Saturday 7 April 2018

योग मुद्रा

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अग्नि तत्व तर्जनी (इंडेक्स फिंगर ) - वायु तत्व मध्यमा (मिडिल  फिंगर ) - आकाश तत्व अनामिका (रिंग  फिंगर ) - जल तत्व कनिष्का (लिटिल  फिंगर ) - पृथ्वी तत्व पृथ्वी मुद्रा छोटी उंगली को मोड़कर उसके अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से गोलाकार बनाते हुए लगाने पर पृथ्वी  मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा से पृथ्वी तत्व मजबूत होता है और शारीरिक दुबलापन दूर होता हैं। अधिक लाभ लेने के लिए दोनों हाथों से पद्मासन या सुखासन में बैठ कर करना चाहिए। सयंम और सहनशीलता को बढ़ती हैं। चेहरा तेजस्वी बनता है और त्वचा निखरती हैं। अग्नि / सूर्य मुद्रा सबसे पहले अनामिका उंगली को मोड़कर, अनामिका उंगली के अग्रभाग से अंगूठे के मूल प्रदेश को स्पर्श करना हैं। अब अंगूठे से अनामिका उंगली को हल्के से दबाना हैं। इस तरह अग्नि / सूर्य मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा का रोजाना 5 से लेकर 15 मिनिट तक अभ्यास करना चाहिए। मोटापे से पीड़ित व्यक्तिओ के लिए वजन कम करने हेतु उपयोगी मुद्रा हैं। बढे हुए कोलेस्ट्रोल  को कम कर नियंत्रित रखने के लिए उपयोगी मुद्रा हैं। इस मुद्रा से पाचन प्रणाली ठीक होती है। भय, शोक और तनाव दूर होते हैं। अगर आपको एसिडिटी / अम्लपित्त की तकलीफ है तो यह मुद्रा न करे। जल मुद्रा अनामिका उंगली को मोड़कर, अनामिका उंगली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से गोलाकार बनाते हुए लगाने पर जल मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा से जल तत्व मजबूत बनता है और जल तत्व की कमी से होने वाले रोग दूर होते हैं। पेशाब संबंधी रोग में लाभ होता हैं। प्यास ठीक से लगती हैं। जिन लोगों की त्वचा शुष्क या रूखी / ड्राई  रहती है उनके लिए उपयोगी मुद्रा हैं। वायु मुद्रा सबसे पहले तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूल (बेस) प्रदेश पर लगाना हैं। इसके बाद मुड़ी हुई तर्जनी उंगली को अंगूठे से हलके से दबाकर रखना हैं। इस तरह से वायु मुद्रा बनती हैं। वायु तत्व नियंत्रण में रहता हैं। वायु तत्व से होने वाले रोग जैसे की गठिया, गैस, डकार आना, हिचकी, उलटी, पैरालिसिस, स्पोंडीलैटिस इत्यादि विकार में लाभ होता हैं। प्राणवायु मुद्रा अनामिका और कनिष्का उंगलियों को मोड़कर इन दोनों उंगलियों के अग्र भाग से अंगूठे के अग्रभाग को छूने से प्राणवायु मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा से प्राणवायु नियंत्रण में रहता हैं। नेत्र दोष दूर होते हैं। शरीर की रोग प्रतिकार शक्ति / इम्युनिटी  बढ़ती हैं। अपान वायु मुद्रा सबसे पहले तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूल प्रदेश में लगाना हैं। इसके बाद अनामिका और मध्यमा इन दोनों उंगलियों को गोलाकार मोड़कर इनके अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग को छूना हैं। कनिष्का उंगली को सीधा रखना हैं। इस तरह अपान वायु मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा से अपान वायु नियंत्रित रहती हैं। अपान वायु से होनेवाले रोग जैसे की ह्रदय रोग, बवासीर, कब्ज इत्यादि में उपयोगी मुद्रा हैं। शून्य मुद्रा मध्यमा उंगली को मोड़कर उसके अग्रभाग से अंगूठे के मूल प्रदेश को स्पर्श करना हैं। इसके बाद अंगूठे से मध्यमा उंगली को हलके से दबाना हैं। अन्य उंगलियों को सीधा रखना हैं। इस तरह शून्य मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा से आकाश तत्व नियंत्रण में रहता हैं। यह मुद्रा कान में दर्द और बहरेपन में उपयोगी हैं। प्राचीन समय से योगी मनुष्य, ध्यान और समाधी की अवस्था को प्राप्त करने के लिए और कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए योग और प्राणायाम के साथ योग मुद्रा का अभ्यास करते आ रहे हैं। सामान्य व्यक्ति भी अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए इन क्रियाओं को नियमित अभ्यास कर सकता हैं। लेखक: डॉ. परितोष त्रिवेदी निरोगिकाया पृष्ठ मूल्यांकन (41 वोट) 3.0  Poonam Apr 06, 2018 04:44 PM Surya mudra picture is wrong अपना सुझाव दें (यदि दी गई विषय सामग्री पर आपके पास कोई सुझाव/टिप्पणी है तो कृपया उसे यहां लिखें ।) नाम आपका संदेश   Type the word given below सब्मिट करें नेवीगेशन महिला स्वास्थ्य बाल स्वास्थ्य आयुष आयुर्वेद योग यूनानी प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धा होम्योपेथी स्थानीय वनौषधियाँ और हमारा स्वास्थ्य औषधीय पौधे और जड़ी बूटियां योग विज्ञान प्रमुख योगासन की विधियां सूर्यनमस्कार वज्रासन पदमासन भुजंगासन मत्स्यासन मयूरासन योगअभ्यास के लिए सामान्य दिशानिर्देश योग सामान्य मुद्रा गोमुखासन योग चक्रासन योग ज्ञान मुद्रा की विधि त्रिकोणासन योग भद्रासन योग शशांकासन योग सिंहासन योग हलासन योग प्राणायाम कपालभाति ध्यान आयुष मंत्रालय की उपलब्धियां कसरत, योग और फिटनेस पोषाहार बीमारी-लक्षण एवं उपाय स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान मानसिक स्वास्थ्य स्वास्थ्य योजनाएं प्राथमिक चिकित्सा जहाँ महिलाओं के लिए डॉक्टर न हो जीवनशैली के विकार : भारतीय परिदृश्य जीवन के सत्य वृद्धजनों का स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवा अंगदान श्रमिक स्वास्थ्य स्वास्थ्य चर्चा मंच इस पोर्टल का विकास भारत विकास प्रवेशद्वार-एक राष्ट्रीय पहल के एक भाग के रुप में सामाजिक विकास के कार्यक्षेत्रों की सूचनाएं/ जानकारियां और सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित उत्पाद व सेवाएं देने के लिए किया गया है। भारत विकास प्रवेशद्वार, भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक पहल और प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी-डैक), हैदराबाद के द्वारा कार्यान्वित है। हमारे बारे मेंहमें लिंक बनाएं संपर्क करेंसहायतापोर्टल नीतियांअपनी पसंद में जोड़ेंअपनी प्रतिक्रिया देंसाइटमैप अंतिम बार संशोधित: Mar 01, 2018 © 2018 सी-डैक. सर्वाधिकार सुरक्षित नेवीगेशन Back to top

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