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धातु जो हीरे से भी है कठोर
रिचर्ड ग्रे
बीबीसी फ़्यूचर
25 अगस्त 2016
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कहते हैं कि हीरा है सदा के लिए. वजह ये कि ये बेहद सख़्त होता है. गलता नहीं, घिसता नहीं. असल में हीरा दुनिया की सबसे सख़्त चीज़ होती है. इसे सिर्फ़ हीरा ही काट सकता है.
हीरे की मदद से ही दुनिया की तमाम सख़्त चीज़ों को काटा-छांटा जाता है. ज़मीन के अंदर चट्टानें काटनी हों, समंदर के भीतर खुदाई करनी हो, सब जगह हीरे का इस्तेमाल होता है.
मगर अब इंसान को हीरे से भी सख़्त चीज़ की ज़रूरत है. आज वैज्ञानिक ऐसी चीज़ बनाने में जुटे हुए हैं, जो हीरे से भी सख़्त हो, भारी से भारी दबाव झेल सके.
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जर्मनी के बवेरिया सूबे की एक प्रयोगशाला में कुछ वैज्ञानिकों को इस दिशा में कामयाबी मिल गई है.
नतालिया डुब्रोविंसकिया एक छोटी सी मशीन के अंदर इस चीज़ को धरती के भीतर के दबाव से भी चार गुना दबाव डालकर सहने की ताक़त का अंदाज़ा लगाने में जुटी हैं.
हमारी धरती पर सबसे ज़्यादा दबाव होता है धरती की कोख में. वहां इस क़दर दबाव होता है कि उससे चट्टानें सिर्फ़ टूट ही नहीं जातीं हैं, बल्कि पिघल जाती हैं.
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वैसे सख़्त चीज़ों में इंसान की दिलचस्पी बहुत पुरानी है. आदि मानव ने सख़्त पत्थरों की मदद से ही मुलायम पत्थरों को तराशकर हथियार बनाए थे.
आज से क़रीब दो हज़ार साल पहले जब इंसान ने लोहे की खोज की, तो मानो उसकी तलाश पूरी हो गई. कई सदियों तक लोहे को ही दुनिया की सबसे सख़्त चीज़ माना जाता रहा. फिर अठारहवीं सदी में हीरे की ख़ूबी का पता चला.
वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि अगर लोहे के हथियारों पर हीरे की परत चढ़ा दी जाए, तो उसकी दूसरी चीज़ों को काटने की ताक़त कई गुना बढ़ जाती है.
हीरों का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल गहने बनाने में नहीं होता. बल्कि उन्हें, बड़े-बड़े औज़ारों पर कलई चढ़ाने में इस्तेमाल किया जाता है. ताकि वो और धारदार बन सकें.
हीरे की परत चढ़े औज़ारों की मदद से ही इंसान ने धरती के भीतर तेल और गैस के भंडार तलाशे और उनका इस्तेमाल किया है.
हीरे की परत चढ़े औज़ारों की मदद से ही समंदर की अथाह गहराइयों के भीतर खुदाई की जा सकी है.
इमेज कॉपीरइटNATALIA DUBROVINSKAIA ET ALSCIENTIFIC ADVANCES
किसी भी चीज़ के सख़्त होने की वजह होती है उसकी बनावट. अब जैसे हीरा और ग्रेफ़ाइट दोनों ही कार्बन से बने होते हैं.
मगर ग्रेफ़ाइट के अंदर कार्बन के परमाणु या एटम जिस तरह से लगे होते हैं, उससे वो मुलायम हो जाता है. वहीं हीरे के भीतर कार्बन के एटम अलग ही क़रीने से लगे होते हैं.
अंग्रेज़ी का डायमंड लफ़्ज़, ग्रीक शब्द अडामास से बना है, जिसका मतलब है न टूटने वाला. फिर भी कई बार हीरा टूटता भी है और दबाव में बिखरता भी है.
यही वजह है कि वैज्ञानिक हीरे से भी सख़्त चीज़ की तलाश में जुटे हैं. बरसों तक अलग-अलग लैब में वैज्ञानिक एक ऐसी चीज़ बनाने की कोशिश करते रहे, जो हीरे से भी सख़्त हो. इसके लिए हीरे की बनावट जैसी चीज़ को ही बनाने की कोशिश होती रही है.
ऐसा ही एक तत्व है, बोरॉन नाइट्राइड. ये कई रंग-रूपों में मिलता है. पहली बार इसे 1957 में बनाया गया था. उस वक़्त बड़ी उम्मीदें जगी थीं कि हीरे से भी मज़बूत कोई चीज़ इंसान को मिल गई है. मगर ये उम्मीदें जल्द ही टूट गईं. जब बोरॉन नाइट्राइड भारी दबाव में बिखर गया.
फिर 1972 में इसका एक रूप प्रयोगशाला में तैयार किया गया जो भारी दबाव झेल सकता था. मगर दिक़्क़त ये थी कि इसे भयंकर गर्म माहौल में बनाया गया था. कुछ वैसे माहौल में जैसा धरती के भीतर होता है, जब ज़बरदस्त दबाव के चलते चट्टानें टूटकर पिघल जाती हैं.
अब धरती पर, किसी कारख़ाने में वैसा माहौल तैयार करके बोरॉन नाइट्राइड बनाना कोई आसान काम तो था नहीं. तो ये तजुर्बा भी नाकाम हो गया.
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फिर 2001 में यूक्रेन की राजधानी किएव में वैज्ञानिकों ने बोरॉन कार्बन नाइट्राइड नाम की चीज़ तैयार की, जो हीरे से भी सख़्त साबित हुई.
इसके बाद 2008 में शंघाई यूनिवर्सिटी में वैज्ञानित जियाओ टोंग ने बोरॉन की नई क़िस्म वुर्ज़ाइट बोरॉन तैयार की, जो हीरे से 18 फ़ीसदी ज़्यादा दबाव बर्दाश्त कर सकता था. इसकी बनावट हीरे जैसी ही है.
फिर 2015 में अमरीका की नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक जगदीश नारायण और उनके साथियों ने कार्बन का ही एक नया रूप क्यू-कार्बन तैयार कर लिया.
ये हीरे और ग्रेफ़ाइट की बनावट के मेल से तैयार किया गया था. ये हीरे से साठ फ़ीसद ज़्यादा सख़्त माना गया.
अब बवेरिया की प्रयोगशाला में नतालिया और उनके साथियों ने इसी क्यू-कार्बन की मदद से नया मैटेरियल तैयार किया है. जो धरती के भीतर के दबाव से भी चार गुना ज़्यादा दबाव झेल सकता है.
दिलचस्प बात ये कि ये नया तत्व भी कार्बन कणों से ही बना है. मगर इसकी बनावट हीरे या बोरॉन नाइट्राइड से अलग है. ये बहुत से छोटे कणों से मिलकर बना है जो कार्बन और ग्राफ़ीन नाम के एक तत्व के ज़रिए जुडे होते हैं.
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ये इतना ताक़तवर है कि इससे बनी हाई हील सैंडल के ऊपर तीन हज़ार हाथी खड़े कर दिए जाएं तो भी नहीं टूटेगा.
इस नए तत्व की एक और ख़ास बात ये है कि इसके आर-पार देखा जा सकता है. इससे वैज्ञानिक उस वक़्त इसके आर-पार देख सकते हैं जब भारी दबाव में ये टूट रहा होता है.
इस नए तत्व की खोज के बाद ब्रह्मांड के कई नए रहस्यों पर से पर्दा उठने की उम्मीद है. जैसे कि बृहस्पति ग्रह पर धरती से कई गुना ज़्यादा दबाव होता है. इतना कि हाइड्रोजन जैसी गैस धातु जैसा बर्ताव करने लगती है. उसके ज़रिए बिजली दौड़ाई जा सकती है.
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अब इस नई ताक़तवर धातु की मदद से वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश करेंगे कि ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों पर, जहां ज़्यादा दबाव है, वहां क्या होता है.
इसकी मदद से विज्ञान और सेहत की दुनिया में भी काफ़ी मदद मिलेगी. जैसे कि कैंसर के इलाज में भी इससे काफ़ी मदद मिलने की उम्मीद है.
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