Friday 2 February 2018

जोशीमठ

मुख्य मेनू खोलें खोजें 3 संपादित करेंध्यानसूची से हटाएँ। किसी अन्य भाषा में पढ़ें जोशीमठ जोशीमठ उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर है। यहां ८वीं सदी में धर्मसुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की। जाड़े के समय इस शहर में बद्रीनाथ की गद्दी विराजित होती है जहां नरसिंह के सुंदर एवं पुराने मंदिर में इसकी पूजा की जाती है। बद्रीनाथ, औली तथा नीति घाटी के सान्निध्य के कारण जोशीमठ एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन गया है तथा अध्यात्म एवं साहसिकता का इसका मिश्रण यात्रियों के लिए वर्षभर उत्तेजना स्थल बना रहता है। जोशीमठ —  नगर  —  जोशीमठ  समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) देश  भारत राज्य उत्तराखंड जनसंख्या 13,202 (2001 तक ) जोशीमठ में आध्यात्मिता की जड़े गहरी है तथा यहां की संस्कृति भगवान विष्णु की पौराणिकता के इर्द-गिर्द बनी है। प्राचीन नरसिंह मंदिर जो उन्हे समर्पित है - उन्हे नमन तथा उनकी लोकप्रियता को दर्षाती है - लोगों का सालोंभर यहां लगातार आना रहता है। ऐतिहासिक तौर पर, जोशीमठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र जिसकी स्थापना 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य ने की थी। यहां शहर की परिवेश तथा जलवायु निश्चित रूप से धार्मिक मान्यताओं से अधिकांशतः प्राचीन तथा पूजित स्थल हैं। शहर के आस-पास घूमने योग्य स्थानों में औली, उत्तराखंड का मुख्य स्की रिसॉर्ट शामिल है। जोशीमठ की यात्रा हमारे देश की संस्कृतिक विरासत का गहन दृश्य उपस्थित करेगा। इतिहास संपादित करें मुख्य लेख : जोशीमठ का इतिहास पांडुकेश्वर में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी, जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। लगता है कि एक क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा जोशीमठ में अपनी राजधानी बसायी। वासुदेव कत्यूरी ही कत्यूरी वंश का संस्थापक था। जिसने 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर शासन किया। फिर भी हिंदुओं के लिये एक धार्मिक स्थल की प्रधानता के रूप में जोशीमठ, आदि शंकराचार्य की संबद्धता के कारण मान्य हुआ। जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है जिसे कभी-कभी ज्योतिषपीठ भी कहते हैं। इसे वर्तमान 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। उन्होंने यहां एक शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया और यहीं उन्हें ज्योति या ज्ञान की प्राप्ति हुई। यहीं उन्होंने शंकर भाष्य की रचना की जो सनातन धर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। पौराणिक संदर्भ संपादित करें मुख्य लेख : जोशीमठ का पौराणिक संदर्भ जैसा कि अधिकांश प्राचीन एवं श्रद्धेयस्थलों के लिये होता है, उसी प्रकार जोशीमठ का भूतकाल किंवदन्तियों एवं रहस्यों से प्रभावित है जो इसकी पूर्व प्रधानता को दर्शाता है। माना जाता है कि प्रारंभ में जोशीमठ का क्षेत्र समुद्र में था तथा जब यहां पहाड़ उदित हुए तो वह नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तपोभूमि बनी। लोग व समाज संपादित करें मंदिरों के हर प्राचीन शहर की तरह जोशीमठ भी ज्ञान पीठ है जहां आदि शंकराचार्य ने भारत के उत्तरी कोने के चार मठों में से पहला की स्थापना की। इस शहर को ज्योतिमठ भी कहा जाता है तथा इसकी मान्यता ज्योतिष केंद्र के रूप में भी है। संपूर्ण देश से यहां पुजारियों, साधुओं एवं संतों का आगमन होता रहा तथा पुराने समय में कई आकर यहीं बस गये। बद्रीनाथ मंदिर जाते हुए तीर्थयात्री भी यहां विश्राम करते थे। वास्तव में तब यह मान्यता थी कि बद्रीनाथ की यात्रा तब तक अपूर्ण रहती है जब तक जोशीमठ जाकर नरसिंह मंदिर में पूजा न की जाए। आदि शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना तथा वहां नम्बूद्रि पुजारियों को बिठाने के समय से ही जोशीमठ बद्रीनाथ के जाड़े का स्थान रहा है और आज भी वह जारी है। जाड़े के 6 महीनों के दौरान जब बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढंका होता है तब भगवान विष्णु की पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में ही होती है। बद्रीनाथ के रावल मंदिर कर्मचारियों के साथ जाड़े में जोशीमठ में ही तब तक रहते हैं, जब कि मंदिर का कपाट जाड़े के बाद नहीं खुल जाता। जोशीमठ एक परंपरागत व्यापारिक शहर है और जब तिब्बत के साथ व्यापार चरमोत्कर्ष पर था तब भोटिया लोग अपना सामान यहां आकर बिक्री करते थे एवं आवश्यक अन्य सामग्री खरीदकर तिब्बत वापस जाते थे। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापारिक कार्य बंद हो गया और कई भोटिया लोगों ने जोशीमठ तथा इसके इर्द-गिर्द के इलाकों में बस जाना पसंद किया। संगीत एवं नृत्य संपादित करें पर्वतों से दूर होने के कारण, जहां वे रहते हैं, यह सुनिश्चित हुआ कि वे अपने विशिष्ट सांस्कृतिक परंपरा को संगीत एवं नृत्य के रूप में कायम रख सकें। अधिकांश गीत एवं नाच या तो धार्मिक या फिर लोगों की जीवन शैली पर आधारित हैं जो आज भी मूल रूप से कृषिकार्य से संबंधित हैं। गीत के साथ थाडिया नृत्य बसंत पंचमी को होता है जो बसंत के आगमन समारोह का प्रतीक है। झुमेला नृत्य दीपावली पर होता है तथा पांडव नृत्य जाड़े में फसल कटने के बाद किया जाता है, जिसमें महाभारत की प्रमुख घटनाओं को प्रदर्शित किया जाता है। जीतू बगडवाल तथा जागर जैसे अन्य नृत्यों में पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन होता है। परंपरागत परिधानों से सज्जित नर्तक ढोल एवं रनसिंधे की धुन पर थिरकते हैं। लोकगीतों का गायन खासकर उस समय होता है जब महिलायें एक जगह जमा होकर परंपरागत गीत गाती हैं, जिनमें बहादुरी के कारनामे, प्रेम तथा कठिन जीवन, जो पहाड़ी पर वे व्यतीत करती हैं, शामिल रहते हैं। जिले में मनोरंजन एवं मनोविनोद के प्रमुख अवसर त्योहार, धार्मिक एवं सामाजिक मेले है। विशेष अवसरों पर लोग शिव एवं पार्वती से संवंधित किंवदन्तियों का स्वांग रचते हैं। दशहरे के दौरान रामलीला का वार्षिक आयोजन होता है। नरसिंह मंदिर पर एक अन्य समारोह तिमुंडा बीर मेला आयोजित होता है। स्पष्ट रूप से इस समारोह में बीर 8 किलो कच्चा चावल, बड़ी मात्रा में गुड़ तथा घी के साथ एक बकरे का खून पीता है तथा उसके गुर्दे एवं हृदय का भक्षण करता है। उसके बाद वह भगवती के वशीभूत होकर अचेतावस्था में नाचता है। बोली की भाषाएं संपादित करें गढ़वाली, हिन्दी, भोटिया भाषा और अंग्रेजी। वास्तुकला संपादित करें ई.टी. एटकिंस दी हिमालयन गजेटियर, (वोल्युम III, भाग I, वर्ष 1982) के अनुसार इस शहर की वास्तुकला इस प्रकार है, “विष्णुप्रयाग से इस शहर में प्रवेश किनारे के ऊपर से होता है जहां स्लेटों तथा पत्थरों से कटी सीढ़ियां हैं और इसी प्रकार इस स्थान के रास्तों में भी ऐसा ही है, पर यह बहुत ही अनियमित है। घर साफ पत्थरों से बने हैं जिनकी छतें स्लेटों या चिकने पत्थरों या तख्तों से ढंकी होती हैं। इसके बीच रावलों तथा बद्रीनाथ के अन्य पुजारियों के सुंदर निर्मित घर हैं जो यहां नवंबर से मई के बीच रहते हैं, जब उनके मंदिर के रास्ते बर्फ से ढंके रहते हैं। नरसिंह की प्रतिमा वाला भवन निजी घर जैसा ही दिखता है, न कि एक हिंदू मंदिर की तरह। इसके निर्माण नुकीले भवन जैसा होता है जिसके छत की ढलान एक तांबे की चादर से ढंकी रहती है। इसके सामने एक बड़ा खुला मैदान है जिसमें पत्थर की एक मांद है जिसमें दो नल हैं जिससे लगातार पानी का बहाव होता रहता है और इसमें पानी की आपूर्त्ति गांव के दक्षिण पहाड़ी पर एक झरने से होती है। पहले तीर्थयात्री यहीं रूकते थे पर वे अब धर्मशालाओं में विश्राम करते हैं जो अब शहर की मुख्य सड़कों पर स्थित हैं। एक दस फीट ऊंचे चबूतरे पर महान पुरातात्विक चिह्नों के कई मंदिर मैदान के एक ओर श्रेणीबद्ध हैं। क्षेत्र के बीच में 30 फीट स्थल पर दीवालों के अंदर विष्णु को समर्पित एक मंदिर है। कई मंदिर छिन्न-भिन्न हैं, जिनका अंश भूकंप से ध्वस्त हो गया है।” इन दिनों, फिर भी प्राचीन मंदिरों के अलावा, शहर की वास्तुकला को बताने को कुछ खास नहीं है। उत्तरी भारत की कंक्रीट भवनों की तरह यहां भी ये प्रायः दिखाई पड़ते हैं। परंपराएं संपादित करें मुख्य लेख : जोशीमठ की परंपराएं आदि शंकराचार्य अपने 109 शिष्यों के साथ जोशीमठ आये तथा अपने चार पसंदीदा एवं सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया था। उनके शिष्य ट्रोटकाचार्य इस प्रकार ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य हुए। जोशीमठ वासियों में से कई उस समय के अपने पूर्वजों की संतान मानते हैं जब दक्षिण भारत से कई नंबूद्रि ब्राह्मण परिवार यहां आकर बस गए तथा यहां के लोगों के साथ शादी-विवाह रचा लिया। जोशीमठ के लोग परंपरागत तौर से पुजारी और साधु थे जो बहुसंख्यक प्राचीन एवं उपास्य मंदिरों में कार्यरत थे तथा वेदों एवं संस्कृत के विद्वान थे। नरसिंह और वासुदेव मंदिरों के पुजारी परंपरागत डिमरी लोग हैं। यह सदियों पहले कर्नाटक के एक गांव से जोशीमठ पहुंचे। उन्हें जोशीमठ के मंदिरों में पुजारी और बद्रीनाथ के मंदिरों में सहायक पुजारी का अधिकार सदियों पहले गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया। वह गढ़वाल के सरोला समूह के ब्राह्मणों में से है। शहर की बद्रीनाथ से निकटता के कारण यह सुनिश्चित है कि वर्ष में 6 महीने रावल एवं अन्य बद्री मंदिर के कर्मचारी जोशीमठ में ही रहें। आज भी यह परंपरा जारी है। पर्यावरण संपादित करें त्रिशूल शिखर से उतरती ढाल पर, संकरी जगह पर अलकनंदा के बांयें किनारे पर जोशीमठ स्थित है। इसके दोनों ओर एक चक्राकार ऊंचाई की छाया है और खासकर उत्तर में एक ऊंचा पर्वत उच्च हिमालय से आती ठंडी हवा को रोकता है। यह तीन तरफ बर्फ से ढंके दक्षिण में त्रिशूल (7,250 मीटर), उत्तर पश्चिम में बद्री शिखर (7,100 मीटर), तथा उत्तर में कामत (7,750 मीटर) शिखर से घिरा है। हर जगह से हाथी की शक्ल धारण किये हाथी पर्वत को देखा जा सकता है। फिर भी इसकी सबसे अलौकिक विशेषता है– एक पर्वत, जो एक लेटी हुई महिला की तरह है और इसे स्लीपिंग ब्यूटी के नाम से पुकारा जाता है। वनस्पतियां संपादित करें अलकनंदा के किनारे जोशीमठ के नजदीक का इलाका वनस्पतियों का धनी है। यहां की खासियत है– एन्सलिया एपटेरा, बारबरिस स्पप, सारोकोका प्रियुनिफॉरमस स्पप जैसे पौधे, जो यहां के वन में पैदा होते हैं, जहां की जलवायु नम है। यहां बंज बलूत के जंगल भी हैं, जहां बुरांस, अयार, कारपीनस, विमिनिया तथा ईलेक्स ओडोराला के पेड़ पाये जाते हैं। तिलौज वन में लौरासिया, ईलेक्स, बेतुला अलन्वायड्स के पेड़ तथा निचले नीले देवदार के वन में यूसचोल्जिया पोलिस्टाच्या, विबुमन फोक्टेन्स, रोसा माउक्रोफाइला, विबुमन कोटोनिफोलियन, एक्सायकेरिया एसीरीफोलिया आदि झाड़ियां भी होती हैं। चिड़ के पेड़ भी बहुतायत में है तथा इसके ऊपर बलूत एवं सिमुल पाये जाते हैं, जहां पहले की लकड़ी सख्त होती है जिसका इश्तेमाल कृषि उपकरणों के लिये तथा बाद वाले का जलावनों में होता है। जिले में भवनों में चीड़ की लकड़ी का इश्तेमाल होता है और इसके तख्ते एवं जड़ों को अलकनंदा में बहाकर मैदानों में भेजा जाता है। जीव-जंतु संपादित करें जोशीमठ के इर्द-गिर्द पाये जाने वाले जंगली जानवरों में लकड़बग्घे, जंगली बिल्लियां, भेड़िये, गीदड़, साही तथा पहाड़ी लोमड़ी शामिल हैं। यह क्षेत्र पक्षियों से भरा पड़ा है तथा शिकारी पक्षी बाज, चील, श्येनपक्षी तथा गिद्ध सामन्य रूप से मिलते हैं। अन्य पक्षियों में राम चिरैया, सफेद छाती वाला चिरैया, छोटी चिरैया, नीलमी पक्षी, काले परों का ओड़ियाल, छोटी कोयल, भारतीय कोयल तथा यूरोपीय कोयल शामिल हैं। अन्य सामान्य पक्षियों में गोरैया, बागरेल, पिटपिटी चिड़िया, भारतीय पिटपिटी, ऊंचाई की छिपकिली, घरेलू छिपकिली, पाराकीट चट्टानी कबूतर तथा हिमालयी कठफोड़वा शामिल हैं। जोशीमठ के आस-पास गांवों की झीलों में मछलियां पायी जाती है जो भोजन को स्वादिष्ट बनाती है। यहां की सामान्य प्रजाति असेला, सौल, मदशेर, कलावंश या करोच तथा फक्ता या फार कटा है। पर्यटन संपादित करें कुछ लोगों के अनुसार जोशीमठ शहर 3,000 वर्ष पुराना है जिसके महान धार्मिक महत्त्व को यहां के कई मंदिर दर्शाते हैं। यह बद्रीनाथ गद्दी का जाड़े का स्थान है यह बद्रीनाथ मंदिर के जाड़े का बद्रीनाथ गद्दी एवं बद्रीनाथ का पहुंच शहर है। यात्रियों के लिये यह कुछ असामान्य आकर्षण पेश करता है, जैसे प्रिय औली रज्जुमार्ग तथा चढ़ाई के अवसर जो प्राचीन एवं पौराणिक स्थलों के अलावा होता है। शहर संपादित करें जोशीमठ में प्रवेश करते ही आपके सामने सड़क के किनारे एक छोटा झरना जोगी झरना आता है। इसे जोगी झरना इसलिये कहा जाता है क्योंकि कई योगी एवं साधु झील के ठंडे जल में यहां स्नान करने के लिये रूकते हैं। जोशीमठ के संकडी मुख्य सड़क तथा प्रमुख बाजार का निर्माण निश्चय ही आज के भारी आवाजाही के लिये नहीं हुआ था। तीर्थयात्रियों एवं यात्रियों से लदे विशाल पर्यटक बसें, गाड़ियां सभी प्रकार एवं आकार की कारें बद्रीनाथ की यात्रा पर यहां तांता बांध देते हैं तथा कुछ जगहों पर रास्ता अवरोध के कारण परिवहन की कठिनाइयां आ जाती हैं, क्योंकि सड़क इतना ही चौड़ा होता है कि आराम से दो कारें ही एक-दूसरे को पार कर सकती हैं। जोशीमठ के पुलिस कर्मचारी परिवहन सेवा कायम रखने का अच्छा कार्य करते हैं, जहां कभी-कभी एक-दूसरे से टकराने से एक बाल की दूरी पर ही इन्हें बचा लिया जाता है। मुख्य सड़क के ऊपर पुराना शहर बसा है जहां ज्योतिर्मठ, कल्पवृक्ष तथा आदि शंकराचार्य के पूजास्थल की गुफा है और इसके नीचे बद्रीनाथ की ओर बाहर निकलने पर जोशीमठ के दो प्रमुख आकर्षण नरसिंह मंदिर तथा वासुदेव मंदिर स्थित हैं। कुछ दूरी तक जोशीमठ के यात्रियों एवं वासियों के जीवन को यहां की द्वार प्रणाली द्वारा नियमित किया जाता है। बद्रीनाथ के लिये गाड़ियां 6-7, 9-10, 11-12 बजे दिन तथा 2-3 एवं 4.30-5.30 बजे दोपहर बाद छूटती हैं। गेट खुलने का समय जैसे ही निकट होता है तो नरसिंह मंदिर के पास पुलिस चौकी से लगभग मुख्य सड़क तक गाड़ियों की सर्पिली पंक्ति बनने लगती है। गर्मियों में एक द्वार पर लगभग 300 गाड़ियां इकट्ठा हो जाती हैं। इसी समय रास्ते पर फेरी वाले व्यस्त हो जाते हैं जो एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी के बीच चाय, हल्का नाश्ता, शाल, स्वेटर तथा मनके बेचते हैं। बद्रीनाथ से जैसे ही परिवहन शहर में आता है तो मुख्य सड़क बाजार पर फिर जाम हो जाता है। शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान जाते हुए आपको गेट का ध्यान रखना पड़ता है, ताकि आप ट्रैफिक में न फंसें। गढ़वाल मंडल विकास निगम रज्जुमार्ग संपादित करें आता-जाता रज्जुमार्ग जोशीमठ से औली को जोड़ता है जो गर्मी एक सुंदर बुगियाल तथा जाड़े में स्की ढलान होता है, तथा यह भारत का सबसे लंबा 4.15 किलोमीटर मार्ग है। 6,000 फीट से 10,200 फीट ऊंचाई पर कार्यरत यह दूसरा सबसे ऊंचा मार्ग भी है। 3 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से यह 22 मिनट में पहुंच जाता है। गर्मियों में 8 बजे सुबह से 6.50 शाम तक तथा जाड़ों में 8 बजे सुबह से 4.30 बजे शाम तक कार्यरत है एवं इसका भाड़ा वर्षभर 400 रूपये प्रति व्यक्ति होता है। वर्ष 1992 में यह रज्जुमार्ग जीएमवीएन ने चालू किया जो बहुत सफल हुआ। जबकि जाड़ों में रज्जुमार्ग स्कीईंग के गंभीर इच्छा रखने वाले को ही औली क्रीड़ा के लिये ले जाता है जो प्रतिदिन 50-75 लोग होते हैं, पर गर्मियों में वैसे यात्री होते हैं जो केवल आनंद सैर के लिये औली जाते हैं। गर्मियों में 400-500 यात्रियों द्वारा इसका इस्तेमाल होता है। शहर की एक प्रमुख विशेषता द्रोणगिरी, कामेत, बरमाल, माना, हाथी-घोड़ी-पालकी, मुकेत, बरथारटोली, नीलकंठ एवं नंदा देवी जैसे पर्वतों के मनोरम दृश्य होते हैं। कल्पवृक्ष एवं आदि शंकराचार्य गुफा संपादित करें कहा जाता है कि 8वीं सदीं में सनातन धर्म का पुनरूद्धार करने आदि शंकराचार्य जब उत्तराखंड आये थे तो उन्होंने इसी शहतूत पेड़ के नीचे जोशीमठ में पूजा की थी। यहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि उन्होंने राज-राजेश्वरी को अपना ईष्ट देवी माना था और इसी पेड़ के नीचे देवी उनके सम्मुख एक ज्योति या प्रकाश के रूप में प्रकट हुई तथा उन्हें बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की शक्ति तथा सामर्थ्य प्रदान किया। जोशीमठ, ज्योतिर्मठ का बिगड़ा स्वरूप है, जो इस घटना से संबद्ध है। अब यह पेड़ 300 वर्ष पुराना है तथा इसके तने 36 मीटर में फैले हैं। यह भी कहा जाता है कि यह पेड़ वर्षभर हरा-भरा रहता है एवं इससे पत्ते कभी नहीं झड़ते। पेड़ के ठीक नीचे आदि शंकराचार्य की गुफा है तथा इसमें आदि गुरू की एक मानवाकार मूर्ति स्थापित है। ट्रोटकाचार्य गुफा एवं ज्योतिर्मठ संपादित करें स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के कार्यालय एवं आवास में ज्योतिर्मठ के अंदर गुफा स्थित है। यही वह गुफा है जहां आदि शंकराचार्य के चार सबसे विद्वान एवं पसंदीदा शिष्यों में से एक ट्रोटका ने आराधाना की थी। आदि गुरू ने बाद में इन्हें ज्योतिर्मठ का प्रथम शंकराचार्य बना दिया। मठ 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित हाल का मंदिर है। मूल मठ पहाड़ी के ऊपर है तथा शंकराचार्य नाम के एक दावेदार के नियंत्रण में है। जोशीमठ से 25 किलोमीटर दूर एक संस्कृत महाविद्यालय तथा भवन के अंदर एक आश्रम, मठ द्वारा चलाया जाता है। वर्तमान में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य पद पर स्वामी माधवाश्रम जी महाराज विराजमान हैं। ज्योतेश्वर महादेव मंदिर संपादित करें यह मंदिर कल्पवृक्ष के एक ओर स्थित है। कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद आदि शंकराचार्य ने यहां के एक प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग की पूजा की थी। यहां के गर्भगृह में पीढ़ियों से एक दीया (दीप) प्रज्वलित है। श्री विष्णु मंदिर संपादित करें यह मंदिर धौली गंगा एवं अलकनंदा के संगम पर है जो बद्रीनाथ सड़क पर 10 किलोमीटर दूर पर नगरपालिका क्षेत्र के अंतर्गत है। यह अलकनंदा नदी पर अंतिम पंच प्रयागों में है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने तब की थी जब उन्हें एक स्वप्न आया कि भगवान विष्णु की एक अन्य प्रतिमा अलकनंदा नदी में तैर रही थी। इस मंदिर का प्रशासन बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के हाथों में है। नरसिंह मंदिर संपादित करें मुख्य लेख : नरसिंह मंदिर राजतरंगिणी के अनुसार 8वीं सदी में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़ द्वारा अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान प्राचीन नरसिंह मंदिर का निर्माण उग्र नरसिंह की पूजा के लिये हुआ जो विष्णु का नरसिंहावतार है। जिनका परंतु इसकी स्थापना से संबद्ध अन्य मत भी हैं। कुछ कहते हैं कि इसकी स्थापना पांडवों ने की थी, जब वे स्वर्गरोहिणी की अंतिम यात्रा पर थे। दूसरे मत के अनुसार इसकी स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने की क्योंकि वे नरसिंह को अपना ईष्ट मानते थे। मन्दिर परिसर आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी स्थित है। यहाँ पर आदि गुरु को दिव्य ज्ञान रुपी ज्योति की प्राप्ति हुई थी जिसके फलस्वरुप पीठ का नाम ज्योतिष्पीठ पड़ा। वर्तमान में इस पीठ पर शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी पीठासीन हैं। वासुदेव एवं नवदूर्गा मंदिर संपादित करें नरसिंह मंदिर के सामने एक इतना ही प्राचीन एवं पवित्र मंदिर भगवान विष्णु के एक अवतार वासुदेव या भगवान कृष्ण को समर्पित है। मंदिर के पुजारी रघुनंद प्रसाद डिमरी के अनुसार मंदिर की मौखिक परंपरा 2200 वर्षों की है। पुरातात्विक स्रोत के अनुसार मंदिर का निर्माण 7-8वीं सदी के दौरान कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया। संभवत: मंदिर आज की बजाय अधिक ऊंचा रहा होगा, जिसे अब वर्तमान ऊंचाई में हाल ही में पुनर्निर्मित किया गया है। परिसर के चारों कोनों में स्थित चार मंदिर इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि मंदिर का ढांचा अधिक ऊंचा रहा होगा। प्रधान मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति उद्धव की मूर्ति कहलाती है, क्योंकि भगवान कृष्ण के मित्र उद्धव ने इसकी पूजा की थी। चतुर्भुज स्वरूप की यह सुंदर मूर्ति कला स्पष्टत: एक महान धरोहर है जो शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण किये हुए है, पर उस परंपरागत क्रम में नहीं, जैसा वे होते हैं। गदा एवं चक्र का स्थान एक-दूसरे से बदल गया है। कहा जाता है कि ऐसा इसलिये किया गया है कि राजा को यह सूक्ष्म संदेश मिले कि ये चार तत्व के उद्देश्यों का अनुगमन करें तो, अपनी प्रजा उसे भगवान विष्णु की तरह मानेगी। इसके थोड़ा पीछे बगल में भगवान कृष्ण के भाई बलराम की प्रतिमा है। समान रूप से गढ़ी मूर्ति के एक कंधे पर हल है तथा आधार पर गंधर्व एवं अप्सराएं हैं। गर्भगृह में बाद की प्रतिमाओं में लक्ष्मी-नारायण तथा राधा-कृष्ण शामिल हैं। मंदिर की सीमा दीवार के साथ परिक्रमा मार्ग पर छोटे-छोटे मंदिर हैं जो गणेश, सूर्य, काली, भगवान शिव, भैरव, नवदुर्गा एवं गौरी-शंकर को समर्पित हैं। नवदुर्गा मंदिर का खास महत्व है। यह भारत के कुछ मंदिरों में से एक है, जहां देवी दुर्गा के नौ रूपों की प्रतिमाएं हैं। ये हैं, ब्राह्मणी, कमलेदुं, माधेश्वरी, कुमारी, वैष्णवी, वाराही, चैंद्री, चामुंडा तथा रूद्राणी। प्रतिमाएं मूर्तिगढ़न के सुंदर नमूने हैं तथा इस छोटे मंदिर में पीढ़ियों से प्रज्जवलित एक अखंड ज्योति है। चढ़ाई (ट्रेकिंग) संपादित करें जोशीमठ से साहसिक पथिकों की कई चढ़ाइयां हैं। इनमें फूलों की घाटी की चढ़ाई सर्वाधिक सुंदर, पर दुर्गम है। अन्य चढ़ाइयों में नंदप्रयाग का कुआरी पास, जिसे कर्जन का पथ भी कहते हैं, शामिल हैं। अंतिम पर किसी से कम नहीं, नंदा देवी पक्षी विहार की चढ़ाई है जो जोशीमठ-बद्रीनाथ-लाटा गांव-लाटा खड़क, धारांस पास-दबरूघेटा-हितोली शिविर स्थल-जोशीमठ है। अधिक जानकारी के लिये इस स्थल के व्यावसिक प्रभाग के यात्रा संचालकों से संपर्क करें। निकटवर्ती आकर्षण संपादित करें धार्मिक महत्त्व से अलग, ज्योतेश्वर महादेव मंदिर नीति घाटी के प्रमुख केंद्र के रूप में सेवा करता है। यह नयी पहाड़ी स्थल की तरह विकसित हो रहा है जो आगे की यात्राओं का आधार स्थल बनता है, जिसकी अनेक संभावनाएं हैं। इनके अलावा पास ही कई प्राचीन मंदिर हैं। तपोवन संपादित करें जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूर नीति घाटी के मार्ग पर। जोशीमठ से तपोवन जाते हुए आप एक अधिक शांत घाटी में पहुंचते हैं, जहां हरे एवं पीले चबूतरी खेतों के अलावा द्रोणगिरि एवं भविष्य बद्री के पर्वतों का दृश्य है। तपोवन अपने गर्म कुड़ों एवं जलाशयों के लिये प्रसिद्ध है। यहां गुनगुने पानी का एक बड़ा जलाशय है जो वर्षभर गर्म जल में तैरने योग्य रहता है। अन्य दो, जल की झरनों की तरह हैं, जिनके चारों ओर सीढ़ियों द्वारा पहुंचने के रास्ते हैं। एक पुरूषों के लिये है जो वास्तव में गर्म जल है तथा दूसरा महिलाओं के लिये है जहां पानी थोड़ा कम गर्म रहता है। कहा जाता है कि इन किसी भी जलाशय में स्नान करना स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है क्योंकि पानी में खनिज पर्याप्त मात्रा में होते हैं। भगवान शिव एवं उनकी पत्नी पार्वती को समर्पित इन जलाशयों के निकट एक गौरी शंकर मंदिर है। माना जाता है कि भगवान शिव को पतिरूप में पाने के लिये इसी जगह पार्वती ने 6,0000 वर्षों तक तप किया था। उनके संकल्प की परीक्षा लेने भगवान शिव ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया। उसने पार्वती को बताया कि उसका तप निरर्थक है, क्योंकि भगवान शिव 88,000 वर्षों से तप कर रहे हैं और वह उतना तप नहीं कर सकती। उसने यह भी बताया कि भगवान इन्द्र या विष्णु की तरह देने को भगवान शिव के पास कुछ भी नहीं है। पार्वती ने परेशानी एवं क्रोध में तत्काल चले जाने को कहा। तब भगवान शिव असली रूप में आये और पार्वती से कहा कि उसकी तपस्या सफल हुई है और वह उनसे विवाह करेंगे। इसीलिये यह कहा जाता है कि जो कोई भी किसी इच्छा से इस मंदिर में पूजा करेंगे तो पार्वती की तरह उसकी इच्छा भी पूरी होगी। सलधर-गर्म झरना संपादित करें जोशीमठ से 18 किलोमीटर दूर एवं तपोवन से 3 किलोमीटर दूर। तपोवन से मात्र 3 किलोमीटर दूर आगे सड़क के दाहिने किनारे एक गर्म जल का स्रोत है, सलधर। यहां कि लाल मिट्टी से उबलते पानी का बुलबुला फूटता रहता है, जिसे छूआ भी नहीं जा सकता। गर्म झील के निकट का कीचड़ लोगों द्वारा ले जाया जाता है क्योंकि यह कई रोगों को ठीक कर देता है। इस स्थान से संबंधित एक दिलचस्प कहावत है। कहा जाता है कि जब रावण (मेघनाद) के साथ युद्ध में घायल हो लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में थे, तब राम ने हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिये हनुमान को भेजा जो लक्ष्मण को पूरी तरह स्वस्थ कर देता, जो संभवत: पुष्पों की घाटी होगी। इस बीच रावण ने एक भयंकर राक्षस कालनेमि को वहां भेज दिया, ताकि हनुमान उस बूटी को न ला पाएं। कालनेमि ने रूप बदलकर तपोवन के निकट उन्हें देख लिया तथा उन्हें आस-पास के प्राकृतिक सौंदर्य में फंसाकर उन्हें उद्देश्य विमुख करने का प्रयास किया। हनुमान ने पास की एक शिला पर अपने वस्त्र रखकर, नदी में स्नान करने का निर्णय किया। वह शिला एक शापग्रस्त सुंदर परी की थी, उसका उद्धार हो गया तथा उसने कालनेमि के बारे में हनुमान को बता दिया। हनुमान ने वहां कालनेभि को मार डाला और इसीलिये यहां का कीचड़ एवं जल रक्त की तरह लाल है। नीति घाटी संपादित करें नीति घाटी कभी तिब्बती व्यापारिक पथ का व्यस्त स्थल था और यहां के वासी भोटिया, मरचा एवं तोलचा आदि उन्नतशील व्यापारी थे। इस घाटी से कैलास मानसरोवर के प्रवेश का एक अन्य वैकल्पिक रास्ता निकलता था, जो कुछ लोगों के अनुसार सर्वाधिक सहज था। इसलिए सीमा बंद हो जाना इस क्षेत्र एवं यहां के लोगों के लिए एक बड़ा झटका था जिसने उनके जीवन, जीवन शैली तथा जीविका को प्रभावित किया। नीति घाटी विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय नंदादेवी पक्षी-विहार का प्रवेश द्वार भी है। आज यह यूनेस्को का विश्व-विरासत स्थल है, जिसे नंदादेवी जैविक संरक्षण के नाम जानते हैं जो पर्यावरणीय जैविक विविधता एवं सांस्कृतिक परंपराओं का अलौकिक खजाना है। यहां के एक गांव लाटा में नंदा देवी को समर्पित एक पुराना मंदिर भी है। भारत के इस भाग के अंतिम गांव नीति में पहुंच की एक सड़क है। यह जानना महत्त्वपूर्ण होगा कि वर्ष 1970 के दशक में वनों के संरक्षण के लिए लोगों के अलौकिक जागरण का चिपको आंदोलन का केंद्र लाटा गांव तथा पड़ोस का रेनी गांव था। चिपको आंदोलन लोगों के संरक्षण जागरूकता का प्रतीक था जिसने लोगों में पर्यावरण के प्रति रूचि तथा चौतरफा जागरूकता पैदा की जिसके परिणामस्वरूप हिमालयी पर्यावरण एवं विकास की नई नीति निरूपण में आया। इसने हिमालय के जंगलों में हरे पेड़ों को काटने से बचाया जो समुद्र तल से 1,500 मीटर ऊंचाई पर थे। औली संपादित करें मुख्य लेख : औली जोशीमठ से सड़क द्वारा 16 किलोमीटरसमुद्र तल से 3,000 मीटर ऊंचाई पर औली का बुगियाल जोशीमठ से सड़क द्वारा 16 किलोमीटर दूर तथा पैदल 8 किलोमीटर दूर है तथा रज्जुपथ (रोप 22वे) से मिनट की दूरी पर है, इस प्रत्येक यात्रा में एक अनुपम एवं उन्नत अनुभव प्राप्त होता है। गर्मी तथा बरसात में औली से गोरसन तक पैदल यात्रा की जा सकती है और यहां से कुआरी रास्ते तक और इस पथ पर हिमालयी पशु-पक्षियों से भरपूर तथा ढलानों पर ऊंचे पेड़-पौधे दिखाई देते हैं। वृद्ध-बदरी संपादित करें ऋषिकेश मार्ग पर जोशीमठ से 8 किलोमीटर दूर। वृद्ध बदरी या पुराना बदरी भगवान विष्णु को समर्पित प्राचीन मंदिर गढ़वाल के पंच बद्रियों में से एक है, मुख्य सड़क पर मंदिर द्वार के नीचे आधा किलोमीटर पैदल जाने पर ऊनीमठ गांव है। इसे वृद्ध बद्री कहा जाता है क्योंकि भगवान विष्णु वृद्ध स्वरूप में यहां नारद के सम्मुख प्रकट हुए थे। एक छोटे शांत गांव में एक विशाल बरगद के पेड़ की छाया में मंदिर स्थित है। यह स्पष्टत: एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है जो इस बात से प्रमाणित होता है कि कभी यहां का प्रबंधन दक्षिण भारत के एक रावल के हाथों था। आजकल यह मंदिर बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की देखरेख में है, पर यहां के पुजारी लक्ष्मी प्रसाद त्रिपाठी जिनका परिवार पीढ़ियों से मंदिर का प्रभारी रहा है, के अनुसार मंदिर की देखभाल वास्तव में यहां के 10-12 पुजारियों के परिवारों तथा स्थानीय लोगों द्वारा ही होता है। कई बार भगवान विष्णु की सुंदर कमलरूपी शालीग्राम की प्रतिमा की चोरी की गयी, पर उसे फिर पा लिया गया। मूर्ति की सुरक्षा के लिये अभी स्वयं पुजारी ने गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर लोहे का एक घेरा डाल दिया है। पास ही एक अन्य मंदिर भी है, पर अंदर की प्रतिमा गायब है। आवागमन संपादित करें हवाई मार्ग देहरादून के निकट जॉली ग्रांट निकटतम हवाई अड्डा 273 किलोमीटर दूर है। रेलमार्ग 253 किलोमीटर दूर ऋषिकेश निकटतम रेल-स्टेशन है। सड़क मार्ग जोशीमठ, देहरादून, ऋषिकेश तथा हरिद्वार से अच्छी तरह जुड़ा है। इन स्थानों से बस या टैक्सी उपलब्ध हैं। जोशीमठ से बद्रीनाथ की ओर की यात्रा ‘गेट’ प्रणाली से नियंत्रित है। इस सड़क पर जगह इतनी संकरी है कि वहां दो कतार में गाड़ियां (विपरीत दिशाओं से) नहीं गुजर सकती और इस कारण जोशीमठ एवं बद्रीनाथ दोनों दिशाओं से गाड़ियों की लंबी कतार लगी होती है जो निश्चित समय पर ही छोड़ी जाती है। यहां से निकलने का समय 6-7 तथा 9-10 बजे सुबह तथा 11-12 एवं 2.30 दोपहर तथा 4.30-5.30 शाम होता है। जोशीमठ या बद्रीनाथ से छूटने के बाद परिवहन फिर पांडुकेश्वर (लगभग बीच का स्थान) में रूकता है जो थोड़ी दूर का दोतरफा रास्ता है यहीं दोनों एक/दूसरे को पार करते हैं और इसके बाद फिर एकल-वाहन का रास्ता होता है। बाहरी कड़ियां संपादित करें Photos of Shankaracharya Swami Brahmanand Saraswati Shri Jyotishpeethodwarak Brahmleen Jagadguru Bhagwan Shankaracharya Shrimad Swami Brahmanand Saraswatiji Maharaj of Jyotirmath, Badrikashram Life and Works of Adi Shankara Shri Shankaracharya Upadesh Amrita 108 Hindi quotations of Shankaracharya Swami Brahmanand Saraswati Amrita-Kana' (Droplets of Nectar) Short quotations of Shankaracharya Brahmananda Saraswati Booklet of 30 short quotations of Shankaracharya Swami Brahmanand Saraswati translated into English language Booklet of Quotations The Jyotirmath Sankaracharya Lineage in the 20th Century About the succession controversy at Jyotirmath Quotations of 'Guru Dev' Swami Brahmananda Saraswati Ji Miscellaneous list of quotations of Shri Jyotishpeethodwarak Brahmleen Jagadguru Bhagwan Shankaracharya Shrimad Swami Brahmanand Saraswatiji Maharaj of Jyotirmath, Badrikashram Quotations of Guru Dev Quotations of 'Guru Dev' Swami Brahmananda Saraswati Ji. 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