Sunday, 1 April 2018
Vedic Quotes In Hindi
HINDI(हिन्दी)-QUOTES वेद सब सत्य ज्ञान-विज्ञान का मूल है। -महर्षि दयानन्द सरस्वती
vedic quotes in hindi
Vedic Quotes In Hindi
1 . इंद्रम् वर्धन्तो अप्तुर: कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ।
अपघ्नन्तो अराव्ण: ॥ – ( ऋ. ९ . ६३ . ५ )
अर्थात् – क्रियाशील बनो , प्रभु-महिमा का प्रचार करो , ऐश्वर्य को बढ़ाओ , विश्व को आर्य बनाओ , राक्षसों का संहार करो ।
2. सत्य
ऋतस्य पदम् कवयो निपान्ति ॥ – ( ऋ. १० । ५ । २ )
अर्थात् – सत्य क्या है, इसको ज्ञानी जन ही जानते हैं । वही सत्य के मूल वेद की रक्षा करते हैं।
3. संस्कृति बोध
सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववेवारा ॥ – ( यजुर्वेद ७ . १४ )
हम विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति के संवाहक हैं । १ ,९६ ,०८ ,५३,११४ वर्ष पुराना गौरवशाली अतीत है हमारा ।
4. अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
अर्थात् – यह मेरा है , वह पराया है , इस प्रकार की गणनाएँ तो छोटे चित्त (मन) वाले लोग करते हैं , उदार चित्त वाले व्यक्तियों के लिए तो सारी पृथ्वी ही परिवार है ।
5. “जो मनुष्य जगत का जितना उपकार करेगा , उसको उतना ही ईश्वर की
व्यवस्था से सुख प्राप्त होगा । ” – ( महर्षि दयानन्द )
6. “आज तक जितने वैज्ञानिक आविष्कार हुए है और जो आविष्कार
भविष्य में होंगे उन सबका मूल वेद में विद्यमान है। ”
– योगिराज श्री अरविंद घोष
7. धर्म के दस लक्षण
प्रथम-धृति , दूसरा – क्षमा अर्थात सहन करने की शक्ति , तीसरा – मन को स्थिर रखना , चौथा – चोरी
का स्मरण तक न आने देना , पाँचवा – शुद्ध यानि पवित्र रहना , छठा – अपनी इंद्रियों को वश में रखना ,
सातवाँ – बुद्धि को बढ़ाना , आठवाँ – विद्या को ग्रहण करना , नवां – सत्य के ग्रहण करने और असत्य के
त्यागने में सर्वथा उद्यत रहना , दसवां – क्रोध न करना ।
– महाराज मनु
8. देशभक्त
अधि श्रियो दधिरे पृश्निमातर: ।। ( ऋ. १। ८५ । २ )
पृथ्वी को माता मानने वाले देशभक्त लक्ष्मी को अपने अधिकार में रखते है ।
9. उग्रा हि पृश्निमातर: ॥ ( ऋ. १ । २३ । १० )
(पृश्निमातर:) देशभक्त (हि) सचमुच (उग्रा:) तेजस्वी होते है ।
10. शरीर
“अश्मा भवतु नस्तनू:” (ऋ. ६ . ७५ . १२ )
हमारे शरीर वज्र की भांति सशक्त व सबल होने चाहिए । बीमार होकर जीना पाप व अपराध है ।
11. “ऋषियों के अभाव में आप लोग मुझे ऋषि कह रहे हैं , परंतु सत्य जानिए यदि में कणाद ऋषि के समकालीन होता तो विद्वानों में भी अति कठिनता से गिना जाता।”
– महर्षि दयानन्द
12. भगतसिंह ने कहा था
“चारों और काफी समझदार लोग नजर आते हैं ; लेकिन हरेक को अपनी जिंदगी खुशहाली से बिताने की फिक्र है । तब हम अपने व देश के हालात सुधारने की क्या उम्मीद कर रहे हैं ।”
13. देशभक्तों के बलिदान
१८५७ के संग्राम में भारतीयों की आपसी फूट , उत्तम अस्त्राभाव आदि के कारण युद्ध में मिली असफलता से महर्षि दयानन्द ने बहुत दुखी होते हुए एक बार कहा था कि – “सारे भारत में घूमने पर भी मुझे धनुर्वेद के केवल ढाई पन्ने ही मिले हैं , यदि में जीवित रहा तो सारा धनुर्वेद प्रकाशित कर दूंगा ।” यही बात स्वामी जी ने नवंबर १८७८ ई० में अजमेर में दोबारा कही थी ।
14. ॥ आरब्धम् आर्यजना: न परित्यजन्ति ॥
अर्थात् – श्रेष्ठ व्यक्ति प्रारम्भ किए हुए कार्य को नहीं छोड़ते हैं ।
15. ॥ क्षणशः कणशश्चैव विद्यां अर्थं च साधयेत् ॥
अर्थात् – एक-एक क्षण का उपयोग कर विद्या का और एक-एक कण का उपयोग कर धन का संचय करना चाहिए ।
16. उद्यमेनैव सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै: ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ॥
अर्थात् – जैसे सोए हुए सिंह के मुख में पशु स्वयं प्रवेश नहीं करते वैसे ही केवल इच्छा करने से कार्यसिद्धि नहीं होती , परिश्रम करने से ही होती है ।
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