Wednesday, 21 February 2018

तुलसी अमृत वचन

[22/02, 9:24 AM] Vedant:          

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Goswami Tulsidas ke Dohe With Meaning in Hindi

by chip level on April 19, 2015 in Inspirational quotes

TULSIDAS JI KE DOHE WITH MEANING IN HINDI.

गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे (Goswami Tulsidas ke Dohe With Hindi Meaning)

Ramcharitmanas in hindi  

 राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||

अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो |

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |

जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||

अर्थ : राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |

सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |

 सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||

अर्थ : शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते |शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |

 तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।

अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |

 सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||

अर्थ : जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |

 दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|

 
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||

अर्थ : स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |

 मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है

Rahim ke Dohe रहीम दास जी के दोहे
Sant Kabir ke Dohe संत कबीर दास जी के दोहे

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Tags # Inspirational quotes

     

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[22/02, 9:27 AM] Vedant: तुलसीदास के 51 अनमोल दोहे

DECEMBER 10, 2015 BY ROHIT MISHRA 14 COMMENTS

Tulsidas Ke Dohe in Hindi – तुलसीदास के 51 अनमोल दोहे

चित्रकुट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर।।

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।।

गोधन गजधन बाजिधन और रतन धन खान।
जब आवत सन्‍तोष धन, सब धन धूरि समान।।

एक ब्‍याधि बस नर मरहिं ए साधि बहु ब्‍याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि।।

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर।
बसीकरण एक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

बारि मथें घृत बरू सिकता ते बरू तेल।
बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल।।

नामु राम को कलपतरू क‍लि कल्‍यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्‍हहि बिलोकति हानि।।

सहज सुहृद गुर स्‍वामि सिख जो न करइ सिर मानि।
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि।।

नेम धर्म आचार तप ग्‍यान जग्‍य जप दान।
भेषज पुनि कोटिन्‍ह नहिं रोग जाहिं हरिजान।।

ब्रह्म पयोनिधि मंदर ग्‍यान संत सुर आहिं।
कथा सुधा मथि काढ़हिं भगति मधुरता जाहिं।।

बिरति चर्म असि ग्‍यान मद लोभ मोह रिपु मारि।
जय पाइअ सो हरि भगति देखु खगेस बिचारि।।

ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात।
कौड़ी लागी लोभ बस करहिं बिप्र गुर बात।।

जाकी रही भावना जैसी।
हरि मूरत देखी तिन तैसी।।

सचिव बैद गुरू तीनि जौ प्रिय बो‍लहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर कोइ होइ बेगिहीं नास।।

सुरनर मुनि कोऊ नहीं, जेहि न मोह माया प्रबल।
अस विचारी मन माहीं, भजिय महा मायापतिहीं।।

देव दनुज मुनि नाग मनुज सब माया विवश बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु कहा अपनपो हारे।।

फोरहीं सिल लोढा, सदन लागें अदुक पहार।
कायर, क्रूर , कपूत, कलि घर घर सहस अहार।।

सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा।
जिम हरि शरण न एक हू बाधा।

तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज।
राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरूराज।।

तुलसी ममता राम सों समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार।।

नीच निचाई नही तजई, सज्जनहू के संग।
तुलसी चंदन बिटप बसि, बिनु बिष भय न भुजंग।।

राम दूरि माया बढ़ती, घटती जानि मन माह।
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह।।

नाम राम को अंक है, सब साधन है सून।
अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दास गून।।

तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं हमें पूछिह कौन।।

होई भले के अनभलो, होई दानी के सूम।
होई कपूत सपूत के ज्‍यों पावक में धूम।।

तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक।
आदि अन्‍त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक।।

तुलसी इस संसार में सबसे मिलियो धाई।
न जाने केहि रूप में नारायण मिल जाई।।

तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक।
साहस सुकृति सुसत्‍य व्रत राम भरोसे एक।।

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया ना छोडिये जब तक घट में प्राण।।

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।

राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि।
राग न रोष न दोष दु:ख सुलभ पदारथ चारी।।

हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ।
तुलसी स्‍वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ।।

बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्‍यों रख की आप छुवे सब कोय।।

जड़ चेतन गुन दोषमय विश्‍व कीन्‍ह करतार।
संत हंस गुन गहहीं पथ परिहरी बारी निकारी।।

प्रभु तरू पर, कपि डार पर ते, आपु समान।
तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान।।

मनि मानेक महेंगे किए सहेंगे तृण, जल, नाज।
तुलसी एते जानिए राम गरीब नेवाज।।

मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक ।।

काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौ तुलसी एक समान।।

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

मो सम दीन न दीन हित तुम्‍ह समान रघुबीर।
अस बिचारी रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर।।

कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम।।

सो कुल धन्‍य उमा सुनु जगत पूज्‍य सुपुनीत।
श्रीरघुबीर परायन जेहि नर उपज बिनीत।।

मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन।
अस बिचारी तजि संसय रामहि भजहि प्रबीन।।

तुलसी किएं कुसंग थिति, होहि दाहिने बाम।
कहि सुनि सुकुचिअ सूम खल, रत हरि संकर नाम।।

बसि कुसंग चाह सुजनता, ता‍की आस निरास।
तीरथहू को नाम भो, गया मगह के पास।।

सो तनु धरि हरि भजहि न जे नर।
होहि बिषय रत मंद मंद तर।।

काँच किरिच बदलें ते लेहीं।
कर ते डारि परस मनि देहीं।।

तुलसी जे की‍रति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहै, मिटिहि न मरहि धोइ।।

तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडम्‍बना, परिनामहु गत जान।।

बचन बेष क्‍या जानिए, मनमलील नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारी।।

राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार।।

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COMMENTS

Rajinder says

December 2, 2017 at 10:05 pm

I want to find out wether “Sach kahon sun laho sabhe jin prem kio tin he Prabh payo” is a Tulsi
Das doha. If so please tell me which book and doha number?

Reply

Mahavir Uttranchali says

July 12, 2017 at 2:17 pm

कवियों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास।
रामचरितमानस रचा, राम भक्त ने खास।।

दोहा / कवि—महावीर उत्तरांचली

Reply

कमल says

June 24, 2017 at 1:05 pm

राम
के.के.

गोस्वामी तुलसीदास जी के लिए कोई शब्द अपने आप में स्थान ही नहीं रखता।

जै जै सियाराम
जय जय हनुमान

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे नेह॥

Reply

Rishabh says

May 17, 2017 at 7:59 am

Nice list…helped me a lot to complete my holiday homework…

Awesome…

It would have been more cool if u would have given the meaning too with them.

Reply

Arfu says

November 20, 2016 at 9:09 pm

Zazak Allah Kheer that these Tulsidaas ke Dohe you gave me from these you helped me to completing my project..

Reply

suraj says

October 19, 2016 at 4:36 am

mujhe bhi achha laga but smajh me kuch hi aya

Reply

दिव्या says

October 12, 2016 at 5:47 pm

दोहे पढ़कर बहुत अच्छा लगा। किंतु कुछ दोहों का भाव मुश्किल है।

Reply

Trisha says

October 2, 2016 at 3:55 am

Thanks for the tulsidas ke dohes. Needed for school home assingment.

Reply

Trisha says

October 2, 2016 at 3:54 am

Thanks for the tulsidas ke dohes. Needed for school home assingment.

Reply

Hemant says

January 26, 2017 at 8:15 pm

Bhut achhe

Reply

Ann Maria Joseph says

September 16, 2016 at 2:58 am

thank you for giving me Tulasidas dhoha

Reply

muskan amesar says

August 31, 2016 at 8:54 am

Thank u for give me doha of tulsidas

Reply

krutik says

July 6, 2016 at 4:42 pm

thans for you are give me “tulsidas ke dohe”

Reply

pawar Sachin says

July 5, 2016 at 4:27 pm

Yah Sari Katha Ye Mujhe Acchi Lagi Aour Aap Aaisi Kahani Aour Bhi Articale De. Thanks

Reply

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