Toggle navigation  LoginEnglish सब्सक्राइब  फ्यूचर समाचार लेख पुस्तकें वीडियो लेख भेजें सीखें  लेख खोजें खोजें  FuturePoint Software Shop Apps Horoscope & Consultation Learn Notifications 1 होम देवी और देव श्री हरसू ब्रह्म धाम  श्री हरसू ब्रह्म धाम जून 2014 राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’ अंक के और लेख | सम्बंधित लेख | व्यूस : 13790 | हिंदी लेख English (Transliterated)  आदि अनादि काल से धर्मए संस्कृति व आस्था भाव से परिपूर्ण भारत देश में सनातन देवी देवताओं के अलावा कितने ही लोक देवी देवताओं की पूजा की जाती है। कहीं ये डाक बाबाए कहीं ये गोलू देवताए कहीं बालाजीए कहीं डिहवार बाबाए कहीं गोरैया तो कहीं ब्रह्म देवता के रूप में पूजित हैं। इसी क्रम में ढेलवा गोसाईंए फूल डाॅकए दखिनाहा बाबाए दरगाही पीरए राह बाबाए डीह देवता आदि का भी नाम आता है पर इनमें ब्रह्म देवता को बरहम बाबा भी कहा जाता है। ऐसे तो पूरे देश में ब्रह्म देवता के कितने ही स्थान हैं पर इनमें बिहार राज्य के कैमूर पर्वत के अंचल में विराजमान भभुआ नगर के हरसू ब्रह्म का अपना विशिष्ट महत्व है जिनकी कृपा से मानव जनित तमाम प्रकार की बाधाएं और देव श्राप का शमन.दमन शीघ्र हो जाता है। कार्य संचालन में दक्ष थे। विवरण मिलता है कि हरसू पाण्डेय भभुआ के निवासी थे जो चैनपुर से 15 कि.मी. उŸार की ओर है। ऐेसे इनके पुरोहित का खानदान अजगरा (उ.प्र.) में निवासरत् है जो हरेक वर्ष वार्षिक महोत्सव में अवश्य आते हैं। राठौर राजपूत सुंदरी मानिकमति से विवाह के बाद राजा के नाम, यश व गुण की चर्चा सर्वत्र होने लगी। आगे 1805 ई. में राज्य के विकास व जनता के उत्थान हेतु राजा ने विष्णु यज्ञ किया और अपने राजकीय क्षेत्र के सभी ब्राह्मणों को यथा उचित सम्मान दिया। इस कार्य में श्री हरसू पाण्डेय का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ जो राजमहल के ठीक सामने ही विशाल भवन में रहा करते थे। विवाह के तीस साल गुजर जाने पर भी जब राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई तब यह राजा ही नहीं प्रजा के लिए भी चिंता की बात थी। हरसू पाण्डेय ने भी ज्योतिष के आधार पर बताया कि राजन आपको इस पत्नी से पुत्र योग अपूर्ण रहेगा इस कारण आप दूसरा विवाह कर लें तब वंशवृद्धि अवश्य होगी। जब महारानी ने यह सब जाना तो उन्हें अपार कष्ट हुआ कि हरसू पाण्डेय के प्रभाव में आकर राजा उसकी उपेक्षा कर रहे हैं। रानी ने अंत में कह ही दिया कि मुझे आपका पुनर्विवाह स्वीकार नहीं। अब राजा करें भी तो क्या? अंत में राजा ने श्री हरसू पाण्डेय की सहायता से सरगुजा (छŸाीसगढ़) की राजकुमारी ज्ञानकुंअर से काशी में चुपचाप शादी कर ली जो राजा भानुदेव सिंह की पुत्री थी। काशी में ही नया भवन बनाकर इनकी व्यवस्था की गई। इधर रानी को जब यह मालूम हुआ उसने चाल चलकर छोटी रानी को भी यहीं राजमहल में बुला लिया। अब दोनों रानी साथ रहतीं पर बड़ी रानी को हमेशा राजा से बदला लेने का भाव बलवती रहा। जब छोटी रानी के आगमन का उत्सव राजमहल सहित पूरे राज्य में मनाया जा रहा था तभी बड़ी रानी ने घोषणा करते हुए कहा कि अब इस राज्य की वास्तविक महारानी ज्ञानकंुअर ही रहेंगी और आज से मेरा कार्य राजा को प्रशासनिक सहयोग देना है। राजा रानी के इस त्याग को जान सुनकर सन्न रह गया और उसने भी तत्क्षण घोषणा की कि बगैर बड़ी महारानी की राय विचार के वे कोई कार्य नहीं करेंगे। दिन गुजर रहा था पर एक रात बड़ी महारानी ने राजा को हरसू ब्रह्म के महल की ओर इशारा किया कि कैसे आप राजा और कैसा आपका राज्य है जहां राजा से ऊंचे भवन में राजपुरोहित का दीप रातभर जलता रहता है। राजा ऊँचा है अथवा राजपुरोहित। राजा ने समझाया- ऐसा मत सोच प्रिय... हरसू अपना राजकीय पुरोहित ही नहीं समस्त कार्य का मतिदाता व सहायक है पर रानी के मन में तो बदले की भावना अभी तक बनी थी। उसने याद दिलाया कि आप तो वचन दे चुके हैं कि मेरी राय की अवहेलना नहीं करेंगे। तो चलिए उसके भवन में ऊपर दीप आज से नहीं जले- भला राजा के भवन से ऊंचा पुरोहित का भवन होगा ! राजा वचन हार कर रानी की बातों में आ गया। जैसे ही राजा का काफिला हरसू पाण्डेय की भवन तक पहुंचा अनुभवी हरसू सब जान समझ गये। अपने इष्ट देव का स्मरण किया... रक्षा की गुहार लगाई फिर क्या था ब्रह्म देवता के परम उपासक हरसू पाण्डेय की रक्षा अदृश्य रूप में ब्रह्म शक्ति करने लगी। सम्पूर्ण राज्य में हाहाकार मच गया। देखते-देखते विशाल राजप्रासाद ढेर हो गया। राजा-रानी सभी डर गये। छोटी रानी गर्भ से थी इस कारण उन्हें नैहर भेज दिया गया। हरसू पाण्डेय ऐसा करने के बाद बड़े दुखी हुए और उन्होंने अनशन प्रारंभ कर दिया। अनशन के 21वें दिन मध्याह्न में संवत् 1484 माघ शुक्ल नवमी भौमवार को अपना शरीर त्याग करने के उपरांत सूक्ष्म शरीर धारण कर हरसू पाण्डेय से हरसू ब्रह्म बन गये। इनकी मृत्यु के बाद इनके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी पर एक जोरदार आवाज के साथ ही शरीर पिंड रूप में परिवर्तित हो गया। यही पिंड आज हरसू ब्रह्म स्थान के मूल पूजन क्षेत्र में पूजित है जिसे आयु फलदाता स्वीकारा जाता है। इस क्षेत्र में हरसू ब्रह्म से संबद्ध और भी कुछ देवस्थल पूजित हैं जो ‘ब्रह्म’ देवता के ही हैं पर इन सबों के बीच हरसू बाबा का स्थान बड़ा ही महिमाकारी है। s सब्सक्राइब देवी और देवअध्यात्म, धर्म आदिमन्दिर एवं तीर्थ स्थल  सम्बंधित लेख अंक के और लेख लेखक के लेख  अप्रैल 2014 व्यूस : 9432 राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) फ्यूचर पाॅइन्ट अगस्त्य संहिता में कहा है: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में पवित्र पुनर्वसु नक्षत्र में गुरु...और पढ़ें  फ़रवरी 2014 व्यूस : 5564 ऋतुराज का स्वागतोत्सव वसंत पंचमी फ्यूचर पाॅइन्ट वसंत पंचमी का उत्सव माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष अंग्रेजी तारीख...और पढ़ें  फ़रवरी 2014 व्यूस : 7421 महाशिवरात्रि व्रत का आध्यात्मिक महत्व फ्यूचर पाॅइन्ट महाशिवरात्रि व्रत प्रतिवर्ष भूतभावन सदाशिव महाकालेश्वर भगवान शंकर के प्रसन्नार्थ और स्वलाभार्थ फाल्ग...और पढ़ें  मार्च 2014 व्यूस : 4314 क्यों? 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