Thursday, 22 February 2018

सोऽहं अजपा जाप है जपै जो प्रेम लगाय। स्वाँसा से निकसत सदा गुनिये तो मन लाय।१।

Skip to main content Rammangaldasji साईट में खोजें Search this site ४१० ॥ श्री चरणदास जी ॥ दोहा:- सोऽहं अजपा जाप है जपै जो प्रेम लगाय। स्वाँसा से निकसत सदा गुनिये तो मन लाय।१। चरन दास कहैं जे जपैं ध्यान समाधी होय। सुर मुनि दर्शन देंय फिरि गर्भ वास नहि होय।२।   ‹ ४०९ ॥ श्री सहजो बाई जी ॥ up४११ ॥ श्री दर्शन सिंह जी ॥ › About Us Your Suggestions Acknowledgements

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