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तुलसीदास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित | Tulisdas Ji Ke Dohe
 Gopal Mishra
4 years ago

गोस्वामी तुलसीदास जी
गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे
Tulsidas Ji Ke Dohe With Meaning in Hindi
श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान कवि थे| तुलसीदास जी के दोहे ज्ञान-सागर के समान हैं| आइये हम इन दोहों को अर्थ सहित पढ़ें और इनसे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में उतारें.

गोस्वामी तुलसीदास जी
—1—
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो |
—2—
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
अर्थ: राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |
—3—
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |
—4—
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
अर्थ: शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते |शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |
—5—
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
अर्थ: स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |
—6—
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |
—7—
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है |
—8—
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |
—9—
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
अर्थ: जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |
—10—
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|
New Addition Tulsidas Ji Ke Dohe – 3/3/17
—11—
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||
अर्थ: जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो|
—12—
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, किसी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास|
—13—
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए
—14—
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|
—15—
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिय में तरह-तरह के लोग रहते हैं, यानी हर तरह के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं, आप हर किसी से अच्छे से मिलिए और बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी इस भव सागर को पार कर लेंगे|
—16—
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन|
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||
अर्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता|
—17—
काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान|
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं तब तक एक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति में कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक जैसे ही हो जाते हैं|
रजनी सडाना
रजनी जी का ब्लॉग
Read Biography of Goswami Tulsidas Ji in Hindi on Wikipedia
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तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Tulsidas Ke Dohe In Hindi
By
Gyani Pandit
-
April 12, 2016
तुलसीदास – Tulsidas हिंदी साहित्य के एक महान कवि और रचनाकार हैं, तुलसीदासजी की सभी रचनाये प्रसिद्ध है जो हमारे लिये अनमोल है उनके दोहों में बहुत अच्छे संदेश रहते है जो प्रेरणादायक होते है … यह पर तुलसीदास जी के दोहे / Tulsidas Ke Dohe हिंदी अर्थ सहित दे रहें है…

तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित / Tulsidas Ke Dohe In Hindi
दोहा :- “दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण.
अर्थ :- तुलसीदास जी ने कहा की धर्म दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए.
दोहा :- “सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि.”
अर्थ :- जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं. दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता.
दोहा :- “तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर.”
अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं की मीठे वचन सब और सुख फैलाते हैं. किसी को भी वश में करने का ये एक मंत्र होते हैं इसलिए मानव ने कठोर वचन छोड़कर मीठे बोलने का प्रयास करे.
दोहा :- “सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास.”
अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं की मंत्री वैद्य और गुरु, ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता हैं.
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दोहा :- रम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर.”
अर्थ :- मनुष्य यदी तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखीरूपी द्वार की जिभरुपी देहलीज पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो.
दोहा :- “मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक.”
अर्थ :- मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पिने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगो का पालन पोषण करता हैं.
दोहा :- “नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु. जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास.”
अर्थ :- राम का नाम कल्पतरु और कल्याण का निवास हैं, जिसको स्मरण करने से भाँग सा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया.
दोहा :- “सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानी, सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि.”
अर्थ :- स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सिख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती हैं.
दोहे :- “बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय.”
अर्थ :- तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है. ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती हैं, तो उसे हर कोई छुने लगता है.
दोहा :-“ तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक, साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक.”
अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं की मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है, ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और भगवान का नाम.
दोहा :- “सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु.”
अर्थ :- शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं, कहकर अपने को नहीं जनाते. शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डिंग मारा करते हैं.
दोहा :- “तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि.”
अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मुर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते है. सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान हैं लेकिन आहार साप का हैं.
जरुर पढ़े :-
तुलसीदास जीवन परिचयसूरदासजी के दोहे हिंदी अर्थ सहितरहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित कबीरदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित
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24 COMMENTS
BrajeshFebruary 11, 2018 at 5:27 pm
Great help for civil services aspirants.Thanks.
Reply
ManjunathOctober 29, 2017 at 9:07 am
Your website is very useful. It had helped me to do project work but in your 5th tulsi doha it is not ram it’s raam.
Reply
Rajesh KumarSeptember 7, 2017 at 11:25 am
tulsi tulsi sab kahen , tulsi ban ki ghass , ho gayi kirpa ram ki , to ban gaye tulsidass.
Reply
bhushan diwakarSeptember 4, 2017 at 7:54 pm
Bahut hi badiya hai yaar
Reply
deepak patelAugust 28, 2017 at 8:38 am
Man ko badalane wale dohe –
thanks
Reply
VedprakashJune 27, 2017 at 2:48 pm
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
Reply
Virendra SharmaJune 24, 2017 at 11:41 pm
आपकी दोहों की व्याख्या बहुत सूंदर व् सरल है आपको इसके लिए बधाई।
Reply
AnishJune 11, 2017 at 8:48 am
Yar muje toh tulsidas ji ke dohe bahut acche lage
Reply
B N Singh H A L LucknowApril 18, 2017 at 3:46 pm
Good dohe & Hindi me translations
Reply
VyasMarch 16, 2017 at 2:23 am
Ram naam mei aarsi
Bhojan mei husiyaar
Tulsi aise jeev ko
Bar bar dhikaar
Reply
MadhuFebruary 9, 2017 at 7:50 pm
Send me more
Reply
SresthJanuary 30, 2017 at 9:44 pm
V.vv good to tulsidas
Nice
Reply
मयूरJanuary 21, 2017 at 2:57 pm
बंदउ गुरु पद पदुम पराग सुरुचि सुबास सारस अनुरागा
Reply
harshDecember 24, 2016 at 11:56 am
very good – Tulsidas Ke Dohe
Reply
PrajuNovember 30, 2016 at 7:58 pm
very good
Reply
YashsNovember 22, 2016 at 8:56 pm
Very nice
Reply
Sunil RajpootOctober 10, 2016 at 9:40 pm
Really loving article
Reply
शिव प्रकाश मिश्रSeptember 10, 2016 at 8:28 am
आपने तुलसीदास जी के अनमोल दोहे को रेखांकित किया है एवं इसकी व्याख्या भी की है इसके प्रति हम आभार व्यक्त करते है ।
Reply
kartikAugust 28, 2016 at 3:29 pm
Exellnt words
Reply
kailash dangiAugust 7, 2016 at 8:41 am
sir/madam please tulsidas ji ke dohe chahiye.i like your article
Reply
anup singhJuly 30, 2016 at 10:54 pm
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pujaApril 20, 2016 at 10:02 pm
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puranApril 15, 2016 at 2:47 am
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AdvikApril 13, 2016 at 10:39 am
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Tulsidas ke Dohe in Hindi | तुलसीदास के दोहे सार सहित
By VIRAT CHAUDHARY 15 CommentsSeptember 13, 2017
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रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास अपने दोहे के लिए भी बहुप्रचलित है, Tulsidas ke Dohe बहुत ही उम्दा, ज्ञानवर्धक और जीवन को उत्कृष्ट बनानेवाले है ।
इसलिए आज हम आप सभी प्रिय पाठकों के लिए तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित लेकर उपस्थित हुए है, जो आपको बहुत ही पसंद आएंगे ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है ।
यह भी पढ़ें: Rahim ke Dohe in Hindi

तो आइए पढ़ना शुरू करें Tulsidas ke Dohe with Meaning अपनी सरल Hindi भाषा में ।
Tulsidas ke Dohe Hind with Meaning
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि मधुर वाणी सभी ओर सुख प्रकाशित करती हैं और यह हर किसी को अपनी और सम्मोहित करने का कारगर मंत्र है इसलिए हर मनुष्य को कटु वाणी त्याग कर मीठे बोल बोलने चाहिए ।
काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान ।
तुलसीदासजी कहते हैं कि जब तक काम, क्रोध, घमंड और लालच व्यक्ति के मन में भरे पड़े हैं, तब तक ज्ञानी और मूढ़ व्यक्ति के बीच कोई अंतर नहीं होता है, दोनों ही एक जैसे हो जाते हैं ।
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर ।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर परिधान देखकर न सिर्फ मूढ़ बल्कि बुद्धिमान मनुष्य भी झांसा खा जाते हैं । जैसे मनोरम मयूर को देख लीजिए उसके वचन तो अमृत के समरूप है लेकिन खुराक सर्प का है ।
बचन वेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि ।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि ।
तुलसीदास कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को उसकी मीठी वाणी और अच्छे पोशाक से यह नहीं जाना जा सकता की वह सज्जन है या दुष्ट । बाहरी सुशोभन और आलंबन से उसके दिमागी हालात पता नहीं लगा सकते । जैसे शूपर्णखां, मरीचि, पूतना और रावण के परिधान अच्छे थे लेकिन मन गंदा ।
तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोई ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोई ।
तुलसीदास कहते हैं कि दूसरों की निंदा करके खुद की पीठ थपथपाने वाले लोग मतिहीन है । ऐसे मूढ़ लोगो के मुख पर एक दिन ऐसी कालिख लगेगी जो मरने तक साथ नहीं छोड़ेगी ।
तनु गुण धन धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान ।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहू गत जान ।
तुलसीदास कहते हैं कि सुंदरता, अच्छे गुण, संपत्ति, शोहरत और धर्म के बिना भी जिन लोगों में अहंकार है । ऐसे लोगों का जीवनकाल कष्टप्रद होता है जिसका अंत दुखदाई ही होता है ।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु ।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ।
बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध के मैदान में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते है और कायर व्यक्ति लड़कर नहीं बल्कि अपनी बातों से ही वीरता दिखाते है ।
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि ।
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ।
अपने हितकारी स्वामी और गुरु की नसीहत ठुकरा कर जो इनकी सीख से वंचित रहता है, वह अपने दिल में ग्लानि से भर जाता है और उसे अपने हित का नुकसान भुगतना ही पड़ता है ।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार ।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ।
अगर मनुष्य अपने भीतर और अपने बाहर जीवन में उजाला चाहता है तो तुलसीदास कहते हैं कि उसे अपने मुखरूपी प्रवेशद्वार की जिह्वारूपी चौखट पर राम नाम की मणि रखनी चाहिए ।
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि अधिनायक (लीडर) मुख जैसा होना चाहिए, जो खान-पान में तो इकलौता होता है लेकिन समझदारी से शरीर के सभी अंगों का बिना भेदभाव समान लालन-पालन करता है ।
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री, हकीम और गुरु यह तीनों अगर लाभ या भय के कारण अहित की मीठी बातें बोलते है तो राष्ट्र, देह और मज़हब के लिए यह अवश्य विनाशकारी साबित होता है और इस वजह से राष्ट्र, देह और मज़हब का जल्द ही पतन हो जाता है ।
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि ।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ।
गोस्वामी जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने नुकसान का अंदेशा लगाकर अपने पनाह में आयें शरणार्थी को नकार देते है, वो नीच और पापी होते हैं । ऐसे लोगो से तो दूरी बनाये रखना ही उचित है ।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छांड़िए जब लग घट में प्राण ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि दया, करुणा धर्म का मूल है और घमंड सभी दुराचरण की जड़ इसलिए मनुष्य को हमेशा करुणामय रहना चाहिए और दया का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए ।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।
जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नज़रों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहाँ स्वर्ण बरस रहा हो ।
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी भी विपदा से यह सात गुण आपको बचाएंगे, 1 – आपकी विद्या, ज्ञान 2 – आपका विनय,विवेक, 3 – आपके अंदर का साहस, पराक्रम 4 – आपकी बुद्धि, प्रज्ञा 5 – आपके भले कर्म 6 – आपकी सत्यनिष्ठा 7 – आपका भगवान के प्रति विश्वास ।
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान ।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि समय समय बलवान न मनुष्य महान अर्थात मनुष्य बड़ा या छोटा नहीं होता वास्तव में यह उसका समय ही होता है जो बलवान होता है । जैसे एक समय था जब महान धनुर्धर अर्जुन ने अपने गांडीव बाण से महाभारत का युद्ध जीता था और एक ऐसा भी समय आया जब वही महान धनुर्धर अर्जुन भीलों के हाथों लुट गया और वह अपनी गोपियों का भीलों के आक्रमण से रक्षण भी नहीं कर पाया ।
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग ।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग ।
तुलसीदास जी कहते हैं, इस जगत में भांति भांति (कई प्रकार के) प्रकृति के लोग है, आपको सभी से प्यार से मिलना-जुलना चाहिए । जैसे एक नौका नदी से प्यार से सफ़र कर दूसरे किनारे पहुंच जाती है, ठीक वैसे ही मनुष्य भी सौम्य व्यवहार से भवसागर के उस पार पहुंच जाएगा ।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि राम का नाम कल्पवृक्ष (हर इच्छा पूरी करनेवाला वृक्ष) और कल्याण का निवास (स्वर्गलोक) है, जिसको स्मरण करने से भाँग सा (तुच्छ सा) तुलसीदास भी तुलसी की तरह पावन हो गया ।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए ।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए ।
तुलसीदास कहते हैं, भगवान पर भरोसा करें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए । कुछ भी अनावश्यक नहीं होगा, और अगर कुछ अनिष्ट घटना ही है तो वो घटकर ही रहेगा इसलिए अनर्थक चिंता, परेशानी छोड़ कर मस्त जिए ।
तुलसीदास जी द्वारा लिखी गयी पुस्तकें: (Books Written by Tulsidas)






Tulsidas ke Dohe in Hindi PDF Free DownloadSufi Rumi Quotes in Hindi
तो दोस्तों यह थे महान कवि तुलसीदास के दोहे (Tulsidas ke Dohe in Hindi) और इसका सार हमने हमारी अपनी आसान Hindi भाषा में लिखा है, हमें आशा है की यह दोहे सार सहित आपको बेहद पसंद आयें होंगे और इन दोहों में से आपको अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीने की सीख मिली होगी ।
अगर आपको Tulsidas के यह Dohe पसंद आये है तो कृपया इसे अपने पसंदीदा सोसिअल मीडिया पर शेयर जरूर करे और कमेंट्स के माध्यम से हमें आपका प्यार भेजें । दिल से शुक्रिया! 
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हेल्लो फ्रेंड्स,
मैं विराट आसान है का संस्थापक और मोटिवेशनल लेखक, ब्लॉगर और इंटरप्रेन्योर हूँ.
मैं यहाँ अपने लाइफ एक्सपीरियंस शेयर करता हूँ और बताता हूँ की कैसे हम अपनी लाइफ आसान और सक्सेसफुल बनाये, कैसे अपने मनचाहे लक्ष्य प्राप्त करे और कैसे एक विराट सफलता हासिल करे.
यहाँ मैं रेगुलर प्रेरणादायक, आत्मविश्लेषण और आत्मविकास के अत्यधिक प्रभावशाली लेख प्रस्तुत करता हूँ जिसे पढ़कर बेशक आप सब की लाइफ आसान और सफल होगी.
Love You All. :)
Comments
rajendra says
January 25, 2018 at 10:12 am
Bahooot saargarbhi ,thanks for collection .rajendra
Reply
Kamlendra says
January 8, 2018 at 7:56 pm
Kayar man kahu AK adhara Dev Dev also pukhara Ka arth
Reply
alok rai says
December 28, 2017 at 12:21 am
Shri tulsidas ke doho ka sunder collection..aapke blog ka UI bhi gazab hai..
Reply
VIRAT CHAUDHARYsays
January 3, 2018 at 11:51 am
शुक्रिया आलोक
Reply
dev says
October 6, 2017 at 1:48 pm
apke website ka design mujhe bahut accha laga ye kon sa template hai?
apke likhne ki style b acchi hai
Reply
VIRAT CHAUDHARYsays
October 13, 2017 at 12:54 pm
धन्यवाद देव,
हम Genesis की Magazine Pro थीम यूज़ कर रहे है.
Reply
Pradeep Kumar says
October 6, 2017 at 8:36 am
apki post super hai. Thanks for sharing.
Reply
VIRAT CHAUDHARYsays
October 6, 2017 at 3:56 pm
शुक्रिया.
Reply
sudhir sondarva says
September 26, 2017 at 1:34 am
इस पोस्ट की जितनी तारीफ करू कम है क्यूकि इसे पढ़ कर मै बिल्कुल भी बोर नही हुआ शुरु से अंत तक मजे से पढ़ा
और writting skills कमाल की है उम्मीद है ऐसी ही पोस्ट मुझे आगे भी मिलेंगी।
Reply
VIRAT CHAUDHARYsays
September 28, 2017 at 11:25 am
हमें ख़ुशी है की आपको हमारा काम बेहद पसंद आया, आप ऐसे ही जुड़े रहे हमें हमेशा अपना बेस्ट कंटेंट पब्लिश करते रहेंगे.
Reply
aasif ali says
September 17, 2017 at 6:00 pm
aapke blog ka design bahut karra hai
Reply
Deepak says
September 16, 2017 at 8:30 am
maja aa gaya sir bhut accha
Reply
Avinash Chauhan says
September 14, 2017 at 3:37 pm
very nice post. thanks for sharing…
Reply
vinod sain says
September 14, 2017 at 11:20 am
सुन्दर लेख धन्यवाद सर
Reply
Achhipost says
September 13, 2017 at 7:32 pm
बहुत ही बढ़िया पोस्ट। तुलसी दास के दोहे सबसे अच्छी चीज सिखाती है। धन्यवाद शेयर करने के लिए
Reply
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गोस्वामी तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
By: Sadhana Last Updated: 05/12/2017Leave a Comment
Dohe of Tulsidas in hindi – श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के एक बहुत ही महान कवि और रचनाकार थे, तुलसी दास के दोहे बहुत ही ज्ञानवर्धक और अनमोल हैं। आइये आज हम Tulsidas ke Dohe in hindi with meaning/ तुलसीदास जी के दोहे अर्थ सहित दे रहे हैं, उम्मीद है कि आप इनसे मिलने वाली नसीहत को अपने जीवन में जरूर अमल में लायेंगे-

तुलसीदास जी के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित/Tulsidas Ke Dohe in Hindi with meaning
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।
राम का नाम कल्पतरु और कल्याण का निवास हैं, जिसको स्मरण करने से भाँग सा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया.
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June 25, 2016 • 1 Comment
Tulsidas Ke Dohe – गोस्वामी तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे

Doha #1 :
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पान तो अकेला करता है, लेकिन सारपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #2
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
अर्थ : राम का नाम मनचाहा पदार्थ देनेवाला और मुक्ति का घर है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #3
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
अर्थ : सुंदर वस्तुओं को देखकर न केवल मूर्ख बल्कि समझदार मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं|लेकिन सुंदर मोर को ही देख लीजिये – उसके मुख से तो अमृत बरसता है लेकिन आहार साँप का है|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #4
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
अर्थ : अगर आपको अपने जीवन में भीतर और बाहर दोनों तरफ उजाला चाहिए, तो जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #5
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि नेता, चिकिस्क और गुरु – ये तीन अगर भय या लाभ के कारण हित की बात न कहकर प्रिय बोलते हैं तो राज्य,शरीर और धर्म – इन तीनो को शीघ्र ही हानि पंहुचती है|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #6
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
अर्थ : महान योद्धा शूरवीरता का कार्य करके – अपने आप को नहीं जनाते |बल्कि शत्रु को देख कर कायर ही अपने प्रताप की डींगे मारा करते हैं|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #7
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
अर्थ: गोस्वामी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #8
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
अर्थ : हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह बादमे में खूब पछताता है और उसके हित को हानि अवश्य पंहुचती है|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #9
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।
अर्थ : मीठे बोल हर जगह सुख फैलाते हैं |किसी भी व्यक्ति को वश में करने का ये एक मूल मन्त्र होते हैं, इसलिए मनुष्य को कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे|
-Gosvami Tuisidasji
Doha #10
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
अर्थ :तुलसीदासजी कहते हैं कि जो मनुष्य अपने हित का विचार करके शरण में आये हुए का त्याग कर देता हैं वो क्षुद्र और पाप का भागी हैं|
-Gosvami Tuisidasji
पढ़िए :
कबीरदास जी के के दोहे अर्थ सहित
रहीम के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
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1 response
Manpreet
January 10, 2017
Very good thanks
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तुलसीदास जी के 10 दोहे Tulsidas Ke Dohe
Posted on December 7, 2017 by Admin
Tulsidas Ji Ke Famous Dohe in Hindi Meaning
तुलसीदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित
गोस्वामी तुलसीदास जी जिन्हें महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है वे अपनी पत्नी रत्नावली से अत्यधिक प्रेम करते थे और एक बार भयंकर बारिश और तूफान की चिंता किये बिना भीषण अँधेरी रात में अपने पत्नी से मिलने अपने ससुराल पहुच गये लेकिन रत्नावली यह सब देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हुई और उन्हें राम नाम में ध्यान लगाने का नसीहत दी इसी उलहना ने तुलसी से “गोस्वामी तुलसीदास” (Goswami Tulidas) बना दिया
रत्नावली ने कहा था –
“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत”
अर्थात यह मेरा शरीर तो चमड़े से बना हुआ है जो की नश्वर है फिर भी इस चमड़ी के प्रति इतनी मोह, अगर मेरा ध्यान छोड़कर राम नाम में ध्यान लगाते तो आप भवसागर से पार हो जाते.
फिर इसके बाद तुलसीदास जी का मन पूर्ण रूप से राम नाम में रम गया और फिर उन्होंने अनेक ग्रंथो की रचना की जिनमे “रामचरितमानस” और “हनुमान चालीसा” उनकी अति प्रसिद्द रचना है तो आईये हम सभी तुलसीदास द्वारा रचित उनके दोहों को हिंदी अर्थ सहित जानते है
तुलसीदास के दोहे:-1
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान,
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान,
हिन्दी अर्थ :- जब तक किसी भी व्यक्ति के मन में कामवासना की भावना, गुस्सा, अंहकार, लालच से भरा रहता है तबतक ज्ञानी और मुर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नही होता है दोनों एक ही समान के होते है
तुलसीदास के दोहे:- 2
सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं
धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी
हिन्दी अर्थ :- मुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिलखते है सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते है जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते है कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते है और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते है
तुलसीदास के दोहे:- 3
करम प्रधान विस्व करि राखा,
जो जस करई सो तस फलु चाखा
हिन्दी अर्थ :- ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा
तुलसीदास के दोहे:- 4
तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर
सुंदर के किहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि
हिन्दी अर्थ :- सुंदर वेशभूशा देखकर मुर्ख व्यक्ति ही नही बुद्धिमान व्यक्ति भी धोखा खा बैठते है ठीक उसी प्रकार जैसे मोर देखने में बहुत ही सुंदर होता है लेकिन उसके भोजन को देखा जाय तो वह साँप और कीड़े मकोड़े ही खाता है
तुलसीदास के दोहे:- 5
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर,
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर,
हिन्दी अर्थ :- मीठी वाणी बोलने से चारो ओर सुख का प्रकाश फैलता है और मीठी बोली से किसी को भी अपने ओर सम्मोहित किया जा सकता है इसलिए सभी सभी मनुष्यों को कठोर और तीखी वाणी छोडकर सदैव मीठे वाणी ही बोलना चाहिए.
तुलसीदास के दोहे:-6
आगें कह मृदु वचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई,
जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई,
हिन्दी अर्थ :- तुलसी जी कहते है की ऐसे मित्र जो की आपके सामने बना बनाकर मीठा बोलता है और मन ही मन आपके लिए बुराई का भाव रखता है जिसका मन साँप के चाल के समान टेढ़ा हो ऐसे खराब मित्र का त्याग कर देने में ही भलाई है
तुलसीदास के दोहे:- 7
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान,
तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण,
हिन्दी अर्थ :- तुलसीदास जी कहते है की मनुष्य को कभी भी दया का साथ नही छोड़ना चाहिए क्योकि दया ही धर्म का मूल है और उसके विपरीत अहंकार समस्त पापो की जड़ है
तुलसीदास के दोहे:-8
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग,
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग,
हिन्दी अर्थ :- तुलसी जी कहते है की इस संसार में तरह तरह के लोग है हमे सभी से प्यार के साथ मिलना जुलना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे एक नौका नदी में प्यार के साथ सफर करते हुए दुसरे किनारे तक पहुच जाती है वैसे मनुष्य भी अपने इस सौम्य व्यवहार से भवसागर के उस पार अवश्य ही पहुच जायेगा
तुलसीदास के दोहे:- 9
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए,
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए,
हिन्दी अर्थ :- तुलसीदास जी कहते है की हमे भगवान आर भरोषा करते हुए बिना किसी डर के साथ निर्भय होकर रहना चाहिए और कुछ भी अनावश्यक नही होगा और अगर कुछ होना रहेगा तो वो होकर रहेगा इसलिए व्यर्थ चिंता किये बिना हमे ख़ुशी से जीवन व्यतीत करना चाहिए
तुलसीदास के दोहे:- 10
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थ
सब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत,
हिन्दी अर्थ :- तुलसी जी कहते है की काम, क्रोध, लालच सब नर्क के रास्ते है इसलिए हमे इनको छोडकर ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए जैसा की संत लोग करते है
तो आप सबको यह पोस्ट तुलसीदास जी के 10 दोहे | Tulsidas Ke Dohe कैसा लगा कमेंट बॉक्स में जरुर बताये
इन पोस्ट को भी जरुर पढ़े –
कबीर दास जी के दोहे हिन्दी में Kabir Ke Dohe in Hindiगुरु नानक देव के 30 अनमोल विचार Shree Guru Nanak Dev Quotes in Hindiरहीम दास जी के दोहे Rahim Das ke Doheमहावीर जयंती पर भगवान महावीर के अनमोल वचन Lord Mahavir Thoughtsचाणक्य के 30 अनमोल विचार Chanankya Neeti Quotes in Hindi
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