Friday 23 February 2018

प्रेम दीवाने जो भए भक्तिमती सहजोबाई

शाश्वत शिल्प हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित vermamahendra55@gmail.com Oct 20, 2010 प्रेम दीवाने जो भए भक्तिमती सहजोबाई             प्रसिद्ध संत कवि चरणदास की शिष्या भक्तिमती सहजोबाई का जन्म 25 जुलाई 1725 ई. को दिल्ली के परीक्षितपुर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिप्रसाद और माता का नाम अनूपी देवी था। ग्यारह वर्ष की आयु में सहजो बाई के विवाह के समय एक दुर्घटना में वर का देहांत हो गया। उसके बाद उन्होंने संत चरणदास का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया और आजीवन ब्रह्मचारिणी रहीं। सहजो बाई चरणदास की प्रथम शिष्या थीं। इन्होंने अपने गुरु से ज्ञान, भक्ति और योग की विद्या प्राप्त की।             कवयित्री और साधिका सहजोबाई के जीवन काल में ही उनके साहित्य का प्रचार-प्रसार देश के विभिन्न क्षेत्रों, दिल्ली, राजस्थान, बुंदेलखंड और बिहार में हो चुका था। इनके द्वारा लिखित एकमात्र ग्रंथ ‘सहज प्रकाश‘ का प्रकाशन सन् 1920 में हुआ तथा इसका अंग्रेजी अनुवाद 1931 में प्रकाशित हुआ। सहजो बाई की रचनाओं में प्रगाढ़ गुरु भक्ति, संसार की ओर से पूर्ण विरक्ति, साधुता, मानव जीवन, प्रेम, सगुण-निर्गुण भक्ति, नाम स्मरण आदि विषयक छंद, दोहे और कुडलियां संकलित हैं। सहजो बाई ने हरि से श्रेष्ठ गुरु को माना है। निम्न पंक्तियों में उन्होंने गुरु की अपेक्षा राम को त्यागने का उल्लेख किया है- राम तजूं मैं गुरु न बिसारूं, गुरु के सम हरि को न निहारूं। हरि ने जन्म दियो जग माहीं, गुरु ने आवागमन छुड़ाही।                 24 जनवरी सन् 1805 ई. को भक्तिमती सहजो बाई ने वृंदावन में देहत्याग किया। प्रस्तुत है, सहजो बाई के कुछ  नीतिपरक दोहे- सहजो जीवत सब सगे, मुए निकट नहिं जायं, रोवैं स्वारथ आपने, सुपने देख डरायं। जैसे संडसी लोह की, छिन पानी छिन आग, ऐसे दुख सुख जगत के, सहजो तू मत पाग। दरद बटाए नहिं सकै, मुए न चालैं साथ, सहजो क्योंकर आपने, सब नाते बरबाद। जग देखत तुम जाओगे, तुम देखत जग जाय, सहजो याही रीति है, मत कर सोच उपाय। प्रेम दीवाने जो भए, मन भयो चकनाचूर, छकें रहैं घूमत रहैं, सहजो देखि हजूर। सहजो नन्हा हूजिए, गुरु के वचन सम्हार, अभिमानी नाहर बड़ो, भरमत फिरत उजाड़। बड़ा न जाने पाइहे, साहिब के दरबार, द्वारे ही सूं लागिहै, सहजो मोटी मार। साहन कूं तो भय घना, सहजो निर्भय रंक, कुंजर के पग बेड़ियां, चींटी फिरै निसंक। mahendra verma at 5:19:00 PM Share 20 comments: Kailash C SharmaOct 20, 2010, 6:21:00 PM बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट..आभार Reply BabliOct 20, 2010, 6:29:00 PM बहुत बढ़िया और ज्ञानवर्धक पोस्ट! धन्यवाद! Reply Rajey ShaOct 20, 2010, 6:36:00 PM बड़े ही प्‍यारे दोहे पढ़वाये हैं आनन्‍द आ गया। वाकई यदि‍ आप संसार के अनुसार करने लगें तो आप काम से गए, पर यदि‍ संसार को समझ कर चलें तो संसार की सारी समस्‍याएं आपको कोई परेशानी नहीं दे पाएंगी। Reply shikha kaushikOct 20, 2010, 8:27:00 PM atayadhik gyanvardhak v sundar pratuti. Reply डॉ. मोनिका शर्माOct 20, 2010, 8:40:00 PM सारे दोहे बहुत अच्छे लगे ...... सहजोबाई के विषय में जानकारी नहीं थी... अच्छा लगा जानकर आभार Reply 'उदय'Oct 20, 2010, 9:54:00 PM ... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!! Reply निर्मला कपिलाOct 21, 2010, 11:09:00 AM मैने पहली बार इनका नाम सुना है। बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है दोहे भी बहुत अच्छे हैं। देहन्यवाद। Reply Dr. shyam guptaOct 21, 2010, 2:57:00 PM बहुत सहज़ लगा सहज़ोबाई का सहज़ योग, धन्यवाद. पुरा मनकों की माला को पुनः पुनः फ़ेरने से मानस में सत्य का प्राकट्य होता है। Reply Sunil KumarOct 21, 2010, 4:02:00 PM ज्ञानवर्धक पोस्ट! धन्यवाद! दोहे भी बहुत अच्छे हैं। Reply जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra JauharOct 21, 2010, 4:32:00 PM अरे...हुज़ूर, वाह! आप तो साहित्य और इतिहास की कक्षाएँ-सी चला रहे हैं...तब तो यहाँ बार-बार आना पड़ेगा। Reply दीपOct 21, 2010, 5:06:00 PM बहुत अच्छा लिखा है आप ने, अच्छी प्रस्तुति Reply दीपOct 21, 2010, 5:08:00 PM http://deep2087.blogspot.com kabhi yahan bhi padharen Reply DorothyOct 21, 2010, 8:52:00 PM भक्तिमती सहजोबाई के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए धन्यवाद. इन के सहज और सरल दोहे आज भी प्रासंगिक हैं जिन्हें पढ़ने के बाद उनकी वाणी मन में देर तक गूंजती रहती है. पढ़वाने के लिए आभार. सादर डोरोथी. Reply अनामिका की सदायें ......Oct 21, 2010, 9:03:00 PM सहजोबाई के बारे में जानना अच्छा लगा. Reply ZEALOct 21, 2010, 10:20:00 PM . Wonderful piece of information in literature -- Thanks . Reply अशोक बजाजOct 22, 2010, 12:23:00 AM बहुत अच्छा पोस्ट ! ग्राम-चौपाल में पढ़ें........... "अनाड़ी ब्लोगर का शतकीय पोस्ट" http://www.ashokbajaj.com/ Reply Vijai MathurOct 22, 2010, 5:48:00 PM Pahli bar Sahjobai ke bare me jana aur shikkshaprad dohon ka avlokan kiya. Reply गोविन्द गुंजनOct 5, 2014, 10:12:00 PM सहजो बाइ के जीवन के सम्ब्न्ध मे और जानकारी दे सके तो बहुत अच्छा होगा. गोविन्द गुंजन ( gunjan128@yahoo.co.in) Reply Ashok RohellaFeb 11, 2017, 2:51:00 PM wah kya bat h, /Sahjo bai ji ke bare me jan kar bahut accha laga, i remember one doha Sahjo ya sansar me yun raho jnyo jivya jal/mukh mahin, geev ghana bhaksan kare to bhi chikni nahin Reply Shivkumar BhaisareDec 9, 2017, 4:56:00 PM Thank you ! Very Much I was searching everywhere.yet to get here ! One of Her Line I remember is- " Sheesh Ka Mana Satguru , Jiv Jud Ke Lakh Bar Sahjo Dware Na Chhodiye Tajiye Kulh Abhimaan...." Reply ‹ › Home View web version About Me mahendra verma साहित्य और संगीत मेरी ज्ञानेन्द्रियां हैं, इन्हीं के द्वारा मैं दुनिया को देखता और महसूस करता हूं। View my complete profile Powered by Blogger.

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