलों को देखता है ॥

८-वीरः अन्यायं न सहते ।
= वीर अन्याय नहीं सहता है ॥
९-छात्रः पठने रमते ।
= विद्यार्थी पढ़ने में रमता है ॥
[29/11, 9:50 AM] ‪+91 98203 37337‬: 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
*अर्था भवन्ति गच्छन्ति लभ्यते च पुन: पुन: ।*
   *पुन: कदापि नायाति गतं तु नवयौवनम् ।।*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
भावार्थ - *धन मिलता और नष्ट होता रहता  है, नष्ट होने के बाद  फिर से प्राप्त हो जाता है, परन्तु जवानी एक बार निकल जाए तो कभी वापस नही आती, अतः विपुल क्षमता, जोश एवम् महाशक्ति से सम्पन्न यौवन का एक एक अमूल्य पल ऐसे सत्कर्मों में व्यय करना चाहिए कि शरीर समाप्त होने के बाद भी समाज और राष्ट्र हमें याद करता रहे।*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
*Money gets lost and destroyed, it gets recovered after being destroyed, but once the youth gets out, it can never be returned, so a priceless moment of youthful energy and passion for super power is spent in such deeds. Even after the body is over, society and nation should remember us.*
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*आपका आज का दिन मंगलमय रहे।*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

*🙏🌹🚩सुप्रभातम्🚩🌹🙏*
[29/11, 3:02 PM] VedantS😊: "अधमा: धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमा: |
उत्तमा: मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् ||"

भावार्थ :---
निम्न स्तर के व्यक्ति धन-संपत्ति की इच्छा रखते हैं। मध्यम स्तर के व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा रखते हैं। उत्तम स्तर के व्यक्ति मात्र सम्मान की ही कामना रखते हैं क्योंकि सम्मान सर्वश्रेष्ठ धन होता है।
[29/11, 11:13 PM] Jai Sanatan: नैव नित्यं जयस्तात , नैव नित्यं पराजयः

शुभ रात्रि
[01/12, 5:25 AM] Pt Anurag: सुप्रभातम्  🌞
जय श्री कृष्ण 🙏

पंचमस्थान का मालिक  या  पंचम स्थान शुभ ग्रह से द्रष्ट होता  है  तब  जातक  को  १)  विद्या २)  पूर्वपूण्य और ३)  तबियत की  बाबत  में जातक को शुभ परिणाम मिलता  है।

सर्वे भवन्तु सुखिन।
🌷🙏🌷🙏🌷
[01/12, 5:25 AM] Pt Anurag: *आज का विचार*

आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है।
सुप्राभातम
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[01/12, 7:01 AM] ‪+91 79039 74568‬: 🌹🌹 *सुप्रभातम्* 🌹🌹
🍃✍🏻 *तुलसीदास_जी_कहते_हैं:-*
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।।

*अर्थात* – जिस स्थान या जिस घर में आपके जाने से लोग खुश नहीं होते हों और उन लोगों की आँखों में आपके लिए न तो प्रेम और न हीं स्नेह हो। वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की हीं वर्षा क्यों न होती हो।
*सुदिनमस्तु।*🌹🌹💐💐🙏🏻
[04/12, 5:31 AM] Pt Anurag: जय गणपति ......

Don't Give up. All your hard work will pay you soon and then you will be glad you didn't quit.

हार न मानें। आपकी सारी मेहनत आपको जल्द ही फलीभूत होगी और तब आप प्रसन्न होंगे कि आपने हार नहीं मानी।

सुप्रभात
आपका दिन आनंदमय हो।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[04/12, 5:31 AM] Pt Anurag: जय गणपति ......

Relationship never die natural death. They are always murdered by attitude, behaviour, ego, hidden benefits and ignorance.

संबंध कभी सामान्य मौत नहीं मरते। उनका खात्मा रवैये, ब्यवहार, अहं, छिपे हुए फायदे और उपेक्षा से किया जाता है।

सुप्रभात
आपका दिन आनंदमय हो।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[04/12, 5:33 AM] Pt Anurag: जय गणपति ......

Relationship never die natural death. They are always murdered by attitude, behaviour, ego, hidden benefits and ignorance.

संबंध कभी सामान्य मौत नहीं मरते। उनका खात्मा रवैये, ब्यवहार, अहं, छिपे हुए फायदे और उपेक्षा से किया जाता है।

सुप्रभात
आपका दिन आनंदमय हो।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[04/12, 5:33 AM] Pt Anurag: जय गणपति ......

Sometimes you face difficulties not because you are doing something wrong but because you are doing something right. Keep Moving Forward.

कभी कभी आप कठिनाईयों का सामना करते हैं इसलिए नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं बल्कि इसलिए कि आप कुछ सही कर रहे होते हैं। आगे बढते रहें।

सुप्रभात 
आपका दिन आनंदमय हो।
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[05/12, 6:59 AM] Pt Anurag: सुप्रभातम् !
प्रस्तावसदृशं       वाक्यं       प्रभावसदृशं      प्रियम्।
आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः॥१५॥

*भावार्थ*   :—  आचार्य चाणक्य के अनुसार वही व्यक्ति बुद्धिमान है, जो समय के अनुरूप वार्ता करे, शक्ति के अनुरूप पराक्रम करे तथा सामर्थ्य के अनुरूप क्रोध करे। परन्तु यदि मनुष्य प्रसंग से हटकर बात करे, शक्ति के प्रतिकूल आचरण करे तथा अनावश्यक क्रोध करे तो वह बुद्धिमान होकर भी मूर्ख कहलाता है।
[05/12, 6:59 AM] Pt Anurag: सुप्रभातम् !
प्रस्तावसदृशं       वाक्यं       प्रभावसदृशं      प्रियम्।
आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः॥१५॥

*भावार्थ*   :—  आचार्य चाणक्य के अनुसार वही व्यक्ति बुद्धिमान है, जो समय के अनुरूप वार्ता करे, शक्ति के अनुरूप पराक्रम करे तथा सामर्थ्य के अनुरूप क्रोध करे। परन्तु यदि मनुष्य प्रसंग से हटकर बात करे, शक्ति के प्रतिकूल आचरण करे तथा अनावश्यक क्रोध करे तो वह बुद्धिमान होकर भी मूर्ख कहलाता है।
[05/12, 7:44 AM] ‪+91 98203 37337‬: 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
*शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा*
     *यस्तु क्रियावान् पुरूष: स विद्वान् ।*
*सुचिन्तितं चौषधमातुराणां*
       *न नाममात्रेण करोत्यरोगम् ॥*
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*भावार्थ -* *वास्तव में विद्वान् और सफलतम् व्यक्ति बनने के लिये  अच्छी पुस्तकों और शास्त्रों का केवल अध्ययन करना पर्याप्त नहीं, अपितु जीवन में उनका अनुकरण करना आवश्यक होता है, जैसे रोग दूर करने के लिए दवा की अच्छी जानकारी होना या दवा का नाम ले लेना पर्याप्त नही अपितु दवा का नियमित सेवन करना आवश्यक एवम् लाभदायक होता है।*
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*In order to become a scholar and a successful person, studying only good books and scriptures is not enough, but it is necessary to imitate them in life, such that it is not enough to get good knowledge of medicines or to take medication name. Regular consumption of medication is necessary and beneficial.*
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*आपका आज का दिन मंगलमय रहे*

*🙏🌞🚩सुप्रभातम्🚩🌞🙏*

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