Saturday 7 April 2018

स्वप्नदोष,शीघ्रपतन,नपुंसकता की योग

Jump to navigation Main menu HOME YOGASANA NATUROPATHY ARTICLE NEWS COURSES BLOG YOG BHARATI स्वप्नदोष,शीघ्रपतन,नपुंसकता की योग चिकित्सा Submitted by Aksh on Sat, 06/20/2015 - 23:50 मनुष्य ने स्वयं की गलतियों से शरीर को रोगी और अपूर्ण बना दिया | योग अपने आप में पूर्ण वैज्ञानिक विद्या है | हमारे ऋषियों ने योग का प्रयोग भोग के वजाय आध्यात्मिक प्रगति करने के लिए जोर दिया है जो नैतिक दृष्टि से सही भी है | परन्तु ईश्वर की सृष्टि को बनाये रखने के लिए संसारिकता भी आवश्यक है, वीर्यवान व्यक्ति ही अपना सर्वांगीण विकास कर सकता है,संतानोत्पत्ति के लिए वीर्यवान होना आवश्यक है पौरूषवान (वीर्यवान) व्यक्ति ही सम्पूर्ण पुरुष कहलाने का अधिकारी होता है | वीर्य का अभाव नपुंसकता है इसलिए मौज-मस्ती के लिए वीर्य का क्षरण निश्चित रूप से दुखदायी होता है | ऐसे व्यक्ति स्वप्नदोष,शीघ्रपतन और नपुंसकता जैसे कष्ट सहने को विवश होते हैं | 1. वज्रोली क्रिया : ********************** जब भी मूत्र त्याग करे तब एकदम से मूत्र को रोक ले .कुछ सेकेण्ड रोकें ..फिर नाड़ियों को ढीला छोड़ें और मूत्र निकलने दे ..पुनः रोके इस तरह मूत्र त्याग के दौरान कई बार इस क्रिया को करें | इस क्रिया के द्वारा नाड़ियों में शक्ति आएगी .फिर वीर्य के स्खलन को भी आप कंट्रोल कर सकेंगे | हमारा मस्तिष्क मूत्र त्याग व वीर्य स्खलन में भेद नही कर सकता ….यही कारण है कि इस क्रिया द्वारा स्खलन के समय में उसी अनुपात में बढ़ोत्तरी होती है जिस अनुपात में आप मूत्र त्याग के समय कंट्रोल कर लेते है | 2. बाह्य कुम्भक : ******************** लाभ : ——- 1- इस प्राणायाम से मन की चंचलता दूर होकर वृत्ति निरोध होता है | 2- इससे बुद्धि सूक्ष्म एवं तीव्र होता है | 3- वीर्य स्थिर होकर स्वप्नदोष और शीघ्रपतन छुटकारा मिलता है | विधि : ——- किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर पूरी शक्ति से श्वास को एक बार में ही बाहर निकल दें | श्वास को बाहर निकालकर मूलबंध (गुदा द्वार को संकुचित करें) और उड्डीयान बंध (पेट को यथाशक्ति अंदर सिकोड़ें) लगाकर आराम से जितनी देर रोक सकें,श्वास को बाहर ही रोककर रखें | जब श्वास अधिक समय तक बाहर न रुक सके तब बंधों को खोलकर धीरे-धीरे श्वास को अंदर भरें | यह एक चक्र पूरा हुआ | श्वास भीतर लेने के बाद बिना रोके पुनः बाहर निकालकर पहले की तरह बाहर ही रोककर रखें | इस प्रकार 3 से २१ चक्र किये जा सकते हैं | सावधानी : ———– यह प्राणायाम प्रातः खाली पेट करें | श्वास बाहर इतना नही रोकना चाहिए कि लेते समय झटके से श्वास अंदर जाए और उखड़े हुए श्वास को 5-6 सामान्य श्वास लेकर ठीक करना पड़े | प्राणायाम के 30 मिनट बाद ही कुछ खाएं – पियें | 3. अश्विनी मुद्रा :   लाभ : 1- इस मुद्रा के निंरतर अभ्यास से गुदा के सभी रोग ठीक हो जाते हैं। 2- शरीर में ताकत बढ़ती है तथा इस मुद्रा को करने से उम्र लंबी होती है। 3- माना जाता है कि इस मुद्रा से कुण्डलिनी का जागरण भी होता है। 4- यह मुद्रा शीघ्रपतन रोकने का अचूक इलाज है | 5- अश्वनी मुद्रा से नपुंसकता दूर होती है | विधि : कगासन में बैठकर (टॉयलैट में बैठने जैसी अवस्था) गुदाद्वार को अंदर ‍खिंचकर मूलबंध की स्थिति में कुछ देर तक रहें और फिर ढीला कर दें। पुन: अंदर खिंचकर पुन: छोड़ दें। यह प्रक्रिया यथा संभव अनुसार करते रहें और फिर कुछ देर आरामपूर्वक बैठ जाएं। विशेष यह क्रिया दिन में कई बार करें, एक बार में कम-से-कम 50 बार अश्वनी मुद्रा करें | Tags:  योग चिकित्सा Category:  Diseases and Treatment Share User login Username * Password * Request new password Log in Latest Article योगा में भी कर सकेंगे नेट नेट की परीक्षा के लिए अब योग के साथ गीता का पाठ आवश्यक लड़का हो या लड़की योग करो स्वस्थ रहो पतंजलि योग स्कूल ने स्वतंत्रता दिवस पर देशवासियो को बधाई दी प्राणायाम से मिलने वाले समस्त सामान्य लाभ पतंजलि योग स्कूल ने मनाया द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस अपानवायु मुद्रा भूचरी आसन दिमाग तेज रखने और याददाश्त बढ़ाने के ल‌िए कर्मयोग का वास्तविक अर्थ क्या है? पतंजलि योग स्कूल ने गणतंत्र दिवस पर देशवासियो को बधाई दी लाभदायक है त्रिकोणासन योगाभ्यास के सामान्य लाभ – Benefits of Yoga राजयोग (अष्टांग योग) क्या है ? ध्यान मुद्रा पतंजलि योग स्कूल की ओऱ से नववर्ष की शुभकामनाएँ (c) by Patanjali Yog School Patanjali Yog School institute of yoga and nathuropathy. The institute is giving online education of yoga and nathuropathy. It is helpful for many desises and their treatment . web & design by Swamisir

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