Friday, 6 April 2018

शक्तिचालिनी मुद्रा 

SEARCH योग ध्‍यान, योग रहस्‍यJANUARY 3, 2018 शक्ति चलन क्रिया और शाम्भवी महामुद्रा – क्या है इनमे अंतर? 2k Shares Facebook Twitter Whatsapp Pinterest Mail शक्ति चलन क्रिया करके हम अपने प्राणों पर महारत पा सकते हैं। शाम्भवी महामुद्रा में भी प्राणायाम का एक आयाम मौजूद है, फिर क्या अंतर है शाम्भवी और शक्ति चलन क्रिया में? जानते हैं आप जीवन में जो भी करें, आपका मन, आपका शरीर और आपका पूरा तंत्र कैसे काम करेगा, यह आखिरकार आपके प्राण या जीवन ऊर्जा से तय होता है। प्राण एक बुद्धिमान ऊर्जा है। चुंकि प्राण पर हर व्यक्ति की कार्मिक याद्दाश्त छपी होती है, इसलिए यह हर इंसान के लिए अलग तरह से काम करता है। इसके उल्टा, बिजली में कोई बुद्धि नहीं होती, इसलिए यह बल्ब जला सकती है, कैमरा चला सकती है और लाखों काम कर सकती है, यह इसकी समझदारी की वजह से नहीं होता, बल्कि यह उस यंत्र की वजह से होता है, जिसे यह चला रही है। भविष्य में हो सकता है कि स्मार्ट बिजली भी आ जाए। अगर आप ऊर्जा को किसी खास याद्दाश्त से जोड़ सकें, तो आप भी इससे कुछ ऐसा ही काम ले सकते हैं। प्राण के अलग-अलग रूप – पंच वायु शरीर में प्राण के पाँच रूप हैं, जिन्हें पंच वायु कहते हैं। इनमें हैं – प्राण वायु, समान वायु, उदान वायु, अपान वायु, व्यान वायु। ये मानव-तंत्र के विभिन्न पहलू हैं। शक्ति चालन क्रिया जैसे यौगिक अभ्यासों की मदद से, आप पंच वायु की डोर अपने हाथ में ले सकते हैं। अगर आपने इन पर महारत हासिल कर ली तो आप अधिकतर रोगों से मुक्त हो जाएंगे – खासकर मानसिक रोगों से अपना बचाव कर सकेंगे। आज संसार को इसकी सबसे अधिक जरूरत है। अगर हमने अभी ध्यान न दिया तो आने वाले पचास सालों के अंदर हमारे पास बहुत अधिक लोग ऐसे होंगे जो मानसिक असंतुलन का शिकार होंगे। यह सब हमारी आधुनिक जीवनशैली की देन है। हम बहुत ही गलत तरीके से जीवन के कई आयामों को संभाल रहे हैं। हमें इनकी भारी कीमत चुकानी होगी। अगर आप अपने प्राणों की जिम्मदारी लेते हैं तो बाहरी हालात चाहे जो भी हों, आप मनोवैज्ञानिक तौर पर संतुलित रहेंगे। अभी, बहुत सारे लोग मनोवैज्ञानिक स्तर पर असंतुलन के शिकार हैं, हालांकि उनका अभी मेडिकल डायग्नोसिस नहीं हुआ है। प्राण, संतुलन व स्वास्थ्य मान लीजिए आपका हाथ बेकाबू हो कर आपको नोचने लगे या चोट पहुँचाए – तो यह बिमारी है। इस समय लोगों का मन उनके साथ यही कर रहा है। हर रोज, लोगों का मन उन्हें निराश होने, तनाव में जाने या रोने के लिए विवश कर देता है। यह उनके लिए दुख पैदा कर रहा है। यह भी एक रोग है पर समाज ने इसे रोग नहीं मानता। मनुष्य के रोजमर्रा से जुडे़ हर दुख का मूल मन में ही है। रोग हमारे भीतर आ चुका है, और दिन-ब-दिन बढ़ रहा है क्योंकि हमारे आसपास सामाजिक ढांचे, तकनीक और कई दूसरी चीजें ऐसी ही हैं। जो अपने प्राणों पर महारत पा लेता है, वह सौ फीसदी अपने मानसिक संतुलन को भी बनाए रख सकता है। इस तरह आप खुद को कई तरह के शारीरिक रोगों से भी बचा सकते हैं। हालांकि आजकल के माहौल में होने वाले संक्रमण और जहरीले रसायनों से होने वाले खतरे तब भी बने रहेंगे। वायु, जल और भोजन के जरिए शरीर में जाने वाले तत्वों पर हम पूरी तरह से काबू नहीं पा सकते, भले ही हम कितने भी सावधान क्यों न रहें। लेकिन इनका असर हर व्यक्ति के लिए अलग होता है। बाहरी कारणों की वजह से शारीरिक सेहत की सौ प्रतिशत गारंटी नहीं दी जा सकती, लेकिन अगर प्राणों को अपने वश में कर लें तो मानसिक सेहत की सौ प्रतिशत गारंटी है। अगर आप मानसिक तौर पर स्वस्थ होंगे तो थोड़े-बहुत शारीरिक मसलों से आपको कोई हानि नहीं होगी। अक्सर किसी शारीरिक परेशानी की स्थिति में, उस शारीरिक कष्ट से ज्यादा परेशानी, उसकी वजह से मन में उपजी प्रतिक्रिया से होती है। प्राण आपके साथ कैसे काम करते हैं, वे बाकी ब्रह्माण्ड के साथ कैसे काम करते हैं, वे किसी नवजात के शरीर में कैसे प्रवेश करते हैं, मरने वाले के शरीर को कैसे छोड़ते हैं – इन सब बातों को देखकर पता चलता है कि उनके पास अपनी एक समझ है। शक्ति चालन क्रिया : आपके प्राणों के साथ काम करना पाँचों प्राण कैसे काम करते हैं, इसे जानने के लिए आपको सजगता के निश्चित स्तर की जरूरत होगी। शक्ति चालन क्रिया एक अद्भुत प्रक्रिया है, पर आपको सजग होना होगा। आपको पूरे चालीस से साठ मिनट तक केन्द्रित रहना होगा। अधिकतर लोग एक पूरी साँस पर अपना ध्यान नहीं टिका सकते। बीच में कहीं उनके विचार कहीं और चले जाते हैं, या फिर वे गिनती भूल जाते हैं। उस बिंदु पर आने के लिए महीनों और सालों के अभ्यास की जरूरत होगी जिस पर आ कर, अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करने के सारे चक्रों को पूरा कर सकें। यही वजह है कि शक्ति चालन क्रिया को शून्य-ध्यान के साथ सिखाया जाता है। यह ध्यान आपको उस जगह ले आता है, जिसमें आंखें बंद करते ही आप दुनिया से दूर हो जाते हैं। यह अपने-आप में किसी वरदान से कम नहीं है। अगर आप ऐसा कर लें तो आप किसी भी चीज पर कुछ समय तक एकाग्र रह सकेंगे। अगर आप ऐसा जबरन करना चाहें तो उससे कोई लाभ नहीं होगा। अगर आप अपनी आंखों को बंद करें तो आपके लिए मौजूद होना चाहिए – सिर्फ आपकी सांस, धड़कन, शरीर की कियाएं और आपके प्राण के क्रियाकलाप। सिर्फ वही जो भीतर घटित हो रहा है, वही जीवन है। जो कुछ भी बाहर घटित हो रहा है, वह सिर्फ छाया है। यहां तक कि अगर आप किसी इंसान को देख रहे हैं, तो आप दरअसल उसे नहीं देख रहे हैं, आप तो वह देख रहे हैं जो उस इंसान ने आपकी स्क्रीन पर प्रोजेक्ट किया है (आपके दिमाग में)। शक्ति चलन क्रिया – केन्द्रित रहना ही मूलमंत्र है शून्य और अन्य साधना उसी ओर ले जाती हैं। आप कितनी दूर जा पाते हैं, वह अलग बात है- खासतौर पर आज की दुनिया में। मैं अपने आसपास घट रहे जीवन के खिलाफ नहीं हूं, पर आजकल उथलेपन का चलन है। गहराई कहीं खोती जा रही है। इस रवैए के साथ आप कभी नहीं जान पाएंगे कि जीवन आपके भीतर कैसे काम करता है। इसका मतलब यह नहीं कि इंसान जान नहीं सकता। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कितनी अहमियत देते हैं। अगर आपने इसे अपनी प्राथमिकता बनाया तो सब कुछ अपने-आप ही व्यवस्थित हो जाएगा। अगर आपकी प्राथमिकता अलग दिशा में गई तो आप कहीं भी जाएँ, पर जीवन को बुनियादी तौर पर नहीं जान सकते। सामाजिक स्तर पर, आप कहीं पहुँच सकते हैं, शारीरिक स्तर पर जीवन कब्र की ओर जा रहा है, ज्यादा से ज्यादा आप इसका रास्ता थोड़ा लंबा कर सकते हैं। जहाँ तक मन का सवाल है, यह तो लगातार गोल-गोल घूम रहा है। अगर आपने जीवन के बुनियादी स्वभाव पर ध्यान दिया तो जीवन आपको कहीं न कहीं अवश्य ले जाएगा। आपके भीतर का यह जीवन – यही सच्चाई है – बाकी सब तो दिखावा भर है। इस समय, सारा ध्यान दिखावे पर है, हकीकत पर नहीं है। शक्ति चालन क्रिया के साथ, रूपांतरण धीरे-धीरे होता है। अपने प्राण का दायित्व लेना और तंत्र में इसकी प्रक्रियाओं पर ध्यान देना, एक अद्भुत सिलसिला है। शक्ति चालन क्रिया उसी स्तर पर काम करती है। अगर आप इसका अभ्यास करें, तो आप अपने तंत्र की बुनियाद मजबूत कर सकते हैं। शांभवी महामुद्रा – प्राण से परे शांभवी महामुद्रा में वह क्षमता है जो आपको उस आयाम को स्पर्श करा सकती है, जो इन सबका आधार है। लेकिन आप इसे सक्रिय तौर पर नहीं कर सकते। आप केवल माहौल को तय कर सकते हैं। हम शांभवी को हमेशा स्त्रीवाचक मानते हैं। उसके फलदायी होने के लिए आपके भीतर श्रद्धा का भाव होना चाहिए। आप सृष्टि के स्रोत के केवल संपर्क में आ सकते हैं – आपको इससे और कुछ नहीं करना। शांभवी में प्राणायाम का एक तत्व भी मौजूद होता, जो कई तरह से लाभदायक है। शांभवी क्रिया के बारे में अहम बात यह है कि यह सृष्टि के स्रोत को छूने का एक साधन है, जो प्राण से परे है। यह पहले दिन भी ही हो सकता है या यह भी हो सकता है कि आपको छह माह में भी कोई नतीजा न मिले। पर अगर आप इसे करते रहे, तो एक दिन आप इस आयाम को छू लेंगे। अगर आप इसे छू लेंगे, तो अचानक सब कुछ रूपांतरित हो जाएगा। 2k Shares Facebook Twitter Whatsapp Pinterest Mail संबन्धित पोस्ट इच्छा और कर्म में क्या संबंध है? दान देने और लेने का क्या महत्व है? नशा और भक्ति में अंतर क्या है? दिमाग से निकाल फेंके मूर्खतापूर्ण निष्कर्षों को शहद के फायदे और 12 स्वास्थ्य लाभ शरीर के 112 चक्रों को 7 चक्रों के रूप में क्यों जाना जाता है? 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