Friday 13 April 2018

एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति


प्रेरक वेद-वाक्य
ऋग्वेद : मनुर्भव - आदमी बनो
1. एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति । (1.164.46) एकेश्व र
को विद्वान लोग अनेक प्रकार से पुकारते हैं ।
2. स्वस्ति पन्थामनुचरेम । (5.51.15) कल्याण मार्ग
का अनुसरण करें ।
3. विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं
तन्न आसुव । (5.85.5) विश्व देव सविता बुराइयां दूर
करावें जो कल्याणकारी है, वह प्रदान करें ।
4. उप सर्प मातरं भूमिम् । (10.18.10) सेवा करें मातृ
भूमि की ।
5. सं गच्छध्वम् सं वदध्वम् । (10.181.2) साथ चलें
मिलकर बोलें ।
यजुर्वेद : सुमना भव । अच्छे मन वाले बनें
6. ऋतस्य पथा प्रेत । (7.45) धर्म के मार्ग पर चलें ।
7. भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम । (25.11) मंगलकारी वचन
कानों से सुनें ।
8. तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु । (34.1) यह मेरा मन
शिव संकल्प युक्त हो ।
9. मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे । (36.18) मित्र की
दृष्टिस से सर्वत्र देखें ।
10. मा गृधा कस्य स्विद धनम् । (40.1) मत लालच करें
किसी अन्य के धन का ।
सामवेद : सरस्वन्तम् हवामहे । परमेश्व र का आवाहन है
11. अध्वरे सत्य धर्माणं कविम् अग्निम् उप स्तुहि ।
(32) यज्ञ में सत्य धर्मरत कवि अग्नि की स्तुति करें ।
12. ऋचा वरेण्यम् अवः यामि । (48) वेद मंत्रों से
श्रेष्ठ2 रक्षण मांगता हूँ ।
13. मंत्र श्रुत्यं चरामसि । (176) मंत्र श्रुति का हम
पालन करते हैं ।
14. जीवा ज्योति रशीमहि । (259) सभी जीव
परमप्रकाश को प्राप्त करें ।
15. यज्ञस्य ज्योतिः प्रियं मधु पवते । (15) यज्ञ की
ज्योति प्रिय मधुर भाव उत्पन्न करती है ।
अथर्ववेद : मानवो मानवम् पातु - मनुष्य मनुष्य को
पाले ।
16. माता भूमिः पुत्रोSहम् पृथिव्याः । माता भूमि
है, पुत्र है हम पृथ्वी के ।
17. यज्ञो विश्वपस्य भुवनस्य नाभिः । (9.10.14)
यज्ञ कार्यक्रम विश्वप भुवन का केन्द्र है ।
18. ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत । (11.5.19)
ब्रह्मचर्य के तप से देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की ।
19. मधुमतीं वाचमुदेयम । (16.2.2) मैं मीठी वाणी
बोलूँ ।
20. सर्वमेव शमस्तु नः । (19.9.14) सभी शान्तिप्रद
हो हमारा ।

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