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प्राण शक्ति
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Full text of "कुण्डलिनी kundalini"
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Saturday, January 11, 2014
कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - Kundalini Shakti 1-2-3-4-5 -
कुण्डलिनी / प्राण शक्ति
जैसा कि मैंने देखा और महसूस किया है इस शक्ति के सम्बन्ध में बहुत से भ्रम और गलत धारणाएं
व्याप्त हैं हमारे समाज में ... इसके साथ ही जो लोग थोड़े से जागरूक हैं और उन्होंने कहीं से
किसी माध्यम से थोडा सा भी ज्ञान अर्जित कर लिया है वे लोग व्यवसाइयों के हाथों खुद को
सौंप बैठे हैं ............! कुण्डलिनी शक्ति जागरण के नाम पर सिर्फ भारत ही नहीं
विदेशों में भी धड़ल्ले से व्यवसाय हो रहे हैं ...! जरा सा इंटरनेट पर ही सर्च करने बैठिये तो
कितनी ही वेबसाइट या या शिक्षण संसथान खुलकर आ जायेंगे जहाँ आप पाएंगे कि कई नए तरीके
और कई नयी पद्धतियां दी हुयी होती हैं ..... और दावे भी किये गए होते हैं कि यदि
सफलता नहीं मिले तो आपके पैसे वापस ....!
अभी कुछ ही महीने पहले कि बात है मेरे एक मित्र रेकी के पीछे पागल थे ... मैंने उन्हें सलाह
दी कि रेकी के बजाय प्राण शक्ति पर ध्यान दो ... लकिन किसी संसथान का कोई सदस्य
उनको अपने फेर में लिए हुए था और बरगला चुका था ......
कि रेकी ज्यादा बेहतर है ... कुण्डलिनी जाग्रत हो भी सकती है और नहीं भी .... लकिन
रेकी ( स्पर्श चिकित्सा ) बहुत प्रभावी है और हम गारंटी से आपको क्रमबद्ध तरीके से सारा
कुछ उपलब्ध करवाएंगे इसके बाद आप आधे महीने से भी कम समय में मास्टर हो जायेंगे ......
दोस्त नहीं मन २१००० रुपये उसने सौंप दिए उस एजेंट को और इसके बाद कुछ पीडीएफ फाइलें
आयीं और फिर कुछ म्यूजिक क्लिप्स वे अभ्यास करते रहे लकिन २ महीने में भी कुछ नहीं मिला तो
वापस वेबसाइट पर गए कि शिकायत दर्ज करवा दें लकिन पता चला कि वेबसाइट का डोमेन
बदल गया है .... अब तो क्लेम भी नहीं किया जा सकता था .... उसके बाद वे ऐसे
हतोत्साहित हुए कि रेकी को गोली मार दी और प्राण शक्ति को भूल गए ..!
आने वाले लेखों में हम देखेंगे और चर्चा करेंगे कि रेकी और कुण्डलिनी शक्ति क्या एक ही हैं ? या
फिर एक हिस्सा मात्र ( रेकी कुण्डलिनी शक्ति का एक हिस्सा है या कुण्डलिनी शक्ति रेकी
का एक हिस्सा )
इसके अतिरिक्त हम देखेंगे कि कौन सी प्रभावी विधियां हैं जिनके माध्यम से हम सफलता के शत
प्रतिशत नजदीक पहुँच सकते हैं ...
कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - 2
सबसे पहले हम ये जानने कि कोशिश करेंगे कि कुण्डलिनी शक्ति क्या है ?
इसके कितने भाग हैं ?
और इससे जुडी वे भ्रांतियां जो अब तक मेरे सुनने में आयी हैं उनमे कितना सच, कितना फायदा
और कितना नुकसान है ?
जैसा कि अध्यात्म में हम सुनते चले आये हैं कि अक्सर कहा जाता है .. कि इंसान का शरीर अपने
आप में एक चलता फिरता शक्ति पुंज है ..... किन्तु अज्ञानता के अंधकार में हम अक्सर इनके
बारे में नहीं जानते .... बहुत बार हम सुनते हैं और न्यूज़ या समाचार पत्रों में भी आता है कि
... कोई व्यक्ति असाधारण शक्तियों से परिपूर्ण है .... जैसे कि ....
१. कोई व्यक्ति ४४० वोल्ट करंट कि तार को छू लेता है लेकिन उसे करंट नहीं लगता .
२. कोई संत हैं जो अपने आपको धरती से १० फीट तक ऊपर उठा देते हैं .
३. कोई इंसान है जो जल राशि के ऊपर ऐसे चलता है जैसे कि वह धरती पर चल रहा हो .
४. कोई व्यक्ति है जो एक ही जगह पर बैठे बैठे कोसों दूर कि बातें ऐसे बोल देता है जैसे कि
वह स्वयं वहाँ मौजूद हो. ५. कोई ऐसा इंसान है जो किसी दूर बैठे व्यक्ति से या अपने इष्टदेव
से ऐसे बात करता है जैसे कि वो दोनों आमने सामने हों .
६. कोई इंसान है अगर वह किसी माध्यम को गौर से देखने लगता है तो वहाँ आग लग जाती है ..!
यहाँ देखने कि बात ये होती है कि एक इंसान किसी एक खास गुण से युक्त होता है ... जिस
इंसान के अंदर आग उत्पन्न करने कि शक्ति होती है वह बर्फ उत्पन्न नहीं कर सकता ... आज
कल हाई एनिमेटेड नाटकों में भी इसका अच्छा उदहारण प्रस्तुत किया जाता है जिसमे कोई
किरदार अग्ग उत्पन्न करने के गुणों से युक्त होता है तो उसी में एक किरदार बर्फ उत्पन्न करने
में और बाद में उन दोनों को आमने सामने खड़ा कर दिया जाता है इसके बाद अच्छाई कि जीत
और बुराई कि हार हो जाती है ...
अब ये खास गुण कहाँ से आते हैं ? ये सवाल जन्म लेता है ... तो मैं इसके जवाब में कहूंगा कि ये
कुण्डलिनी / प्राण शक्ति कि क्रिया है ..!
मेरे जवाब के बाद विज्ञ जानो के मन में एक सवाल आ सकता है कि यदि यह कुण्डलिनी शक्ति
का कमाल है तो वह इंसान जो आग उत्पन्न कर सकता है वह बर्फ क्यों नहीं .... तो मैं कहूंगा
कि ये शक्ति है तो प्राण शक्ति का एक भाग किन्तु यह नियंत्रित नहीं है .... इसलिए
जितना भाग जाग्रत है वह उतनी ही क्रिया करने में सक्षम है ..!
इसके बाद एक अन्य सवाल कि भी अपेक्षा करता हूँ मैं .... लोग पूछ सकते हैं कि फिर ये एक
भाग जाग्रत कैसे हो गया .... तो मैं कहूंगा कि .... आदि काल से शक्ति अर्जन और उसकी
खोज जारी है . जो लोग जानकार हैं और कुण्डलिनी शक्ति के बारे में जानते हैं वे उसे जाग्रत
करने के बारे में प्रयासरत हैं .... किन्तु बहुत से लोग जो असाधारण शक्तियों का उपयोग कर
रहे हैं उन्हें खुद ही नहीं पता होता कि शक्तियां उनके अंदर आयी कहाँ से हैं .... और इनका
उद्गम स्थल क्या है ? उन्हें तो बस अचानक से अपनी इस खाशियत का पता चलता है और वे
अपनी इस असाधारण शक्ति का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं ... उन्हें ये भी नहीं पता कि ये शक्ति
उनके साथ जीवन पर्यन्त रहेगी या फिर जीवन के कुछ काल तक ही .
अब ये जानने कि जिज्ञासा होगी कि आखिर कोई एक खास भाग जाग्रत कैसे हो जाता है किसी
का ? जबकि न जाने कितने योगी, मुनि, और न जाने कितने और लोग इनके लिए उचित
पद्धतियां ही ढूंढते रहते हैं ... प्रयास करते हैं और सफल / असफल होते रहते हैं ....!
फिर ऐसे लोगों को ये शक्तियां कैसे जाग्रत अवस्था में मिल जाती हैं जिन्हे कि खुद भी ज्ञात
नहीं कि शक्तियां हैं क्या और इनका उपयोग क्या है ?
इसका जवाब बस इतना सा ही है कि .... ये दुनिया विचित्रताओं से भरी पड़ी है यहाँ कुछ
भी असम्भव नहीं है ... माता महामाय सब पर नजर रखे हुए हैं और उन्ही कि अनुमति से या
सहमति से इस संसार का कार्य चलता है . वही निर्धारित करती हैं कि किसको कब, कितना
और क्या मिलेगा .
*कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - 3*
कुन्डलिनी शक्ति को वलयाकार / सर्पाकार रूप में चिन्हित किया गया है जिसके ७ चक्र बताये
जाते हैं ... कहीं - कहीं पर इसके ८ / ९ चक्र भी कहे गए हैं .... मशहूर तंत्राचार्य,
मंत्राचार्य, एवं भविष्यवक्ता पूज्य श्री नारायण दत्त श्रीमाली जी कि पुसतक में इनकी संख्या
भिन्न कही है ..... लेकिन सर्व सम्मति ७ चक्रों पर ही निहित है ....! जो क्रमशः इस
प्रकार हैं .
1.मूलाधार चक्र- गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है। आधार चक्र का
ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहां वीरता और आनंद का भाव का निवास करता है।
उक्त स्थान पर ध्यान लगाने से यह प्राप्त किया जा सकता है।
2.स्वाधिष्ठान चक्र- स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। इसके जाग्रत
होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है।
3.मणिपूर चक्र- नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है। इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या,
चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं।
4.अनाहत चक्र- हृदय स्थान में अनाहत चक्र है जो बारह पंखरियों वाला है। इसके सक्रिय होने
पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दम्भ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं।
5.विशुद्धख्य चक्र- कण्ठ में सरस्वती का स्थान है जहां विशुद्धख्य चक्र है और जो सोलह
पंखुरियों वाला है। यहीं से सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान होता है। इसके जाग्रत
होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता हैं वहीं सोलह कलाओं और विभूतियों की विद्या
भी जानी जा सकती है।
6.आज्ञाचक्र- भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भ्रकूटी में) में आज्ञा चक्र है जहां उद्गीय, हूँ, फट,
विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है। यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां
निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं।
7.सहस्रार चक्र- सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं।
शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही
मोक्ष का द्वारा है।
*कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - 4*
अब इसके बाद मुख्य बात जो आती है वो ये है कि ..... क्या कुण्डलिनी खुद भी जाग्रत हो
सकती है क्या बिना किसी प्रयास के .... तो इसका सीधा से जवाब है कि लाखों में किसी
एक व्यक्ति कि कुण्डलिनी स्व जाग्रत हो सकती है अन्यथा नहीं ..... इसके लिए खुद को
तैयार करना पड़ता है ... और इसके जागरण काल में ऐसे ऐसे अनुभवों से गुजरना पड़ जाता है कि
एक बार तो कुछ पता ही नहीं चलता और रूह काँप जाती है .....!
लगने लगता है कि मैं किस मुसीबत में फंस गया .... लेकिन इस बात का अहसास तक नहीं होता
कि यह उस अभ्यास का परिणाम है जो कुण्डलिनी शक्ति जागरण के लिए किया जा रहा है ...
हज़ारों में से एक कोई वह खुशनसीब होता है जो इन घटनाओं के बारे में पूर्व में ही जागरूक
होता है ... वो होता है पहले से ही कुण्डलिनी जाग्रत किसी संत को को शिष्य ......!
हालाँकि जैसे कि मैं अपने लेख के प्रथम भाग में बता चूका हूँ कि कुण्डलिनी शक्ति जागरण के बहुत
से मार्ग हैं ... किसी भी एक मार्ग का अनुसरण करके सफलता प्राप्त कि जा सकती है .....
जैसे कि :-
१. राजयोग
२. क्रियायोग
३. हठ योग
४. संगीत योग
५. शक्तिपात
६. बनस्पति
१. राजयोग :- ये मुख्यतः योग प्रणालियों का एक सामूहिक विधान है जिसमे योग के कुछ
भाग ..... सांसों का नियंत्रण ....... कुछ प्रार्थनाएं एक विशेष लय के साथ दोहरायी
जाती हैं ....!
२. क्रिया योग :- इस योग में मुख्यतः मन्त्रों और उच्चारण सम्बन्धी प्रयोगों को सम्मिलित
किया जाता है ... जिनमे कुछ शाबर मंत्र हैं, कुछ वैदिक मंत्र भी हैं ... इसके अलावा सिद्ध
गुरुओं द्वारा निर्मित प्रत्येक चक्र का एक मंत्र है जिन्हे लगातार जाप करने से कुण्डलिनी
शक्ति का जागरण होता है ...
३. हठ योग :- जैसा कि नाम से ही लगता है कि बलपूर्वक भौतिक शरीर को इस बात के
लिए तैयार किया जाता है कि उसको कुछ विशेष विधियों को परफॉर्म करना है .... जिसमे
मुख्यतः ...... आसन, मुद्रा , त्राटक और यम - नियम को सम्मिलित किया जाता है .
४. संगीत योग :- इस विधा में संगीत के माध्यम से कुछ खास लय को सुना जाता है जो कम या
ज्यादा आवृत्ति कि हो सकती है और उन संगीत लहरों के माध्यम से व्यक्ति का दिमाग शून्य कि
अवस्था में विचरण करने लगता है तथा बार बार इस क्रम के दोहराए जाने पर चक्रों का
जागरण होने लगता है . इसके अतिरिक्त इस विधा में कुछ खास प्रकार के नृत्य का भी समावेश
किया जाता है ... जिसमे शरीर को स्वच्छंद छोड़ कर क्रियाओं को दोहराता जाता है और ये
क्रियाएँ भी चक्रों का जागरण करती हैं .
५. शक्तिपात .:- शक्तिपात कि क्रिया मुख्यतः गुरु जनों के द्वारा कि जाती है जिसमे कि
पहले से ही पूर्णतया कुण्डलिनी जाग्रत गुरु अपने किन्ही परम शिष्यों पर कृपा पूर्वक शक्तिपात
करवाते हैं और उस शक्तिपात के परिणाम स्वरुप कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है ... वैसे
इस विधा का मुख्यतय प्रयोग बौद्ध मठों में होता था या आज भी होता है .
६. वनस्पति :- इस विधा में प्रकृति प्रदत्त कुछ वनस्पतियों में ऐसे गुण पाये जाते हैं जो चक्रों
का जागरण करती हैं .
*कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - 5*
अब होता क्या है कि . कई बार इंसान खाना भी खाता है . म्यूजिक भी सुनता है .....
नृत्य भी करता है .... उस स्थिति में यदि वह म्यूजिक / नृत्य / भोजन में अनसपति खास
किसी चक्र को जाग्रत करने के गुण से युक्त होती है तो स्वतः वह उस चक्र को जाग्रत कर
देती है जबकि जिस व्यक्ति का चक्र जाग्रत हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता क्योंकि उसके
किसी पूर्व जन्म के पुण्य वश उसे यह उपलब्धि मिल जाती है .... और संयोग वश उसे किसी
स्थान पर अपनी इस खाश ताकत के बारे में पता चल जाता है .... और वह उसका उपभोग करने
लग जाता है ... और दूसरों को जब ये पता चलता है तो उसे ईश्वर का दूत या असाधारण
शक्तियों का स्वामी समझा जाने लग जाता है .
इसके अतिरिक्त कई बार ये सलाह भी मिल जाती है उन लोगों को जो अभ्यास करने के रास्ते में
होते हैं ... कि कोई जरुरत नहीं है इस झंझट कि ... बिना वजह के काम मत करो ... सिर्फ
आज्ञा चक्र पर केंद्रित करो ... आज्ञा चक्र ही एक बार यदि जाग्रत हो गया तो सब कुछ
खुद-ब-खुद हो जायेगा ... कई बार कहा जाता है कि चक्रों को जाग्रत करने कि कोशिश
करने वाले लोग पागल हो जाते हैं .... आत्म केंद्रित हो जाते हैं ... खुद-ब-खुद बड़बड़ाते रहते
हैं . यह कहाँ तक सही है ....? क्या चक्रों को ऐसे जाग्रत करना एक सम्पूर्ण प्रक्रिया है ?
क्या वास्तव में आज्ञा चक्र के जाग्रत हो जाने पर सरे चक्र खुद जाग्रत हो जाते हैं ?
१. अब मैं यहाँ पर उल्लेख करना चाहूंगा कि ... चक्र जागरण एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रिया
है मानव जीवन कि ... मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य प्राप्त करने कि एवं आत्मज्ञान
प्राप्त करने कि .... लेकिन किसी एक मात्र चक्र को जाग्रत कर लेना सम्पूर्ण प्रक्रिया
नहीं है ... और यदि किसी एक चक्र को यदि जाग्रत कर लिया जाता है तो वह सम्पूर्ण
जीवन काल में साथ रहने वाली शक्ति नहीं होती ....! उसका एक समय काल होता है ...
चक्र जागरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे यदि सब कुछ प्रक्रिया बद्ध तरीके से किया जाता है
तो एक विद्युत् प्रवाह का जन्म होता है जो अनवरत चलता रहता है एवं यह विद्युत् प्रवाह
इतना प्रभावी होता है कि वह साधक के लिए तीनो लोकों और चौदहों भुवनों के द्वार खोल
देता है ..... कहा गया है कि सम्पूर्ण रूप से जिस व्यक्ति कि कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है
वह देवताओं से भी उच्च गति का भागी होता है तथा यदि वह अपनी कृपा दृष्टि किसी
सामान्य व्यक्ति पर भी कर दे तो उसे उसके लक्ष्य या मोक्ष प्राप्ति तक से कोई नहीं रोक
सकता .... ये शक्ति उस व्यक्ति को समस्त देवी या देवताओं के साथ साक्षात्कार का मौका
प्रदान करती है ... एवं एक बार आत्म ज्ञान हो जाने के बाद विकारों और माया के लिए
स्थान ही कहाँ बचता है जो व्यक्ति जीवन चक्र और जन्म चक्र में फंसेगा ... और अगर यही
चक्र तोड़ लिया जिसने भी उसके लिए परमात्मा से मिलन या मोक्ष से भला कौन रोक सकता है
....!
Posted by RK Singh at
11:33 AM
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Labels: Kundalini Shakti
2 comments:
1.
shri ganesh jyotish nidan/suneel guru
February 14,
2014 at 5:41 PM
bahut hi achhi jankari........diya hai ..apko
dhanyavaad........lekin....jankari matra se santushti nahi
hai......jiski kundalini jagri hai unse milane ki ichha hai......aur
apni bhi jagrit karna chahunga........kya esa ho sakta hai...
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Replies
1.
RK Singh
February
14, 2014 at 6:27 PM
Ji shukriya .................. is sambandh me jyada jankari ke
liye aap mail bhi kar sakte hain
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