Friday, 23 February 2018
ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति
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satish mishhra
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Jan 25, 2015
ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति
पूजा मूलं गुरोः पदं ।
मन्त्र मूलं गुरोर्वाक्य
मोक्ष मूलं गुरो कृपा ।।
वर्तमान काल में ध्यान की हजारो विधियाँ प्रचलित है। जबकि ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति को कहा गया है।
आखिर गुरु की मूर्ति ही ध्यान का मूल क्यों ?
मूर्ती में किसी प्रकार की चंचलता नही होती। अगर किसी चंचल वस्तु का ध्यान किया जाये तो चित्त भी चंचल रहेगा।फिर कहा है गुरु मूर्ति, क्यों की ऐसे गुरु का ध्यान किया जाये जो स्वयं अंतर्मुखी हो, जिससे साधक का चित्त निश्चल हो कर अंतर्मुखी हो जाये।
सिद्ध गुरु की दृष्टि बाहर के संसार को दिखाते हुए भी वो अंतर द्रष्टि अर्थात कारण शरीर में होती है। जिससे साधक को वो स्थिति गुरु के ध्यान से सहज में ही प्राप्त होने लगती है। योग की जिस अवस्था को प्राप्त करने के लिए कई जन्म लग जाते हैं वो सिद्ध गुरु के ध्यान मात्र से प्राप्त हो जाती है। जो गुरु अंतर्मुखी होते है उनकी तस्वीर या मूर्ति के ध्यान मात्र से माया का आवरण हटने लगता है और सत्य का ज्ञान प्रकट हो जाता है। साधक जान जाता है की मैं जीव नही ब्रह्म हूँ।
आज के समय में साधक को ऐसे गुरु की शरणागति प्राप्त कर आराधना करनी चाहिए जिसमे कोई भौतिक बंधन न हो।
सदगुरुदेव श्री सियाग आज के समय में सिद्ध योग रूपी ज्ञानामृत संसार को निःशुल्क बाँट रहे हैं।
गुरुदेव का कहना है " इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मेरी एक अगरबत्ती की सींक तक नही लगी, इसलिए मैं भी कुछ नही लेता। मैं तब कुछ लेता जब आपको कुछ दे रहा होता , मैं आपको कुछ नही दे रहा । जैसा शरीर आपका है वैसा मेरा है। मैंने आराधना करके जो ज्ञान प्राप्त किया , जो विकास मुझमे हुआ है वो आप सब में हो जायेगा। मेरे गुरु का आदेश है तेरे दर पर कोई आये तो खाली न जाने पाए । भाइयों , मैं तो दोनों हाथों से लाखों गुरुओ की कमाई लुटाने निकला हूँ। आप यदि पात्र ही उल्टा रखोगे तो मैं किस्मे रखूँगा। इसके लिए एक ही शर्त है , झुक कर मांग लो बस। अन्दर से झुक जाओ बाहरी आडम्बर नही। ज्ञान अन्दर से प्रकट होता है।
आप मुझमे हो और मैं आपमें हूँ ।
मेरी मत मानो , ध्यान करके देखो और खुद सत्य को जानो"
http://www.the-comforter.org/index.html
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