Thursday 5 April 2018

त्रयक्षरी मंत्र-- ह्स्रैं, ह्स्कल्रीं एवं ह्स्रौं:।

ⓘ Optimized by Google just nowView original https://parivartankiawaj.blogspot.com/2015/09/blog-post_4.html?m=1 Parivartan Ki Awaj Menu A blog about religion & art of living शुक्रवार, 4 सितंबर 2015 माता त्रिपुर भैरवी (दस महाविद्या) दस महाविद्याओं में माता भैरवी का स्थान पांचवां है। यह माता त्रिपुर सुंदरी का उग्र रूप मानी जाती हैं। यह जन्म, पालन और संहार तीनों की अधिष्ठात्री हैं। इनके अनेक रूप प्रचलित हैं। इनमें तीन-बाला, भैरवी और सुंदरी अधिक प्रचलित हैं। उग्र होने के बावजूद यह शीघ्र प्रसन्न होने एवं सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। मेरे विचार से महाविद्याओं के क्रम के अनुसार जटिलता भी बढ़ती जाती हैं। अत: साधक को या तो स्वयं मजबूत होना चाहिए। किसी बीज मंत्र का कम से कम दस लाख जप करने वाले तथा शुरुआती महाविद्याओं की साधना-पूजन करने वालों को इस दिशा में आगे बढऩा चाहिए। सामान्य पूजन व अनुष्ठान में यह शर्त लागू नहीं होता है। सभी माताएं अत्यंत कृपालु होती हैं और भक्तिभाव से पूजन करने वाले अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती हैं। त्रिपुर भैरवी के तीन सर्वाधिक प्रचलित रूपों तीन-बाला, भैरवी और सुंदरी की तरह इनके बीज मंत्र भी तीन हैं। ये क्रमश: ह्स्रैं, ह्स्कल्रीं एवं ह्स्रौं: हैं। इनका त्रिकुटा मंत्र ही सबसे ज्यादा प्रचलित है। पांच व्यंजनों से रचित होने के कारण त्रिपुर भैरवी का यह मंत्र पंचकूटा भी कहा जाता है। जनबलपुर के पास स्थित प्रचीन स्थान त्रिपुरी इसका आराधना पीठ माना जाता है। त्रयक्षरी मंत्र-- ह्स्रैं, ह्स्कल्रीं एवं ह्स्रौं:। विनियोग-- अस्य मंत्रस्य दक्षिमामूर्ति ऋषि:, पंक्तिश्छंद:, त्रिपुरभैरवी देवता, ऐं बीजम्, सौ: (तार्तीय) शक्ति:, क्लीं कीलकम सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोग:। न्यास-- नाभि से पैर तक ह्स्रैं नम:, हृदय से नाभि तक ह्स्कल्रीं नम: एवं मस्तक से हृदय तक ह्स्रौं: नम: से न्यास करें। ह्स्रैं नम: दक्ष हस्ते, ह्स्कल्रीं नम: वाम हस्ते, ह्स्रौं: नम: करयो, ह्स्रैं नम: शिरसि, ह्स्कल्रीं नम: मूलाधारे एवं ह्स्रौं: नम: हृदय से न्यास करें। ध्यानम उद्यद्भानुसहस्रकांतिमरुणक्षौमां शिरोमालिकाम्, रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम्। हस्ताब्जैदधतीं त्रिनेत्र विलसद्रक्तारविंद श्रियमं, देवीं बद्धहिमांशुरक्तमुकुटां वंदे रविंद स्थिताम्।। विधि और फल-- उक्त त्रयक्षरी मंत्र को दस लाख जप करने और ढाक के फूलों से 12 हजार हवन करने से पुरश्चरण होता है। इस मंत्र का उपयोग घोर कर्म व भीषण संकट में पडऩे पर किया जाता है। इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता है। इनकी साधना से वाक् सिद्धि भी होती है लेकिन मेरी राय में आध्यात्मिक उन्नत्ति के लिए इनका प्रयोग बेहद कल्याणकारी होता है। अन्य मंत्र--- 1-सकलसिद्धिदा भैरवी मंत्र-- स्हैं स्हक्लीं स्हौं 2-भय विध्वंसिनी भैरवी—हस्रैं हस्स्स्रीं हसौं 3-चैतन्य भैरवी—स्हैं स्कल्ह्रीं स्ह्रौं (इसके त्रैलोक्यमातृका चैतन्य भैरवी विद्या भी कहते हैं। विधि और फल-- उक्त मंत्रों का ढाई लाख जप कर ढाक के फूलों से दसवें भाग में हवन करना चाहिए। नाम के अनुरूप ही फल प्राप्त होते हैं। Kishor Jha at 9:27:00 pm ‹› मुख्यपृष्ठ वेब वर्शन देखें मेरे बारे में Kishor Jha मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें Blogger द्वारा संचालित. मुख्यपृष्ठ

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