Friday 2 February 2018

योगमत और संतमत

English Menu योगमत और संतमत के बीच अंतर योगमत और संतमत के बीच अंतर योगमत संतमत यह परम पिता परमेश्वर को निराकार ;निरंजन.निराकारद्ध के रूप में मानते हैंए जो इस ब्रहमाण्ड पर शासन करने वाली शक्ति है। इसने सिद्ध किया कि मन ही स्वयं निराकार ;निरंजन काल पुरुषद्ध हैए जो ब्रहमाण्ड का पांचवा तत्व है और यही इस ब्रहमाण्ड पर शासन करता है। अनहद धुनए सफ़ेदध्सुनहरे प्रकाश आदि को निराकार परमात्मा माना जाता है। अनहद धुनए सफ़ेदध्सुनहरे प्रकाश आदि महाप्रलय में नष्ट हो जाते हैं क्योंकि इन दोनों की पहुँच तक पाँच नाशवान तत्व विद्यमान हैं। यह मत धार्मिक ग्रन्थों जैसे वेदए पुराणए शास्त्र आदि में उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है। यह मत धार्मिक ग्रन्थ आदि पर आश्रित नहीं है बल्कि अमर लोक ;चौथा लोकद्ध की अनुभूतियों पर आधारित है। गुरु के पास केवल मन की शक्तियाँ है जिससे वह किसी आत्मा को अस्थायी मोक्ष प्राप्त करने में मार्गदर्शन दे सकता है क्योंकि उसकी खुद की सीमाएं ब्रहमाण्ड ;तीन लोकद्ध तक ही हैं। पूर्ण आध्यात्मिक सद्गुरु के पास परम पुरुष की सभी शक्तियाँ मौजूद हैं जिससे वह स्वयं किसी भी आत्मा को इस ब्रहमाण्ड ;तीन लोकद्ध से स्थायी तौर से मुक्त करके स्थायी मोक्ष प्रदान कर सकता है। इस मत में गुरु को प्रभु के बाद माना जाता है। इस मत में पूर्ण आध्यात्मिक सदगुरु को स्वयं परम पुरुष से भी महान माना जाता है। पवित्र नाम शरीर से सम्बद्ध रखता है। संजीवन नाम आत्मा से संबन्धित है। पवित्र नाम को बोला व लिखा जा सकता है और वह इन पाँच नामों के इर्द.गिर्द घूमता है रू सोहंगए सतए ज्योतिनिरंजनए ररांकार व ओंकार। संजीवन नाम लिखाए पढ़ा या बोला नही जा सकता और यह पाँच तत्वों से परे है। इनका मानना है कि इस ब्रहमाण्ड का सृजन परमपिता परमेश्वर ने किया है जिसमे 84 लाख योनियों का निर्माण पाँच तत्वों की मदद से किया गया है। इस मत ने यह भेद खोला कि इस ब्रहमाण्ड ;3 लोकद्ध की रचना निरंजन काल पुरुष ने की है और 84 लाख योनियों का निर्माण पाँच तत्वों की मदद से किया गया है। यह ध्यान की पाँच मुद्राओं को मानता है वे हैं चाचरीए भूचरीए अगोचरीए उन्मुखी और खेचरी। यह मत आध्यात्म की शुरुआत योगमत के अंत से करता है अर्थात ध्यान की इन पाँच मुद्राओं से ऊपर। यह केवल शिष्य की अपनी आध्यात्मिक कमाई पर निर्भर करता है ;सूरत शब्द योग या योग शब्द कमाईद्ध। यह पूर्णतरू पूर्ण संत सद्गुरु की कृपा व आशीर्वाद पर आधारित है यहाँ सद्गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्ति से शिष्य को मन.माया से अलग करता हुआ परम पुरुष मे विलीन कर देता है। कोई साधक इस मार्ग से ब्रहमाण्ड ;3 लोकद्ध की सीमा में बनाए गए चार अस्थाई मोक्षों में से एक मोक्ष पा सकता हैए जिनका सृजन आत्मा को भ्रमित करने के लिए किया गया है। शिष्य जन्म.मरण से मुक्त होकर इस ब्रहमाण्ड की सीमा से परे स्थायी मोक्ष को पाकर अमरलोक में निवास पाता है। पवित्र नाम निरंजन काल पुरुष ;मनद्ध के सीमा क्षेत्र में आता है जो प्रत्येक जीव में विद्यमान है। संजीवन नाम वास्तव में एक सच्ची शक्ति है जो स्वयं परम पुरुष साहिब ही हैं। इसकी पहुँच दशवे द्वार तक है जिसमें प्रवेश प्रत्येक मानव शरीर में मौजूद सुषमना नाड़ी के माध्यम से किया जाता है। संजीवन नाम लिखाए पढ़ा या बोला नही जा सकता और यह पाँच तत्वों से परे है। श्मीनश् तथा श्पपीलश् मार्ग का अनुसरण करता है। इस मत ने यह भेद खोला कि इस ब्रहमाण्ड ;3 लोकद्ध की रचना निरंजन काल पुरुष ने की है और 84 लाख योनियों का निर्माण पाँच तत्वों की मदद से किया गया है। Navigation Home About Download What's New Contact © 2015 Copyright. All Rights Reserved Privacy Policy Disclaimer Feedback Copyright Site Map

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